ज्योतिष शास्त्र में गुरु (बृहस्पति) का उपाय :- पंडित कौशल पाण्डेय 09968550003

ज्योतिष शास्त्र में गुरु (बृहस्पति) का उपाय  :- पंडित कौशल पाण्डेय 09968550003
ज्योतिष शास्त्र में गुरु (बृहस्पति) का उपाय  :- पंडित कौशल पाण्डेय 09968550003




हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र तथा देवताओं के पुरोहित हैं।देवगुरु बृहस्पति पीत वर्ण के हैं। उनके सिर पर स्वर्णमुकुट तथा गले में सुन्दर माला
 हैं वे पीत वस्त्र धारण करते हैं तथा कमल के आसन पर विराजमान है। उनके चार हाथों में क्रमश: दण्ड, रुद्राक्ष की माला, पात्र और वरदमुद्रा सुशोभित है।
स्कंद पुराण के अनुसार, बृहस्पति ने प्रभास तीर्थ जाकर भगवान शंकर की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें देवगुरु का पद तथा ग्रहत्व प्राप्त करने का वर दिया। ऋग्वेद के अनुसार बृहस्पति अत्यंत सुंदर हैं। इनका आवास स्वर्ण निर्मित है। यह विश्व के लिए पूजनीय हैं। यह अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें संपत्ति तथा बुद्धि से संपन्न कर देते हैं, उन्हें सन्मार्ग पर ले जाते हैं और विपत्ति में उनकी रक्षा भी करते हैं। शरणागत वत्सलता का गुण बृहस्पति में कूट-कूट भरा हुआ है।

बृहस्पति एक-एक राशि पर एक-एक वर्ष रहते हैं। बृहस्पति के अधिदेवता इन्द्र और प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा हैं, बृहस्पति धनु और मीन राशि के स्वामी हैं। यह कर्क राशी में शुभ और मकर राशी में अपना अशुभ फल प्रदान करते है , पुनर्वसु, विशाखा और पूर्व भाद्रपद नक्षत्रों का स्वामित्व भी इसे प्राप्त है। यह कर्क राशि के 5 अंशों पर परम उच्च और मकर के 5 अंशों पर परम नीच होता है। धनु राशि के 0 से 10 अंशों तक इसे मूल त्रिकोण और धनु राशि के ही 10 से 30 अंशों तक स्वगृही माना जाता है।वक्री और मार्गी स्थिति में बृहस्पति सूर्य से 11 अंश की दूरी पर अस्त और उदित होता है।
इनकी महादशा सोलह वर्ष की होती है।

कुंडली में बृहस्पति से पंचम, सप्तम और नवम भावों पर इसकी पूर्ण दृष्टि होती है। जिन भावों पर बृहस्पति की दृष्टि होती है, उनके शुभ फल जातक को मिलते हैं। जिन भावों में बृहस्पति अवस्थित हो फलों की हानि करते हैं। धनु और मीन लग्न में यह योगकारक होता है। योग कारक बृहस्पति जिस भाव में स्थित होता है और जिस पर दृष्टि देता है, जातक को उन सभी भावों के शुभ फल मिलते हैं। कन्या और मिथुन लग्न के लिए बृहस्पति बाधक होता है, इसलिए उक्त लग्न वाले जातकों के कार्यों में बाधा डालता है। वृष, तुला और मकर लग्न में बृहस्पति अकारक ग्रह होता है। यह शुभ नहीं है, इसलिए इन लग्नों में बृहस्पति शुभ फल नहीं देता है।

जन्म कुंडली में बृहस्पति को द्वितीय, पंचम, नवम और एकादश का कारक माना गया है।
द्वितीय भाव से धन, ज्योति, वाक्शक्ति, कुटुंब आदि का विचार किया जाता है।
पंचम से विद्या बुद्धि, पुत्र संतान,
नवम से धर्म, कर्तव्य, पिता, भाग्य आदि का और एकादश भाव से लाभ, बड़ी बहन, भाई आदि का विचार किया जाता है।

कुंडली में बृहस्पति के शुभ के लक्षण:-

जिनकी जन्मकुंडली वे बृहस्पति शुभस्थ होता है, उच्च पदों पर कार्यरत होते हैं। मंत्री, प्रधानमंत्री, आई.ए.एसअधिकारी, आचार्य, प्राचार्य, न्यायाधीश, अर्थशास्त्री, अध्यापक, लेखक, कवि, वक्ता, वैद्य, जड़ी-बूटियों के जानकार, धार्मिक सिद्ध पुरुष आदि की जन्मकुंडली में बृहस्पति शुभस्थ होता है।

