वट सावित्री व्रत व शनि जयंती

वट सावित्री व्रत व शनि जयंती  :-पंडित कौशल पाण्डेय

ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि जन्मोत्सव मनाया जाता है, हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, इस दिन शनि देव का जन्म हुआ था, तभी से ये दिन शनि जयंती या शनि जन्मोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है,  भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार वट सावित्री व्रत की पूजा व शनि जयंती इस वर्ष 6 जून 2024 गुरुवार को मनाया जाएगा।

इस साल # शनि_जयंती - #वट_सावित्री_व्रत  6 जून 2024 गुरुवार को मनाई जाएगी।  

Shani Jayanti


ज्येष्ठ अमावस्या तिथि शुरू - 5 जून 2024, रात 07.54
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि समाप्त - 6 जून 2024, शाम 06.07
शनि पूजा का समय - शाम 05.33 - रात 08.33

शनि जयंती पूजा विधि
शनि जन्मोत्सव पर शनि देव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है इस दिन सुबह उठकर स्नान करें, 

◉ शनि जयंती पर तिल या सरसों के तेल से अभिषेक किया जाता है ।
◉ शनि जयंती के दिन भक्त शनि धाम या मंदिर में पूजा अर्चना ,मंत्र जाप, यज्ञ करते हैं जो आमतौर पर शनि मंदिरों या नवग्रह मंदिरों में आयोजित किया जाता है।
◉ देवता को प्रसन्न करने और जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए, भक्त शनि स्तोत्र का पाठ करते हैं।
◉ बाधा मुक्त जीवन जीने के लिए भक्त शनि जयंती के दिन सरसों के तेल, तिल और काले रंग के कपड़े का दान भी करना पड़ता है।
◉ शनि जयंती के पर्व पर कर्म को शुभ बनाये जानवरों को विशेष रूप से काले कुत्ते या कौवे चारा खिलाते हैं।
◉ शनि जयंती के दिन पूजा के बाद निम्न मंत्रों का जाप करें। यह जाप कम से कम 108 बार करना चाहिए।
 जाप शुरू करने से पहले तेल का दीपक जलाकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करें।

 आमतौर पर लोगों में शनिदेव को लेकर डर देखा जाता है, कई ऐसी धाराणाएं बनी हुई हैं कि शनि देव सिर्फ लोगों का बुरा करते हैं, पर सत्य इससे बिल्कुल परे हैं, शास्त्रों के अनुसार, शनिदेव व्यक्ति के कर्मों के अनुसार उसकी सजा तय करते हैं, शनि की साढ़ेसाति और ढैय्या मनुष्य के कर्मों के आधार पर ही उसे फल देती है।


महत्वपूर्ण जगह
नवग्रह मंदिर, कोकिलावन धाम, शनि देव मंदिर,कोशी, उत्तर प्रदेश, शनिश्वरन मंदिर थिरुनलार पुदुचेरी, शनि शिगनापुर महाराष्ट्र।

