कलियुग का ब्रह्मास्त्र माँ बगला मुखी प्रयोग :- पण्डित कौशल पाण्डेय
माता #बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं. संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है. बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है.
#बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं. देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं. देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है.
साधना के लिए जो मुख्य बातें ध्यान में रखनी चाहिए वे निम्न प्रकार होंगी :-
१- माँ का एक चित्र ( यदि मूर्ति स्थापित करते हैं जैसे कि पीतल (ब्रॉस) या फिर अन्य किसी धातु की तो एक बात का ध्याना रखना चाहिए कि मूर्ति कि ऊंचाई १२ इंच से अधिक नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे अधिक ऊंचाई कि मूर्ति घर में नहीं रखी जाती बल्कि मंदिर में स्थापित होती है ) लेकिन कागज या पेंटिंग के मामले में यह नियम लागु नहीं होता।
२. आसन / चौकी / बाजोट :- बहुत बार देखने में आता है कि लोग किसी भी चौकी या किसी भी स्थान पर इष्ट कि स्थापना कर लेते हैं किन्तु यदि वैदिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो इष्ट कि मूर्ति कि अवस्था आप जब बैठें तो आपकी नाभि से ऊपर होनी चाहिए कहने का मतलब कि आसन इस प्रकार व्यवस्थित करें कि जब आप साधना के लिए अपने इष्ट के सामने बैठें तो उनका आसन जिस पर उन्हें स्थान दिया गया है उसकी ऊंचाई आपके ह्रदय क्षेत्र के सामने होनी चाहिए ।
३. स्थान चुनाव :- स्थान का चुनाव भी आपकी साधना में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है --- साधना के लिए ऐसे स्थान का चुनाव करना चाहिए जहाँ पर आम आना जाना न हो -- कहने का अभिप्राय ये है कि साधना कक्ष एकांत में होना चाहिए और वहाँ तक सबकी पहुँच नहीं होनी चाहिए ।
४. दिशा निर्धारण :- साधना के लिए हमेशा अपने इष्ट देव कि स्थापना इस प्रकार करनी चाहिए कि जब आप साधना के लिए उनके समक्ष बैठें तो आपका मुंह उत्तर - नॉर्थ / पूर्व - ईस्ट कि तरफ पड़े !
५. रंग निर्धारण :- माता बगलामुखी का पसंदीदा रंग पीला (येलो ) है अतएव मुख्यतः इनकी पूजा में वस्त्र - फूल - आसन इत्यादि पीले रंग के ही प्रयोग किये जायेंगे !
६. सामान्य चेतावनी :- माता बगलामुखी बहुत ही तीव्र फल प्रदान करने वाली माँ हैं और इनके मन में भक्तों के लिए अथाह प्यार भी होता है इस्के साधक को इनकी साधना के बाद फिर किसी के सामने हाथ फ़ैलाने कि आवश्यकता नहीं है - भक्ति और मुक्ति / मोक्ष सब प्रदान करने इनके लिए बस निगाह फिरने के काम जैसा ही है इस दुनिया में कोई ऐसी शक्ति नहीं जो इनके साधक के समक्ष ठहर सके या उसका सामना कर सके -!
किन्तु साधक या भक्त कि छोटी सी भी गलती से ये कुपित भी हो सकती हैं इसलिए जब पहले एक बार स्वनियंत्रण करने कि कला सीख लें तब इनकी साधना के बारे में विचार करें - जैसा कि इनके मूल चित्र से भी इंगित होता है कि माता अपने ही भक्त कि गर्दन खुद ही काटने को उद्धत हैं इसलिए मेरा अपना परामर्श ये है कि नियंत्रण और समर्पण से यदि इनकी साधना कि जाए तो फिर कोई समस्या नहीं है -!
