महान सनातन योद्धा सम्राट मिहिर भोज.... जिनसे खौफ खाते थे अरब के 8 मुस्लिम खलीफा
- सम्राट मिहिर भोज के राष्ट्रवादी मार्ग पर चले... नमाजवादियों को नहीं... भगवाप्रेमियों को चुनें
- 836 ईस्वी से 885 ईस्वी तक सम्राट मिहिर भोज का शासन रहा... इस कालखंड में बगदाद के अंदर 8 खलीफा आए और गए और हर खलीफा यही ख्वाब देखते देखते अल्लाह को प्यारा हो गया कि महान हिंदू सम्राट मिहिर भोज को किसी तरह हिंदुस्तान की जमीन से हटा दें... लेकिन मां भारती के महान सुपुत्र सम्राट मिहिर भोज का प्रताप इतनी तेजी से फैला कि अफगानिस्तान से लेकर बगदाद तक फैली अरब के खलीफाओं की सत्ता हिल गई... खलीफाओं के खिलाफ ही विद्रोह हो गए
-खौफ के मारे अरब के यात्री सुलेमान ने अपनी किताब सिलसिला-उत-तारिका में लिखा कि सम्राट मिहिरभोज के पास उंटों, घोड़ों और हाथियों की बड़ी विशाल और सर्वश्रेष्ठ सेना है... उनके राज्य में व्यापार सोने और चांदी के सिक्कों से होता है. .. और इनके शासन में चोरों डाकुओं का भय नहीं है
-सम्राट मिहिर भोज के कालखंड में आए अब्बासी 8 खलीफाओं के नाम निम्नलिखित हैं...
1- मौतसिम (833 से 842 ई०)
2- वासिक (842 से 847 ई०)
3- मुतवक्कल (847 से 861 ई०)
4- मुन्तशिर (861 से 862 ई०)
5- मुस्तईन (862 से 866 ई०)
6- मुहताज (866 से 869 ई०)
7- मुहतदी (869 से 870 ई०)
8- मौतमिद (870 से 892 ई०)
- ये 8 खलीफा अपने संपूर्ण शासन काल में महाप्रतापी सम्राट मिहिर भोज से सीधे शत्रुता मानते रहे । 672 ईस्वी में अरब सेनापति मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध की जमीन पर अरब मुसलमानों की जड़ें जमा दी थीं... लेकिन मिहिर भोज सिंध को अपने प्रभाव क्षेत्र में ले आए
-सिंध के आगे खलीफा के पांव भारत के अंदर नहीं जम पा रहे थे क्योंकि भारत में तब उत्तर भारत के विशाल हिस्से पर सम्राट मिहिर भोज का शासन था
- सम्राट की सेनाओं ने सिंध में कई युद्ध करके अरब की इस्लामी सेनाओं को पछाड़ दिया और सिंध नदी के पश्चिमी क्षेत्रों पर भी अधिकार स्थापित किया
- धौलपुर के सामन्त चन्द्र महासेन चौहान के 842 ई० के एक लेख में ये स्पष्ट किया गया है कि सम्राट मिहिर भोज ने म्लेच्छों को अपने आधीन करके अर्थात उन पर अपना नियन्त्रण स्थापित करके उनसे कर वसूल किया था ।
-उस वक्त तक अफगानिस्तान में हिंदू ब्राह्मण राजाओं का शासन था.. लेकिन तब खलीफाओं ने उनको गुलाम बना लिया था... जब सिंध से मिहिर भोज का प्रताप फैला और अफगान हिंदू राजाओं को सपोर्ट मिला तो अफगान के हिंदू राजा ललिया देव (850-870) ने विद्रोह कर दिया और अरब के खलीफा से मुक्ति हासिल की
- सम्राट मिहिर भोज के सहयोग से निरन्तर हिंदू राजाओं ने अरब आक्रान्ताओं को देश से बाहर खदेड़ दिया
-सम्राट मिहिर भोज विष्णु के अनन्य भक्त थे इसीलिए उन्होने आदिवराह की उपाधि ली थी उनकी तलवार धरती पर बोझ बने अरब मलेच्छों के लिए साक्षात मृत्यु थी
-लेख के माध्यम से मेरी अपील है कि सम्राट मिहिर भोज के आदर्शों पर चलते हुए नमाजवादियों को नहीं राष्ट्रवादियों को चुनें
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार जयंती 18 अक्टूबर
जीवन परिचय
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार
(1) सम्राट मिहिरभोज का जन्म विक्रम संवत 873 (816 ईस्वी) को हुआ था। आपको कई नाम से जाना जाता है जैसे भोजराज, भोजदेव , मिहिर , आदिवराह एवं प्रभास।
(2) आपका राज्याभिषेक विक्रम संवत 893 यानी 18 अक्टूबर दिन बुधवार 836 ईस्वी में 20 वर्ष की आयु में हुआ था। और इसी दिन 18 अक्टूबर को ही हर वर्ष भारत में आपकी जयंती मनाई जाती है।
(3) इनके दादा का नाम नागभट्ट द्वितीय था उनका स्वर्गवास विक्रम संवत 890 (833 ईस्वी) भादो मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुआ। इनके पिता का नाम रामभद्र और माता का नाम अप्पादेवी था। माता पिता ने सूर्य की उपासना की थी जिसके फलस्वरूप उन्हें मिहिरभोज के रुप मे पुत्र की प्राप्ति हुई थी।
(4) सम्राट मिहिरभोज की पत्नी का नाम चंद्रभट्टारिका देवी था। जो भाटी राजपूत वंश की थी। इनके पुत्र का नाम महेन्द्रपाल प्रतिहार था जो सम्राट मिहिरभोज के स्वर्गवास उपरांत कन्नौज की गद्दी पर बैठे।
(5) विक्रम संवत 945 (888 ईस्वी) 72 वर्ष की आयु में सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार का स्वर्गवास हुआ।
-------- > साम्राज्य < --------
(1) सम्राट मिहिरभोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुल्तान से पश्चिम बंगाल और कश्मीर से उत्तर महाराष्ट्र तक था।
(2) सम्राट मिहिरभोज गुणी बलवान , न्यायप्रिय , सनातन धर्म रक्षक , प्रजा हितैषी एवं राष्ट्र रक्षक थे।
(3) सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार शिव शक्ति के उपासक थे। और उन्होंने मलेच्छों (अरब, मुगल, कुषाण, हूण) से पृथ्वी की रक्षा की थी। उन्हें वराह यानी भगवान विष्णु का अवतार भी बताया गया है। उनके द्वारा चलाये गये सिक्कों पर वराह की आकृति बनी हुई है।
