जानिए श्रवण (सावन) का महीना कब से कब तक है :- पंडित कौशल पाण्डेय

जानिए श्रवण (सावन) का महीना कब से कब तक है :- पंडित कौशल पाण्डेय 

जानिए 2024 में (श्रवण) सावन महीना कब से कब तक है ?
हिंदू पंचांग के अनुसार, 21 जुलाई को आषाढ़ पूर्णिमा है। अगले दिन यानी 22 जुलाई को श्रावण मास आरंभ हो जाएगा, जो 19 अगस्त 2024 को श्रावण पूर्णिमा के साथ समापन होगा। 

सावन माह की शुरुआत 22 जुलाई 2024, सोमवार से प्रारम्भ हो रहा है। ऐसे में कांवड़ यात्रा की शुरुआत भी 22 जुलाई 2024 से होगी।
भक्तगण श्रावण महीने की त्रियोदशी (शिवरात्रि) शुक्रवार 02 अगस्त 2024 को कावर जलाभिषेक  कर कांवर यात्रा का समापन करते है। 

savan mahina 2023


सनातन धर्म में सावन महीने का विशेष महत्व होता है. यह महीना देवों के देव भगवान महादेव की पूजा-अराधना और व्रत के लिए समर्पित होता है. 

भगवान शंकर ने स्वयं अपने श्री मुख से ब्रह्माजी के मानस पुत्र सनतकुमार सावन मास की महिमा इस प्रकार बताई थी। 
‘‘मेरे तीन नेत्रों में सूर्य दाहिने चंद्र वाम नेत्र तथा अग्नि मध्य नेत्र हैं। चंद्रमा की राशि कर्क और सूर्य की सिंह है। जब सूर्य कर्क से सिंह राशि तक की यात्रा करते हैं, तो ये दोनों संक्रांतियां अत्यंत पुण्य फलदायी होती हैं और यह पुण्यकाल सावन के महीने में ही होता है अर्थात ये दोनों ही संक्रांतियां सावन में ही आती हैं। अतः सावन मास मुझे अधिक प्रिय है।’’ 

जानिए कब है सावन का पहला और आखिरी सोमवार व्रत ?  

श्रावण मास में सोमवार व्रत अधिक प्रचलित है। लागे साले ह सामे वार व्रत करते हैं। चंद्र भगवान शिव के नेत्र हैं और उनका दूसरा नाम सोम है। सोम ब्राह्मणों के राजा और औषधियों के देवता हैं। अतः सोमवार का व्रत करने से समस्त शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्ट दूर होते हैं और जीवन सुखमय हो जाता है। 

सावन सोमवार व्रतों का पालन करने से बारह महीनों के सभी सोमवार व्रतों का फल मिल जाता है। सोमवार के व्रत का विधान अत्यंत सरल है। स्नान करके श्वेत या हरा वस्त्र धारण करें, दिन भर मन प्रसन्न रखें, क्रोध, ईष्र्या, चुगली न करें। स्वयं को शिवमय (कल्याणकारी) मानें। दिन भर शिव के पंचाक्षरी मंत्र  ॐ नमः शिवाय का मन ही मन जप करते रहें। 

सावन में 5 सोमवार व्रत की तिथियां 
(Sawan Somvar Vrat List 2024)
पहला सोमवार - 22 जुलाई 2023
दूसरा सोमवार -29  जुलाई 2023
तीसरा सोमवार- 05 अगस्त 2024 
चौथा सोमवार- 12  अगस्त 2024 
पांचवा सोमवार-19  अगस्त 2024

श्रावण मास में वारों का महत्व:-
श्रावण मास के प्रथम सोमवार से शुरू कर निरंतर किया जाने वाला व्रत सभी मनोकामनाएं पूरी करता है। सोमवार का व्रत रोटक, मंगलवार का मंगलागौरी, बुधवार का बुधव्रत, बृहस्पति का बृहस्पति व्रत, शुक्रवार का जीवंतिका व्रत, शनिवार का हनुमान तथा नृसिंह व्रत और रविवार का सूर्य व्रत कहलाता है। 

श्रावण मास में तिथियों का महत्व :-
श्रावण मास में बहुत से महत्वपूर्ण व्रत किए जाते हैं। शुक्ल द्वितीया को किया जाने वाला व्रत औदुंबर व्रत, तृतीया को गौरीव्रत, चतुर्थी को दूर्वा गणपति व्रत (इसे विनायक चतुर्थी भी कहते हैं), पंचमी को नाग पंचमी व्रत (सौराष्ट्र में नागपंचमी श्रावण कृष्ण पक्ष में संपादित होती है), षष्ठी को सूपौदन व्रत, सप्तमी को शीतलादेवी व्रत, अष्टमी और चैदस को देवी का व्रत, नौवीं को नक्तव्रत, दशमी को आशा व्रत और द्वादशी को किया जाने वाला व्रत श्रीधर व्रत कहलाता है। 

श्रवण मास की अंतिम तिथि पूर्णमासी को विसर्जन कर सभी स्त्रियां सबसे पहले अपने भाई को अपने जीवन की रक्षा हेतु रक्षाबंधन बांधती हैं। 
प्रथमा से अमावस्या तिथि तक किए जाने वाले उपवासों के देव देवियां भी भिन्न-भिन्न हैं। प्रतिपदा को किए जाने वाले व्रत के देवता अग्नि, द्वितीया के ब्रह्मा, तृतीया की गौरी, चतुर्थी के विनायक, पंचमी के सर्प, षष्ठी के स्कंद, सप्तमी के सूर्य, अष्टमी के शिव, नौवीं की दुर्गा, दशमी के यम, एकादशी के विश्वेदेव, द्वादशी के हरि नारायण, त्रयोदशी के रतिपति कामदेव, चतुर्दशी के शिव, पूर्णमासी के चंद्रदेव और अमावस्या को किए जाने वाले व्रत के आराध्य पितर हैं।। 

