भैयादूज’ पर्व पर बधाई एवं शुभकामनाएँ

भारतीय संस्कृति में प्रत्येक संबंध की अपनी गरिमा एवं महत्व है । संबंध बनाना और उन्हें उतने ही प्रेम व आदर से निभाना, यह हमारे उत्तम संस्कारों पर निर्भर करता है और यही सनातन संस्कारों से पोषित हमारे व्यक्तित्व का परिचय भी देता है ।

भैयादूज’ पर्व पर बधाई एवं शुभकामनाएँ


भैया दूज पौराणिक कथा!!!!
भैया दूज पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें रोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं। 
भैया दूज पौराणिक कथा!!!!
सूर्य की पत्नी संज्ञा से 2 संतानें थीं, पुत्र यमराज तथा पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण कर उन्हें ही अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहाँ से चली गई।छाया को यम और यमुना से अत्यधिक लगाव तो नहीं था, किंतु यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थीं।
यमुना अपने भाई यमराज के यहाँ प्राय: जाती और उनके सुख-दुःख की बातें पूछा करती। तथा यमुना, यमराज को अपने घर पर आने के लिए भी आमंत्रित करतीं, किंतु व्यस्तता तथा अत्यधिक दायित्व के कारण वे उसके घर न जा पाते थे।
एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के घर अचानक जा पहुँचे। बहन के घर जाते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। बहन यमुना ने अपने सहोदर भाई का बड़ा आदर-सत्कार किया। विविध व्यंजन बनाकर उन्हें भोजन कराया तथा भाल पर तिलक लगाया। जब वे वहाँ से चलने लगे, तब उन्होंने यमुना से कोई भी मनोवांछित वर मांगने का अनुरोध किया।यमुना ने उनके आग्रह को देखकर कहा: भैया! यदि आप मुझे वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन प्रतिवर्ष आप मेरे यहाँ आया करेंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार किया करेंगे। इसी प्रकार जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाये, उसे आपका भय न रहे। इसी के साथ उन्होंने यह भी वरदान दिया कि यदि इस दिन भाई-बहन यमुना नदी में डुबकी लगाएंगे तो वे यमराज के प्रकोप से बचे रहेंगे।
यमुना की प्रार्थना को यमराज ने स्वीकार कर लिया। तभी से बहन-भाई का यह त्यौहार मनाया जाने लगा। भैया दूज त्यौहार का मुख्य उद्देश्य, भाई-बहन के मध्य सद्भावना, तथा एक-दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना है। भैया दूज के दिन ही पांच दीनो तक चलने वाले दीपावली उत्सव का समापन भी हो जाता है।

❖: पौराणिक कथानुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को यमराज ने अपनी बहन देवी👫 यमुना से मुलाकात की थी और यमुना ने अपने भाई को तिलक किया था. इसलिए यह दिन भाई-बहन के अटूट प्रेम और सौहार्द को दर्शाता है. इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक करती हैं और उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती हैं.
✍️: 
: भाई दूज भारत में मनाए जाने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है जो की भारत के कोने कोने में मनाया जाता है| भाई दोज एक हिंदू त्यौहार है जो भारत और नेपाल में मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू धर्म के अनुयाई द्वारा मनाया जाता है| यह पर्व भाई और बहन के पावन रिश्ते के महत्व को दर्शाता है| इस दिन के अनुष्ठान और उत्सव ‘रक्षा बंधन’ जैसे लोकप्रिय उत्सव के समान हैं। इस विशेष अवसर पर भाई अपनी बहनों को कई उपहारों देते हैं और बदले में बहनें अपने भाइयों को मिठाई देती हैं| 