कलियुग में शनि देव बहुत ही प्रभावशाली और दयालु देव है , शनि देव न्याय की मूर्ति भी है , जैसा प्राणी कर्म करता है शनि देव अपनी दशा में वैसा ही फल देते है ,शनिदेव क्रांति लाने की क्षमता देते हैं, सूर्य से दूर होने के कारण सूर्य की रोशनी से वंचित शनि काले हैं कठोर है परन्तु यही कठोरता अनुशासन भी है। कई कुंडली में मैंने देखा है की शनिदेव को जब बृहस्पति की शुभ दृष्टि प्राप्त हो जाती है तो धर्म, आघ्यात्म और वैराग्य का अद्भुत संगम देते है।
कई लोग कहते है शनि जिसे चाहे आबाद कर दे और जिसे न चाहे बर्बाद कर दे .. इस में ऐसी कोई बात नहीं है सभी प्राणी अपने किये हुए कर्मो का फल भोगते है ..
जानिए शनि देव के बारे में :-
शनि के पिता सूर्यदेव और माता छाया हैं।
शनि के भाई-बहन यमराज, यमुना और भद्रा है। यमराज मृत्युदेव, यमुना नदी को पवित्र व पापनाशिनी और भद्रा क्रूर स्वभाव की होकर विशेष काल और अवसरों पर अशुभ फल देने वाली बताई गई है।
शनि ने शिव को अपना गुरु बनाया और तप द्वारा शिव को प्रसन्न कर शक्तिसंपन्न बने।
शनि का रंग कृष्ण या श्याम वर्ण सरल शब्दों में कहें तो काला माना गया है।
शनि का जन्म क्षेत्र – सौराष्ट क्षेत्र में शिंगणापुर माना गया है।
शनि का स्वभाव क्रूर किंतु गंभीर, तपस्वी, महात्यागी बताया गया है।
शनि, कोणस्थ, पिप्पलाश्रय, सौरि, शनैश्चर, कृष्ण, रोद्रान्तक, मंद, पिंगल, बभ्रु नामों से भी जाने जाते हैं।
शनि के जिन ग्रहों और देवताओं से मित्रता है, उनमें श्री हनुमान, भैरव, बुध और राहु प्रमुख है।
शनि को भू-लोक का दण्डाधिकारी व रात का स्वामी भी माना गया है।
शनि का शुभ प्रभाव अध्यात्म, राजनीति और कानून संबंधी विषयों में दक्ष बनाता है।
शनि की प्रसन्नता के लिए काले रंग की वस्तुएं जैसे काला कपड़ा, तिल, उड़द, लोहे का दान या चढ़ावा शुभ होता है। वहीं गुड़, खट्टे पदार्थ या तेल भी शनि को प्रसन्न करता है।
शनि को अनुकूल करने के लिये नीलम रत्न धारण करना प्रभावी माना गया है।
शनि के बुरे प्रभाव से डायबिटिज, गुर्दा रोग, त्वचा रोग, मानसिक रोग, कैंसर और वात रोग होते हैं। जिनसे राहत का उपाय शनि की वस्तुओं का दान है।

