निर्जला एकादशी के पर्व पर शीतल जल का वितरण किस लिए किया जाता है
निर्जला एकादशी के पावन पर्व पर श्री राम हर्षण शांति कुञ्ज सामाजिक संस्था के सौजन्य से श्री शिव शक्ति मंदिर सी 8 यमुना विहार, दिल्ली में शीतल जल का वितरण किया गया.
संस्था के अध्यक्ष पंडित कौशल पाण्डेय ने बताया की ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। ज्येष्ठ मास की भीषण गर्मी जिसमें सूर्यदेव अपनी किरणों की प्रखर ऊष्मा से मानो अग्नि वर्षा कर रहे हों वही दूसरी ओर श्री हरी के भक्तों द्वारा दिन भर निराहार एवं निर्जल उपवास रखा जाता है जो सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही नहीं अपितु दूसरे दिन द्वादशी प्रारंभ होने के बाद ही व्रत का पारायण किया जाता है।
आज के दिन श्रद्धालु मंदिर एवं धार्मिक स्थलों पर धार्मिक अनुष्ठान एवं कीर्तन आदि कार्यक्रम जहां दिन भर करते है वहीं शीतल जल का छबील लगाकर राहगीरों को बुला-बुला कर बड़ी आस्था के साथ मीठा सर्बत के साथ फल प्रसाद वितरण करते है शीतल जल का वितरण करना पुण्यदायक माना गया है ।
पंडित कौशा पाण्डेय कहते हैं कि पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु इन पांच तत्वों से ही मानवदेह निर्मित होता है। अतः पांचों तत्वों को अपने अनुकूल बनाने की साधना अति प्राचीन काल से हमारे देश में चली आ रही है। अतः निर्जला एकादशी अन्नमय कोश की साधना से आगे जलमय कोश की साधना का पर्व है। पंचतत्वों की साधना को योग दर्शन में गंभीरता से बताया गया है।
अतः साधक जब पांचों तत्वों को अपने अनुकूल कर लेता है तो उसे न तो शारीरिक कष्ट होते हैं और न ही मानसिक पीड़ा। साथ ही साधना द्वारा कष्टों को सहन करने का अभ्यास हो जाने पर समाज में एक-दूसरे के प्रति सहयोग की भावना जागती है।
निर्जला एकादशी व्रत के बारे में महाभारत में महर्षि वेदव्यास के वचन हैं कि पूरे वर्ष में होने वाली एकादशी जिनमें अधिमास भी सम्मिलित है यदि कोई न कर सके तो भी वह निर्जला एकादशी का व्रत करता है, तो उसे सभी एकादशियों के व्रत का पुण्य फल प्राप्त होता है। इसीलिए व्यास जी ने भीमसेन को निर्जला एकादशी व्रत करने की प्रेरणा दी, क्योंकि जठराग्नि तीव्र होने के कारण भीमसेन बिना खाए रह ही नहीं सकते थे। अतः भीमसेन ने वेद व्यासजी की प्रेरणा से इस व्रत को किया।
निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। लोग ग्रीष्म ऋतु में पैदा होने वाले फल, सब्जियां, पानी की सुराही, हाथ का पंखा आदि का दान करते हैं। इस उपासना में कौटिल्य अर्थशास्त्र के वस्तुविनिमय के भी दर्शन होते हैं क्योंकि धन की अपेक्षा साधन या वस्तुओं को उपलब्ध कराकर समाज तुरंत लाभांवित होता है। इसलिए इस व्रत के दिन प्राकृतिक वस्तुओं के दान का बड़ा महत्व बताया गया है। आर्थिक रूप से सामर्थ्यवान लोग प्राकृतिक वस्तुओं के साथ, धन, द्रव्य आदि का भी दान कर समाज को आत्म बल प्रदान करते हैं।
जिसमे मुख्य सहयोग डॉ वेद प्रकाश पाण्डेय, सुप्रज्ञ दुबे, विनय दुबे, अनुराग अवस्थी,रजत मिश्रा जी का रहा जिसके लिए संस्था आप सभी का हार्दिक आभार प्रकट करने के साथ उज्जवल भविष्य की कामना करती है।
इस अवसर पर पंडित कौशल पाण्डेय, महेश पाण्डेय , राम निधि पाण्डेय, नितिन शर्मा, चैतन्य तिवारी आदि के साथ कई भक्तों ने सेवा भाव द्वारा लोगो को सरबत वितरण किया।
पंडित कौशल पाण्डेय
राष्ट्रीय अध्यक्ष
श्री राम हर्षण शांति कुञ्ज, भारत
0 टिप्पणियाँ