आराधना काल में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा साधना क्रम में स्त्री स्पर्श, चर्चा और संसर्ग कतई नहीं करना चाहिए। साधना डरपोक किस्म के लोगों को नहीं करनी चाहिए। बगलामुखी देवी अपने साधक की परीक्षा भी लेती हैं। साधना काल में भयानक अवाजें या आभास हो सकते हैं, इससे धबराना नहीं चाहिए और अपनी साधना जारी रखनी चाहिए।
क्योंकि पंडितों या ज्ञानियों कि गलतियां हमेशा अक्षम्य होती हैं जबकि नादान बच्चे कि सारी गलतियां माफ़ कि जाने लायक होती हैं -- !
पसंदीदा रंग :- पीला है इसलिए सारी चीजें पीले रंग कि ही होंगी जप के लिए माला हल्दी / हरिद्रा / टर्मरिक की प्रयोग होगी - अंक ३६ इनको विशेष प्रिय है अतएव मंत्रजाप संख्या भी इसी क्रुम में रखें जैसे कि ३६०० / ३६०००/ ३६०००० इत्यादि - इनका प्रिय दिन है वीरवार - गुरुवार - थर्स्डे
प्रथम खंड पूजा
ध्यान
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।
आवाहनम्
।। ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी
अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा ।।
आसनम्
ॐ बगला देव्यै नमः आसनम समर्पयामि
पाद्यम्
ॐ बगला देव्यै नमः पाद्यम समर्पयामि
अर्घ्यम्
ॐ बगला देव्यै नमः अर्घ्यं समर्पयामि
आचनम्
ॐ बगला देव्यै नमः आचमनं समर्पयामि
जल स्त्रानम्
ॐ बगला देव्यै नमः स्नानं समर्पयामि
पञ्चामृत स्नानम्
ॐ बगला देव्यै नमः पञ्चामृत स्नानं समर्पयामि
वस्त्रम्
वस्त्रं च सोमदेवत्यं लज्जायास्तु निवारणम् ।
मया निवेदितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरी ॥
उपवस्त्रम्
यमाश्रित्य महामाया जगत्सम्मोहिनी सदा ।
तस्यै ते परमेशानि कल्पयाम्युत्तरीयकम् ॥
गन्धम्
ॐ बगला देव्यै नमः गन्धं समर्पयामि
सिन्दूरं
ॐ बगला देव्यै नमः सिन्दूरं समर्पयामि
आभूषणम्
ॐ बगला देव्यै नमः आभूषणं समर्पयामि
कज्जलम्
चक्षुभ्यां कज्जलं रम्यं सुभगे शान्तिकारिके ।
कर्पूर ज्योतिरुत्पन्नं ग्रहाण परमेश्वरि ॥
सौभाग्यसूत्रम्
सौभाग्यसूत्रं वरदे सुवर्णमणि संयुते ।
कण्ठे बध्नामि देवेशि सौभाग्यं देहि मे सदा ॥
गन्धम्
चन्दनागरु कर्पूरं कंकुमं रोचनं तथा ।
कस्तूर्यादि सुगन्धांश्च सर्वाङ्नेषु विलेपये ॥
अक्षतम्
रञ्जिता कुंकुमौघेन अक्षताश्चापि शोभना: ।
ममैषां देवि दानेन प्रसन्नाभवमीश्वरी ।
पुष्पम्
मंदार पारिजातादि पाटली केतकानि च ।
जाती चम्पक पुष्पाणि गृहाण परमेश्वरी ॥
