मार्गशीर्ष माह

मार्गशीर्ष माह ,मार्गशीष - अग्रहायण - अगहन - महत्व : व्रत और त्योहार - 
इस मास में हर प्रकार के सङ्कटों से मुक्ति और सुख-समृद्धि के लिए मार्गशीष का महिना शुरू हो गया है जो कि 28 नवम्बर  से 26 दिसंबर को मार्गशीर्ष पूर्णिमा तक रहेगा।
 इसे अग्रहायण या अगहन के नाम से भी जाना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने इसे बारह मासों में सर्वोत्तम माना है। इस मास में यमुना स्नान, बृहस्पति वारों को लक्षमी पूजा, अन्नपूर्णा देवी की 17 दिन की पूजा, राम सीता विवाह पंचमी, काल-भैरव अष्टमी, स्कन्द षष्ठी, गीता जयंती, बैकुंठ/मोक्ष एकादशी सभी मनाई जाती हैं।


महत्व :
मार्गशीर्ष का महीना श्रद्धा एवं भक्ति से पूर्ण होता है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह माह कई धार्मिक कार्यों के लिए विशेष फलदायी माना गया है। गीता में स्वयं भगवान ने कहा है : "मासाना मार्गशीर्षोऽयम्।"

मार्गशीर्ष माह की अमावस्या का बहुत ही विशेष स्थान है। इस माह में भगवान श्रीकृष्ण भक्ति का विशेष महत्व होता है और पितरों की पूजा भी कि जाती है। इस दिन पितर पूजा द्वारा पितरों को शांति मिलती है और पितर दोष का निवारण भी होता है। मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि प्रत्येक धर्म कार्य के लिए अक्षय फल देने वाली बतायी गयी है, किंतु पितरों की शान्ति के लिये इस अमावस्या पर व्रत पूजन का विशेष लाभ मिलता है। जो लोग अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति, सदगति के लिये कुछ करना चाहते है, उन्हें मार्गशीर्ष माह की अमावस्या को उपवास रख कर पूजन कार्य करना चाहिए।

★हर प्रकार के संकटों से मुक्ति और सुख-समृद्धि के लिए उपाय :
1. मार्गशीर्ष शुक्ल 12 को उपवास प्रारम्भ कर प्रति मास की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक की द्वादशी को पूरा करना चाहिए।
2. प्रति द्वादशी को भगवान विष्णु के केशव से दामोदर तक 12 नामों में से एक-एक मास तक उनका पूजन करना चाहिए। इससे पूजक 'जातिस्मर' पूर्व जन्म की घटनाओं को स्मरण रखने वाला हो जाता है तथा उस लोक को पहुँच जाता है, जहाँ फिर से संसार में लौटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
3. मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा की अवश्य ही पूजा की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को सुधा से सिंचित किया गया था।
4. इस दिन गौओं का नमक दिया जाए, तथा माता, बहिन, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को एक-एक जोड़ा वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करना चाहिए।
5. इस मास में नृत्य-गीतादि का आयोजन कर एक उत्सव भी किया जाना चाहिए।
6. मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को ही 'दत्तात्रेय जयन्ती' मनायी जानी चाहिए।
7. इस मास में 'श्रीमद भागवत' ग्रन्थ को देखने भर की विशेष महिमा है। स्कन्द पुराण में लिखा है- घर में अगर भागवत हो तो अगहन मास में दिन में एक बार उसको प्रणाम करना चाहिए।
8. इस मास में अपने गुरु को, इष्ट को ॐ दामोदराय नमः कहते हुए प्रणाम करने से जीवन के अवरोध समाप्त होते हैं।
9. इस माह में शंख में तीर्थ का पानी भरें और घर में जो पूजा का स्थान है उसमें भगवान के ऊपर से शंख मंत्र बोलते हुए घुमाएं, बाद में यह जल घर की दीवारों पर छीटें। इससे घर में शुद्धि बढ़ती है, शांति आती है, क्लेश दूर होते हैं।
10. श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष मास की महत्ता गोपियों को भी बताई थी। उन्होंने कहा था कि मार्गशीर्ष माह में यमुना स्नान से मैं सहज ही सभी को प्राप्त हो जाऊंगा। तभी से इस माह में नदी स्नान का खास महत्व माना गया है।
11. अगहन (मार्गशीर्ष) के महीने में शंख पूजन का विशेष महत्व है। अगहन के महीने में किसी भी शंख को भगवान श्रीकृष्ण का पंचजन्य शंख मान कर उसका पूजन-अर्चन करने से मनुष्य की समस्त इच्छाएं पूरी होती हैं।
12. दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी स्वरूप कहा जाता है। इसके बिना लक्ष्मीजी की आराधना पूरी नहीं मानी जाती है। अगहन मास में खास तौर पर गुरुवार के दिन लक्ष्मी पूजन करते समय दक्षिणावर्ती शंख की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इसके अलावा भी प्रतिदिन घर में शंख पूजन करने से जीवन में कभी भी रुपए-पैसे, धन की कमी महसूस नहीं होती।
13. मार्गशीर्ष मास में इन 3 पावन पाठ की बहुत महिमा है:
1. विष्णुसहस्त्र नाम, 2. भगवत गीता और 3. गजेन्द्रमोक्ष।
इन्हें दिन में 2-3 बार अवश्य पढ़ें।अगर सम्भव न हो, तो प्रतिदिन एक बार, वर्ना गुरुवार को अवश्य पढ़ें.
14. विष्णु पुराण के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुए 14 रत्नों में से ये एक रत्न है शंख। सुख-सौभाग्य की वृद्धि के लिए इसे अपने घर में स्थापित करना चाहिए।
शंख पूजा के लिए मंत्र :

त्वं पुरा सागरोत्पन्न विष्णुना विधृत: करे।
निर्मित: सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते।
तव नादेन जीमूता वित्रसन्ति सुरासुरा:।
शशांकायुतदीप्ताभ पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते॥

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