👫भाई दूज की कहानी✍️

 | एक बुढी माता थी| उसके सात बेटे और एक बेटी थी| बेटी की शादी हो चुकी थी| जब भी उसके बेटे की शादी होती, फेरों के समय एक नाग 🐍आता और उसके बेटे को डंस लेता था| बेटा वहीं ख़तम हो जाता और बहू विधवा हो जाती थी| 
इस तरह उसके छह बेटे मर गये | सातवें की शादी होनी बाकी थी| इस तरह अपने बेटों के मर जाने के दुख से बुढ़िया रो रो के अंधी हो गयी थी| 
भाई दूज आने को हुई तो भाई ने कहा की मैं बहिन से तिलक कराने जाऊँगा|
 माँ ने कहा ठीक है| उधर जब बहिन को पता चला की उसका भाई आ रहा है तो वह खुशी से पागल होकर पड़ोसन के घर गई और पूछने लगी की जब बहुत प्यारा भाई घर आए तो क्या बनाना चाहिए? पड़ोसन उसकी खुशी को देख कर जलभुन गयी और कह दिया कि,” दूध से रसोई लेप, घी में चावल पका| ” बहिन ने एसा ही किया| उधर भाई जब बहिन के घर जा रहा था तो उसे रास्ते में साँप मिला| साँप उसे डंसने को हुआ| भाई बोला- तुम मुझे क्यूं डंस रहे हो? साँप बोला- मैं तुम्हारा काल हूँ| और मुझे तुमको डंसना है| भाई बोला- मेरी बहिन मेरा इंतजार कर रही है| मैं जब तिलक करा के वापस लौटूँगा, तब तुम मुझे डंस लेना| साँप ने कहा- भला आज तक कोई अपनी मौत के लिए लौट के आया है, जो तुम आऔगे| भाई ने कहा- अगर तुझे यकीन नहीं है तो तू मेरे झोले में बैठ जा| जब मैं अपनी बहिन के तिलक करा लूं तब तू मुझे डंस लेना| 
साँप ने ऐसा ही किया| भाई बहिन के घर पहुँच गया| दोनो बड़े खुश हुए| भाई बोला- बहिन, जल्दी से खाना दे, बड़ी भूख लगी है| 
बहिन क्या करे|
 न तो दूध की रसोई सूखे, न ही घी में चावल पके| भाई ने पूछा- बहिन इतनी देर क्यूँ लग रही है? तू क्या पका रही है? तब बहिन ने बताया कि ऐसे ऐसे किया है| भाई बोला- पगली! कहीं घी में भी चावल पके हैं , या दूध से कोई रसोई लीपे है| गोबर से रसोई लीप, दूध में चावल पका| 
 बहिन ने एसा ही किया| खाना खा के भाई को बहुत ज़ोर नींद आने लगी| इतने में बहिन के बच्चे आ गये| बोले-मामा मामा हमारे लिए क्या लाए हो? भाई बोला- में तो कुछ नही लाया| बच्चो ने वह झोला ले लिया जिसमें साँप था| जेसे ही उसे खोला, उसमे से हीरे का हार निकला| बहिन ने कहा- भैया तूने बताया नहीं की तुम मेरे लिए इतना सुंदर हार लाए हो| भाई बोला- बहना तुझे पसंद है तो तू लेले, मुझे हार का क्या करना| अगले दिन भाई बोला- अब मुझे जाना है, मेरे लिए खाना रख दे| बहिन ने उसके लिए लड्डू बना के एक डब्बे मे रख के दे दिए| भाई कुछ दूर जाकर, थक कर पेड़ के नीचे सो गया| उधर बहिन के बच्चों को जब भूख लगी तो माँ से कहा की खाना दे दो| माँ ने कहा- खाना अभी बनने में देर है| तो बच्चे बोले कि मामा को जो रखा है वही दे दो| तो वह बोली की लड्डू बनाने के लिए बाजरा पीसा था, वही बचा पड़ा है चक्की में, जाकर खा लो| बच्चों ने देखा कि चक्की में तो साँप की हड्डियाँ पड़ी है| यही बात