धूपम्
दशांग गुग्गुलं धूपं चन्दनागरु संयुतम् ।
समर्पितं मया भक्त्या महादेवि प्रगृह्यताम् ॥
दीपम्
घृतवर्ति समायुक्त महातेजो महोज्ज्वलम् ।
दीपं दास्यामि देवेशि सुप्रीता भव सर्वदा ॥
नैवेद्यम्
अन्नं चतुर्विधिं स्वादु रसै: षड्भि समन्वितम् ।
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्ति मे ह्यचलां कुरु ॥
इत्रम्
ॐ बगला देव्यै नमः इत्रम् समर्पयामि
ऋतुफलम्
द्रक्षाखर्जूर कदली पनसाम्र कपित्थकम् ।
नारिकेलेक्षुजम्ब्वादि फलानि प्रतिगृह्यताम् ॥
आचमनीयम्
ॐ बगला देव्यै नमः पुनराचमनीयम् समर्पयामि
अखण्ड ऋतुफलम्
नारिकेलं च नारंगं कलिगमचिरं तथा ।
ऊर्वारुकं च देवेशि फलान्येतानि गृह्यताम् ॥
ताम्बूलम्
एलालवंग कस्तूरी कर्पूरै: सुष्ठुवासिताम् ।
वीटिकां मुखवासार्थ समर्पयामि सुरेश्वरि ॥
द्वितीय खंड पूजन
माता बगलामुखी #अष्टोत्तरशतनाम
ब्रह्मास्त्ररुपिणी देवी माता श्रीबगलामुखी ।
चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च ब्रह्मानन्द-प्रदायिनी ।। १ ।।
महाविद्या महालक्ष्मी श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी ।
भुवनेशी जगन्माता पार्वती सर्वमंगला ।। २ ।।
ललिता भैरवी शान्ता अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।
वाराही छीन्नमस्ता च तारा काली सरस्वती ।। ३ ।।
जगत्पूज्या महामाया कामेशी भगमालिनी ।
दक्षपुत्री शिवांकस्था शिवरुपा शिवप्रिया ।। ४ ।।
सर्व-सम्पत्करी देवी सर्वलोक वशंकरी ।
विदविद्या महापूज्या भक्ताद्वेषी भयंकरी ।। ५ ।।
स्तम्भ-रुपा स्तम्भिनी च दुष्टस्तम्भनकारिणी ।
भक्तप्रिया महाभोगा श्रीविद्या ललिताम्बिका ।। ६ ।।
मैनापुत्री शिवानन्दा मातंगी भुवनेश्वरी ।
नारसिंही नरेन्द्रा च नृपाराध्या नरोत्तमा ।। ७ ।।
नागिनी नागपुत्री च नगराजसुता उमा ।
पीताम्बा पीतपुष्पा च पीतवस्त्रप्रिया शुभा ।। ८ ।।
पीतगन्धप्रिया रामा पीतरत्नार्चिता शिवा ।
अर्द्धचन्द्रधरी देवी गदामुद्गरधारिणी ।। ९ ।।
सावित्री त्रिपदा शुद्धा सद्योराग विवर्धिनी ।
विष्णुरुपा जगन्मोहा ब्रह्मरुपा हरिप्रिया ।। १० ।।
रुद्ररुपा रुद्रशक्तिश्चिन्मयी भक्तवत्सला ।
लोकमाता शिवा सन्ध्या शिवपूजनतत्परा ।। ११ ।।
धनाध्यक्षा धनेशी च नर्मदा धनदा धना ।
चण्डदर्पहरी देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी ।। १२ ।।
राजराजेश्वरी देवी महिषासुरमर्दिनी ।
मधूकैटभहन्त्री देवी रक्तबीजविनाशिनी ।। १३ ।।
