भद्रा निर्णय


भद्रा निर्णय:👉 मुहूर्त चिन्तामणि 1/45 के अनुसार मकर राशि के चन्द्रमा में भद्रा वास पाताल में होने से इस दिन मकरस्थ चन्द्रमा की भद्रा को पीयूषधारा, मुहूर्त गणपति, भूपाल बल्लभ, आदि ग्रन्थों में अत्यन्त शुभ व ग्राह्य बताया गया है। भद्रा का वास जिस लोक मे होता है वही इसका अधिक प्रभाव मान्य है मुख्य रूप से भद्रा का वास पृथ्वी पर होने पर ही इसका शुभाशुभ प्रभाव जनमानस के ऊपर अधिक देखा जाता है। 




🤷🏻‍♂️ भारतीय हिन्दू संस्कृति में भद्रा काल को अशुभ काल माना जाता है, इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है। धर्मशास्त्र के अनुसार जब भी उत्सव-त्योहार अथवा पर्व काल पर चौघड़िए तथा पाप ग्रहों से संबंधित काल की बेला में निषेध समय दिया जाता है, वह समय शुभ कार्य के लिए त्याज्य होता है। पौराणिक मान्यता के आधार पर देखें तो भद्रा का संबंध सूर्य और शनि से है।

☝🏻 मान्यता है कि जब भद्रा का वास किसी पर्व काल में स्पर्श करता है तो उसके समय की पूर्ण अवस्था तक श्रद्धावास माना जाता है। भद्रा का समय 7 से 13 घंटे 20 मिनट माना जाता है, किन्तु मध्य में नक्षत्र व तिथि के अनुक्रम तथा पञ्चक के पूर्वार्द्ध नक्षत्र के मान व गणना से इसके समय में घट-बढ़ होती रहती है।

🤷🏻‍♂️ भद्रायुक्त पर्व काल का वह समय छोड़ देना चाहिए, जिसमें भद्रा के मुख तथा पुच्छ का विचार हो।
भद्राकाल में•••
𑁍विवाह,
𑁍मुंडन,
𑁍गृह प्रवेश,
𑁍रक्षाबंधन आदि मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।
किन्तु भद्राकाल में•••
𑁍स्त्री प्रसंग,
𑁍यज्ञ करना,
𑁍स्नान करना,
𑁍अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करना, 𑁍ऑपरेशन करना,
𑁍कोर्ट में मुकदमा दायर करना, 𑁍अग्नि को प्रज्ज्वलित करना,
𑁍किसी वस्तु को काटना,
𑁍भैंस, घोड़ा, ऊंट संबंधी कर्म प्रशस्त माने जाते हैं।
☝🏻 जब करण विष्ट‍ि लगता है तो उसे ही भद्रा कहा जाता है।
यदि आप शुभ कार्य करते है तो अशुभ परिणाम मिलने की प्रबल सम्भावना होती है। मुहूर्त मार्तण्ड में कहा है–
“ईयं भद्रा शुभ-कार्येषु अशुभा भवति”
☝🏻 अर्थात– शुभ कार्य में भद्रा अशुभ होती है।

🤷🏻‍♂️ ऋषि कश्यप ने भी भद्रा काल को अशुभ तथा दुखदायी बताया है–

"न कुर्यात मंगलं विष्ट्या जीवितार्थी कदाचन।
कुर्वन अज्ञस्तदा क्षिप्रं तत्सर्वं नाशतां व्रजेत॥ "

☝🏻 अर्थात– जो व्यक्ति अपना जीवन सुखमय व्यतीत करना चाहता है, उसे भद्रा काल में कोई भी मङ्गल कार्य नही करना चाहिए। यदि आप अज्ञानतावश भी ऐसा कार्य करते है तो मङ्गल कार्य का फल अवश्य ही नष्ट हो जाएगा।

