🌷 विजया एकादशी 🌷

🌷 विजया एकादशी 🌷
➡️6 या 7 मार्च 2024, कब किया जायेगा विजया एकादशी व्रत  
पंचांग के अनुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी 6 मार्च 2024 को सुबह 06.30 से शुरू होकर अगले दिन 7 मार्च 2024 को सुबह 04.13 तक रहेगी.


 फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की { गुजरात ~ महाराष्ट्र के अनुसार माध कृष्ण पक्ष की } एकादशी को 'विजया एकादशी' कहते हैं .

6 मार्च 2024 - हिंदू धर्म में एकादशी व्रत उदयातिथि के अनुसार किया जाता है लेकिन जब एकादशी तिथि दो दिन पड़ रही हो तो ऐसे में गृहस्थ (स्मार्त संप्रदाय) जीवन वालों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए. विजया एकादशी व्रत 6 मार्च 2024 को रखना श्रेष्ठ होगा.

7 मार्च 2024 - इस दिन वैष्णव संप्रदाय के लोग विजया एकादशी का व्रत करेंगे. दूजी एकादशी यानी वैष्णव एकादशी के दिन सन्यासियों, संतों को एकादशी का व्रत करना चाहिए.

विष्णु पूजा समय - सुबह 06.41 - सुबह 09.37
विजया एकादशी का व्रत पारण - दोपहर 01.43 - शाम 04.04 (7 मार्च 2024- गृहस्थ)
विजया एकादशी व्रत पारण - सुबह 06.38 - सुबह 09.00 (8 मार्च 2024 - वैष्णव)
विजया एकादशी पूजा विधि

विजया एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर निराहर व्रत रखें.
घर में बाल गोपाल की पूजा करें. श्रीहरि का भी अभिषेक करना चाहिए.
हार-फूल और वस्त्रों से श्रृंगार करें. गोपी चंदन का तिलक लगाएं. पूजा के दौरान ये मंत्र जपें - कृं कृष्णाय नम:, ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:
केला, माखन-मिश्री का भोग तुलसी के साथ लगाएं. इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से लक्ष्मी जी घर में ठहर जाती है.
आरती के बाद प्रसाद वितरण करें और रात्रि जागरण करें गीता का पाठ करें.
किसी गोशाला में गायों की देखभाल के लिए धन का दान करें.

👉 व्रत विधि 👇

दशमी तिथि के सूर्यास्त से पहले ही एकादशी व्रत का प्रारंभ हो जाता है जो द्वादशी सूर्योदय के बाद पारण करने पर पूर्ण होता है

दसवीं को सूर्यास्त से पहले भोजन कर ले.. फिर शाम के समय सोना, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी का एक कलश स्थापित कर उस कलश को जल से भरकर उसमें पल्लव डाल दे ..उसके ऊपर भगवान नारायण की प्रतिमा की स्थापना करें फिर एकादशी के दिन प्रातः स्नान करें कलश को रोली माला, चंदन ,सुपारी तथा नारियल आदि से विशेष रूप से उसका पूजन करें.. कलश के ऊपर सप्तधान्य और जो रखें गंध,धूपदीप और भाँती भाँती के नैवेध से पूजन करें फिर कलश के सामने बैठकर उत्तम कथा वार्ता आदि के द्वारा सारा दिन व्यतीत करें और रात में भी वहां बैठकर भजन कीर्तन या कथा सुनकर या पढ़कर जागरण करें ..
अखंड व्रत की सिद्धि के लिए वहां पर घी का अखंड दीपक जलाएं🙏

विजया एकादशी की कथा

विजया दशमी की तरह विजया एकादशी को लेकर भी भगवान श्री राम से जुड़ी एक प्रचलित कथा है। एक मान्यता के अनुसार बहुत समय पहले की बात है, द्वापर युग में पांडवों को फाल्गुन एकादशी के महत्व के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। उन्होंने अपनी शंका भगवान श्री कृष्ण के सामने प्रकट की। भगवान श्री कृष्ण ने फाल्गुन एकादशी के महत्व व कथा के बारे में बताते हुए कहा कि हे पांडव! सबसे पहले नारद मुनि ने ब्रह्मा से फाल्गुन कृष्ण एकादशी व्रत की कथा व महत्व के बारे में जाना था, उनके बाद इसके बारे में जानने वाले तुम्हीं हो। बात त्रेता युग की है, जब भगवान श्रीराम ने माता सीता के हरण के पश्चात रावण से युद्ध करने लिये सुग्रीव की सेना को साथ लेकर लंका की ओर प्रस्थान किया तो लंका से पहले विशाल समुद्र ने उनका रास्ता रोक लिया। समुद्र में बहुत ही खतरनाक समुद्री जीव थे जो वानर सेना को हानि पंहुचा सकते थे। चूंकि श्री राम मानव रूप में थे इसलिये वह इस समस्या को उसी रूप में सुलझाना चाहते थे। उन्होंने लक्ष्मण से समुद्र पार करने का उपाय जानना चाहा तो लक्ष्मण ने कहा कि हे प्रभु!  यहां से आधा योजन की दूरी पर वकदालभ्य मुनिवर निवास करते हैं, उनके पास इसका उपाय अवश्य मिल सकता है। भगवान श्री राम उनके पास पहुँचें, उन्हें प्रणाम किया और अपनी समस्या उनके सामने रखी। तब मुनि ने उन्हें बताया कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को यदि आप समस्त सेना सहित उपवास रखें तो आप समुद्र पार करने में तो कामयाब होंगे ही साथ ही इस उपवास के प्रताप से आप लंका पर भी विजय प्राप्त करेंगें। समय आने पर मुनि वकदालभ्य द्वारा बतायी गई विधिनुसार भगवान श्रीराम सहित पूरी सेना ने एकादशी का उपवास रखा और रामसेतु बनाकर पूरी रामसेना के साथ लंका पर आक्रमण किया। इस युद्ध में भगवान श्री राम एक साधारण मनुष्य के अवतार में थे लेकिन फिर भी इस एकादशी व्रत के प्रभाव से उन्होंने रावण की इतनी बड़ी सेना को हराकर लंका पर विजय हासिल की और सीता माता को मुक्त कराया।

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