धूम्राक्षदैत्यहन्त्री च भण्डासुर विनाशिनी ।
रेणुपुत्री महामाया भ्रामरी भ्रमराम्बिका ।। १४ ।।
ज्वालामुखी भद्रकाली बगला शत्रुनाशिनी ।
इन्द्राणी इन्द्रपूज्या च गुहमाता गुणेश्वरी ।। १५ ।।
वज्रपाशधरा देवी ज्ह्वामुद्गरधारिणी ।
भक्तानन्दकरी देवी बगला परमेश्वरी ।। १६ ।।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां बगलायास्तु यः पठेत् ।
रिपुबाधाविनिर्मुक्तः लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात् ।। १७ ।।
भूतप्रेतपिशाचाश्च ग्रहपीड़ानिवारणम् ।
राजानो वशमायांति सर्वैश्वर्यं च विन्दति ।। १८ ।।
नानाविद्यां च लभते राज्यं प्राप्नोति निश्चितम् ।
भुक्तिमुक्तिमवाप्नोति साक्षात् शिवसमो भवेत् ।। १९ ।।
(१)
यस्मिंल्लोका अलोका अणु-गुरु-लघवः स्थावरा जंगमाश्च ।
सम्प्रोताः सन्ति सूत्रे मणय इव वृहत्-तत्त्वमास्तेऽम्बरं तत् ।।
पीत्वा पीत्यैक-शेषा परि-लय-समये भाति या स्व-प्रकाशा ।
तस्याः पीताम्बरायास्तव जननि ! गुणान् के वयं वक्तुमीशाः ।।
(२)
आद्यैस्त्रियाऽक्षरैर्यद् विधि-हरि-गिरिशींस्त्रीन् सुरान् वा गुणांश्च,
मात्रास्तिस्त्रोऽप्यवस्थाः सततमभिदधत् त्रीन् स्वरान् त्रींश्च लोकान् ।
वेदाद्यं त्यर्णमेकं विकृति-विरहितं बीजमों त्वां प्रधानम्,
मूलं विश्वस्य तुर्य्यं ध्वनिभिरविरतं वक्ति तन्मे श्रियो स्यात् ।।
(३)
सान्ते रान्तेन वामाक्षणि विधु-कलया राजिते त्वं महेशि !
बीजान्तःस्था लतेव प्रविलससि सदा सा हि माया स्थिरेयम् ।
जप्ता श्याताऽपि भक्तैरहनि निशि हरिद्राक्त-वस्त्रावृतेन ।
शत्रून् स्तभ्नाति कान्तां वशयति विपदो हन्ति वित्तं ददाति ।।
(४)
मौनस्थः पीत-पीताम्बर-वलित-वपुः केसरीयासवेन ।
कृत्वाऽन्तस्तत्त्व-शोधं कलित-शुचि-सुधा-तर्पणोऽर्चां त्वदीयाम् ।
कुर्वन् पीतासनस्थः कर-धृत-रजनी-ग्रन्थि-मालोऽन्तराले ।
ध्यायेत् त्वां पीत-वर्णां पटु-युवति-युतो हीप्सितं किं न विन्देत् ।।
(५)
वन्दे स्वर्णाभ-वर्णा मणि-गण-विलसद्धेम-सिंहासनस्थाम् ।
पीतं वासो वसानां वसु-पद-मुकुटोत्तंस-हारांगदाढ्याम् ।
पाणिभ्यां वैरि-जिह्वामध उपरि-गदां विभ्रतीं तत्पराभ्याम् ।
हस्ताभ्यां पाशमुच्चैरध उदित-वरां वेद-बाहुं भवानीम् ।।
(६)
षट्-त्रिंशद्-वर्ण-मूर्तिः प्रणव-मुख-हरांघ्रि-द्वयस्तावकीन-
श्चम्पा-पुष्प-प्रियाया मनुरभि-मतदः कल्प-वृक्षोपमोऽयम् ।
ब्रह्मास्त्रं चानिवार्य्यं भुजग-वर-गदा-वैरि-जिह्वाग्र-हस्ते !