श्रावण में शिव रुद्री के पाठ का विशेष महत्व है। इसके फल का वर्णन इस प्रकार है: शिव पूजक सर्वप्रथम संकल्प करें। तत्पश्चात शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर और निष्ठापूर्वक यथाशक्ति ॐ नमः शिवाय का जप करें। सुयोग्य ब्राह्मणों द्वारा रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करवाएं और उसका श्रवण करें। 

रुद्री के एक पाठ से बाल ग्रहों की शांति होती है। 
तीन पाठ से उपद्रव की शांति होती है। 
पांच पाठ से ग्रहों की, सात से भय की, नौ से सभी प्रकार की शांति और वाजपेय यज्ञ फल की प्राप्ति और ग्यारह से राजा का वशीकरण होता है और विविध विभूतियों की प्राप्ति होती है। इस प्रकार ग्यारह पाठ करने से एक रुद्र का पाठ होता है।

तीन रुद्र पाठ से कामना की सिद्धि और शत्रुओं का नाश, पांच से शत्रु और स्त्री का वशीकरण, सात से सुख की प्राप्ति, नौ से पुत्र, पौत्र, धन-धान्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार नौ रुद्रों से एक महारुद्र का फल प्राप्त होता है जिससे राजभय का नाश, शत्रु का उच्चाटन, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि, अकाल मृत्यु से रक्षा तथा आरोग्य, यश और श्री की प्राप्ति होती है। 

तीन महारुद्रों से असाध्य कार्य की सिद्धि, पांच महारुद्रों से राज्य कामना की सिद्धि, सात महारुद्रों से सप्तलोक की सिद्धि, नौ महारुद्रों के पाठ से पुनर्जन्म से निवृŸिा, ग्रह दोष की शांति, ज्वर, अतिसार तथा पित्त , वात व कफ जन्य रोगों से रक्षा, सभी प्रकार की सिद्धि तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है। 

भगवान शंकर का श्रेष्ठ द्रव्यों से अभिषेक करने का फल जल अर्पित करने से वर्षा की प्राप्ति, कुशा का जल अर्पित करने से शांति, दही से पशु प्राप्ति, ईख रस से लक्ष्मी की प्राप्ति, मधु और घी से धन की प्राप्ति, दुग्ध से पुत्र प्राप्ति, जल की धारा से शांति, एक हजार मंत्रों के सहित घी की धारा से वंश की वृद्धि और केवल दूध की धारा अर्पित करने से प्रमेह रोग से मुक्ति और मनोकामना की पूर्ति होती है, 
लाल शक्कर मिले हुए दूध अर्पित करने से बुद्धि का निर्मल होता है.
सरसों या तिल के तेल से शत्रु का नाश होता है और रोग से मुक्ति मिलती है।
शहद अर्पित करने से यक्ष्मा रोग से रक्षा होती है तथा पाप का क्षय होता है। 
पुत्रार्थी को भगवान सदाशिव का अभिषेक शक्कर मिश्रित जल से करना चाहिए। 
उपर्युक्त द्रव्यों से अभिषेक करने से शिवजी अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। 

रुद्राभिषेक के बाद ग्यारह वर्तिकाएं प्रज्वलित कर आरती करनी चाहिए। इसी प्रकार भगवान शिव का भिन्न-भिन्न फूलों से पूजन करने से भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होते हैं। कमलपत्र, बेलपत्र, शतपत्र और शंखपुष्प द्वारा पूजन करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। आक के पुष्प चढ़ाने से मान-सम्मान की वृद्धि होती है। जवा पुष्प से पूजन करने से शत्रु का नाश होता है। कनेर के फूल से पूजा करने से रोग से मुक्ति मिलती है तथा वस्त्र एवं संपति की प्राप्ति होती है। हर सिंगार के फूलों से पूजा करने से धन सम्पति बढ़ती है तथा भांग और धतूरे से ज्वर तथा विषभय से मुक्ति मिलती है। चंपा और केतकी के फूलों को छोड़कर शेष सभी फूलों से भगवान शिव की पूजा की जा सकती है। साबुत चावल चढ़ाने से धन बढ़ता है। गंगाजल अर्पित करने से मोक्ष प्राप्त होती है।

श्रावण पूजा का नियम :
श्रावण में एक मास तक शिवालय में स्थापित, प्राण-प्रतिष्ठित शिवलिंग या धातु से निर्मित लिंग का गंगाजल व दुग्ध से रुद्राभिषेक करें, यह शिव को अत्यंत प्रिय हैं। वही उत्तरवाहिनी गंगाजल - पंचामृत का अभिषेक भी महाफलदायी हैं।
कुशोदक से व्याधि शांति, जल से वर्षा, दधि से पशु धन, ईख के रस से लक्ष्मी, मधु से धन, दूध से एवं 1100 मंत्रों सहित घी की धारा से पुत्र व वंश वृद्धि होती है। श्रावण मास में द्वादश ज्योतिर्लिंगों पर उत्तरवाहिनी गंगाजल कांवर में लेकर पैदल यात्रा कर, अभिषेक करने मात्र से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता हैं। ऊँ नमः शिवाय मंत्र के जप से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।

#Sawan2024
पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ


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