विजय दशमी 2024 :-पंडित कौशल पाण्डेय
नवरात्र संपूर्ण ब्रह्माण्ड का संचालन करने वाली जो शक्ति है उस शक्ति को शास्त्रों ने आद्या शक्ति की संज्ञा दी है।
देवी सूक्त के अनुसार-
या देवी सर्व भूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।।
अर्थात जो देवी अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल, आकाश और समस्त प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित है, उस शक्ति को नमस्कार, नमस्कार, बारबार मेरा नमस्कार है।
विजयादशमी का महत्व :- आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये। स कालो विजयो ज्ञेयः सर्वकार्यर्थ सिद्धये।।
अर्थात आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल तारा उदय होने के समय विजयकाल रहता है इसलिए इसे विजयादशमी कहा जाता है। विजयादशमी का दूसरा नाम दशहरा भी है। भगवान श्री राम की पत्नी सीता को जब अहंकारी एवं अधर्मी रावण अपहरण कर ले गया तब नारद मुनि के निर्देशानुसार भगवान श्री राम ने नवरात्र व्रत कर नौ दिन भगवती दुर्गा की अर्चना कर, प्रसन्न कर, वर प्राप्त कर रावणकी लंका पर चढ़ाई की। इसी आश्विन शुक्ल दशमी के दिन राम ने रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी। तब से इसे विजयादशमी के रूप में मनाया जाने लगा।
महाभारत में वर्णन है कि दुर्योधन ने पांडवों को जुए में हराकर बारह वर्ष का वनवास दिया था एवं तेरहवां वर्ष अज्ञातकाल का था। इस वर्ष में यदि कौरव पांडवों को खोज निकालते तो पुनः बारह वर्ष का वनवास व एक वर्ष का अज्ञातवास का सामना करना पड़ता। इस अज्ञात काल में पांडवों ने राजा विराट के यहां नौकरी की थी। अर्जुन इस काल में वृहन्नला के वेष में रह रहा था। जब गौ रक्षा के लिए धृष्टद्युम्न ने कौरव सेना पर आक्रमण करने की योजना बनाई तब अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने अस्त्र-शस्त्र उतारकर कौरव सेना पर विजय इसी दिन प्राप्त की थी।
इस कारण भी विजयादशमी का पर्व प्रचलित हो गया। इस प्रकार से देखा जाए तो विजयादशमी का पर्व मुख्यतः विजय दशमी के रूप में मनाया जाता है। आश्विन मास के नवरात्र में देश के अधिकांश भागों में लंकापति रावण का पुतला दहन किया जाता है। रावण दहन के साथ मेघनाद व कंुभकरण के भी पुतले बनाकर जलाए जाते हैं।
विजयादशमी का पर्व राज परिवार में सीमा उल्लंघन कर मनाया जाता था। परंतु समय चक्र के साथ राजतांत्रिक व्यवस्था का स्थान लोकतंत्र ने ले लिया। अब यह उत्सव आमजन भी विशेष उत्साह एवं उल्लास के साथ मना रहा है। वास्तव में यह उत्सव बुराई के अंत स्वरूप मनाया जाता है। यह पर्व असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है तो अन्याय पर न्याय की जीत, अधर्म पर धर्म की जीत, दुष्कर्मों पर सत्कर्मों की जीत का पर्व है। यह पर्व हमें सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। सत्य चाहे कितना भी कड़वा हो, हमेशा उसी का अनुसरण करना चाहिए क्योंकि यह सनातन सत्य है कि हमेशा शुभ कर्मों की ही जीत होती है। इसे विजय पर्व भी कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में इसे अबूझ मुहूर्त की संज्ञा दी गई है। इस दिन किया गया कोई भी कार्य अवश्य सफल रहता है। किसी भी प्रकार के शुभ कर्म के लिए इस पर्व का अवश्य उपयोग करना चाहिए।