(4) अरब यात्री सुलेमान ने अपनी पुस्तक सिलसिला - उत - तारिका 851 ईस्वी में लिखी। वह लिखता है की सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार (परिहार) के पास उंटो, घोडों व हाथियों की बडी विशाल एवं सर्वश्रेष्ठ सेना है। उनके राज्य में व्यापार सोने व चांदी के सिक्कों से होता है। उनके राज्य में सोने व चांदी की खाने भी है। इनके राज्य में चोरों डाकुओं का भय नही है। भारत वर्ष में मिहिरभोज प्रतिहार से बडा इस्लाम का अन्य कोई शत्रु नहीं है। मिहिरभोज के राज्य की सीमाएं दक्षिण के राष्ट्रकूटों के राज्य , पूर्व में बंगाल के शासक पालवंश और पश्चिम में मुल्तान के मुस्लिम शासकों से मिली हुई है।
------> मिहिरभोज की सेना < -------
(1) सम्राट मिहिरभोज के पूर्वज नागभट्ट प्रथम (730 - 760 ईस्वी) ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा जो सर्व प्रथम चलाई , वो मिहिरभोज के समय और पक्की होई गई थी।
(2) विक्रम संवत 972 (915 ईस्वी) में भारत भ्रमण आये बगदाद के इतिहासकार अलमसूदी ने अपनी किताब मिराजुल - जहाब में इस महाशक्तिशाली , महापराक्रमी सेना का विवरण किया है। उसने इस सेना की संख्या लाखों में बताई है। जो चारो दिशाओं में लाखो की संख्या में रहती है।
(3) प्रसिद्ध इतिहासकार के. एम. मुंशी ने सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार की तुलना गुप्तवंशीय सम्राट समुद्रगुप्त और मौर्यवंशीय सम्राट चंद्रगुप्त से इस प्रकार की है। वे लिखते हैं कि सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार इन सभी से बहुत महान थे। क्योंकि तत्कालीन भारतीय धर्म एवं संस्कृति के लिए जो चुनौती अरब के इस्लामिक विजेताओं की फौजों द्वारा प्रस्तुत की गई। वह समुद्रगुप्त , चंद्रगुप्त आदि के समय पेश नही हुई थी और न ही उनका मुकाबला अरबों जैसे अत्यंत प्रबल शत्रुओं से हुआ था।
(4) भारत के इतिहास में मिहिरभोज से बडा आज तक कोई भी सनातन धर्म रक्षक एवं राष्ट्र रक्षक नही हुआ।
एक ऐसा हिंदू क्षत्रिय योद्धा , अरबों का सबसे बडा दुश्मन जिसने लगभग 40 युद्घ कर अरबों को भारत से पलायन करने पर मजबूर कर दिया एवं सनातन धर्म की रक्षा की, ऐसे थे महान चक्रवर्ती सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार जिसने भारत पर 50 वर्ष शासन किया।
===== वृहद इतिहास =====
एक ऐसा राजा जिसने अरब तुर्क आक्रमणकारियों को भागने पर विवश कर दिया और जिसके युग में भारत सोने की चिड़िया कहलाया। मित्रों परिहार क्षत्रिय वंश के नवमीं शताब्दी में सम्राट मिहिरभोज भारत का सबसे महान शासक था। उसका साम्राज्य आकार, व्यवस्था , प्रशासन और नागरिको की धार्मिक स्वतंत्रता के लिए चक्रवर्ती गुप्त सम्राटो के समकक्ष सर्वोत्कृष्ट था।
भारतीय संस्कृति के शत्रु म्लेछो यानि मुस्लिम तुर्को -अरबो को पराजित ही नहीं किया अपितु उन्हें इतना भयाक्रांत कर दिया था की वे आगे आने वाली एक शताब्दी तक भारत की और आँख उठाकर देखने का भी साहस नहीं कर सके।
चुम्बकीय व्यक्तित्व संपन्न सम्राट मिहिर भोज की बड़ी बड़ी भुजाये एवं विशाल नेत्र लोगों में सहज ही प्रभाव एवं आकर्षण पैदा करते थे। वह महान धार्मिक , प्रबल पराक्रमी , प्रतापी , राजनीति निपुण , महान कूटनीतिज्ञ , उच्च संगठक सुयोग्य प्रशासक , लोककल्याणरंजक तथा भारतीय संस्कृति का निष्ठावान शासक था।
ऐसा राजा जिसका साम्राज्य संसार में सबसे शक्तिशाली था। इनके साम्राज्य में चोर डाकुओ का कोई भय नहीं था। सुदृढ़ व्यवस्था व आर्थिक सम्पन्नता इतनी थी कि विदेशियो ने भारत को सोने की चिड़िया कहा।
यह जानकर अफ़सोस होता है की ऐसे अतुलित शक्ति , शौर्य एवं समानता के धनी मिहिरभोज को भारतीय इतिहास की किताबो में स्थान नहीं मिला।
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार के शासनकाल में सर्वाधिक अरबी मुस्लिम लेखक भारत भ्रमण के लिए आये और लौटकर उन्होंने भारतीय संस्कृति सभ्यता आध्यात्मिक-दार्शनिक ज्ञान विज्ञानं , आयुर्वेद , सहिष्णु , सार्वभौमिक समरस जीवन दर्शन को अरब जगत सहित यूनान और यूरोप तक प्रचारित किया।
क्या आप जानते हे की सम्राट मिहिरभोज ऐसा शासक था जिसने आधे से अधिक विश्व को अपनी तलवार के जोर पर अधिकृत कर लेने वाले ऐसे अरब तुर्क मुस्लिम आक्रमणकारियों को भारत की धरती पर पाँव नहीं रखने दिया , उनके सम्मुख सुदृढ़ दीवार बनकर खड़े हो गए। उसकी शक्ति और प्रतिरोध से इतने भयाक्रांत हो गए की उन्हें छिपाने के लिए जगह ढूंढना कठिन हो गया था। ऐसा किसी भारतीय लेखक ने नहीं बल्कि मुस्लिम इतिहासकारो बिलादुरी सलमान एवं अलमसूदी ने लिखा है। ऐसे महान सम्राट मिहिरभोज ने 836 ई से 885 ई तक लगभग 50 वर्षो के सुदीर्घ काल तक शासन किया।
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार जी का जन्म सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल में रामभद्र प्रतिहार की महारानी अप्पा देवी के द्वारा सूर्यदेव की उपासना के प्रतिफल के रूप में हुआ माना जाता है। मिहिरभोज के बारे में इतिहास की पुस्तकों के अलावा बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। इनके शासन काल की हमे जानकारी वराह ताम्रशासन पत्र से मालूम पडती है जिसकी तिथि (कार्तिक सुदि 5, वि.सं. 893 बुधवार) 18 अक्टूबर 836 ईस्वी है। इसी दिन इनका राजतिलक हुआ था।
मिहिरभोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक ओर कश्मीर से कर्नाटक तक था। सम्राट मिहिरभोज बलवान, न्यायप्रिय और धर्म रक्षक थे। मिहिरभोज शिव शक्ति एवं भगवती के उपासक थे। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में भगवान शिव के प्रभास क्षेत्र में स्थित शिवालयों व पीठों का उल्लेख है।
