मंगला गौरी व्रत का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। यह व्रत विशेष रूप से कुंवारी लड़कियां विवाह में आने वाले परेशानियों का समाप्त करने के लिए करती हैं। यह व्रत सावन मास में आता है, इसी कारण से मंगला गौरी व्रत को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। सुहागन महिलाओं के इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी परेशानियां समाप्त होती है और उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है।
🤷🏻♀️ *_यदि किसी व्यक्ति को मंगल दोष की समस्या है तो इस दिन की पूजा अत्यधिक लाभदायी होती है। मां मंगला गौरी की उपासना करने से भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मंगला गौरी व्रत को महिलाएं सावन के प्रत्येक मंगलवार को रखती हैं।
📚 *_धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मंगला गौरी व्रत का उद्यापन सावन महीने के शुक्ल पक्ष में किया जाता है। इस साल सावन के माह में 4 मंगलवार पड़ने के कारण इसे बहुत ही शुभ संयोग माना जा रहा है। सुहागिनों के लिए यह व्रत बहुत ही शुभ माना गया है। उद्यापन के बिना मंगला गौरी व्रत निष्फल माना जाता है।_*
*_मंगला गौरी व्रत के दिन सभी पूजन सामग्री 16 की संख्या में (16 मालाएं, इलायची, लॉन्ग, सुपारी, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री तथा 16 चूड़ियां) होनी चाहिए। तो आइए जानते हैं मंगला गौरी व्रत कब है, मंगला गौरी व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और व्रत का महत्व।_*
🍱 *_मंगला गौरी व्रत सामग्री_*
*_मंगला गौरी व्रत की पूजा के दौरान विवाहित महिलाओं (सुहागन) के साथ-साथ 16 चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। अनुष्ठान के दौरान आवश्यक सामग्री से शुरुआत करते हैं। सावन के प्रत्येक मंगलवार को आपको देवी गौरा की पूजा के लिए निम्नलिखित वस्तुओं या सामग्री की आवश्यकता होगी:_*
*_एक चौकी या वेदी।_*
*_सफेद और लाल कपड़ा।_*
*_कलश।_*
*_गेहूँ के आटे से बना एक चौमुखा दीया (दीपक)।_*
*_16 कपास से बनी चार बत्तियां।_*
*_देवी पार्वती की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी का पात्र।_*
🩸 *_अभिषेक के लिए सामग्री_*
*&पानी, दूध, पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, चीनी का मिश्रण)।_*
*_देवी गौरी के लिए कपड़े, भगवान गणेश के लिए जनेऊ।_*
*_पवित्र लाल धागा (कलावा / मौली), रोली या सिंदूर, चावल, रंग, गुलाल, हल्दी, मेंहदी, काजल।_*
*_16 प्रकार के फूल, माला, पत्ते और फल।_*
*_गेहूं, लौंग, इलायची से बने 16 लड्डू।_*
▶️ *_सात प्रकार का अनाज।_*
*_16 पंचमेवा (5 प्रकार के सूखे मेवे)।_*
*_16 सुपारी, सुपारी, लौंग।_*
*_सुहाग पिटारी (सिंदूर, काजल, मेंहदी, हल्दी, कंघी, तेल, दर्पण, 16 चूड़ियाँ, पैर की अंगुली के छल्ले, पायल, नेल पॉलिश, लिपस्टिक, हेयरपिन, आदि)।_*
*_नैवेघ / प्रसाद।_*
🙏🏼 *_मंगला गौरी व्रत पूजन विधि_*
*_मंगला गौरी व्रत सावन मास के प्रत्येक मंगलवार को रखा जाता है। इस दिन महिलाओं को स्नान करने के बाद कोरे वस्त्र ही धारण करने चाहिए।_*
*_इसके बाद एक साफ चौकी लेकर पूर्व दिशा की और मुख करके आसन पर बैठें।_*
*_इसके बाद चौकी के आधे भाग में सफेद कपड़ा बिछाकर चावल की नौ छोटी- छोटी ढेरी बनाएं और आधे भाग में लाल कपड़ा बिछाकर गेंहूँ की सोलह ढेरी बनाएं।_*