शनि देव का करे निम्न मन्त्रों से ध्यान :-
नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। 
छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
ऊँ शत्रोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोभिरत्रवन्तु नः। 
ऊँ शं शनैश्चराय नमः।
ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।, 
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।
जिनकी कुंडली में शनि तुला राशी का है और शनि की ही दशा या अंतर दशा है ऐसे जातक पर शनिदेव की कृपा बनी रहेगी , जिनकी कुण्डले में शनि मेष राशी का है उनको शनि देव की शांति करनी चाहिए ….
सूर्य पुत्र शनि देव का नाम सुनकर लोग सहम से जाते है लेकिन हिसा कुछ नहीं है ,बेसक शनि देव की गिनती अशुभ ग्रहों में होती है लेकिन शनि देव इन्शान के कर्मो के अनुसार ही फल देते है , शनि बुर कर्मो का दंड भी देते है।शनि उच्चा राशी तुला में प्रवेश कर रहे है , 
जिनकी कुंडली में शनि तुला राशी गत है जिस भाव में बैठा है उस भाव सम्बन्धी कार्यों में वृद्धि करेगा जब शनि तुला राशी में सूर्य के साथ युति होने के कारण राजनितिक लोंगे के लिए अशुभ फल देगा , वाद-विवाद में बढ़ोत्तरी होगी , धातु की बढ़ोत्तरी होगी , भारतीय राजनीती में बहुत ज्यादा उतर चढाव देखने को मिलेगा , जिनका शनि अच्चा होगा भिखारी से रजा बन जायेगा और जिनका अशुभ होगा रजा से भिखारी बनते देर नहीं लगेगी , जिनकी कुंडली में शनि तुला राशी गत है जिस भाव में बैठा है उस भाव सम्बन्धी कार्यों में वृद्धि करेगा , 
यदि शनि लग्न , केंद्र या त्रिकोण में है या अपनी उच्चा राशी में स्वग्रही या मित्र राशी में है तो अपनी दशा अन्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करेगा , मानसगरी ग्रन्थ के अनुसार शनि देव के शुक्र बुध मित्र. बृहस्पति सम. शेष शत्रु हैं ।
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जिनकी कुंडली में शनि आशुभ है या जन्मकुंडली में शनि ग्रह अशुभ प्रभाव में होने पर व्यक्ति को निर्धन हो जाये , हर समय आलसी रहे , दुःखी, कम शक्तिवान, बार बार व्यापार में हानि उठाने वाला, जब शनि अशुभ फल देता है तो जातक नशीले पदार्थों का सेवन करने वाला बन जाता है , उसका दिमाक अच्छे कार्यों को नहीं करता जिसके कारन उसे जुआ खेलने , मैच में सट्टा लगाने या खिलाने वाला बन जाता है ,ऐसे जातक को कब्ज का रोगी, जोड़ों में दर्द से पीड़ित, वहमी , नास्तिक या बुरे कर्मो को करने वाला , बेईमान- धोखेबाज तिरस्कृत और अधर्मी बनता है , ऐसे जातक निम्न उपाय करे ..
शनि ग्रह का उपाय …
एक समय में केवल एक ही उपाय करें.उपाय कम से कम 40 दिन और अधिक से अधिक 43 दिनो तक करें.यदि किसी करणवश नागा हो तो फिर से प्रारम्भ करें., यदि कोइ उपाय नहीं कर सकता तो खून का रिश्तेदार ( भाई, पिता, पुत्र इत्यादि) भी कर सकता है.–
१- ऐसे जातक को मांस , मदिरा, बीडी- सिगरेट नशीला पदार्थ आदि का सेवन न करे ,
२-हनुमान जी की पूजा करे , बंरंग बाण का पाठ करे ,
३- पीपल को जल दे अगर ज्यादा ही शनि परेशां करे तो शनिवार के दिन शमसान घाट या नदी के किनारे पीपल का पेड़ लगाये ,
४-सवा किलो सरसों का तेल किसी मिट्टी के कुल्डह में भरकर काला कपडा बांधकर किसी को दान दे दें या नदी के किनारे भूमि में दबाये .
५-शनि के मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार पाठ करें। मंत्र है ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। या शनिवार को शनि मन्त्र ॐ शनैश्वराय नम का २३,००० जाप करे .
६- उडद के आटे के 108 गोली बनाकर मछलियों को खिलाने से लाभ होगा ,
७-बरगद के पेड की जड में गाय का कच्चा दूध चढाकर उस मिट्टी से तिलक करे तो शनि अपना अशुभ प्रभाव नहीं देगा ,
८- श्रद्धा भाव से काले घोडे की नाल या नाव की कील का छल्ला मध्यमा अंगुली में धारण करें या शनिवार सरसों के तेल की मालिश करें,
९- शनिवार को शनि ग्रह की वस्तुओं का दान करें, शनि ग्रह की वस्तुएं हैं –काला उड़द,चमड़े का जूता, नमक, सरसों तेल, तेल, नीलम, काले तिल, लोहे से बनी वस्तुएं, काला कपड़ा आदि।
१०-शनिवार के दिन पीपल वृक्ष की जड़ पर तिल या सरसों के तेल का दीपक जलाएँ।
११- गरीबों, वृद्धों एवं नौकरों के प्रति अपमान जनक व्यवहार नहीं करना चहिए.
१२-शनिवार को साबुत उडद किसी भिखारी को दान करें.या पक्षियों को ( कौए ) खाने के लिए डाले ,
१३-ताऊ एवं चाचा से झगड़ा करने एवं किसी भी मेहनतम करने वाले व्यक्ति को कष्ट देने, अपशब्द कहने से कुछ लोग मकान एवं दुकान किराये से लेने के बाद खाली नहीं करते अथवा उसके बदले पैसा माँगते हैं तो शनि अशुभ फल देने लगता है।
१४:- सूर्यपुत्र शनिदेव की प्रसन्नता हेतु इस दिन काली चींटियों को गु़ड़ एवं आटा देना चाहिए।
१५- बहते पानी में रोजाना नारियल बहाएँ। या किसी बर्तन में तेल लेकर उसमे अपना क्षाया देखें और बर्तन तेल के साथ दान करे. क्योंकि शनि देव तेल के दान से अधिक प्रसन्ना होते है,

