जानिए जन्म और मृत्यु सूतक पातक के बारे में

जानिए जन्म और मृत्यु सूतक पातक  के बारे में
जब परिवार में किसी का जन्म या मृत्यु होती है तब उसके पारिवारिक सदस्यों को 'सूतक' का अनुपालन करना आवश्यक होता है। मुखाग्नि देने वालों के लिए तो यह परम आवश्यक है।




शास्त्रों में 'सूतक' के अनुपालन का निर्देश हैं। 
शास्त्रानुसार शौच दो प्रकार का माना गया है।
1. जनन शौच- जब परिवार या कुटुंब में किसी का जन्म होता है तो पारिवारिक सदस्यों को ‘जनन शौच’ लगता है।
2. मरण शौच- जब परिवार या कुटुंब में किसी की मृत्यु होती है तो पारिवारिक सदस्यों को ‘मरण शौच’ लगता है।
शास्त्रों के अनुसार उपर्युक्त दोनों ही शौच में 'सूतक' का पालन करना अनिवार्य है। शास्त्रों में 'सूतक' की अवधि को लेकर भी स्पष्ट उल्लेख है।
'जाते विप्रो दशाहेन द्वादशाहेन भूमिप:।
वैश्य: पंचदशाहेन शूद्रो मासेन शुद्धयति॥'  -(पाराशर स्मृति)
उपर्युक्त श्लोक से स्पष्ट है कि ब्राह्मण दस दिन में, क्षत्रिय बारह दिन में, वैश्य पंद्रह दिन में और शूद्र एक मास में शुद्ध होता है।
अत: इन चतुर्वर्णों को क्रमश: दस, बारह, पंद्रह व एक माह तक 'सूतक' का पालन करना चाहिए।
जो ब्राह्मण वेदपाठी हो अर्थात वेद पढ़ता हो, त्रिकाल संध्या करता हो एवं नित्य अग्निहोत्र करता हो ऐसा ब्राह्मण क्रमश: तीन दिन व एक दिन में शुद्ध होता है।

सूतक के बारे में क्या कहते हैं पुराण और शास्त्र अशौच के बारे में गरुड़ पुराण, मनुस्मृति, पराशर स्मृति, गौतम स्मृति, धर्मसिंधु सहित कई अन्य ग्रंथों में उल्लेख किया गया है कि इस दौरान देव कर्म नहीं किया जाना चाहिए। 
इस समय देव पूजा कर्म और देव स्पर्श नहीं किया जाना चाहिए। इस दौरान मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए पितृ कर्म करने का विधान बताया गया है।धर्म ग्रंथों में सूतक को लेकर काफी विस्तार से बताया गया है कि सूतक किस पर और कितने समय के लिए लागू होता है। इसमें देह त्याग करने वाले व्यक्ति और देह त्याग किस प्रकार से हुआ है इस विषय का भी उल्लेख अलग-अलग स्थानों पर मिलता है।

किस पर लागू होता है सूतक 
सूतक के बारे में विभिन्न शास्त्र और पुराणों में बताया गया है कि गृहस्थ जनों की मृत्यु होने पर उनके सात पीढ़ियों पर सूतक लगता है। 
बेटियां अधिकतम 3 दिनों में ही सूतक से मुक्त हो जाती हैं। 

कूर्म पुराण में बताया गया है कि जो लोग संन्यासी हैं, गृहस्थ आश्रम में प्रवेश नहीं किए हैं। जो लोग वेदपाठी संत हैं उनके लिए सूतक का विचार मान्य नहीं होता है। इनके माता-पिता की मृत्यु हो जाने पर भी केवल वस्त्र सहित स्नान कर लेने मात्र से भी इनका सूतक समाप्त हो जाता है।

मृत्यु सूतक कितने दिनों तक मान्य रहता है 
गौतम स्मृति में बताया गया है कि राजा के लिए सद्यः शौच होता है. यानी स्नान करने मात्र से ही यह शुद्ध हो जाते हैं। पुरोहित धर्म पालन करने वाले ब्राह्मणों के संदर्भ में भी यह बात लागू होती है। 

शंख स्मृति में भी इसी तरह की बात कही गई है- 
‘ राजा धर्म्यायतनं सर्वेषां तस्मादनवरुद्धः प्रेतप्रसवदोषैः’। 
दरअसल इस संदर्भ में यह माना गया है कि इनके अशौच का विचार करने से महत्वपूर्ण कार्यों में बाधा आ सकती है। यह पद इन्हें पूर्वजन्म के अति पुण्य कर्मों से प्राप्त हुआ है इसलिए इन पर अशौच नियम नही लगता है। 
गौतम और शंख स्मृति में तो अपमृत्यु की स्थिति में सद्यःशौच को ही मानने का नियम बताया यानी स्नान मात्र से सूतक समाप्त हुआ ऐसा मानना चाहिए।

पराशर स्मृति में भी बताया गया है कि राजा को अशौच नहीं लगता है इसके साथ ही राजपुरोहित जिसे राजा ने अपने कार्य के लिए चुना है उस पर भी अशौच मान्य नहीं होता है। इन्हें अपना कर्म नहीं छोड़ना चाहिए, यहां कहा गया है कि जिन्हें पुरोहित कर्म सौंपा गया है उन्हें अशौच स्थिति आ जाने पर भी अपना सहज कर्म करते रहना चाहिए। 

विष्णु पुराण में भी उल्लेख मिलता है कि विशेष प्रसंगों में अपमृत्यु होने पर, साधु संतों और संन्यासियों की मृत्यु पर महज स्नान कर लेने से ही अशौच समाप्त हो जाता है।

सूतक में लोकाचार और देशाचार का विचारवैसे सामान्य रूप में 10 दिनों तक अशौच काल माना जाता है। 
मदन पारिजात नामक ग्रंथ में सूतक के संबंध में अलग-अलग मतों को ध्यान में रखते हुए निर्देश दिया गया है कि, इसमें लोकाचार और देशाचार के अनुसार विचार कर लेना ही उचित है।

सूतक के प्रकारअनेक पुराणो में सूतक के संदर्भ में वर्णन मिलता है। पुराणों के अनुसार दो प्रकार के सूतक यानी अशौच काल माने जाते हैं। एक जन्माशौच दूसरा मरणाशौच। इन दोनों प्रकार के सूतक में मृत्यु से अधिक प्रभावी जन्माशौच को बताया गया है। यानी परिवार में किसी का जन्म होने पर भी सूतक लगता है और इसे अधिक प्रभावी माना गया है.

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