जानिए 27 नक्षत्रों के नाम और उनके देवता

जानिए 27 नक्षत्रों के नाम औरउनके  देवता 


27 नक्षत्रों के नाम और उनके  देवता


१-अश्विनी नक्षत्र के देवता अश्विनी कुमार जी और स्वामी केतु हैं !

२-भरणी नक्षत्र के देवता यमराज जी और स्वामी शुक्र हैं !

3-कृत्तिका नक्षत्र के देवता अग्नि देव जी और स्वामी सूर्य है !

४-रोहिणी नक्षत्र के देवता ब्रह्मा जी और स्वामी चन्द्रमा है !

५-मृगशिरा नक्षत्र के देवता चन्द्रमा जी और स्वामी मंगल है !

६-आर्द्रा नक्षत्र के देवता शिव जी और स्वामी राहु हैं !

७-पुनर्वसु नक्षत्र के देवता अदिति माता जी और स्वामी गुरु हैं !

८-पुष्य नक्षत्र के देवता बृहस्पति देव जी और स्वामी शनि हैं !

९-आश्लेषा नक्षत्र के देवता नागदेव जी और स्वामी बुध हैं !

१०-मघा नक्षत्र के देवता पितृदेव जी और स्वामी केतु हैं !

११-पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के देवता भग देव जी और स्वामी शुक्र हैं !

१२-उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के देवता अर्यमा देव जी और स्वामी सूर्य हैं !

१३-हस्त नक्षत्र के देवता सूर्य देव जी और स्वामी चन्द्रमा हैं !

१४-चित्रा नक्षत्र के देवता विश्वकर्मा जी और स्वामी मंगल हैं !

१५-स्वाति नक्षत्र के देवता पवन देव जी और स्वामी राहु हैं !

१६-विशाखा नक्षत्र के देवता इन्द्र देव एवं अग्नि देव जी और स्वामी गुरु हैं !

१७-अनुराधा नक्षत्र के देवता मित्र देव जी और स्वामी शनि हैं !

१८-ज्येष्ठा नक्षत्र के देवता इन्द्र देव जी और स्वामी बुध हैं !

१९-मूल नक्षत्र के देवता निरिती देव जी और स्वामी केतु हैं !

२०-पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के देवता जल देव जी और स्वामी शुक्र हैं !

२१-उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के देवता विश्वेदेव जी और स्वामी सूर्य हैं !

२२-श्रवण नक्षत्र के देवता विष्णु जी और स्वामी चन्द्र हैं !

२३-धनिष्ठा नक्षत्र के देवता अष्टवसु जी और स्वामी मंगल हैं !

२४-शतभिषा नक्षत्र के देवता वरुण देव जी और स्वामी राहु हैं !

२५-पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के देवता अजैकपाद देव जी और स्वामी गुरु हैं !

२६-उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के देवता अहिर्बुध्न्य देव जी और स्वामी शनि हैं !

२७-रेवती नक्षत्र के देवता पूषा [सूर्य ]देव जी और स्वामी बुध है !
पंडित के एन पाण्डेय (कौशल) ज्योतिष सलाहकार

जानिए सभी नक्षत्रों की पूजा के फल—

अश्विनी नक्षत्र में अश्विनीकुमारों की पूजा करने से मनुष्य दीर्घायु एवं व्याधिमुक्त होता है।

भरणी नक्षरे में कृष्णवर्ण के सुंदर पुष्पों से बनी हुई मान्यादि और होम के द्वारा पूजा करने से अग्निदेव निश्चित ही यथेष्ट फल देते हैं।

कृतिका नक्षत्र में शिव पुत्र कार्तिकेय एवं अग्नि की पूजा एवं कृतिका नक्षत्र के सवा लाख वैदिक मंत्रों का जाप किया जाता है।एवं अग्नि में आहुतियां डाली जाती है

रोहिणी नक्षत्र में ब्रह्मा की पूजा करने से वह साधका की अभिलाषा पूरी कर देते हैं।

मृगशिरा नक्षत्र में पूजित होने पर उसके स्वामी चंद्रदेव उसे ज्ञान और आरोग्य प्रदान करते हैं।

आर्द्रा नक्षत्र में शिव के अर्चन से विजय प्राप्त होती है। सुंदर कमल आदि पुष्पों से पूजे गए भगवान शिव सदा कल्याण करते हैं।

पुनर्वसु नक्षत्र में अदिति की पूजा करनी चाहिए। पूजा से संतृप्त होकर वे माता के सदृश रक्षा करती हैं।