🙇🏻‍♂️ आइये भद्रा पर विचार करें। आप सभी के लिए कुछ जानकारी प्रस्तुत है –

🌊 भद्रा सामान्यतः विष्टि करण को कहते हैं। जिन तिथियों के पूर्वार्द्ध अथवा उत्तरार्द्ध में विष्टि नामक करण विद्यमान हो, उस तिथि को 
‘भद्राक्रांत’ तिथि कहा जाता है। अतः भद्रा की जानकारी मूलतः करण ज्ञान पर आधारित है। वैदिक काल के विकास में पञ्चाङ्ग निर्माण की प्रक्रिया पूर्व में एकांग ‘तिथि’ मात्र पर आधारित थी। नक्षत्र समावेश से यह ‘द्वयांग’ बना। क्रमशः धीरे-धीरे योग, करण, तथा वार को ग्रहण करके पञ्चाङ्ग की सार्थकता सिद्ध हुई।

📜 पञ्चाङ्ग में जैसा कि नाम से विदित है पांच अंग हैं– ❋तिथि, ❋वार, ❋नक्षत्र, ❋योग तथा ❋करण।
☝🏻 इनमें से ❋तिथि, ❋वार एवम ❋नक्षत्र का उपयोग••• जन्मपत्रिका, मुहूर्त्त इत्यादि में होता है••
☝🏻 परन्तु योग व करण का उपयोग छोटी समय-सीमा होने के कारण, अब लुप्तप्रायः है।
〰️👉🏻 तिथि 15/16,
〰️👉🏻 वार 7,
〰️👉🏻 नक्षत्र 27/28,
〰️👉🏻 योग 27,
तथा
〰️👉🏻 करण 11 हैं।
🤷🏻‍♂️ यहाँ हम ध्यान केन्द्रित करते हैं करण पर जो कि 11 हैं। वास्तव में किसी तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं, अतैव एक तिथि में दो करण होते हैं।
" बवबालवकौलवतैतिलगरवाणिज्यविष्टयः सप्त।
शकुनि चतुष्पदनागकिन्स्तुघ्नानि ध्रुवाणि करणानि॥ "

〰️👉🏻 1√ बव,
〰️👉🏻2√ बालव,
〰️👉🏻 3-√ कौलव,
〰️👉🏻 4√ तैतिल,
〰️👉🏻 5√ गर,
〰️👉🏻 6√ वणिज,
〰️👉🏻 7√ विष्टि,
〰️👉🏻 8√ शकुनि,
〰️👉🏻 9√ चतुष्पद,
〰️👉🏻10√ नाग,
〰️👉🏻 11√ किन्स्तुघ्न–
☝🏻 तो ये हैं 11 करण,
इनमें से विष्टि करण को ही भद्रा कहते हैं, जो कि पौराणिक कथानुसार सूर्य एवम छाया की पुत्री है।

🤷🏻‍♂️ इनमें से कुछ करण तिथि के लिए निश्चित हैं•••
〰️👉🏻 चतुर्दशी के उत्तरार्द्ध में– शकुनि,
〰️👉🏻 अमावस्या के पूर्वार्द्ध में– चतुष्पद,
〰️👉🏻 व उत्तरार्द्ध में नाग,
〰️👉🏻 प्रथमा के पूर्वार्द्ध में किन्स्तुघ्न।
 〰️👉🏻 शेष बव-> बालव -> कौलव -> तैतिल -> गर -> वणिज -> विष्टि ये सभी क्रमशः तिथियों में चलते रहते हैं। इसीलिए पहले बताये चारों को स्थिर एवम बाद में बताये गए 7 को चर करण कहते हैं |

🙇🏻‍♂️ पुनः सभी करणों में से हम विष्टि अर्थात भद्रा पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, ये कब आती है???

"शुक्ले पूर्वार्धेष्टमीपञ्चदश्योर्भद्रैकादश्यां स्याच्चतुर्थ्यांपरार्धे।
कृष्णेन्त्यार्धे स्यातृतीयादशम्योः पूर्वे भागे सप्तमीशंभुतिथ्योः॥ "
🔰 – मुहूर्त्त चिन्तामणि