प्रतिहार साम्राज्य के काल में सोमनाथ को भारतवर्ष के प्रमुख तीर्थ स्थानों में माना जाता था। प्रभास क्षेत्र की प्रतिष्ठा काशी विश्वनाथ के समान थी। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिर भोज के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। मिहिर भोज के संबंध में कहा जाता है कि वे सोमनाथ के परम भक्त थे उनका विवाह भी सौराष्ट्र में ही हुआ था उन्होंने मलेच्छों से पृथ्वी की रक्षा की।
50 वर्ष तक राज्य करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल प्रतिहार को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे। सम्राट मिहिरभोज का सिक्का जो की मुद्रा थी उसको सम्राट मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं में कन्नौज को देश की राजधानी बनाने पर चलाया था। सम्राट मिहिरभोज महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है। वाराह भगवान ने हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी को पाताल से निकालकर उसकी रक्षा की थी।
सम्राट मिहिरभोज का नाम आदिवाराह भी है। जिस प्रकार वाराह (विष्णु) भगवान ने पृथ्वी की रक्षा की थी और हिरण्याक्ष का वध किया था ठीक उसी प्रकार मिहिरभोज मलेच्छों(अरबों, हूणों, कुषाणों)को मारकर अपनी मातृभूमि की रक्षा की एवं सनातन धर्म के रक्षक बने।
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार की जयंती हर वर्ष 18 अक्टूबर को मनाई जाती है जिन स्थानों पर परिहारों, पडिहारों, इंदा, राघव, लूलावत, देवल, रामावत,मडाडो अन्य शाखाओं को सम्राट मिहिरभोज के जन्मदिवस का पता है वे इस जयंती को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। जिन भाईयों को इसकी जानकारी नहीं है आप उन लोगों के इसकी जानकारी दें और सम्राट मिहिरभोज का जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाने की प्रथा चालू करें।
अरब यात्रियों ने किया सम्राट मिहिरभोज का यशोगान अरब यात्री सुलेमान ने अपनी पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं में लिखी जब वह भारत भ्रमण पर आया था। सुलेमान सम्राट मिहिर भोज के बारे में लिखता है कि प्रतिहार सम्राट की बड़ी भारी सेना है। उसके समान किसी राजा के पास उतनी बड़ी सेना नहीं है। सुलेमान ने यह भी लिखा है कि भारत में सम्राट मिहिर भोज से बड़ा इस्लाम का कोई शत्रु नहीं है। मिहिर भोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की सर्वश्रेष्ठ सेना है। इसके राज्य में व्यापार, सोना चांदी के सिक्कों से होता है। यह भी कहा जाता है कि उसके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी हैं।यह राज्य भारतवर्ष का सबसे सुरक्षित क्षेत्र है। इसमें डाकू और चोरों का भय नहीं है।
मिहिर भोज राज्य की सीमाएं दक्षिण में राष्ट्रकूटों के राज्य, पूर्व में बंगाल के पाल शासक और पश्चिम में मुलतान के शासकों की सीमाओं को छूती है। शत्रु उनकी क्रोध अग्नि में आने के उपरांत ठहर नहीं पाते थे। धर्मात्मा, साहित्यकार व विद्वान उनकी सभा में सम्मान पाते थे। उनके दरबार में राजशेखर कवि ने कई प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की।
कश्मीर के राज्य कवि कल्हण ने अपनी पुस्तक राज तरंगणी में सम्राट मिहिरभोज का उल्लेख किया है। उनका विशाल साम्राज्य बहुत से राज्य मंडलों आदि में विभक्त था। उन पर अंकुश रखने के लिए दंडनायक स्वयं सम्राट द्वारा नियुक्त किए जाते थे। योग्य सामंतों के सुशासन के कारण समस्त साम्राज्य में पूर्ण शांति व्याप्त थी। सामंतों पर सम्राट का दंडनायकों द्वारा पूर्ण नियंत्रण था।
किसी की आज्ञा का उल्लंघन करने व सिर उठाने की हिम्मत नहीं होती थी। उनके पूर्वज सम्राट नागभट्ट प्रतिहार ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा चलाई वह इस समय में और भी पक्की हो गई और प्रतिहार राजपूत साम्राज्य की महान सेना खड़ी हो गई। यह भारतीय इतिहास का पहला उदाहरण है, जब किसी सेना को नगद वेतन दिया जाता था।।
* आइये जानते है हिन्दू क्षत्रिय शौर्य और बहादुरी से जुड़े सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार" के रोचक पहलू *
== काव्यों एवं इतिहास मे इन विशेषणो से वर्णित किया ====
क्षत्रिय सम्राट,भोजदेव, भोजराज, वाराहवतार, परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर, महानतम भोज, मिहिर महान।
==== शासनकाल ====
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने 18 अक्टूबर 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 50 साल तक राज किया। मिहिर भोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक और कश्मीर से कर्नाटक तक था।
==== साम्राज्य ====
परिहार वंश ने अरबों से 300 वर्ष तक लगभग 200 से ज्यादा युद्ध किये जिसका परिणाम है कि हम आज यहां सुरक्षित है। प्रतिहारों ने अपने वीरता, शौर्य , कला का प्रदर्शन कर सभी को आश्चर्यचकित किया है। भारत देश हमेशा ही प्रतिहारो का रिणी रहेगा उनके अदभुत शौर्य और पराक्रम का जो उनहोंने अपनी मातृभूमि के लिए न्यौछावर किया है। जिसे सभी विद्वानों ने भी माना है। प्रतिहार साम्राज्य ने दस्युओं, डकैतों, अरबों, हूणों, से देश को बचाए रखा और देश की स्वतंत्रता पर आँच नहीं आई।