माँ को आकर बताई तो वह बावड़ी सी हो कर भाई के पीछे भागी| रास्ते भर लोगों से पूछती की किसी ने मेरा गैल बाटोई देखा, किसी ने मेरा बावड़ा सा भाई देखा| तब एक ने बताया की कोई लेटा तो है पेड़ के नीचे, देख ले वही तो नहीं| भागी भागी पेड़ के नीचे पहुंची| अपने भाई को नींद से उठाया| भैया भैया कहीं तूने मेरे लड्डू तो नहीं खाए!! भाई बोला- ये ले तेरे लड्डू, नहीं खाए मैने| ले दे के लड्डू ही तो दिए थे, उसके भी पीछे पीछे आ गयी| बहिन बोली- नहीं भाई, तू झूठ बोल रहा है, ज़रूर तूने खाया है| अब तो मैं तेरे साथ चलूंगी| भाई बोला- तू न मान रही है तो चल फिर| चलते चलते बहिन को प्यास लगती है, वह भाई को कहती है की मुझे पानी पीना है| भाई बोला- अब मैं यहाँ तेरे लिए पानी कहाँ से लाउ ! 
देख दूर कहीं चील उड़ रहीं हैं,चली जा वहाँ शायद तुझे पानी मिल जाए|
 तब बहिन वहाँ गयी, और पानी पी कर जब लौट रही थी तो रास्ते में देखती है कि एक जगह ज़मीन में 6 शिलाएं गढ़ी हैं, और एक बिना गढ़े रखी हुई थी| उसने एक बुढ़िया से पूछा कि ये शिलाएँ कैसी हैं| उसने बताया कि- एक बूढ़ी माता है| उसके सात बेटे थे| 6 बेटे तो शादी के मंडप में ही मर चुके हैं, तो उनके नाम की ये शिलाएँ ज़मीन में गढ़ी हैं, अभी सातवें की शादी होनी बाकी है| जब उसकी शादी होगी तो वह भी मंडप में ही मर जाएगा, तब यह सातवीं शिला भी ज़मीन में गड़ जाएगी| यह सुनकर बहिन समझ गयी ये शिलाएँ किसी और की नहीं बल्कि उसके भाइयों के नाम की हैं| उसने उस बुढ़िया से अपने सातवें भाई को बचाने का उपाय पूछा| बुढ़िया ने उसे बतला दिया कि वह अपने सातवे भाई को केसे बचा सकती है| सब जान कर वह वहाँ से अपने बाल खुले कर के पागलों की तरह अपने भाई को गालियाँ देती हुई चली|
: भाई के पास आकर बोलने लगी- तू तो जलेगा, कटेगा, मरेगा| भाई उसके एसे व्यवहार को देखकर चोंक गया पर उसे कुछ समझ नही आया| इसी तरह दोनो भाई बहिन अपने  घर पहुँच गये| थोड़े दिनों के बाद भाई के लिए रिश्ते आने लगे| उसकी शादी तय हो गयी| जब भाई को सहरा पहनाने लगे तो वह बोली- इसको क्यूं सहरा बँधेगा, सहारा तो मैं पहनूँगी| ये तो जलेगा, मरेगा| सब लोगों ने परेशान होकर सहरा बहिन को दे दिया| बहिन ने देखा उसमें कलंगी की जगह साँप का बच्चा था| बहिन ने उसे निकाल के फैंक दिया| अब जब भाई घोड़ी चढ़ने लगा तो बहिन फिर बोली- ये घोड़ी पर क्यूं चढ़ेगा, घोड़ी पर तो मैं बैठूँगी, ये तो जलेगा, मरेगा, इसकी लाश को चील कौवे खाएँगे| सब लोग बहुत परेशान | सब ने उसे घोड़ी पर भी चढ़ने दिया| अब जब बारात चलने को हुई तब बहिन बोली- ये क्यूं दरवाजे से निकलेगा, ये तो पीछे के रास्ते से जाएगा, दरवाजे से तो मैं निकलूंगी| जब वह दरवाजे के नीचे से जा रही थी तो दरवाजा अचानक गिरने लगा| बहिन ने एक ईंट उठा कर अपनी चुनरी में रख ली, दरवाजा वहीं की वहीं रुक गया| सब लोगों को