☝🏻अर्थात– शुक्लपक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्द्ध (प्रथम 30 घड़ी) में भद्रा रहती है•••
एवम
〰️👉🏻 शुक्लपक्ष की एकादशी तथा चतुर्थी को उत्तरार्द्ध (अंत की 30 घड़ी) में भद्रा होती है।
〰️👉🏻 कृष्णपक्ष में तृतीया एवम दशमी को उत्तरार्द्ध में भद्रा व सप्तमी तथा चतुर्दशी के पूर्वार्द्ध में भद्रा रहती है।
🤷🏻‍♂️ तो इस प्रकार पूर्णिमा की प्रथम 30 घड़ी तक (तिथ्यार्ध) तक भद्रा तो रहती ही है। तथा हम जानते हैं कि फाल्गुन की पूर्णिमा को ही होलिका दहन होता है तो उस दिन भद्रा तो होती ही है।

🤷🏻‍♂️ यहीं पर भद्रा की और जानकारी ले लें तो अच्छा रहेगा, भद्रा को सर्पिणी मानते हुए उसके मुख व पूँछ का ज्ञान नीचे के श्लोक से मिलता है –
" पंचद्वयद्रकृताष्टरामरसभूयामादिघट्यः शराविष्टेरासस्य मसद्गजेन्दुरसरामाध्रश्विबाणाब्धिषु।
यामेष्वंत्यघटीत्रयं शुभकरं पुच्छं तथा वासरे विष्टिस्तिथ्यपरार्धजा शुभकरी रात्रौतु पूर्वार्धजा॥ "
🔰  – मुहूर्त्त चिन्तामणि

🙇🏻‍♂️ यह होता हैं पञ्चाङ्ग में भद्रा का महत्व।

☝🏻 हिन्दू पञ्चाङ्ग के 5 प्रमुख अंग होते हैं। ये हैं — ✷तिथि, ✷वार, ✷योग, ✷नक्षत्र व ✷करण। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है।
〰️👉🏻 यह तिथि का आधा भाग होता है।
〰️👉🏻 करण की संख्या 11 होती है।
〰️👉🏻 ये चर एवम अचर में विभक्त किये गए हैं।
〰️👉🏻 चर अथवा गतिशील करण में ❋बव, ❋बालव, ❋कौलव, ❋तैतिल, ❋गर, ❋वणिज तथा ❋विष्टि गिने जाते हैं।
〰️👉🏻 अचर अथवा अचलित करण में ❋शकुनि, ❋चतुष्पद, ❋नाग एवम ❋किंस्तुघ्न होते हैं।
☝🏻 इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है। पञ्चाङ्ग शुद्धि में भद्रा का विशेष महत्व होता है।
🤷🏻‍♂️ यूं तो ‘भद्रा’ का शाब्दिक अर्थ है ‘कल्याण करने वाली’ किन्तु इस अर्थ के विपरीत भद्रा अथवा विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। 

📚 ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है।
☝🏻 जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक अथवा उनका नाश करने वाली मानी गई है।
〰️👉🏻 जब चन्द्रमा 𑁍कर्क, 𑁍सिंह, 𑁍कुम्भ व 𑁍मीन राशि में विचरण करता है एवम भद्रा विष्टि करण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इसके दोष निवारण के लिए भद्रा व्रत का विधान भी धर्मग्रंथों में बताया गया है।

🌊 भद्रा काल किसे कहते है ???

🤷🏻‍♂️ किसी भी शुभ कार्य में मुहूर्त का विशेष महत्व है तथा मुहूर्त की गणना के लिए पञ्चाङ्ग का सामंजस्य होना अति आवश्यक है।
☝🏻 पञ्चाङ्ग में 𑁍तिथि, 𑁍वार, 𑁍नक्षत्र, 𑁍योग तथा 𑁍करण होता है।
☝🏻 पञ्चाङ्ग का पांचवा अंग “करण” होता है।
〰️👉🏻 तिथि के प्रथम अर्धभाग को प्रथम “करण”
तथा
〰️👉🏻 तिथि के द्वितीय अर्धभाग को द्वितीय करण कहते हैं।
🤷🏻‍♂️ इस प्रकार स्पष्ट है की एक तिथि में दो करण होते हैं।
〰️👉🏻 जब भी तिथि विचार में विष्टि नामक करण आता है, तब उस काल विशेष को “भद्रा” कहते हैं। भद्रा नामक करण का विशेष महत्व है।