इनका राजशाही निशान वराह है। ठीक उसी समय मुश्लिम धर्म का जन्म हुआ और इनके प्रतिरोध के कारण ही उन्हे हिंदुश्तान मे अपना राज कायम करने मे 300 साल लग गए। और इनके राजशाही निशान " वराह " विष्णु का अवतार माना है प्रतिहार मुश्लमानो के कट्टर शत्रु थे । इसलिए वो इनके राजशाही निशान 'बराह' से आजतक नफरत करते है।
==== शासन व्यवस्था==
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार वीरता, शौर्य और पराक्रम के प्रतीक हैं। उन्होंने विदेशी साम्राज्यो के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपनी पूरी जिन्दगी अपनी मलेच्छो से पृथ्वी की रक्षा करने मे बिता दी। सम्राट मिहिरभोज बलवान, न्यायप्रिय और धर्म रक्षक सम्राट थे। सिंहासन पर बैठते ही मिहिरभोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। मिहिरभोज ने प्रतिहार राजपूत साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में उसे 'सम्राट' मिहिरभोज प्रतिहार की उपाधि मिली थी। अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे कई महान विशेषणों से वर्णित किया गया है।
==== वराह उपाधी ====
सम्राट मिहिर भोज के महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है। वाराह भगवान ने हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी को पाताल से निकालकर उसकी रक्षा की थी। सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार का नाम आदिवाराह भी है। ऐसा होने के पीछे यह मुख्य कारण हैं
1. जिस प्रकार वाराह (विष्णु जी) भगवान ने
पृथ्वी की रक्षा की थी और हिरण्याक्ष का वध किया था ठीक उसी प्रकार मिहिरभोज ने मलेच्छों को मारकर अपनी मातृभूमि की रक्षा की। इसीलिए इनहे आदिवाराह की उपाधि दी गई है।
==== उपासक ====
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार शिव शक्ति के उपासक थे। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में भगवान शिव के प्रभास क्षेत्र में स्थित शिवालयों व पीठों का उल्लेख है। प्रतिहार साम्राज्य के काल में सोमनाथ को भारतवर्ष के प्रमुख तीर्थ स्थानों में माना जाता था। प्रभास क्षेत्र की प्रतिष्ठा काशी विश्वनाथ के समान थी। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। मिहिरभोज के संबंध में कहा जाता है कि वे सोमनाथ के परम भक्त थे उनका विवाह भी सौराष्ट्र में ही हुआ था। उन्होंने मलेच्छों से पृथ्वी की रक्षा की। 50 वर्ष तक राज करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल प्रतिहार को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे। सम्राट मिहिरभोज का सिक्का जो कन्नौज की मुद्रा था उसको सम्राट मिहिरभोज ने 836 ईस्वीं में कन्नौज को देश की राजधानी बनाने पर चलाया था।
==== धन व्यवस्था ====
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है। इनके पूर्वज सम्राट नागभट्ट प्रथम ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा चलाई वह इस समय में और भी पक्की हो गई और प्रतिहार साम्राज्य की महान सेना खड़ी हो गई। यह भारतीय इतिहास का पहला उदाहरण है, जब किसी सेना को नगद वेतन दिया जाता हो।
मिहिर भोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की दूनिया कि सर्वश्रेष्ठ सेना थी । इनके राज्य में व्यापार,सोना चांदी के सिक्कों से होता है। यइनके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी थी। भोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। मिहिरभोज ने प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया।
==== विश्व की सुगठित और विशालतम सेना ====
मिहिरभोज प्रतिहार की सैना में 8,00,000 से ज्यादा पैदल करीब 90,000 घुडसवार,, हजारों हाथी और हजारों रथ थे। मिहिरभोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था। जरा हर्षवर्धन बैस के राज्यकाल से तुलना करिए। हर्षवर्धन के राज्य में लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे,पर मिहिरभोज के राज्य में खुली जगहों में भी चोरी की आशंका नहीं रहती थी।
==== बचपन से ही बहादुर और निडरता ====
मिहिरभोज प्रतिहार बचपन से ही वीर बहादुर माने जाते थे।एक बालक होने के बावजूद, देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को महसूस करते हुए उन्होंने युद्धकला और शस्त्रविधा में कठिन प्रशिक्षण लिया। राजकुमारों में सबसे प्रतापी प्रतिभाशाली और मजबूत होने के कारण, पूरा राजवंश और विदेशी आक्रमणो के समय देश के अन्य राजवंश भी उनसे बहुत उम्मीद रखते थे और देश के बाकी वंशवह उस भरोसे पर खरे उतरने वाले थे।
==== वह वैध उत्तराधिकारी साबित हुए ====
मिहिरभोज प्रतिहार राजपूत साम्राज्य के सबसे प्रतापी सम्राट हुए उनके राजगद्दी पर बैठते ही जैसे देश की हवा ही बदल गई । मिहिरभोज की वीरता के किस्से पूरी दूनीया मे मशूहर हुए।विदेशी आक्रमणो के समय भी लोग अपने काम मे निडर लगे रहते है। गद्दी पर बैठते ही उन्होने देश के लुटेरे,शोषण करने वाले, गरीबो को सताने वालो का चुन चुनकर सफाया कर दिया। उनके समय मे खुले घरो मे भी चोरी नही होती थी।
==== अरबी लेखो मे मिहिरभोज का है यशोगान ====
* अरब यात्री सुलेमान - पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं :
जब वह भारत भ्रमण पर आया था। सुलेमान सम्राट मिहिरभोज के बारे में लिखता है कि इस सम्राट की बड़ी भारी सेना है। उसके समान किसी राजा के पास उतनी बड़ी सेना नहीं है। सुलेमान ने यह भी लिखा है कि भारत में सम्राट मिहिरभोज से बड़ा इस्लाम का कोई शत्रु नहीं था । मिहिरभोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की सर्वश्रेष्ठ सेना है। इसके राज्य में व्यापार,सोना चांदी के सिक्कों से होता है। ये भी कहा जाता है।कि उसके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी थी।
* बगदाद का निवासी अल मसूदी 915ई.-916ई *
वह कहता है कि (जुज्र) प्रतिहार साम्राज्य में 1,80,000 गांव, नगर तथा ग्रामीण क्षेत्र थे तथा यह दो किलोमीटर लंबा और दो हजार किलोमीटर चौड़ा था। राजा की सेना के चार अंग थे और प्रत्येक में सात लाख से नौ लाख सैनिक थे। उत्तर की सेना लेकर वह मुलतान के बादशाह और दूसरे मुसलमानों के विरूद्घ युद्घ लड़ता है। उसकी घुड़सवार सेना देश भर में प्रसिद्घ थी।जिस समय अल मसूदी भारत आया था उस समय मिहिरभोज तो स्वर्ग सिधार चुके थे परंतु प्रतिहार शक्ति के विषय में अल मसूदी का उपरोक्त विवरण मिहिरभोज के प्रताप से खड़े साम्राज्य की ओर संकेत करते हुए अंतत: स्वतंत्रता संघर्ष के इसी स्मारक पर फूल चढ़ाता सा प्रतीत होता है। समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया था,क्योंकि प्रतिहार राजपूत राजाओं ने 11 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मिहिरभोज के पौत्र महिपाल को आर्यवर्त का महान सम्राट कहा जाता था।
जीवन परिचय
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार
(1) सम्राट मिहिरभोज का जन्म विक्रम संवत 873 (816 ईस्वी) को हुआ था। आपको कई नाम से जाना जाता है जैसे भोजराज, भोजदेव , मिहिर , आदिवराह एवं प्रभास।
(2) आपका राज्याभिषेक विक्रम संवत 893 यानी 18 अक्टूबर दिन बुधवार 836 ईस्वी में 20 वर्ष की आयु में हुआ था। और इसी दिन 18 अक्टूबर को ही हर वर्ष भारत में आपकी जयंती मनाई जाती है।
(3) इनके दादा का नाम नागभट्ट द्वितीय था उनका स्वर्गवास विक्रम संवत 890 (833 ईस्वी) भादो मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुआ। इनके पिता का नाम रामभद्र और माता का नाम अप्पादेवी था। माता पिता ने सूर्य की उपासना की थी जिसके फलस्वरूप उन्हें मिहिरभोज के रुप मे पुत्र की प्राप्ति हुई थी।
(4) सम्राट मिहिरभोज की पत्नी का नाम चंद्रभट्टारिका देवी था। जो भाटी राजपूत वंश की थी। इनके पुत्र का नाम महेन्द्रपाल प्रतिहार था जो सम्राट मिहिरभोज के स्वर्गवास उपरांत कन्नौज की गद्दी पर बैठे।
(5) विक्रम संवत 945 (888 ईस्वी) 72 वर्ष की आयु में सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार का स्वर्गवास हुआ।
-------- > साम्राज्य < --------
(1) सम्राट मिहिरभोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुल्तान से पश्चिम बंगाल और कश्मीर से उत्तर महाराष्ट्र तक था।
(2) सम्राट मिहिरभोज गुणी बलवान , न्यायप्रिय , सनातन धर्म रक्षक , प्रजा हितैषी एवं राष्ट्र रक्षक थे।
(3) सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार शिव शक्ति के उपासक थे। और उन्होंने मलेच्छों (अरब, मुगल, कुषाण, हूण) से पृथ्वी की रक्षा की थी। उन्हें वराह यानी भगवान विष्णु का अवतार भी बताया गया है। उनके द्वारा चलाये गये सिक्कों पर वराह की आकृति बनी हुई है।
(4) अरब यात्री सुलेमान ने अपनी पुस्तक सिलसिला - उत - तारिका 851 ईस्वी में लिखी। वह लिखता है की सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार (परिहार) के पास उंटो, घोडों व हाथियों की बडी विशाल एवं सर्वश्रेष्ठ सेना है। उनके राज्य में व्यापार सोने व चांदी के सिक्कों से होता है। उनके राज्य में सोने व चांदी की खाने भी है। इनके राज्य में चोरों डाकुओं का भय नही है। भारत वर्ष में मिहिरभोज प्रतिहार से बडा इस्लाम का अन्य कोई शत्रु नहीं है। मिहिरभोज के राज्य की सीमाएं दक्षिण के राष्ट्रकूटों के राज्य , पूर्व में बंगाल के शासक पालवंश और पश्चिम में मुल्तान के मुस्लिम शासकों से मिली हुई है।
------> मिहिरभोज की सेना < -------
(1) सम्राट मिहिरभोज के पूर्वज नागभट्ट प्रथम (730 - 760 ईस्वी) ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा जो सर्व प्रथम चलाई , वो मिहिरभोज के समय और पक्की होई गई थी।
(2) विक्रम संवत 972 (915 ईस्वी) में भारत भ्रमण आये बगदाद के इतिहासकार अलमसूदी ने अपनी किताब मिराजुल - जहाब में इस महाशक्तिशाली , महापराक्रमी सेना का विवरण किया है। उसने इस सेना की संख्या लाखों में बताई है। जो चारो दिशाओं में लाखो की संख्या में रहती है।
(3) प्रसिद्ध इतिहासकार के. एम. मुंशी ने सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार की तुलना गुप्तवंशीय सम्राट समुद्रगुप्त और मौर्यवंशीय सम्राट चंद्रगुप्त से इस प्रकार की है। वे लिखते हैं कि सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार इन सभी से बहुत महान थे। क्योंकि तत्कालीन भारतीय धर्म एवं संस्कृति के लिए जो चुनौती अरब के इस्लामिक विजेताओं की फौजों द्वारा प्रस्तुत की गई। वह समुद्रगुप्त , चंद्रगुप्त आदि के समय पेश नही हुई थी और न ही उनका मुकाबला अरबों जैसे अत्यंत प्रबल शत्रुओं से हुआ था।
