#चैत्र नवरात्रि नवरात्री विशेषांक 2024 :- पंडित के एन पाण्डेय ( कौशल )

नवरात्री विशेषांक :- पंडित के एन पाण्डेय ( कौशल )09968550003

#चैत्रनवरात्रि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है. इस बार चैत्र नवरात्रि व्रत मंगलवार 9 अप्रैल 2024 से  प्रारम्भ हो रहे हैं .

चैत्र नवरात्रि मंगलवार 9 अप्रैल 2024 से बुधवार  17 अप्रैल 2024



  
चैत्र नवरात्रि 2024 
चैत्र नवरात्रि मंगलवार 9 अप्रैल 2024 से बुधवार  17 अप्रैल 2024 तक 

1st नवरात्रि दिन माँ शैलपुत्री पूजा     मंगलबार 9 अप्रैल 2024
2nd नवरात्रि दिन माँ ब्रह्मचारिणी पूजा     बुधवार, 10 अप्रैल 2024
3rd नवरात्रि दिन माँ चंद्रघंटा पूजा           गुरुवार, 11 अप्रैल 2024
4th नवरात्रि दिन माँ कुष्मांडा पूजा        शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024
5th नवरात्रि दिन माँ स्कंदमाता पूजा        शनिवार, 13 अप्रैल 2024
6th नवरात्रि दिन माँ कात्यायनी पूजा      रविवार, 14 अप्रैल 2024
7th नवरात्रि दिन माँ कालरात्रि पूजा     सोमवार, 15 अप्रैल 2024
8th नवरात्रि दिन माँ महागौरी पूजा     मंगलवार, 16 अप्रैल 2024
9th नवरात्रि दिन माँ सिद्धिदात्री पूजा     बुधवार, 17 अप्रैल 2024

इस दिन करे यह उपाय :- 
सभी चाहते है की हम निरोग रहे हमारा समय अच्छे से बीत जाये तो सब;से पहले आज के दिन नीम की कोमल पत्तिया और थोड़ी सी अजवाइन मिलाकर इसका प्रातः काल गंगा जल के साथ सेवन करे। 
क्या करें नव-संवत्सर के दिन —
-आज के दिन घर की छत पर ध्वजा, पताका फहराना चाहिए जिससे घर में सदा मंगल होता रहे। 
- माँ भवानी का श्रद्धा विश्वास के साथ सभी परिवार के साथ मंदिर में दर्शन करने जाये और रोजाना मंदिर जाने का आज से नियम बनाये। 
- आज के दिन घर में जागरण , चौकी या माँ भवानी का जाप करे घर के नार्थ ईस्ट दिशा में बैठकर और हवन करे। 
- प्रकृति की रक्षा का संकल्प ले अपने धर्म जाती और गौमाता की की रक्षा करे 
- आज के दिन से चिड़ियों के निमित्त सतनाजा (सात प्रकार के अनाज ) रोज चिड़ियों को खिलाये और मिटटी के बर्तन में प्यासे परिंदो को पानी पिलाये। 
-आज के दिन से श्री दुर्गा सप्तशती या सिद्ध कुञ्चिका स्त्रोत्र का नौ-दिवसीय पाठ आरंभ करें।
- गऊ , ब्राह्मण, माता -पिता , गुरु का आशीर्वाद ले बड़ो का सम्मान करे
यह उपाय खुद भी करे और लोगों को भी सेयर करे क्यों की पहला सुख निरोगी काया जब आप का शरीर स्वस्थ है तो आप सब कुछ कर सकते है कृपया अधिक से अधिक लोगों तक यह जानकारी पहुंचाए। 

 धर्म ग्रंथों, पुराणों के अनुसार चैत्र नवरात्रों का समय बहुत ही भाग्यशाली बताया गया है।इन दिनों प्रकृति से एक विशेष तरह की शक्ति निकलती है. इस शक्ति को ग्रहण करने के लिए इन दिनों में शक्ति पूजा या नवदुर्गा की पूजा का विधान है. इसमें मां की नौ शक्तियों की पूजा अलग-अलग दिन की जाती है.   ऐसे समय में मां भगवती की पूजा कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना करना बहुत शुभ माना गया है। क्योंकि बसंत ऋतु अपने चरम पर होती है इसलिये इन्हें वासंती नवरात्र भी कहा जाता है। नवरात्र के दौरान जहां मां के नौ रुपों की पूजा की जाती है वहीं चैत्र नवरात्रों के दौरान मां की पूजा के साथ-साथ अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा का विधान भी है जिससे ये नवरात्र विशेष हो जाते हैं।

