चैत्र नवरात्री घट स्थापना मुहूर्त 2024:-पंडित कौशल पाण्डेय
चैत्र नवरात्रि की शुरुआत मंगलवार 09 अप्रैल 2024 से प्रारंभ होकर समापन 17 अप्रैल 2024 को होगा।
प्रतिपदा तिथि का प्रारम्भ 08 अप्रैल 2024 को रात 11 बजकर 50 मिनट से होगा वहीं प्रतिपदा तिथि का समापन 09 अप्रैल 2024 को शाम 08 बजकर 30 मिनट पर होगा। इस शुभ अवसर पर वैधृति योग का प्रारम्भ 08 अप्रैल 2024 को शाम 06 बजकर 14 मिनट पर होगा । वहीं वैधृति योग का समापन 09 अप्रैल 2024 को दोपहर 02 बजकर 18 मिनट पर होगा ।
ध्यान दें- घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि पर है। घटस्थापना मुहूर्त निषिद्ध वैधृति योग के दौरान है। पंचांग के अनुसार घटस्थापना के लिए अमृत मुहूर्त सबसे शुभ माना जाता है। अगर आप किन्हीं भी कारणों से अमृत मुहूर्त में घटस्थापना नहीं कर पाते हैं तो आप अभिजीत मुहूर्त में भी घटस्थापना कर सकते हैं।
घट स्थापना मुहूर्त
सुबह 6 बजकर 02 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 16 मिनट तक
अभिजित मुहूर्त - 11:57 ए एम से 12:48 पी एम
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त है।
चैत्र नवरात्रि के घटस्थापना की पूजा सामग्री
मिट्टी का बड़ा कटोरा, मिट्टी, जौं, तांबे, मिट्टी या पीतल का कलश, जटा वाला नारियल, लाल चुनरी, कलावा , आम के पत्ते या अशोक के पत्ते, रोली, पुष्प, अक्षत से भरा एक पात्र, यज्ञोपवित या जनैऊ, फल, मेवे।
कलश में डालने की सामग्री
कलश के अंदर डालने के लिए आपको अक्षत, हल्दी , कुमकुम, गंगाजल, शुद्धजल, सिक्का, दूर्वा, सुपारी, हल्दी की गांठआदि।
घटस्थापना करने की विधि
नवरात्रि के प्रथम दिन स्नानादि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण कर लें।
इसके पश्चात् पूजा स्थल पर गंगाजल छिड़क कर शुद्धिकरण कर लें।
अब पूजा स्थल पर चौकी लगाएं और उसपर लाल कपड़ा बिछाएं, चौकी को ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करें। यह ध्यान रखें कि पूजा करने वाले व्यक्ति का मुख पूर्व दिशा में हो।
चौकी पर माता की प्रतिमा या फिर चित्र को स्थापित कर लें। आप माता की प्रतिमा को स्थापित करने से पहले उन्हें गंगाजल से स्नान भी करवा सकते हैं और उनका श्रृंगार करने के बाद उन्हें चौकी पर विराजमान कर सकते हैं।
अब चौकी पर माता की प्रतिमा के बाएं ओर अक्षत से अष्टदल बनाएं। अष्टदल बनाने के लिए कुछ अक्षत रखें और उसके बीच से शुरू करते हुए, बाहर की तरफ 9 कोने बनाएं। इसके ऊपर ही घट स्थापना की जाएगी।
अब आपको आचमन करना है, उसके लिए आप बाएं हाथ में जल लें, और दायं हाथ में डालें, इस प्रकार दोनों हाथों को शुद्ध करें। फिर आचमन मंत्र यानी, “ॐ केशवाय नम: ॐ नाराणाय नम: ॐ माधवाय नम: ॐ ह्रषीकेशाय नम:”का उच्चारण करते हुए तीन बार जल ग्रहण करें, इसके बाद पुनः हाथ धो लें।
घट स्थापना से पहले सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर लें और उसके ऊपर गंगाजल का छिड़काव करें। इस प्रकार सामग्री का शुद्धिकरण हो जाएगा।
अब आप एक मिट्टी का बड़ा कटोरा लें, जिसमें मिट्टी डालकर जौ बो दें। इस पात्र को चौकी पर बनाएं गए अष्टदल पर रख दें।
इसके अलवा आप एक मिट्टी, तांबे या पीतल का कलश लें, जिसपर रोली से स्वास्तिक बनाएं।
कलश के मुख पर मौली बांधे।
इस कलश में गंगा जल, व शुद्ध जल डालें।
जल में हल्दी की गांठ, दूर्वा, पुष्प, सिक्का, सुपारी, लौंग इलायची, अक्षत, रोली और मीठे में बताशा भी डालें, ऐसा करते समय आप इस मंत्र का उच्चारण करें-
“कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिता: मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृता:। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामवेदो अथर्वणा: अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिता:।”
अब कलश के मुख को 5 आम के पत्तों से ढक देंगे और आम के पत्तों पर भी हल्दी, कुमकुम का तिलक अवश्य लगाएं।
इन आम के पत्तों पर एक पात्र में अक्षत डाल कर रख दें।
अब एक जटा वाला नारियल लें और उसपर चुनरी लपेट दें और मौली बांध दें।
इस नारियल को कलश के ऊपर चावल वाले पात्र में रख दें।
अंत में इस कलश को जिस मिट्टी के पात्र में जौ बोए थे, उसके ऊपर रख दें।
घटस्थापना के बाद आप माता की प्रतिमा के दाएं तरफ अखंड दीपक रखें और उसे प्रज्वलित करें।
अखंड दीप प्रज्वलित करने से संबंधित संपूर्ण जानकारी ऐप पर उपलब्ध है, आप उसे ज़रूर देखें।
घटस्थापना के बाद, इसकी पूजा भी की जाती है। आप घट के समक्ष धूप, दीप अवश्य दिखाएं और भोग में मेवे व फल अर्पित करें।
घटस्थापना में किन बातों का रखें ध्यान
दिन के एक तिहाई हिस्से से पहले घटस्थापना की प्रक्रिया संपन्न कर लेनी चाहिए।
इसके अलावा कलश स्थापना के लिए अमृत मुहूर्त को सबसे उत्तम माना गया है।
घटस्थापना मंदिर के उत्तर-पूर्व दिशा में करनी चाहिए। अगर आप किसी कारणवश अमृत मुहूर्त में घटस्थापना नहीं कर पाते हैं तो आप अभिजीत मुहूर्त में भी घटस्थापना कर सकते हैं।
नवरात्रि के दौरान क्या करें और क्या नहीं
शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के इस पावन अनुष्ठान में उपवास करने से व्यक्ति का चित्त बेहद पवित्र होता है, साथ ही उसे मानसिक एवं आत्मिक शक्ति भी मिलती हैं। कुछ लोग पूरे नौ दिनों तक निर्जला उपवास रखते हैं तो कुछ लोग अपनी क्षमतानुसार प्रथम या अंतिम नवरात्र का व्रत रखते हैं। माना जाता है कि यदि उपवास को विधि-विधान से पूर्ण किया जाए, तो वह तप के समान हो जाता हैं। ऐसे में हमें व्रत के नियमों का खास ख्याल रखना होता है।
0 टिप्पणियाँ