(4) भारत के इतिहास में मिहिरभोज से बडा आज तक कोई भी सनातन धर्म रक्षक एवं राष्ट्र रक्षक नही हुआ।
एक ऐसा हिंदू क्षत्रिय योद्धा , अरबों का सबसे बडा दुश्मन जिसने लगभग 40 युद्घ कर अरबों को भारत से पलायन करने पर मजबूर कर दिया एवं सनातन धर्म की रक्षा की, ऐसे थे महान चक्रवर्ती सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार जिसने भारत पर 50 वर्ष शासन किया।
===== वृहद इतिहास =====
एक ऐसा राजा जिसने अरब तुर्क आक्रमणकारियों को भागने पर विवश कर दिया और जिसके युग में भारत सोने की चिड़िया कहलाया। मित्रों परिहार क्षत्रिय वंश के नवमीं शताब्दी में सम्राट मिहिरभोज भारत का सबसे महान शासक था। उसका साम्राज्य आकार, व्यवस्था , प्रशासन और नागरिको की धार्मिक स्वतंत्रता के लिए चक्रवर्ती गुप्त सम्राटो के समकक्ष सर्वोत्कृष्ट था।
भारतीय संस्कृति के शत्रु म्लेछो यानि मुस्लिम तुर्को -अरबो को पराजित ही नहीं किया अपितु उन्हें इतना भयाक्रांत कर दिया था की वे आगे आने वाली एक शताब्दी तक भारत की और आँख उठाकर देखने का भी साहस नहीं कर सके।
चुम्बकीय व्यक्तित्व संपन्न सम्राट मिहिर भोज की बड़ी बड़ी भुजाये एवं विशाल नेत्र लोगों में सहज ही प्रभाव एवं आकर्षण पैदा करते थे। वह महान धार्मिक , प्रबल पराक्रमी , प्रतापी , राजनीति निपुण , महान कूटनीतिज्ञ , उच्च संगठक सुयोग्य प्रशासक , लोककल्याणरंजक तथा भारतीय संस्कृति का निष्ठावान शासक था।
ऐसा राजा जिसका साम्राज्य संसार में सबसे शक्तिशाली था। इनके साम्राज्य में चोर डाकुओ का कोई भय नहीं था। सुदृढ़ व्यवस्था व आर्थिक सम्पन्नता इतनी थी कि विदेशियो ने भारत को सोने की चिड़िया कहा।
यह जानकर अफ़सोस होता है की ऐसे अतुलित शक्ति , शौर्य एवं समानता के धनी मिहिरभोज को भारतीय इतिहास की किताबो में स्थान नहीं मिला।
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार के शासनकाल में सर्वाधिक अरबी मुस्लिम लेखक भारत भ्रमण के लिए आये और लौटकर उन्होंने भारतीय संस्कृति सभ्यता आध्यात्मिक-दार्शनिक ज्ञान विज्ञानं , आयुर्वेद , सहिष्णु , सार्वभौमिक समरस जीवन दर्शन को अरब जगत सहित यूनान और यूरोप तक प्रचारित किया।
क्या आप जानते हे की सम्राट मिहिरभोज ऐसा शासक था जिसने आधे से अधिक विश्व को अपनी तलवार के जोर पर अधिकृत कर लेने वाले ऐसे अरब तुर्क मुस्लिम आक्रमणकारियों को भारत की धरती पर पाँव नहीं रखने दिया , उनके सम्मुख सुदृढ़ दीवार बनकर खड़े हो गए। उसकी शक्ति और प्रतिरोध से इतने भयाक्रांत हो गए की उन्हें छिपाने के लिए जगह ढूंढना कठिन हो गया था। ऐसा किसी भारतीय लेखक ने नहीं बल्कि मुस्लिम इतिहासकारो बिलादुरी सलमान एवं अलमसूदी ने लिखा है। ऐसे महान सम्राट मिहिरभोज ने 836 ई से 885 ई तक लगभग 50 वर्षो के सुदीर्घ काल तक शासन किया।
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार जी का जन्म सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल में रामभद्र प्रतिहार की महारानी अप्पा देवी के द्वारा सूर्यदेव की उपासना के प्रतिफल के रूप में हुआ माना जाता है। मिहिरभोज के बारे में इतिहास की पुस्तकों के अलावा बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। इनके शासन काल की हमे जानकारी वराह ताम्रशासन पत्र से मालूम पडती है जिसकी तिथि (कार्तिक सुदि 5, वि.सं. 893 बुधवार) 18 अक्टूबर 836 ईस्वी है। इसी दिन इनका राजतिलक हुआ था।
मिहिरभोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक ओर कश्मीर से कर्नाटक तक था। सम्राट मिहिरभोज बलवान, न्यायप्रिय और धर्म रक्षक थे। मिहिरभोज शिव शक्ति एवं भगवती के उपासक थे। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में भगवान शिव के प्रभास क्षेत्र में स्थित शिवालयों व पीठों का उल्लेख है।
प्रतिहार साम्राज्य के काल में सोमनाथ को भारतवर्ष के प्रमुख तीर्थ स्थानों में माना जाता था। प्रभास क्षेत्र की प्रतिष्ठा काशी विश्वनाथ के समान थी। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिर भोज के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। मिहिर भोज के संबंध में कहा जाता है कि वे सोमनाथ के परम भक्त थे उनका विवाह भी सौराष्ट्र में ही हुआ था उन्होंने मलेच्छों से पृथ्वी की रक्षा की।
50 वर्ष तक राज्य करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल प्रतिहार को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे। सम्राट मिहिरभोज का सिक्का जो की मुद्रा थी उसको सम्राट मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं में कन्नौज को देश की राजधानी बनाने पर चलाया था। सम्राट मिहिरभोज महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है। वाराह भगवान ने हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी को पाताल से निकालकर उसकी रक्षा की थी।
सम्राट मिहिरभोज का नाम आदिवाराह भी है। जिस प्रकार वाराह (विष्णु) भगवान ने पृथ्वी की रक्षा की थी और हिरण्याक्ष का वध किया था ठीक उसी प्रकार मिहिरभोज मलेच्छों(अरबों, हूणों, कुषाणों)को मारकर अपनी मातृभूमि की रक्षा की एवं सनातन धर्म के रक्षक बने।