मां दुर्गा के तीन स्वरूप हैं, महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती इसलिए इसे त्रिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रों में विशेष रूप से देवी की पूजा, पाठ, उपवास, भक्ति की जाती है। 
नवरात्री का अर्थ नौ रातें होती है. इन नौ रातों में माँ दुर्गा के नौ रुपों की पूजा होती है ,माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के इन्हीं नौ दिनों पर मां दुर्गा के जिन नौ रूपों का पूजन किया जाता है वे हैं – 
पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्माचारिणी, तीसरा चन्द्रघन्टा, चौथा कूष्माण्डा, पाँचवा स्कन्द माता, छठा कात्यायिनी, सातवाँ कालरात्रि, आठवाँ महागौरी, नौवां सिद्धिदात्री।
माँ दुर्गा देवी के नौ रुपों की पूजा की जाय तो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.माता की कृपा पाने के लिए नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ का पाठ करना चाहिये. दुर्गा सप्तशती में बताये मंत्रों और श्लोकों का पाठ करने मात्र से माँ की कृपा बनी रहती है , 
इन नौ दिनों के दौरान देवी की आराधना करने वाले भक्तों को ब्रह्माचर्य पालन का पालन करना चाहिए. ब्रह्मचर्य का पालन कर मां भगवती की भक्ति करने वालों से मां जल्द खुश होती हैं और उनकी सारी मनोकामनाओं को पूरा करती है.

मां दुर्गा की पूजा के दौरान भक्तों को कभी भी दूर्वा, तुलसी और आंवला का प्रयोग नहीं करना चाहिये. 
मां दुर्गा की पूजा में लाल रंग के पुष्पों का बहुत महत्व है. गुलहड़ के फूल तो मां को अति प्रिय हैं. इसके अलावा बेला, कनेल, केवड़ा, चमेली, पलाश, तगर, अशोक, केसर, कदंब के पुष्पों से भी पूजा की जा सकती है

नवरात्रि कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 
कलश स्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि शनिवार 2 अप्रैल  2022 , घटस्थापना मुहूर्त :06:10:45 से 08:29:43 तकअवधि :2 घंटे 18 मिनट
कलश की स्थापना उत्तर पूर्व दिशा (ईशान कोण) की ओर ही संपन्न करें।  

घटस्थापना के नियम
घटस्थापना मुहूर्त जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि इसके लिए शुभ दिन कौन-सा है। तो आइए चैत्र नवरात्रि के पहले दिन का मुहूर्त निकालने की विधि जानते हैं:

1. सूर्योदय के बाद यदि एक भी मुहूर्त प्रतिपदा में पड़ रहा है तो उसी दिन की सुबह से ही नवरात्रि शुरू होगी और कलश स्थापना या घटस्थापना की जाएगी।

2. यदि सूर्योदय के बाद प्रतिपदा एक मुहूर्त से कम हो और बाक़ी किसी दिन न हो, तब ऐसी स्थिति में अमायुक्त प्रतिपदा को पहला दिन माना जाएगा।

3. किसी दूसरी स्थिति में अमायुक्त प्रतिपदा में चैत्र नवरात्रि आरंभ करना निषिद्ध माना गया है।

4. यदि प्रतिपदा दो दिनों के सूर्योदय में पड़ रही है तो पहले दिन का मान्य होगा, दूसरे दिन त्यौहार की शुरुआत करना वर्जित है।

5. यदि पहले दिन देवी चण्डिका की पूजा करनी हो तो अमायुक्त प्रतिपदा में नहीं करनी चाहिए। ऐसी स्थिति में दूसरे दिन में पड़ रही प्रतिपदा मान्य होगी।

यदि पहले दिन देवी चण्डिका की पूजा करनी हो तो अमायुक्त प्रतिपदा में नहीं करनी चाहिए। ऐसी स्थिति में दूसरे दिन में पड़ रही प्रतिपदा मान्य होगी।

1. घटस्थापना का सबसे उत्तम समय दिन का पहला एक तिहाई हिस्सा है।

2. किसी दूसरी स्थिति में अभिजीत मुहूर्त सबसे उत्तम माना गया है।

3. किचित्रा नक्षत्र और वैधृति योग की अवधि में घटस्थापना करने से बचना चाहिए, पर यह समय पूरी तरह से वर्जित नहीं है।

4. किसी भी परिस्थिति में घटस्थापना हिन्दू समय के अनुसार प्रतिपदा तिथि के दिन के मध्य से पहले होनी चाहिए।

5. चैत्र नवरात्रि में प्रतिपदा की सुबह द्वि-स्वभाव लग्न मीन होता है, इस अवधि में भी घटस्थापना करना शुभ माना गया है।

6. घटस्थापना के लिए शुभ नक्षत्र हैं: पुष्या, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद, हस्ता, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और पुनर्वसु।

नोट: सूर्योदय होने से 16 घटी के बाद घटस्थापना का कार्य वर्जित है। दूसरे शब्दों में कहें तो घटस्थापना हिन्दू समय के अनुसार प्रतिपदा के दिन के मध्य से पहले होनी चाहिए।

