अमावस्या जन्म-विश्लेषण और उपाय

अमावस्या जन्म-विश्लेषण और उपाय 
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अमावस्या अथवा कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को हुआ जन्म , अशुभ जन्म समझा जाता हैं । अमावस्या पर हुआ जन्म , कुण्डली में उपस्थित अनेकों शुभयोगों (जैसे राजयोग , धनयोग आदि) का नाश करने वाला होता हैं। शास्त्रज्ञों ने अमावस्या पर हुए जन्म के अनेकानेक दुष्परिणाम गिनाये हैं । 

जब तुलाराशी के नक्षत्र/नवांशों में सूर्य-चन्द्र की युति हों तब तो यह दोष और भी अधिक विषाक्त और अशुभ फलप्रद हों जाता हैं । ऐसी स्थिति अधिकांशतः दीपावली को बनती हैं ।

महर्षि पाराशर अपनी “बृहत् पाराशर होराशास्त्रम्” के 88वें अध्याय के प्रथम 4 श्लोकों में जिन 17 अशुभ जन्मों का उल्लेख किया हैं उनमें “दर्श जन्म” (अमावस्या का जन्म) प्रमुख और सर्वप्रथम हैं। आज अमावस्या जन्म के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करेंगे :-




1👉 अमावस्या जन्म किसे कहेंगे ?
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जब सूर्य और चन्द्र एक नक्षत्र में हों तब अमावस्या जन्म समझा जाता हैं । जब सूर्य और चन्द्र , एक नक्षत्र के साथ साथ एक ही नवांश में भी हों उस समय अमावस्या जन्म के अधिकाँश दुष्परिणाम देखने में आते हैं और जब एक नक्षत्र , एक नवांश और एक ही षष्ठ्यांश में हों तब तो अशुभ फल पूर्ण रूप से अपना रंग दिखाता हैं ।

जब-जब ऐसे जातकों के (जिनका जन्म अमावस्या को हुआ हैं) जन्म-नक्षत्रों पर ग्रहण आया करता हैं तब तब ग्रहण से लगाकर छः महीने उनके लिए भयंकर कष्ट देने वाले होते हैं। यदि जन्म नक्षत्र के साथ ही साथ जन्मकालिक नवांश भी ग्रहण की चपेट में हुआ (जब सूर्य और चन्द्र एक ही नवांश में हों तो) तब तो जातक को मृत्यतुल्य कष्ट प्राप्त होता हैं ।

2👉 अमावस्या पर हुआ जन्म अशुभ क्यों हैं ?
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ज्योतिष-शास्त्रों में सबसे प्रमुख सूर्य और चन्द्र को माना गया हैं । सूर्य को जहां जातक की आत्मा वहीँ चन्द्र को जातक का मन/मस्तिष्क माना जाता हैं । सूर्य और चन्द्र को सदैव शुभ माना जाता हैं , यहाँ तक की अष्टमेश के दोष से भी यह दोनों मुक्त हैं।

अमावस्या को चन्द्र पूर्ण-अस्त समझा जाता हैं। चन्द्र के पूर्णतः अस्त होने से चन्द्र का शुभत्व जातक के लिए गौण हों जाता हैं वहीँ चन्द्र के साथ होने से सूर्य के शुभ फलों का भी महत्त्वपूर्ण ह्रास होता हैं ।
मोटे तौर पर कुछ यों समझ लें की सूर्य और चन्द्र के शुभफल जातक को नगण्य अनुपात में प्राप्त होते हैं । चूँकि सारे शुभ-राज-धन योगों की पूर्णता में सूर्य और चन्द्र के शुभत्व का योगदान रहता हैं अतएव बड़े-बड़े योग कुंडली में उपस्थित होने पर भी उनका प्रभाव निष्फल हों जाता हैं।

अमावस्या तिथि में जन्मा जातक
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अमावस्या तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति में लम्बी आयु वाला होता है. घर से अधिक उसे परदेश में गमन करना पडता है. वह बुद्धि को कुटिल कार्यों में प्रयोग करता है. सत्तकार्यों को करने में उसे बुद्धि का सहयोग प्राप्त नहीं होता है. इसके साथ ही वह पराक्रमी होता है. अमावस्या तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है. व्यर्थ की सलाह देने की प्रवृति उस व्यक्ति में पाई जाती है।

अमावस्या तिथि के समय जन्म लेने वाला जातक जीवन में कष्ट और संघर्ष अधिक पाता है. मानसिक रुप से भी वह अधिक असंतुष्ट रह सकता है. अपनों का विरोधी बन सकता है. व्यक्ति जीवन में असंतुष्टी की भावना अधिक रखता है।

इस तिथि में जन्म माता पिता की आर्थिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डालता है। जो व्यक्ति अमावस्या तिथि में जन्म लेते हैं उन्हें जीवन में आर्थिक तंगी का सामना करना होता है। इन्हें यश और मान सम्मान पाने के लिए काफी प्रयास करना होता है। अमावस्या तिथि में भी जिस व्यक्ति का जन्म पूर्ण चन्द्र रहित अमावस्या में होता है वह अधिक अशुभ माना जाता है। इस अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए घी का छाया पात्र दान करना चाहिए, रूद्राभिषेक और सूर्य एवं चन्द्र की शांति कराने से भी इस तिथि में जन्म के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है।