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार की जयंती हर वर्ष 18 अक्टूबर को मनाई जाती है जिन स्थानों पर परिहारों, पडिहारों, इंदा, राघव, लूलावत, देवल, रामावत,मडाडो अन्य शाखाओं को सम्राट मिहिरभोज के जन्मदिवस का पता है वे इस जयंती को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। जिन भाईयों को इसकी जानकारी नहीं है आप उन लोगों के इसकी जानकारी दें और सम्राट मिहिरभोज का जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाने की प्रथा चालू करें।
अरब यात्रियों ने किया सम्राट मिहिरभोज का यशोगान अरब यात्री सुलेमान ने अपनी पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं में लिखी जब वह भारत भ्रमण पर आया था। सुलेमान सम्राट मिहिर भोज के बारे में लिखता है कि प्रतिहार सम्राट की बड़ी भारी सेना है। उसके समान किसी राजा के पास उतनी बड़ी सेना नहीं है। सुलेमान ने यह भी लिखा है कि भारत में सम्राट मिहिर भोज से बड़ा इस्लाम का कोई शत्रु नहीं है। मिहिर भोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की सर्वश्रेष्ठ सेना है। इसके राज्य में व्यापार, सोना चांदी के सिक्कों से होता है। यह भी कहा जाता है कि उसके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी हैं।यह राज्य भारतवर्ष का सबसे सुरक्षित क्षेत्र है। इसमें डाकू और चोरों का भय नहीं है।
मिहिर भोज राज्य की सीमाएं दक्षिण में राष्ट्रकूटों के राज्य, पूर्व में बंगाल के पाल शासक और पश्चिम में मुलतान के शासकों की सीमाओं को छूती है। शत्रु उनकी क्रोध अग्नि में आने के उपरांत ठहर नहीं पाते थे। धर्मात्मा, साहित्यकार व विद्वान उनकी सभा में सम्मान पाते थे। उनके दरबार में राजशेखर कवि ने कई प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की।
कश्मीर के राज्य कवि कल्हण ने अपनी पुस्तक राज तरंगणी में सम्राट मिहिरभोज का उल्लेख किया है। उनका विशाल साम्राज्य बहुत से राज्य मंडलों आदि में विभक्त था। उन पर अंकुश रखने के लिए दंडनायक स्वयं सम्राट द्वारा नियुक्त किए जाते थे। योग्य सामंतों के सुशासन के कारण समस्त साम्राज्य में पूर्ण शांति व्याप्त थी। सामंतों पर सम्राट का दंडनायकों द्वारा पूर्ण नियंत्रण था।
किसी की आज्ञा का उल्लंघन करने व सिर उठाने की हिम्मत नहीं होती थी। उनके पूर्वज सम्राट नागभट्ट प्रतिहार ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा चलाई वह इस समय में और भी पक्की हो गई और प्रतिहार राजपूत साम्राज्य की महान सेना खड़ी हो गई। यह भारतीय इतिहास का पहला उदाहरण है, जब किसी सेना को नगद वेतन दिया जाता था।।
* आइये जानते है हिन्दू क्षत्रिय शौर्य और बहादुरी से जुड़े सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार" के रोचक पहलू *
== काव्यों एवं इतिहास मे इन विशेषणो से वर्णित किया ====
क्षत्रिय सम्राट,भोजदेव, भोजराज, वाराहवतार, परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर, महानतम भोज, मिहिर महान।
==== शासनकाल ====
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने 18 अक्टूबर 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 50 साल तक राज किया। मिहिर भोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक और कश्मीर से कर्नाटक तक था।
==== साम्राज्य ====
परिहार वंश ने अरबों से 300 वर्ष तक लगभग 200 से ज्यादा युद्ध किये जिसका परिणाम है कि हम आज यहां सुरक्षित है। प्रतिहारों ने अपने वीरता, शौर्य , कला का प्रदर्शन कर सभी को आश्चर्यचकित किया है। भारत देश हमेशा ही प्रतिहारो का रिणी रहेगा उनके अदभुत शौर्य और पराक्रम का जो उनहोंने अपनी मातृभूमि के लिए न्यौछावर किया है। जिसे सभी विद्वानों ने भी माना है। प्रतिहार साम्राज्य ने दस्युओं, डकैतों, अरबों, हूणों, से देश को बचाए रखा और देश की स्वतंत्रता पर आँच नहीं आई।
इनका राजशाही निशान वराह है। ठीक उसी समय मुश्लिम धर्म का जन्म हुआ और इनके प्रतिरोध के कारण ही उन्हे हिंदुश्तान मे अपना राज कायम करने मे 300 साल लग गए। और इनके राजशाही निशान " वराह " विष्णु का अवतार माना है प्रतिहार मुश्लमानो के कट्टर शत्रु थे । इसलिए वो इनके राजशाही निशान 'बराह' से आजतक नफरत करते है।
==== शासन व्यवस्था==
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार वीरता, शौर्य और पराक्रम के प्रतीक हैं। उन्होंने विदेशी साम्राज्यो के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपनी पूरी जिन्दगी अपनी मलेच्छो से पृथ्वी की रक्षा करने मे बिता दी। सम्राट मिहिरभोज बलवान, न्यायप्रिय और धर्म रक्षक सम्राट थे। सिंहासन पर बैठते ही मिहिरभोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। मिहिरभोज ने प्रतिहार राजपूत साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में उसे 'सम्राट' मिहिरभोज प्रतिहार की उपाधि मिली थी। अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे कई महान विशेषणों से वर्णित किया गया है।
==== वराह उपाधी ====
सम्राट मिहिर भोज के महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है। वाराह भगवान ने हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी को पाताल से निकालकर उसकी रक्षा की थी। सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार का नाम आदिवाराह भी है। ऐसा होने के पीछे यह मुख्य कारण हैं
1. जिस प्रकार वाराह (विष्णु जी) भगवान ने