*_इसके बाद थोड़े से चावल चौकी पर अलग रखकर पान के पत्ते पर स्वस्तिक (सातिया) बनाकर उस पर भगवान गणेश की प्रतिमा रखें।_*
*_ऐसे ही गेहूं की अलग ढेरी पर कलश स्थापित करके उस पर पांच पान के पत्ते और नारियल रखें।_*
*_अब इस कलश पर चौमुखी दीपक में 16 रूई की बत्ती लगाकर जलाएं।_*
*_दीपक को प्रज्ववलित करने के बाद भगवान गणेश की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं।_*
*_इसके बाद गणेश जी को जनेऊ, रोली -चावल, सिंदूर चढ़ाएं और पूजन कर भोग लगाएं।_*
*_गणेश जी के पूजन के बाद एक साफ थाली में मिट्टी लें और उसमें गंगा जल मिलाकर उससे माता गौरी की प्रतिमा बनाएं।_*
*_माता गौरी की प्रतिमा बनाने के बाद उसे भी पंचामृत से स्नान कराएं और वस्त्र धारण कराएं।_*
*_इसके बाद माता गौरी को श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करें।_*
*_अब रोली, चावल, फूल माला, फल, पत्ते, आटे के लड्डू, पान, सुपारी, लोंग, इलायची तथा पांच मेवाओं का प्रसाद रखें।_*
*_इसके बाद माता की कथा, मंत्र जाप करने के बाद आरती उतारें।_*
👉🏼 *_इसके बाद इस मंत्र को पढ़ें :_*
*_‘कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।_*
*_नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्..।।_*
*_सावन के प्रत्येक मंगलवार इसी तरह पूजन करें और अंत में प्रतिमा को विसर्जन कर दें।_*
*_जब आपकी मन्नत पूरी हो जाए तब इस व्रत का उद्यापन अवश्य कर दें।_*
📖 *_मंगला गौरी की व्रत कथा_*
*_पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय धर्मपाल नाम का एक सेठ हुआ करता था। उसके के पास धन की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। वह हमेशा सोच में डूबा रहता था कि अगर उसकी कोई संतान नहीं हुई तो उसके बाद उसका वारिस कौन होगा? कौन उसके व्यापार की देख-रेख करेगा? इसी कशमकश में डूबा हुआ रहता था।_*
*_तब वह अपने गुरु के पास इस समस्या को लेकर गया। गुरु के परामर्श के अनुसार, सेठ धर्मपाल ने माता पार्वती की श्रद्धापूर्वक पूजा उपासना की। खुश होकर माता पार्वती ने उसे संतान प्राप्ति का वरदान दिया, परंतु उसे यह भी कहा कि संतान अल्पायु होगी। कुछ समय बाद कालांतर में धर्मपाल की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया।_*
*_इसके बाद धर्मपाल ने ज्योतिषी को बुलाकर पुत्र का नामांकरण करवाया और उन्हें माता पार्वती की भविष्यवाणी के बारे में बताया। ज्योतिषी ने धर्मपाल को सलाह दी कि वह अपने पुत्र की शादी ऐसी कन्या से कराएं, जो मंगला गौरी व्रत करती हो। मंगला गौरी व्रत के पुण्य प्रताप से आपका पुत्र दीर्घायु होगा।_*
*_उन्होंने मंगला गौरी व्रत के बारे में उसे विस्तार से बताया और कहा कि यह व्रत महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र और पुत्र प्राप्ति के लिए करती हैं। सेठ धर्मपाल ने अपने इकलौते पुत्र का विवाह मंगला गौरी व्रत रखने वाली एक कन्या से करवा दिया। मंगला गौरी व्रत और कन्या के पुण्य प्रताप से धर्मपाल का पुत्र मृत्यु पाश से मुक्त हो गया। तभी से मां मंगला गौरी के व्रत करने की प्रथा चली आ रही है।_*
⚛️ *_मंगला गौरी पूजा व्रत उद्यापन विधि_*
*_सोलह या बीस मंगलवार के व्रत करने के बाद मंगला गौरी व्रत का उद्यापन मंगलवार के दिन करें।_*
