सिद्ध कुञ्चिका स्त्रोत्र

कुंजिका स्तोत्र माँ दुर्गा सप्तशती का सबसे कल्याणकारी और शक्तिशाली मंत्र है। इस स्त्रोत का पाठ मनुष्य के जीवन में आ रही समस्या और परेशानियों को दूर करने के लिए ही किया जाता है। इस पाठ को करने के बाद पूरे सप्तशती की आवश्यकता नहीं होती।

किसी भी प्रकार की बाधा जैसे बुरी नज़र, काले जादू, "मारण प्रयोग", "स्तम्भन", "उच्चाटन" को दूर करने के लिए कुंजिका स्तोत्र का पाठ पर्याप्त है।


SIDDHI KUNCHIKA STROTRA

क्यों करवाएं कुंजिका स्तोत्र का पाठ
किसी भी जातक की कुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों की चाल इंसान के जीवन में तथा घर में इस कदर हावी हो जाती है की इंसान घर से दूर भागने की सोचता है, राक्षसी प्रवृत्ती का हो जाता है, रोजमर्रा के हिंसात्मक लड़ाई-झगड़े घर में कलह, धन की कमी और बेवजह उत्पन्न होने वाले कलह से छुटकारा पाने के लिए ही कुंजिका स्तोत्र पाठ किया जाता है। अगर आप भी घर-परिवार में ऐसी स्थिति का सामना कर रहे है, तो आप जल्दी ही कुंजिका स्तोत्र पाठ करवाए और जीवन में आ रही बाधाओं से मुक्ति पाएं।

कुंजिका स्तोत्र का वाचन करने का महत्‍व
हमारे संस्थान में अनुभवी पंडित जी द्वारा किसी भी ग्राहक के लिए उचित पूजा, हवन और आहुती के साथ यह पाठ 108 बार किया जाता है। कुंजिका स्तोत्र का पाठ कराने से आपके घर के कलह दूर हो जाते है, सभी महत्‍वपूर्ण कार्य संपन्‍न होते हैं। इस पूजा के प्रभाव से आपके जितने भी रुके हुए काम हैं वो पूरे हो जाते हैं। शारीरिक और मानसिक चिंताएं दूर होती हैं।

कुंजिका स्तोत्र पाठ के लाभ
माँ दुर्गा के इस पाठ का जो भी जातक विषम परिस्थितियों में वाचन करता है उसके समस्त कष्ट तथा परेशानियों का अंत होता है।
आप दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न रहते हो, यह पाठ निश्चित रूप से आपकी मदद करेगा, जिसके कारण आपकी जीवन में आनेवाली सभी समस्याओं से आप छुटकारा पा सकते है।

किसी योग्य पंडित द्वारा यह पूजा-पाठ करवाने से घर-परिवार में उत्पन्न होने वाले कलह से मुक्ति मिलती है।
जातक के जीवन में मानसिक शांति का आभाव हो या उसका बुरा असर जातक के मस्तिष्क पर पड़ता है, सोचने-समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है तथा जातक मानसिक तनाव में आ जाता है, जिसका असर जातक के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है परन्तु इस पाठ के प्रभाव से मानसिक शांति मिलती है तथा बेवजह की चिंताओं से मुक्ति मिलती है।

इस पाठ के प्रभाव से हिंसात्मक प्रवृत्ति का खात्मा हो जाता है, मनुष्य के अंदर सौहार्द की भावना देखने को मिलती है।
किसी भी प्रकार का जादू-टोना या बुरी नजर से आपका बचाव होता है।

अगर आपका जीवन दरिद्रता में व्यतीत हो रहा है बिना संकोच आप कुंजिका स्तोत्र का पाठ अपने घर करवाएं इसके प्रभाव से घर में बरकत होती है, साथ साथ कामकाज में भी अच्छा लाभ देखने को मिलता है। माँ दुर्गा प्रसन्न होकर आपके लिए धन आगमन के मार्ग प्रशस्त करवाती है।

कैसे प्राप्‍त करें यह सौभाग्‍य :

आप 9968550003 पर संपर्क करके कुंजिका स्तोत्र का पाठ अपने या अपने परिवार के किसी सदस्‍य के लिए करवाने का समय ले सकते हैं। जिस किसी की सुख-समृद्ध‍ि के लिए आप ये पूजा-पाठ करवाना चाहते हैं उसका नाम, जन्‍म स्‍थान, गोत्र और पिता का नाम अवश्‍य ज्ञात होना चाहिए।

सिद्धकुन्जिका स्तोत्रं
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभों  भवेत॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥२॥
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥४॥
अथ मन्त्रः
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
इति मन्त्रः॥
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे ॥
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥
इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती
संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ॥






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