🔊 जानिए भद्रा के बारह नाम•••
⁂ धान्या,
⁂ दधि मुखी,
⁂ भद्रा,
⁂ महामारी,
⁂ खरानना,
⁂ कालरात्रि,
⁂ महारूद्रा,
⁂ विष्टिकरण,
⁂ कुलपुत्रिका,
⁂ भैरवी,
⁂ महाकाली,
⁂ असुरक्षयकारी हैं।

✒️ जानिए भद्रा काल कब-कब होता है ???
🤷🏻‍♂️ माह में दो पक्ष होते है।
〰️👉🏻 मास के एक पक्ष में भद्रा की 4 बार पुनरावृति होती है।
☝🏻 यथा – शुक्ल पक्ष में अष्टमी( 8) तथा पूर्णिमा (15 ) तिथि के पूर्वार्द्ध में भद्रा होती है, वही चतुर्थी (4) एकादशी (11) तिथि के उत्तरार्ध में भद्रा काल होती है।
☝🏻 कृष्ण पक्ष में भद्रा तृतीया (3) व दशमी (10) तिथि का उत्तरार्ध एवम सप्तमी (7) व चतुर्दशी(14) तिथि के पूर्वार्ध में होती है।

📢 करण के प्रकार•••
🤷🏻‍♂️ पञ्चाङ्ग का पांचवा अंग करण है। करण कुल 11 प्रकार के होते हैं। इनमें से 4 स्थिर तथा 7 चर होते हैं। स्थिर करण–
๑शकुनि,
๑चतुष्पद,
๑नाग,
๑किंस्तुध्न,
〰️👉🏻 चर करण,
๑बव,
๑बालव, 
๑कौलव,
๑तैतिल,
๑गर,
๑वणिज,
๑विष्टि (भद्रा)

🙇🏻‍♂️ जानिए भद्रा काल में क्या-क्या कार्य करना चाहिए•••
☝🏻 भद्रा काल केवल शुभ कार्य के लिए अशुभ माना गया है। जो कार्य अशुभ है परन्तु करना है तो उसे भद्रा काल में करना चाहिए ऐसा करने से वह कार्य निश्चित ही मनोनुकूल परिणाम प्रदान करने में सक्षम होता है।
🌊 भद्रा में किये जाने वाले कार्य – ❋क्रूर कर्म,
❋आप्रेशन करना,
❋मुकदमा आरम्भ करना
अथवा
मुकदमे संबंधी कार्य,
❋ शत्रु का दमन करना,
❋ युद्ध करना,
❋ किसी को विष देना,
❋अग्नि से सम्बंधित कार्य,
❋ किसी को कैद करना,
❋ अपहरण करना,
❋ विवाद संबंधी कार्य,
❋ शस्त्रों का उपयोग अथवा आवेदन करना,
❋ शत्रु का उच्चाटन,
❋ पशु संबंधी कार्य इत्यादि कार्य भद्रा में किए जा सकते हैं।

🤷🏻‍♂️ अब यह भी जानिए भद्रा में कौन से कार्य नहीं करने चाहिए•••
☝🏻 भद्रा काल में शुभ कार्य अज्ञानतावश भी नहीं करना चाहिए ऐसा करने से निश्चित ही अशुभ परिणाम की प्राप्ति होगी। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भद्रा में निम्न कार्यों नही करना चाहिए है। यथा — ❋विवाह संस्कार, ❋मुण्डन संस्कार, ❋गृह-प्रवेश, ❋रक्षाबंधन, ❋नया व्यवसाय प्रारम्भ करना, ❋शुभ यात्रा, शुभ उद्देश्य हेतु किये जाने वाले सभी प्रकार के कार्य भद्रा काल में नही करना चाहिए।

इन उपायों से होगा भद्रा दोष निवारण•••
🤷🏻‍♂️ जिस दिन भद्रा हो एवम परम् आवश्यक परिस्थितिवश कोई शुभ कार्य करना ही पड़े तो उस दिन उपवास करना चाहिए।