3👉 उपाय 
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जिस नक्षत्र में सूर्य और चन्द्र हैं , उस नक्षत्र के मन्त्रों से (उसी नक्षत्र के आने पर) हवनात्मक अनुष्ठान करवाना चाहिए (जन्म के दो वर्षों के भीतर)। सदैव (जीवनभर) ऐसे नक्षत्र के प्राप्त होने पर व्रत करना चाहिए और नक्षत्र के अनुरूप सामग्री का दान देना चाहिए। नक्षत्र की शान्ति और रवि-चन्द्र योग के अशुभ्त्व के नाश के लिए अपने इष्ट के अनुष्ठान जीवन भर करना चाहिए।

अमावस्या के विशेष उपाय
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अमावस्या की रात को जब आसमान में चन्द्रमा नहीं होता है और चारों ओर घना अँधेरा होता है, वह रात तांत्रिक और टोटकों के लिए काफी उत्तम बताई जाती है. इस रात को कुछ ख़ास कार्य करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है.

यहाँ बताये जा रहे है अमावस्या की रात के 9 टोटके, जो एक ही रात में आपका भाग्य बदल सकते हैं-

1. अमावस्या की रात उस व्यक्ति के लिए काफी लाभदायक साबित हो सकती है, जिसे काल सर्प दोष है. आप किसी अच्छे पंडित से इस दिन घर में अपने लिए हवन करवायें और शिव की पूजा करें.

2. किसी कुएं में अगर आप हर अमावस्या को एक चम्मच दूध डालते रहते हैं तो इससे आपके जीवन में सभी दुःख खत्म होने लगते हैं.

3. यदि आपकी किस्मत में धन नहीं आ पा रहा है तो आप अमावस्या की रात एक पानी का नारियल लीजिये और उसके पांच बराबर टुकड़े कर लीजिये. इन टुकड़ों को शिव की किसी तस्वीर के सामने शाम के समय रख दीजिये और अपनी समस्या शिव को बतायें. ध्यान रहे इस उपाय से किसी का बुरा करने की बिलकुल ना सोचें और रात के समय इन नारियल को खिड़की पर रख दें. सुबह उठते ही इन नारियल को घर से दूर कहीं रख आयें. आपको धन संबंधी लाभ मिलेगा.

4. महीने की शुरुआत में शुकल एकम को आप एक लाल धागा अपने गले में पहन लें. ध्यान रहे कि इसमें कोई भी ताबीज ना हो. इस धागे को महीनेभर गले में रखें और अमावस्या की रात के समय कहीं सुनसान जगह पर एक गड्ढा खोदकर दबा दें. आपकी सारी परेशानी दूर होने लगेंगी. ऐसा हर माह करें.

5. अमावस्या की रात को आप अगर आप काले कुत्ते को तेल की रोटी खिलाते हैं और वह कुत्ता उसी समय यह रोटी खा लेता है तो इससे आपके सभी दुश्मन उसी समय से शांत होना शुरू हो जाते हैं.

6. आप अगर काफी दिनों से बेरोजगार हैं तो अमावस्या की रात को एक उपाय कीजिये कि एक नीम्बू को सुबह से घर के मंदिर में साफ करके रख दें. इसके बाद इसे अपने सर से सात बार उतारकर, चार बराबर भागों में काट लें और रात के समय चौराहे पर जाकर, चारों दिशाओं में इसको फ़ेंक दें. आपकी बेरोजगारी दूर होगी.

7. अमावस्या के दिन आप मछलियों को आटे की गोलियां जरूर खिलायें. इससे आपके कष्ट खत्म होने लगेंगे.

8. अमावस्या की रात को बहते नदी के पानी में पांच लाल फूल और पांच जलते हुए दिए छोड़ने से धन का लाभ प्राप्त होता है।

अमावस्या जन्म शान्ति वैदिक उपाय
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अमावस्या में उत्पन्न जातक माता-पिता को दरिद्र बनाता है। अत: दोष शमन के लिए यत्न पूर्वक शान्ति करानी चाहिए। सर्वप्रथम जल पूर्ण घड़़े में गूलर, बड़, आम, निम्ब तथा पीपल के छाल, जड़, पल्लवों और पंच रत्न को रखकर रक्त वस्त्र द्वय आच्छादित कर घट स्थापन करें। पुन आपोहिष्ठेत्यादि 'सर्वे समुद्र'इन तीन मन्त्रों से अभिमन्त्रित करें। अमावस्या के देव चन्द्र, सूर्य, की स्वर्णमयी मूर्ति अथवा सूर्य की ताम्रमयी और चन्द्रमा की चाँदी की मूर्ति बनाकर विधिवत उसकी स्थापना करें। फिर सवितेत्यादि तथा आप्यास्वेत्यादि मन्त्रों से दोनों मूर्तियों की पञ्चोपचार या षोडशोपचार विधि से पूजा कर 'सवितृ' मन्त्र सोमो धेनुः इत्यादि मन्त्र से अष्टोत्तर शत संख्यक वा अष्टाविंशति प्रमित हवन करें। हवनान्तर पुत्र सहित दम्पति को कलश के जल से अभिषिक्त कर ब्राह्माणों को भोजन करावें तथा उन्हें सदक्षिणा विदा करें। इस प्रकार अमावस्योत्पन्न जातक निश्चय ही कल्याण का भागी होता है।

कोई भी अशुभत्व ऐसा नहीं जो प्रभुकृपा से शांत न हों सके। अतएव सदैव प्रभु का ध्यान एवम् भगवद्भक्ति श्रेयस्कर हैं ।
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