घटस्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
1. चौड़े मुँह वाला मिट्टी का एक बर्तन
2. पवित्र स्थान की मिट्टी
3. सप्तधान्य (7 प्रकार के अनाज)
4. कलश
5. जल (संभव हो तो गंगाजल)
6. कलावा/मौली
7. सुपारी
8. आम या अशोक के पत्ते (पल्लव)
9. अक्षत (कच्चा साबुत चावल)
10. छिलके/जटा वाला नारियल
11. लाल कपड़ा
12. पुष्प और पुष्पमाला

ज़रूरत के अनुसार सामग्री बढ़ा भी सकते हैं, जैसे - मिठाई, दूर्वा, सिंदूर इत्यादि।

घटस्थापना विधि
1. पहले मिट्टी को चौड़े मुँह वाले बर्तन में रखें और उसमें सप्तधान्य बोएँ।

2. अब उसके ऊपर कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग (गर्दन) में कलावा बाँधें।

3. आम या अशोक के पल्लव को कलश के ऊपर रखें।

4. अब नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर और पल्लव के बीच में रखें।

5. नारियल में कलावा भी लपेटा होना चाहिए।

6. घटस्थापना पूर्ण होने के बाद देवी का आह्वान करते हैं।

आप चाहें तो अपनी इच्छानुसार और भी विधिवत पूजा कर सकते हैं।

पूजा संकल्प मंत्र
9 दिनों तक व्रत रखने वाले भक्तों को निम्नलिखित मंत्र के साथ पूजा का संकल्प करना चाहिए:

ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे चैत्रशुक्लप्रतिपदि अमुकवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुकगोत्रः अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।

नोट: मंत्र का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए। इस मंत्र में कई जगह अमुक शब्द आया है। जैसे- अमुकनामसम्वत्सरे, यहाँ पर आप अमुक की जगह संवत्सर का नाम उच्चारित करेंगे। यदि संवत्सर का नाम सौम्या है तो इसका उच्चारण सौम्यनामसम्वत्सरे होगा। ठीक ऐसे ही अमुकवासरे में उस दिन का नाम, अमुकगोत्रः में अपने गोत्र का नाम और अमुकनामाहं में अपना नाम उच्चारित करें।

यदि पहले, दूसरे, तीसरे आदि दिनों के लिए उपवास रखा जाए, तब ऐसी स्थिति में ‘एतासु नवतिथिषु’ की जगह उस तिथि के नाम के साथ संकल्प किया जाएगा जिस तिथि को उपवास रखा जा रहा है। जैसे - यदि सातवें दिन का संकल्प करना है, तो मंत्र इस प्रकार होगा:

ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे चैत्रशुक्लप्रतिपदि अमुकवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि सप्तम्यां तिथौ अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुकगोत्रः अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।

ऐसे ही अष्टमी तिथि के लिए सप्तम्यां की जगह अष्टम्यां का उच्चारण होगा।

षोडशोपचार पूजा के लिए संकल्प
यदि नवरात्रि के दौरान षोडशोपचार पूजा करनी हो तो नीचे दिए गए मंत्र से प्रतिदिन पूजा का संकल्प करें:

ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे चैत्रशुक्लप्रतिपदि अमुकवासरे नवरात्रपर्वणि अखिलपापक्षयपूर्वकश्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये अमुकगोत्रः अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः षोडशोपचार-पूजनं विधास्ये।

मनोकामना सिद्धि हेतु निम्न मंत्र का यथाशक्ति श्रद्धा अनुसार 9 दिन तक जप करें:- 
”ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥“

कुन्जिका स्तोत्रं :- 
श्री दुर्गा सप्तसती में वर्णित अत्यंत प्रभावशली सिद्धि कुन्जिका स्त्रोत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ इस सिद्धि कुन्जिका स्त्रोत्र का नित्य पाठ करने से संपूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का फल मिलता है .. 
यह महामंत्र देवताओं को भी दुर्लभ नहीं है , इस मंत्र का नित्य पाठ करने से माँ भगवती जगदम्बा की कृपा बनी रहती है ..

शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत्‌॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्‌।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्‌॥2॥
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्‌।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्‌॥ 3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्‌।
पाठमात्रेण संसिद्ध्‌येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌ ॥4॥

अथ मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा

॥ इति मंत्रः॥
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन ॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥2॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ 4॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥5॥
धां धीं धू धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ 8॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे॥
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्‌।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
। इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ।
|| ॐ तत्सत ||

नवरात्र में देवी पूजा करने से अधिक शुभत्व की प्राप्ति होती है। देवी की भक्ति से कामना अनुसार भोग, मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। 
चैत्र मास के नवरात्रि में 9 दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की जाती है और अष्टमी या नवमी को कन्या पूजन के साथ यह पर्व सम्पन्न होता है. देवी भावगत के अनुसार नवमी में व्रत खोलना चाहिए।

पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ

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