प्रातः स्नानादि के उपरांत देव, पितृ आदि तर्पण के बाद कुशाओं की भद्रा की मूर्ति बनाएं तथा पुष्प, धूप, दीप, गंध, नैवेद्य, आदि से उसकी पूजा करें, तदोपरान्त भद्रा के बारह नामों से हवन में १०८ आहुतियां देने के पश्चात तिल तथा खीरादि सहित ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयम भी मौन होकर तिल मिश्रित कुशरान्न का अल्प भोजन करना चाहिए।

☝🏻 फिर पूजन के अंत में इस प्रकार मंत्र द्वारा प्रार्थना करते हुए कल्पित भद्रा कुश को लोहे की पतरी पर स्थापित कर काले वस्त्र का टुकड़ा, पुष्प, गंध आदि से पूजन कर प्रार्थना करें –
" छाया सूर्य सुते देवि विष्टिरिष्टार्थदायिनी।
पूजितासि यथाशक्त्या भदे भद्रप्रदा भव॥ "

〰️👉🏻 तदोपरान्त तिल, तेल, सवत्सा, काली गाय, काला कंबल तथा यथाशक्ति दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को दें।
🤷🏻‍♂️ भद्रा मूर्ति को बहते पानी में विसर्जन कर देना चाहिए। इस प्रकार विधिपूर्वक जो भी व्यक्ति भद्रा व्रत का उद्यापन करता है, उसके किसी भी कार्य में विघ्न नहीं पड़ते। भद्रा व्रत करने वाले व्यक्ति को भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी तथा ग्रह आदि कष्ट नहीं देते।

🌊 भद्रा परिहार–
☝🏻 कुछ आवश्यक स्थिति में भद्रा का परिहार हो जाता है।
〰️👉🏻 तिथि के पूर्वार्द्ध भाग में प्रारम्भ भद्रा अर्थात तिथि दिवस के पूर्वार्द्ध भाग में प्रारम्भ भद्रायादि तिथ्यन्त में रात्रिव्यापिनी हो जाए, तो दोषकारक न होकर सुखदायिनी हो जाती है।

.  भद्रा वास•••
🪢❄️🌊❄️🪢

☝🏻 मेष, वृषभ, मिथुन, वृश्चिक का जब चंद्रमा हो तब भद्रा स्वर्ग लोक में रहती है। कन्या, तुला, धनु, मकर का चंद्रमा होने से पाताल लोक में, कर्क, सिंह, कुम्भ, मीन राशि पर स्थित चंद्रमा होने पर भद्रा मृत्यु लोक में रहती है अर्थात सम्मुख रहती है। जब भद्रा भू-लोक में रहती है तब अशुभ फलदायिनी एवम वर्जित मानी गई है। इस समय शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। बाकि अन्य लोक में शुभ रहती है।

✍🏻 विशेष••• शुक्ल पक्ष की भद्रा का नाम वृश्चिकी है। कृष्ण पक्ष की भद्रा का नाम सर्पिणी है। कुछ एक मतांतर से दिन की भद्रा सर्पिणी, रात्रि की भद्रा वृश्चिकी है। बिच्छू का विष डंक में तथा सर्प का मुख में होने के कारण वृश्चिकी भद्रा की पुच्छ एवम सर्पिणी भद्रा का मुख विशेषतः त्याज्य है।

🌊 भद्रा दोष•••
〰️👉🏻 मंगलवार-शनिवार जनित दोष, व्यतिपात, अष्टम भावस्थ एवम जन्म नक्षत्र दोष, मध्याह्न के पश्चात शुभ कारक मानी जाती है।

