🔮 खरमास 14 मार्च से 13 अप्रैल 2024 तक,जानिए कथा और महत्व
खरमास प्रारम्भ
खरमास, जिसे मलमास भी कहा जाता है, सनातन धर्म में अशुभ माना जाता है। यह एक महीने तक चलता है जब भगवान सूर्य वृश्चिक से धनु राशि में प्रवेश करते हैं। शास्त्रों में खरमास के शुरू होने पर शुभ और मांगलिक आयोजन जैसे विवाह, सगाई, गृहप्रवेश, मुंडन और जनेऊ जैसे मांगलिक और धार्मिक संस्कार नहीं होते हैं।
खरमास 2024 कब से कब तक (Kharmas 2024 Start End Date)
मीन संक्रांति पर 14 मार्च को दोपहर 3.12 मिनट पर सूर्य के कुंभ से मीन राशि में प्रवेश के साथ ही खरमास प्रारम्भ .
सूर्य यहां 13 अप्रैल रात 09.03 तक रहेंगे. इसके बाद खरमास की समाप्ति होगी.
वर्तमान में ग्रह नक्षत्रों का गोचर देश दुनिया के लिए भी शुभ नहीं रहेगा ,मीन राशि में सूर्य की राहू से युति बनने से ग्रहण दोष भी बन गया है..
आज यानि 15 मार्च को मंगल कुंभ राशि में आकर शनि और शुक्र के साथ युति बना रहे हैं ज्योतिष शास्त्र में इस युति को विस्फोटक माना जाता है.
25 मार्च को होली पर चंद्र ग्रहण भी लगने जा रहा है
ज्योतिष के मुताबिक 25 मार्च को सुबह 10 बजकर 23 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 2 मिनट तक चंद्रग्रहण रहेगा लेकिन चंद्र ग्रहण उपछाया चंद्र ग्रहण होने
होने से भारत में दिखाई नहीं देगा और न ही सूतक मान्य होगा होगा अतः रंगों के त्यौहार होली पर ग्रहण का कोई प्रभाव नहीं रहेगा।
नोट (विश्व में 25 मार्च को होली पर चंद्र ग्रहण लगने से मन दूषित रहेगा अतः सात्विक भोजन का ही प्रयोग करे बाहरी वस्तु खाने पीने से बचे साथ ही रसायन युक्त रंग का प्रयोग न करे शुद्ध सात्विक स्वदेशी रंग से ही होली खेले)
खरमास वर्ष में दो बार लगता है। जब सूर्य धनु और मीन में राशि परिवर्तन करता है, वह समय खरमास (मलमास) कहलाता है। इन दिनों असहाय लोगों को अन्न दान, तिल, वस्त्र आदि का दान करना, गाय को हरा चारा खिलाना बहुत शुभ माना जाता है।
भारतीय पंचांग और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य 14 मार्च में मीन राशि में प्रवेश करेगा, और यह समयावधि मीन संक्रांति कहलाती है।
खरमास लगते ही सभी तरह के शुभ एवं मांगलिक कार्य थम जाएंगे यानी इस दौरान कोई भी शुभ कार्य संपन्न नहीं किए जा सकेंगे। इसके बाद 13 अप्रैल के बाद ही शुभ कार्यों की शुरुआत हो पाएगी।
हिन्दू धर्म की मानें तो इस संबंध में ऐसी मान्यता है कि मलमास अथवा खरमास का महीना शुभ नहीं माना जाता। इसे लेकर ऐसी कई मान्यताएं हैं जिसमें शुभ विवाह, नवीन गृह, भवन निर्माण, नया व्यवसाय का प्रारंभ आदि शुभ कार्य वर्जित हैं। इस संक्रांति के दिन गंगा स्नान, तट स्नान का बहुत महत्व माना जाता है। इस दिन श्रद्धालु नदी किनारे जाकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं, इससे मन की शुद्धि, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है। इस दिन सूर्य पूजन किया जाता है।
मान्यतानुसार सूर्यदेव सिर्फ भारत के नहीं है वे पूरे ब्रह्मांड के देवता हैं। और ज्ञात हो कि यह समय सौर मास का होता है, जिसे आम भाषा में खरमास कहा जाता है। माना जाता है कि इस माह में सूर्यदेव के रथ को घोड़े नहीं खींचते हैं। संस्कृत में गधे को खर कहा जाता है। अत: इस समय में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
🗣️ खरमास की कथा
खरमास की पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर लगातार ब्रह्मांड की परिक्रमा करते रहते हैं। उन्हें कहीं पर भी रूकने की इजाजत नहीं है। मान्यता के अनुसार उनके रूकते ही जन-जीवन भी ठहर जाएगा। लेकिन जो घोड़े उनके रथ में जुड़े होते हैं वे लगातार चलने और विश्राम न मिलने के कारण भूख-प्यास से बहुत थक जाते हैं। उनकी इस दयनीय दशा को देखकर सूर्यदेव का मन भी द्रवित हो गया।
वे उन्हें एक तालाब के किनारे ले गए, लेकिन उन्हें तभी यह ध्यान आया कि अगर रथ रूका तो अनर्थ हो जाएगा। लेकिन घोड़ों का सौभाग्य कहिए कि तालाब के किनारे दो खर मौजूद थे। भगवान सूर्यदेव घोड़ों को पानी पीने और विश्राम देने के लिए छोड़े देते हैं और खर अर्थात गधों को अपने रथ में जोत देते हैं। अब घोड़ा-घोड़ा होता है और गधा-गधा, रथ की गति धीमी हो जाती है फिर भी जैसे-तैसे एक मास का चक्र पूरा होता है तब तक घोड़ों को विश्राम भी मिल चुका होता है, इस तरह यह क्रम चलता रहता है और हर सौर वर्ष में एक सौर खर मास कहलाता है।
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