*_सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करके लाल रंग के वस्त्र धारण करें।_*
*_उद्यापन के दिन उपवास रखें और गठजोड़े से पूजन करें।_*
*_अब एक चौकी के चारों पैरों में केले का खम्बा बांधकर यथाविधि कलश की स्थापना करें तथा कलश के ऊपर मंगला गौरी की मूर्ति की स्थापना करें।_*
*_इसके बाद माँ गौरी को साड़ी, ब्लाउज, ओढ़नी, नथ और सुहाग के सामान चढ़ाकर विधिवत पूजा करें और कथा सुने।_*
*_इसके बाद गणेशादि का स्मरण करके ‘ श्रीमङ्गलागौर्यै नमः ‘ नाम मन्त्र से माँ गौरी की पूजा करें और सोलह दीपकों से आरती करें।_*
*_अब मन्नत के अनुसार किसी पंडित या पुरोहित को तथा सोलह सुहागन स्त्रियों को भोजन कराएं।_*
*_आखिरी मंगलवार को पूरे परिवार के साथ सुहागन स्त्री अपने पति के साथ हवन करें।_*
*_पूर्णाहुति में पूरे परिवार व सगे-संबंधियों को शामिल करें और अंत में आरती करें।_*
*_पीतल के भगोने में चावल और दक्षिणा डालकर ब्राह्मण को दें।_*
*_अंत में अपनी सासू मां के चरण स्पर्शकर उन्हें भी चांदी के एक बर्तन में सोलह लड्डू, आभूषण, वस्त्र तथा सुहाग पिटारी दें।_*
*_इस प्रकार नियमपूर्वक मंगला गौरी व्रत का पालन और उद्यापन करने से सुहागन स्त्रियों को वैधव्य की प्राप्ति नहीं होती।_*
*_यह भी पढ़ें – जानिए शिव चतुर्दशी व्रत पूजन विधि, व्रत कथा और महत्त्व_*
🤷🏻♂️ *_मंगला गौरी व्रत का महत्व_*
*_हिंदू शास्त्रों में मंगला गौरी व्रत का खास महत्व बताया गया है। इस दिन सुहागन महिलाएं वैवाहिक सुख की सफलता प्राप्ति के लिए ये व्रत करती हैं। माता पार्वती की पूजा अर्चना करना हर स्त्री के लिए सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद होता है। कुंवारी कन्या अगर गौरी व्रत का धारण करती है तो उन्हें सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। तथा विवाह में हो रही अड़चन भी दूर हो जाती है। सुहागन स्त्रियां इस व्रत को अपने पति की लंबी उम्र अर्थात अखंड सौभाग्यवती होने की लालसा में रखती है।_*
*_इस व्रत की खास मान्यता है कि किसी कन्या का विवाह मांगलिक होने की वजह से नहीं हो रहा है। अर्थात कुंडली में मंगल 1, 4, 7, 8 और 12वें घर में उपस्थित हो तो मंगल दोष बनता है। ऐसी स्थिति में कन्या का विवाह नहीं हो पाता। इसलिए मंगला गौरी व्रत रखने की सलाह दी जाती है। मंगलवार के दिन मंगला गौरी के साथ-साथ हनुमानजी के चरण से सिंदूर लेकर उसका टीका माथे पर लगाने से मंगल दोष समाप्त हो जाता है। तथा कन्या को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।_*
*_धार्मिक मान्यता है की माता पार्वती ने व्रत के प्रताप से भगवान शिव को प्राप्त किया था और अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद भी प्राप्त किया था। जब माता सीता स्वयंवर के लिए भगवान श्रीराम को मन से पति मान चुकी थी। तब उन्होंने भी माता गौरी की पूजा की थी और उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति हुई थी। ऐसी बहुत धार्मिक मान्यताओं के चलते माता गौरी की पूजा अर्चना बड़े भक्ति भाव से की जाती है। यह व्रत धारण करने पर स्त्रियों तथा कन्याओं को कभी भी व्रत करते समय कष्ट और व्याधि नहीं सताते और उनके समस्त मनोरथ सफल होते हैं।
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