🤷🏻‍♂️ जानिए भद्रा का वास कब और कहां होता है ???
🔰 पौराणिक ग्रथ मुहुर्त्त चिन्तामणि में कहा गया है की जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुम्भ अथवा मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी अर्थात मृत्युलोक में होता है। चंद्रमा जब मेष, वृष, मिथुन अथवा वृश्चिक में रहता है तब भद्रा का वास स्वर्गलोक में होता है। कन्या, तुला, धनु या मकर राशि में चंद्रमा के स्थित होने पर भद्रा का वास पाताल लोक में होता है।
☝🏻 कहा जाता है की भद्रा जिस भी लोक में विराजमान होती है वही मूलरूप से प्रभावी रहती है। अतः जब चंद्रमा गोचर में कर्क, सिंह, कुम्भ अथवा मीन राशि में होगा, तब भद्रा पृथ्वी लोक पर प्रभाव करेगी। भद्रा जब पृध्वी लोक पर होगी तब भद्रा की अवधि कष्टकारी होगी।
विष्टि करण के साथ पक्ष तथा तिथियों का ध्यान करते हुये भी इसका निर्धारण अच्छी प्रकार से कर लेना चाहिये कि कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी तथा शुक्ल पक्ष की चर्तुथी, एकादशी के उत्तरार्ध में एवम कृष्णपक्ष की सप्तमी-चतुर्दशी, शुक्लपक्ष की अष्टमी-पूर्णमासी के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है।

🙇🏻‍♂️ संक्षेप मे निम्न प्रकार निर्धारण करें –
〰️👉🏻 जब भद्रा स्वर्ग अथवा पाताल लोक में होगी तब वह शुभ फल प्रदान करने में समर्थ होती है। संस्कृत ग्रन्थ पीयूषधारा में कहा गया है –
" स्वर्गे भद्रा शुभं कुर्यात पाताले च धनागम।
मृत्युलोक स्थिता भद्रा सर्व कार्य विनाशनी॥ "
📖 मुहूर्त मार्तण्ड में भी कहा गया है —
“ स्थिताभूर्लोख़्या भद्रा सदात्याज्या स्वर्गपातालगा शुभा ” अतः यह स्पष्ट है कि मेष, वृषभ, मिथुन, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु अथवा मकर राशि के चन्द्रमा में भद्रा पड़ रही है तो वह शुभ फल प्रदान करने वाली होती है।

🤷🏻‍♂️ भद्रा लोक वास चक्रम लोकवास स्वर्ग पाताल भूलोक चंद्रराशि 1, 2, 3, 8, 6, 7, 9, 10 4, 5, 11, 12 भद्रा-मुख उर्ध्वमुखी अधोमुख सम्मुख
भद्रा काल संबंधी परिहार 
भद्रा परिहार हेतु मुहूर्त चिंतामणि, पीयूषधारा तथा ब्रह्म्यामल में कहा गया है –
" दिवा भद्रा रात्रौ रात्रि भद्रा यदा दिवा।
न तत्र भद्रा दोषः स्यात सा भद्रा भद्रदायिनी॥ "
अर्थात— यदि दिन की भद्रा रात में और रात की भद्रा दिन में आ जाए तब भद्रा का दोष नहीं लगता है।
भद्रा का दोष पृथ्वी पर नहीं होता है। ऎसी भद्रा को शुभ फल देने वाली माना जाता है।
" रात्रि भद्रा यदा अहनि स्यात दिवा दिवा भद्रा निशि।
न तत्र भद्रा दोषः स्यात सा भद्रा भद्रदायिनी॥ "
अर्थात— रात की भद्रा दिन में हो तथा दिन की भद्रा जब रात में आ जाए तो भद्रा दोष नही होता है, यह भद्रा शुभ फल देने वाली होती है। एक अन्य मतानुसार –
तिथे पूर्वार्धजा रात्रौ दिन भद्रा परार्धजा।
भद्रा दोषो न तत्र स्यात कार्येsत्यावश्यके सति॥ "
अर्थात— यदि को महत्वपूर्ण कार्य है एवम उसे करना आवश्यक है एवम उत्तरार्ध की भद्रा दिन में तथा पूर्वार्ध की भद्रा रात में हो तब इसे शुभ माना गया है।

🤷🏻‍♂️ अंततः यह कहा जा सकता है की यदि कभी भी भद्रा में शुभ काम करना आवश्यक है, तब भूलोक की भद्रा तथा भद्रा मुख-काल को त्यागकर, स्वर्ग व पाताल की भद्रा पुच्छकाल में मंगलकार्य किए जा सकते हैं इसका परिणाम शुभ फलदायी होता है।


पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 
 ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ

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