वट सावित्री व्रत 
प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना से व्रत रखती है। प्राचीन कथानुसार, इसी दिन देवी सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों को मृत्यु के बाद भी वापिस ले आई थी। मान्यता है कि इस दिन जो भी विवाहित महिला व्रत रखकर विधिवत पूजा आराधना करती है उनके पति का रक्षा अनेक संकटों से होती है। वट सावित्री व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों का विशेष पर्व है. इस व्रत का पूजन ज्येष्ठ अमावस्या को किया जाता है. इस दिन महिलाएं बरगद के वृक्ष का पूजन करती हैं. यह व्रत स्त्रियों को अखंड सौभाग्यव देता है और परिवार में मंगल ही मंगल बनाए रखने का आशीष देता है. इस दिन सत्यवान-सावित्री की यमराज के साथ पूजा की जाती है.

वट सावित्री व्रत कथा 

ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन सावित्री व्रत की कथा निम्न प्रकार से है:

भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था। भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी।उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा।इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि: राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने के कारण से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा।सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।

ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह क्या कर रहे हैं आप? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं। एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।

ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए। सावित्री ने उनसे कारण पूछा, तो राजा ने कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं। तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए।

इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है।

सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया।

सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा करने लगी। समय बीतता चला गया। नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया।

हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये साथ में सावित्री भी गईं। जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये। तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये। सावित्री अपना भविष्य समझ गईं।

सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं। तभी वहां यमराज आते दिखे। यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं।

यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है। लेकिन सावित्री नहीं मानी।

सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो। तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो।

1) सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा ऐसा ही होगा। जाओ अब लौट जाओ।
लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ। सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा।

2) सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें।
यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ। लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं।

यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा।
3) इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया।

सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। यमराज अंतध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।

सत्यवान जीवंत हो गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े। दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।

अतः पतिव्रता सावित्री के अनुरूप ही, प्रथम अपने सास-ससुर का उचित पूजन करने के साथ ही अन्य विधियों को प्रारंभ करें। वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से उपवासक के वैवाहिक जीवन या जीवन साथी की आयु पर किसी प्रकार का कोई संकट आया भी हो तो वो टल जाता है।

जिस वृक्ष की पूजा की जाती है उसे कभी नहीं तोडना या काटना चाहिए :
सनातन धर्म में कई ऐसे पेड़ पौधे है  जैसे आम, नीम, पीपल, गूलर, पाकड़, बरगद,केला ,अशोक आदि इनकी सदियों से पूजा की जाती है , खासकर जिस दिन इन पेड़ों की पूजा की जाती है उस दिन तो कभी नहीं काटना चाहिए जैसे शनिवार के दिन पीपल , गरुवार को केला ,अमावस के दिन बरगद आदि का पेड़ काटने या उसे नुकसान पहुंचाने पर कुल का नाश हो जाता है।  प्रायः वट सावित्री व्रत के दिन महिलाये बरगद की दहनी घर में लाकर उसकी पूजा करती है जो बहुत ही अशुभ होता है।  किसी पेड़ की पूजा घर में ही करना है तो उस पौधे को गमले में या जमीन पर लगाकर पूजा करने के उपरांत उसे किसी पार्क या मंदिर में लगवा दे ऐसा करने से कुल खानदान की वृद्धि होती है। 
प्रेम विश्वास दृढ संकल्प भारतीय नारी की पतिव्रत-धर्म पारायणता और उसके सतीत्व के शक्ति का पावन पर्व वट सावित्री व्रत की हार्दिक शुभकामनायें

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे .
पंडित कौशल पाण्डेय 
ज्योतिष वास्तु राशि रत्न विशेषज्ञ 
राष्ट्रीय अध्यक्ष 
श्री राम हर्षण शांति कुञ्ज 
+919968550003


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