बड़ा अचंभा हुआ| रास्ते में एक जगह बारात रुकी तो भाई को पीपल के पेड़ के नीचे खड़ा कर दिया| बहिन कहने लगी- ये क्यूं छांव में खड़ा होगा, ये तो धूप में खड़ा होगा| छाँव में तो मैं खड़ी होगी| जैसे ही वह पेड़ के नीचे खड़ी हुई, पेड़ गिरने लगा| बहिन ने एक पत्ता तोड़ कर अपनी चुनरी में रख लिया, पेड़ वहीं की वहीं रुक गया| अब तो सबको विश्वास हो गया की ये बावली कोई जादू टोना सीख कर आई है, जो बार बार अपने भाई की रक्षा कर रही है| एसे करते करते फेरों का समय आ गया| जब दुल्हन आई तो उसने दुल्हन के कान में कहा- अब तक तो मैने तेरे पति को बचा लिया, अब तू ही अपने पति को और साथ ही अपने मरे हुए जेठों को बचा सकती है| फेरों के समय एक नाग आया, वो जैसे ही दूल्हे को डंसने को हुआ , दुल्हन ने उसे एक लोटे में भर के उपर से प्लेट से बंद कर दिया| थोड़ी देर बाद नागिन लहर लहर करती आई|
: दुल्हन से बोली- तू मेरा पति छोड़| दुल्हन बोली- पहले तू मेरा पति छोड़| नागिन ने कहा- ठीक है मैनें तेरा पति छोड़ा| दुल्हन- एसे नहीं, पहले तीन बार बोल| नागिन ने 3 बार बोला, फिर बोली की अब मेरे पति को छोड़| दुल्हन बोली- एक मेरे पति से क्या होगा, हंसने बोलने क लिए जेठ भी तो होना चाहिए, एक जेठ भी छोड़| नागिन ने जेठ के भी प्राण दे दिए| फिर दुल्हन ने कहा- एक जेठ से लड़ाई हो गयी तो एक और जेठ छोड़| वो विदेश चला गया तो तीसरा जेठ भी छोड़| इस तरह एक एक करके दुल्हन ने अपने 6 जेठ जीवित करा लिए| उधर रो रो के बुढ़ी मां का बुरा हाल था| कि अब तो मेरा सातवां बेटा भी बाकी बेटों की तरह मर जाएगा| गाँव वालों ने उसे बताया कि उसके सात बेटा और बहुएं आ रही हैं तो बुढ़िया बोली- अगर यह बात सच हो तो मेरी आँखो की रोशनी वापस आ जाए और मेरे सीने से दूध की धार बहने लगे| एसा ही हुआ| अपने सारे बहू बेटों को देख कर वह बहुत खुश हुई, बोली- यह सब तो मेरी बावली का किया है| कहाँ है मेरी बेटी? सब बहिन को ढूँढने लगे| देखा तो वह भूसे की कोठरी में सो रही थी| जब उसे पता चला कि उसके भाई सही सलामत है तो वह अपने घर को चली| उसके पीछे पीछे सारी लक्ष्मी भी जाने लगी| बुढ़ी मां ने कहा- बेटी, पीछे मूड के देख! तू सारी लक्ष्मी ले जाएगी तो तेरे भाई भाभी क्या खाएँगे| तब बहिन ने पीछे मूड के देखा और कहा- जो माँ ने अपने हाथों से मुझे दिया वह मेरे साथ चल,  बाकी का भाई भाभी के पास रह| इस तरह एक बहिन ने अपने भाई की रक्षा की, 

भाई-बहन के पवित्र संबंध को दर्शाने वाले परम-पावन ‘#भैयादूज’ पर्व पर अनन्त अनुरागह्रदय बधाई एवं शुभकामनाएँ......
समृद्ध सनातन संस्कारों को सुदृढ़ करता यह पावन पर्व सभी के जीवन में सद्भावना, प्रेम और समृद्धि लाए।
पंडित कौशल पाण्डेय 
राष्ट्रीय अध्यक्ष 
श्री राम हर्षण शांति कुञ्ज,भारत 

#भैयादूज  #bhaidooj

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