यस्ते काले प्रशस्ते जपति स कुरुतेऽप्यष्ट-सिद्धिः स्व-हस्ते ।।
(७)
मायाद्या च द्वि-ठान्ता भगवति ! बगलाख्या चतुर्थी-निरुढा ।
विद्यैवास्ते य एनां जपति विधि-युतस्तत्व-शोधं निशीथे ।
दाराढ्यः पञ्चमैस्त्वां यजति स हि दृशा यं यमीक्षेत तं तम् ।
स्वायत्त-प्राण-बुद्धीन्द्रिय-मय-पतितं पादयोः पश्यति द्राक् ।।
(८)
माया-प्रद्युम्न-योनिव्यनुगत-बगलाऽग्रे च मुख्यै गदा-धारिण्यै ।
स्वाहेति तत्त्वेन्द्रिय-निचय-मयो मन्त्र-राजश्चतुर्थः ।
पीताचारो य एनं जपति कुल-दिशा शक्ति-युक्तो निशायाम् ।
स प्राज्ञोऽभीप्सितार्थाननुभवति सुखं सर्व-तन्त्र-सवतन्त्रः ।।
(९)
श्री-माया-योनि-पूर्वा भगवति बगले ! मे श्रियं देहि देहि,
स्वाहेत्थं पञ्चमोऽयं प्रणव-सह-कृतो भक्त-मन्दार-मन्त्रः ।
सौवर्ण्या मालयाऽमुं कनक-विरचिते यन्त्रके पीत-विद्याम् ।
ध्यायन् पीताम्बरे ! त्वां जपति य इह स श्री समालिंगितः स्यात् ।।
(१०)
एवं पञ्चापि मन्त्रा अभिमत-फलदा विश्व-मातुः प्रसिद्धाः,
देव्या पीताम्बरायाः प्रणत-जन-कृते काम-कल्प-द्रुमन्ति ।
एतान् संसेवमाना जगति सुमनसः प्राप्त-कामाः कवीन्द्राः ।
धन्या मान्या वदान्या सुविदित-यशसो देशिकेन्द्रा भवन्ति ।।
करस्थ चषकस्यात्र, संभोज्य झषकस्य च ।
बगला-दशकाध्येतुर्मातंगी मशकायते ।।
माता बगलामुखी चालीसा
दोहा
सिर नवाइ बगलामुखी, लिखूं चालीसा आज।।
कृपा करहु मोपर सदा, पूरन हो मम काज।।
चौपाई
जय जय जय श्री बगला माता। आदिशक्ति सब जग की त्राता।।
बगला सम तब आनन माता। एहि ते भयउ नाम विख्याता।।
शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी। असतुति करहिं देव नर-नारी।।
पीतवसन तन पर तव राजै। हाथहिं मुद्गर गदा विराजै।।
तीन नयन गल चम्पक माला। अमित तेज प्रकटत है भाला।।
रत्न-जटित सिंहासन सोहै। शोभा निरखि सकल जन मोहै।।
आसन पीतवर्ण महारानी। भक्तन की तुम हो वरदानी।।
पीताभूषण पीतहिं चन्दन। सुर नर नाग करत सब वन्दन।।
एहि विधि ध्यान हृदय में राखै। वेद पुराण संत अस भाखै।।
अब पूजा विधि करौं प्रकाशा। जाके किये होत दुख-नाशा।।
प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै। पीतवसन देवी पहिरावै।।
कुंकुम अक्षत मोदक बेसन। अबिर गुलाल सुपारी चन्दन।।
माल्य हरिद्रा अरु फल पाना। सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना।।
धूप दीप कर्पूर की बाती। प्रेम-सहित तब करै आरती।।
अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे। पुरवहु मातु मनोरथ मोरे।।
मातु भगति तब सब सुख खानी। करहुं कृपा मोपर जनजानी।।
त्रिविध ताप सब दुख नशावहु। तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु।।
बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं। अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं।।
पूजनांत में हवन करावै। सा नर मनवांछित फल पावै।।
सर्षप होम करै जो कोई। ताके वश सचराचर होई।।
तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै। भक्ति प्रेम से हवन करावै।।
दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई। निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई।।
फूल अशोक हवन जो करई। ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई।।