पृथ्वी की रक्षा की थी और हिरण्याक्ष का वध किया था ठीक उसी प्रकार मिहिरभोज ने मलेच्छों को मारकर अपनी मातृभूमि की रक्षा की। इसीलिए इनहे आदिवाराह की उपाधि दी गई है।
==== उपासक ====
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार शिव शक्ति के उपासक थे। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में भगवान शिव के प्रभास क्षेत्र में स्थित शिवालयों व पीठों का उल्लेख है। प्रतिहार साम्राज्य के काल में सोमनाथ को भारतवर्ष के प्रमुख तीर्थ स्थानों में माना जाता था। प्रभास क्षेत्र की प्रतिष्ठा काशी विश्वनाथ के समान थी। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। मिहिरभोज के संबंध में कहा जाता है कि वे सोमनाथ के परम भक्त थे उनका विवाह भी सौराष्ट्र में ही हुआ था। उन्होंने मलेच्छों से पृथ्वी की रक्षा की। 50 वर्ष तक राज करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल प्रतिहार को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे। सम्राट मिहिरभोज का सिक्का जो कन्नौज की मुद्रा था उसको सम्राट मिहिरभोज ने 836 ईस्वीं में कन्नौज को देश की राजधानी बनाने पर चलाया था।
==== धन व्यवस्था ====
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है। इनके पूर्वज सम्राट नागभट्ट प्रथम ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा चलाई वह इस समय में और भी पक्की हो गई और प्रतिहार साम्राज्य की महान सेना खड़ी हो गई। यह भारतीय इतिहास का पहला उदाहरण है, जब किसी सेना को नगद वेतन दिया जाता हो।
मिहिर भोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की दूनिया कि सर्वश्रेष्ठ सेना थी । इनके राज्य में व्यापार,सोना चांदी के सिक्कों से होता है। यइनके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी थी। भोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। मिहिरभोज ने प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया।
==== विश्व की सुगठित और विशालतम सेना ====
मिहिरभोज प्रतिहार की सैना में 8,00,000 से ज्यादा पैदल करीब 90,000 घुडसवार,, हजारों हाथी और हजारों रथ थे। मिहिरभोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था। जरा हर्षवर्धन बैस के राज्यकाल से तुलना करिए। हर्षवर्धन के राज्य में लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे,पर मिहिरभोज के राज्य में खुली जगहों में भी चोरी की आशंका नहीं रहती थी।
==== बचपन से ही बहादुर और निडरता ====
मिहिरभोज प्रतिहार बचपन से ही वीर बहादुर माने जाते थे।एक बालक होने के बावजूद, देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को महसूस करते हुए उन्होंने युद्धकला और शस्त्रविधा में कठिन प्रशिक्षण लिया। राजकुमारों में सबसे प्रतापी प्रतिभाशाली और मजबूत होने के कारण, पूरा राजवंश और विदेशी आक्रमणो के समय देश के अन्य राजवंश भी उनसे बहुत उम्मीद रखते थे और देश के बाकी वंशवह उस भरोसे पर खरे उतरने वाले थे।
==== वह वैध उत्तराधिकारी साबित हुए ====
मिहिरभोज प्रतिहार राजपूत साम्राज्य के सबसे प्रतापी सम्राट हुए उनके राजगद्दी पर बैठते ही जैसे देश की हवा ही बदल गई । मिहिरभोज की वीरता के किस्से पूरी दूनीया मे मशूहर हुए।विदेशी आक्रमणो के समय भी लोग अपने काम मे निडर लगे रहते है। गद्दी पर बैठते ही उन्होने देश के लुटेरे,शोषण करने वाले, गरीबो को सताने वालो का चुन चुनकर सफाया कर दिया। उनके समय मे खुले घरो मे भी चोरी नही होती थी।
==== अरबी लेखो मे मिहिरभोज का है यशोगान ====
* अरब यात्री सुलेमान - पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं :
जब वह भारत भ्रमण पर आया था। सुलेमान सम्राट मिहिरभोज के बारे में लिखता है कि इस सम्राट की बड़ी भारी सेना है। उसके समान किसी राजा के पास उतनी बड़ी सेना नहीं है। सुलेमान ने यह भी लिखा है कि भारत में सम्राट मिहिरभोज से बड़ा इस्लाम का कोई शत्रु नहीं था । मिहिरभोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की सर्वश्रेष्ठ सेना है। इसके राज्य में व्यापार,सोना चांदी के सिक्कों से होता है। ये भी कहा जाता है।कि उसके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी थी।
* बगदाद का निवासी अल मसूदी 915ई.-916ई *
वह कहता है कि (जुज्र) प्रतिहार साम्राज्य में 1,80,000 गांव, नगर तथा ग्रामीण क्षेत्र थे तथा यह दो किलोमीटर लंबा और दो हजार किलोमीटर चौड़ा था। राजा की सेना के चार अंग थे और प्रत्येक में सात लाख से नौ लाख सैनिक थे। उत्तर की सेना लेकर वह मुलतान के बादशाह और दूसरे मुसलमानों के विरूद्घ युद्घ लड़ता है। उसकी घुड़सवार सेना देश भर में प्रसिद्घ थी।जिस समय अल मसूदी भारत आया था उस समय मिहिरभोज तो स्वर्ग सिधार चुके थे परंतु प्रतिहार शक्ति के विषय में अल मसूदी का उपरोक्त विवरण मिहिरभोज के प्रताप से खड़े साम्राज्य की ओर संकेत करते हुए अंतत: स्वतंत्रता संघर्ष के इसी स्मारक पर फूल चढ़ाता सा प्रतीत होता है। समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया था,क्योंकि प्रतिहार राजपूत राजाओं ने 11 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मिहिरभोज के पौत्र महिपाल को आर्यवर्त का महान सम्राट कहा जाता था।
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