कैसे मनाएं विजयादशमी विजयादशमी का पर्व प्राचीन काल से ही पूरे भारत वर्ष में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व रावण पर राम की विजय के प्रतीक रूप में मुख्यतया मनाया जाता है। इस दिन रावण, मेघनाद व कुंभकरण का पुतला बनाकर उन्हें जलाने की परंपरा मुख्य रूप से सर्वत्र प्रचलित है। इस दिन अपराजिता पूजन व शमी पूजन विशेष रूप से कई स्थानों पर किया जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार जब दशमी नवमी से संयुक्त हो तो अपराजिता देवी का पूजन दशमी को उत्तर-पूर्व दिशा में अपराह्न के समय विजय एवं कल्याण की कामना के लिए किया जाना चाहिए।
धर्म सिंधु के अनुसार अपराजिता पूजन के लिए अपराह्न में गांव के उत्तर-पूर्व की ओर जाकर एक स्वच्छ स्थल को गोबर से लीपना चाहिए। फिर चंदन से आठ कोण दल बनाकर संकल्प करना चाहिए- ‘मम सकुटुम्बस्य क्षेमसिद्धयर्थ अपराजिता पूजन करिष्ये। इसके पश्चात उस आकृति के बीच में अपराजिता का आवाहन करना चाहिए। इसके दाहिने एवं बायें जया एवं विजया का आवाहन करना चाहिए एवं साथ ही क्रिया शक्ति को नमस्कार एवं उमा को नमस्कार करना चाहिए। इसके पश्चात अपराजितायै नमः जयायै नमः विजयायै नमः मंत्रों के साथ षोडशोपचार पूजन करना चाहिए।
इसके पश्चात यह प्रार्थना करनी चाहिए - ‘हे देवी, यथाशक्ति मैंने जो पूजा अपनी रक्षा के लिए की है उसे स्वीकार कर आप अपने स्थान को जा सकती हैं। इस प्रकार अपराजिता पूजन के पश्चात उत्तर-पूर्व की ओर शमी वृक्ष की तरफ जाकर पूजन करना चाहिए।
शमी का अर्थ शत्रुओं का नाश करने वाला होता है। शमी पूजन के लिए इस मंत्र का पाठ करना चाहिए-
प्रार्थना मंत्र-
शमी शमयते पापं शमी लोहितकण्टका। धारिष्यर्जन बाणानां रामस्य प्रियवादिनी।।
करिष्यमाणयात्रायां यथाकाल सुखं मया। तत्र निर्विघ्नकत्र्रीत्वंभव श्रीरामपूजिते।।
अर्थ- शमी पापों का शमन करती है। शमी के कांटे तांबे के रंग के होते हैं। यह अर्जुन के बाणों को धारण करती है। हे शमी, राम ने तुम्हारी पूजा की है। मैं यथाकाल विजययात्रा पर निकलंूगा। तुम मेरी इस यात्रा को निर्विघ्नकारक व सुखकारक करो। इसके पश्चात शमी वृक्ष के नीचे चावल, सुपारी व तांबे का सिक्का रखते हैं। फिर वृक्ष की प्रदक्षिणा कर उसकी जड़ के पास मिट्टी व कुछ पत्ते घर लेकर आते हैं। भगवान राम के पूर्वज रघु ने विश्वजीत यज्ञ कर अपनी सम्पूर्ण धन-सम्पत्ति दान कर दी तथा पर्ण कुटिया में रहने लगे। इसी समय कौत्स को चैदह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की आवश्यकता गुरु दक्षिणा के लिए पड़ी। तब रघु ने कुबेर पर आक्रमण कर दिया तब कुबेर ने शमी एवं अश्मंतक पर स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा की थी तब से शमी व अश्मंतक की पूजा की जाती है। अश्मंतक के पत्र घर लाकर स्वर्ण मानकर लोगों में बांटने का रिवाज प्रचलित हुआ। अश्मंतक की पूजा के समय निम्न मंत्र बोलना चाहिए: अश्मंतक महावृक्ष महादोष निवारणम। इष्टानां दर्शनं देहि कुरु शत्रुविनाशम।। अर्थात हे अश्मंतक महावृक्ष तुम महादोषों का निवारण करने वाले हो, मुझे मेरे मित्रों का दर्शन कराकर शत्रु का नाश करो। इस प्रकार विजयादशमी का पर्व मनाने से सुख समृद्धि प्राप्त होकर विजय की प्राप्ति होती है
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