फल सेमर का होम करीजै। निश्चय वाको रिपु सब छीजै।।
गुग्गुल घृत होमै जो कोई। तेहि के वश में राजा होई।।
गुग्गुल तिल संग होम करावै। ताको सकल बंध कट जावै।।
बीलाक्षर का पाठ जो करहीं। बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं।।
एक मास निशि जो कर जापा। तेहि कर मिटत सकल संतापा।।
घर की शुद्ध भूमि जहं होई। साध्का जाप करै तहं सोई।
सेइ इच्छित फल निश्चय पावै। यामै नहिं कदु संशय लावै।।
अथवा तीर नदी के जाई। साधक जाप करै मन लाई।।
दस सहस्र जप करै जो कोई। सक काज तेहि कर सिधि होई।।
जाप करै जो लक्षहिं बारा। ताकर होय सुयश विस्तारा।।
जो तव नाम जपै मन लाई। अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई।।
सप्तरात्रि जो पापहिं नामा। वाको पूरन हो सब कामा।।
नव दिन जाप करे जो कोई। व्याधि रहित ताकर तन होई।।
ध्यान करै जो बन्ध्या नारी। पावै पुत्रादिक फल चारी।।
प्रातः सायं अरु मध्याना। धरे ध्यान होवै कल्याना।।
कहं लगि महिमा कहौं तिहारी। नाम सदा शुभ मंगलकारी।।
पाठ करै जो नित्या चालीसा।। तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा।।
दोहा
सन्तशरण को तनय हूं, कुलपति मिश्र सुनाम।
हरिद्वार मण्डल बसूं , धाम हरिपुर ग्राम।।
उन्नीस सौ पिचानबे सन् की, श्रावण शुक्ला मास।
चालीसा रचना कियौ, तव चरणन को दास।।
दक्षिणाम्
पूजाफल समृद्ध्यर्थं तवाग्रे स्वर्गमीश्वरि ।
स्थापितं तेन मे प्रीता पूर्णान् कुरु मनोरथान् ॥
नीराजनम्
नीराजनं सुमंगल्यं कर्पूंरेण समन्वितम् ।
चन्द्रार्क वह्नि सदृशं महादेवि नमोऽस्तुते ॥
श्री बगलामुखी माता की आरती जय पीताम्बरधारिणी जय सुखदे वरदे, देवी जय सुखदे वरदे।
भक्तजनानां क्लेशं भक्तजनानां क्लेशं सततं दूर करें।। ॐ जय बगलामुखी माता….
असुरैः पीडि़तदेवास्तव शरणं प्राप्ताः, देवीस्तव शरणं प्राप्ताः।
धृत्वा कौर्मशरीरं धृत्वा कौर्मशरीरं दूरीकृतदुःखम् ।। ॐ जय बगलामुखी माता…
मुनिजनवन्दितचरणे जय विमले बगले, देवी जय विमले बगले।
संसारार्णवभीतिं संसारार्णवभीतिं नित्यं शान्तकरे ।। ॐ जय बगलामुखी माता…
नारदसनकमुनीन्द्रै ध्यातं पदकमलं देवीध्यातं पदकमलं।
हरिहरद्रुहिणसुरेन्द्रैः हरिहरदु्रुहिणसुरेन्द्रैः सेवितपदयुगलम् ।।ॐ जय बगलामुखी माता….
कांचनपीठनिविष्टे मुद्गरपाशयुते, देवी मुद्गरपाशयुते।
जिव्हावज्रसुशोभित जिव्हावज्रसुशोभित पीतांशुकलसिते ।।ॐ जय बगलामुखी माता….
बिन्दु त्रिकोण षडस्त्रै अष्टदलोपरिते, देवी अष्टदलोपरिते।
षोडशदलगतपीठं षोडशदलगतपीठं ।। ॐ जय बगलामुखी माता…
.इत्थं साधकवृन्दं चिन्तयते रूपं देवी चिन्तयते रूपं।
शत्रुविनाशकबीजं शत्रुविनाशकबीजं धृत्वा हृत्कमले ।। ॐ जय बगलामुखी माता…
अणिमादिकबहसिद्धिं लभते सौख्ययुतां, देवी लभते सौख्ययुतां।
प्रदक्षिणाम्
नमस्ते देवि देवेशि नमस्ते ईप्सितप्रदे ।
नमस्ते जगतां धात्रि नमस्ते भक्तवत्सले ॥
नमस्कारम्
नमः सर्वहितार्थायै जगदाधार हेतवे ।
साष्टांगो अयं प्रणामस्तु प्रयत्नेन मयाकृत: ॥
मंत्र
ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय
बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।
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