जानिए पशुपतिनाथ व्रत कैसे किया जाता है और क्या है व्रत से लाभ ?
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जानिए कौन है पशुपतिनाथ ?
भगवान शिव का एक नाम पशुपति भी है उन्हें महादेव ,भोलेनाथ ,आशुतोष आदि नामों से भी जाना जाता है। शिव जगत की आत्मा है,गुरु है,ब्रह्म है।
पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बागमती नदी के किनारे देवपाटन गांव में स्थित है।पशुपतिनाथ में आस्था रखने वालों (मुख्य रूप से हिंदुओं) को मंदिर परिसर में प्रवेश करने की अनुमति है। गैर हिंदू आगंतुकों को इसे बाहर से बागमती नदी के दूसरे किनारे से देखने की अनुमति है।
भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर की किंवदंती के अनुसार पाण्डवों को स्वर्गप्रयाण के समय भैंसे के स्वरूप में शिव के दर्शन हुए थे जो बाद में धरती में समा गए लेकिन भीम ने उनकी पूँछ पकड़ ली थी। ऐसे में उस स्थान पर स्थापित उनका स्वरूप केदारनाथ कहलाया, तथा जहाँ पर धरती से बाहर उनका मुख प्रकट हुआ, वह पशुपतिनाथ कहलाया
पशुपतिनाथ जी का व्रत
पशुपतिनाथ जी का व्रत करने से कई तरह के लाभ होते है इसकी महिमा आप तभी जान पाएंगे जब इस व्रत को अपनी पूरी श्रध्द्दा और इच्छा से करेंगे।
इस व्रत को करने से आपकी हर मनोकामना पूर्ण होगी। इस व्रत को करने से आपके रुके हुए काम आसानी से हो जायेंगे। एक बार आप भगवान पशुपतिनाथ के चरणों में जाएंगे तो देवो के देव महादेव आपकी सच्ची श्रद्धा से किये गए व्रत का फल अवश्य देंगे ऐसा शिव महापुराण की कथा में वर्णित है।
पशुपतिनाथ व्रत कब करना चाहिए?
पशुपतिनाथ व्रत की शुरुआत आप किसी भी सोमवार से कर सकते है, इसके लिए कोई तिथि देखने की जरुरत नहीं है आप इसे शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष कभी भी कर सकते है।
पशुपतिनाथ व्रत कब नहीं करना चाहिए ?
भगवान पशुपतिनाथ खुद ही इस संसार के समस्त पशु – मनुष्य, देवो आदि के नाथ है इसलिए वे नहीं ऐसा कभी नहीं चाहेंगे की उनके किसी भी भक्त को कष्ट हो इसलिए बीमार, बुजुर्ग जो बीमार, गर्भवती महिला को नहीं करना चाहिए।
पशुपतिनाथ व्रत किसे करना चाहिए ?
पशुपतिनाथ व्रत कोई भी पुरुष – महिला द्वारा किया जा सकता है, लेकिन स्त्री अपने मासिक धर्म के दौरान परिवार के कोई स्नेही स्वजन से पूजा करवा सकती है और यही पूजा भी संभव नहीं हो तो सिर्फ व्रत भी किया जा सकता है।
पशुपतिनाथ व्रत की विधि / पशुपतिनाथ व्रत कैसे करे ?
सबसे पहले सोमवार सुबह ब्रम्ह महूर्त में उठकर नहाने के बाद पूजा की थाली तैयार करनी चाहिए। पूजा की थाली में कुमकुम, अबीर, गुलाल, अष्टगंधा, लाल चन्दन, पीला चन्दन, अक्षत (बिना खंडित चावल) रखे। दोस्तों याद रखे कई लोग अपनी इच्छा अनुसार धतूरा, भाग, आंकड़ा भी रखते है लेकिन ऐसा कोई नियम नहीं है लेकिन अगर आपके पास सारी चीज़े नहीं है तो इसकी कोई जरुरत नहीं है क्यों की भगवान महादेव को भोले है भोलेनाथ है उन्हें किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं है बस वे तो भक्त प्रेम देखते है, इसलिए आप प्रेम से पूजन की थाली के साथ ताम्बे के लोटे में शुद्ध जल ले और बिल्व पत्र रखले। याद रहे पूजा की थाली में रखी गया सारी वस्तुए आपको शाम को भी इस्तेमाल करनी है इसलिए उसे अधिक मात्रा में रखे। अगर आपके पास बिल्व पत्र नहीं है तो मंदिर में रखे बिल्व पत्र को धोकर इस्तेमाल कर सकते है।
अब मंदिर में जाने से पहले ये याद रखले की आपको पहला व्रत जिस मंदिर में करना है बाकी की सारे व्रत भी उसी मंदिर में करने होंगे इसलिए महादेव के ऐसे मंदिर में ही जाए जिसमे आप आसानी से सारे व्रत के दौरान पूजा कर सकते है।
मंदिर में जाकर सबसे पहले भगवान को प्रणाम करे और मन ही मन व्रत का संकल्प ले। शिवलिंग के पास पहुंच कर उसके आसपास थोड़ी सफाई कर दे। शिवलिंग का अभिषेक जल से करे और याद रखे किसी हड़बड़ी में जल न चढ़ाये आराम धीमे धीमे धार से जल चढ़ाये और मन में “ॐ नमः शिवाय” या “श्री शिवाय नमस्तुभ्यं ” मन्त्र का जाप करे और बाबा भोले नाथ को हलके हाथो से साफ़ करे। फिर बाबा का पूजन कर बिल्व पत्र सही तरीके से चढ़ाये।
घर पहुंचकर पूजा की थाली को पूजा घर में रख दे। अब प्रदोष काल में वही पूजा की थाली के साथ बिल्व पत्र और मिठाई का प्रसाद रखले साथ ही ६ दिये भी आपकी थाली में रखले। अब प्रदोष काल में उसी मंदिर में जाकर भगवान महादेव का पूजा अभिषेक आदि करके बिल्व पत्र सही तरीके से चढ़ाये। अब मिठाई के 3 हिस्से महादेव के सामने ही करे और 6 दियो मे से महादेव के सामने 5 दिये जला दे और मन ही मन अपनी कामना करके प्रभु से प्रार्थना करे। प्रसाद का तीसरा भाग और एक दिया अपने साथ ले आये। घर आकर अन्दर आने से पहले दाये हाथ पर उस दिए को जला दे और वही छोड़ दे। अब आप शाम के फलाहार से पहले उस प्रसाद को खाली तथा याद रखे आपको प्रसाद किसी के साथ नहीं बांटना है वो आपको अकेले ही खाना है।
इस तरह आपका पहला व्रत पूरा हुआ और इसी तरह हर सोमवार आपको व्रत करना है।
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