पुष्य नक्षत्र में उसके स्वामी बृहस्पति अपनी पूजा से प्रसन्न होकर प्रचुत सद्बुद्धि प्रदान करते हैं।

आश्लेषा नक्षत्र में नागों की पूजा करने से नागदेव निर्भय कर देते हैं, काटते नहीं।

मघा नक्षत्र में हव्य-कव्य के द्वारा पूजे गए सभी पितृगण धन-धान्य, भृत्य, पुत्र तथा पशु प्रदान करते हैं।

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में पूषा की पूजा करने पर विजय प्राप्त हो जाती है और

उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भग नामक सूर्यदेव की पुष्पादि से पूजा करने पर वे विजय कन्या को अभीप्सित पति और पुरुष को अभीष्ट पत्नी प्रदान करते हैं तथा उन्हें रूप एवं द्रव्य-संपदा से संपन्न बना देते हैं।

हस्त नक्षत्र में भगवान सूर्य गंध-पुष्पादि से पूजित होने पर सभी प्रकार की धन-संपत्तियां प्रदान करते हैं।

चित्रा नक्षत्र में पूजे गए भगवान त्वष्टा शत्रुरहित राज्य प्रदान करते हैं।

स्वाती नक्षत्र में वायुदेव पूजित होने पर संतुष्ट जो परम शक्ति प्रदान करते हैं।

विशाखा नक्षत्र में लाल पुष्पों से इंद्राग्नि का पूजन करके मनुष्य इस लोक में धन-धान्य प्राप्त कर सदा तेजस्वी रहता है।

अनुराधा नक्षत्र में लाल पुष्पों से भगवान मित्रदेव की भक्तिपूर्वक विधिवत पूजा करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और वह इस लोक में चिरकाल तक जीवित रहता है।

ज्येष्ठा नक्षत्र में देवराज इंद्र की पूजा करने से मनुष्य पुष्टि बल प्राप्त करता है तथा गुणों में, धन में एवं कर्म में सबसे श्रेष्ठ हो जाता है।

मूल नक्षत्र में सभी देवताओं और पितरों की भक्तिपूर्वक पूजा करने से मानव स्वर्ग में अचलरूप से निवास करता है और पूर्वोक्त फलों को प्राप्त करता है।

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में अप्-देवता (जल) की पूजा और हवन करके मनुष्य शारीरिक तथा मानसिक संतापों से मुक्त हो जाता है।

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में विश्वेदेवों और भगवान विश्वेश्वर कि पुष्पादि द्वारा पूजा करने से मनुष्य सभी कुछ प्राप्त कर लेता है।

श्रवण नक्षत्र में श्वेत, पीत और नीलवर्ण के पुष्पों द्वारा भक्तिभाव से भगवान विष्णु की पूजा कर मनुष्य उत्तम लक्ष्मी और विजय को प्राप्त करता है।

धनिष्ठा नक्षत्र में गन्ध-पुष्पादि से वसुओं के पूजन से मनुष्य बहुत बड़े भय से भी मुक्त हो जाता है। उसे कहीं भी कुछ भी भय नहीं रहता।

शतभिषा नक्षत्र में इन्द्र की पूजा करने से मनुष्य व्याधियों से मुक्त हो जाता है और आतुर व्यक्ति पुष्टि, स्वास्थ्य और ऐश्वर्य को प्राप्त करता है।

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में शुद्ध स्फटिक मणि के समान कांतिमान अजन्मा प्रभु की पूजा करने से उत्तम भक्ति और विजय प्राप्त होती है।

उत्तराभाद्रपद नक्षत्र मेँ अहिर्बुध्न्य की पूजा करने से परम शांति की प्राप्ति होती है।

रेवती नक्षत्र श्वेत पुष्प से पूजे गए भगवान पूषा सदैव मंगल प्रदान करते हैं और अचल धृति तथा विजय भी देते हैं।

अपनी सामर्थ्य के अनुसार भक्ति से किए गए पूजन से ये सभी सदा फल देने वाले होते हैं। यात्रा करने की इच्छा हो अथवा किसी कार्य को प्रारंभ करने की इच्छा हो तो नक्षत्र-देवता की पूजा आदि करके ही वह सब कार्य करना उचित है। इस प्रकार करने पर यात्रा में तथा क्रिया में सफलता होती है – ऐसा स्वयं भगवान सूर्य ने कहा है।

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