बृहस्पति से प्रभावित जातक कद में लंबे, शारीरिक तौर पर कुछ मोटे और कफ प्रवृति के होते हैं। उनकी आंखें और बाल कुछ भूरे या सुनहरी और आवाज भारी होती है। ऐसे जातक पुरुषार्थी, सत्यवादी, दार्शनिक, विभिन्न विज्ञानों में रुचि रखने वाले, भक्तिवादी और धार्मिक होते हैं। बृहस्पति को ज्ञान का प्रतीक माना गया है, इसलिए उसे गुरु भी कहा जाता है।
बृहस्पति से प्रभावित जातक बुद्धि -विवेक से भरपूर होता है। व्यक्ति कभी झूठ नहीं बोलता। उनकी सच्चाई के लिए वह प्रसिद्ध होता है। आंखों में चमक और चेहरे पर तेज होता है। अपने ज्ञान के बल पर दुनिया को झुकाने की ताकत रखने वाले ऐसे व्यक्ति के प्रशंसक और हितैषी बहुत होते हैं। यदि बृहस्पति उसकी उच्च राशि के अलावा 2, 5, 9, 12 में हो तो शुभ।

कुंडली में बृहस्पति के अशुभ लक्षण : -

जनम कुंडली में गुरु अस्त ,नीच या शत्रु राशि का ,छटे -आठवें -बारहवें भाव में स्थित हो ,पाप ग्रहों से युत या दृष्ट, षड्बल विहीन हो तो ऊँचाई से पतन , शरीर में चर्बी की वृद्धि ,कफ विकार ,मूर्च्छा ,हर्निया,कान के रोग ,स्मृति विकार , जिगर के रोग ,मानसिक तनाव , रक्त धमनी से सम्बंधित रोग करता है |
बृहस्पति के अशुभ लक्षण :- सिर पर चोटी के स्थान से बाल उड़ जाते हैं। गले में व्यक्ति माला पहनने की आदत डाल लेता है। सोना खो जाए या चोरी हो जाए। बिना कारण शिक्षा रुक जाए। व्यक्ति के संबंध में व्यर्थ की अफवाहें उड़ाई जाती हैं। आंखों में तकलीफ होना, मकान और मशीनों की खराबी, अनावश्यक दुश्मन पैदा होना, धोखा होना, सांप के सपने। सांस या फेफड़े की बीमारी, गले में दर्द। 2, 5, 9, 12वें भाव में बृहस्पति के शत्रु ग्रह हों या शत्रु ग्रह उसके साथ हों तो बृहस्पति मंदा होता है। बृहस्पति की स्थिति, जिगर की गड़बड़ी, जलोदर, उदर-वायु, मोटापा, पाचन में गड़बड़ी, गुर्दे का रोग दे सकता है।

बृहस्पति के उपाय : -
बृहस्पति के बुरे प्रभाव को दूर करने के उपाय :-
जन्मपत्रिका अथवा गोचर के गुरु के अशुभ प्रभाव समाप्त कर उनको शुभ प्रभाव में बदलनें के लिए मैं आपको छ ऐसे उपाय बता रहां हूँ जिनको करने से आप निश्चित ही लाभान्वित होंगे। कोई भी उपाय शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से आरम्भ करेंगें। पत्रिका में गुरु के उच्च राशी में होने पर उसकी किसी भी वस्तु का दान ना करें।
गुरु से सम्बन्धित किसी भी वस्तु को मुफ्त में ना लें।
1. केसर का उपयोग खाने तथा नाभि और माथे पर लगाने में करने से बृहस्पति का शुभ प्रभाव प्राप्त होता है।
2-ब्राह्मणों को दान में पीला वस्त्र, सोना, हल्दी, घृत, पीला अन्न, पुखराज,धार्मिक पुस्तक आदि दान में देना चाहिए।
3-पीपल व केले के वृक्ष में रोज जल चढ़ाये .
4- हमेशा सत्य बोलने की आदत डाले।
5- अपने आचरण को शुद्ध रखे साथ ही परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
6-ऐसे व्यक्ति को पिता, दादा और गुरु का आदर करना साथ ही सभी बुजुर्ग इन्शानो का सम्मान करे और उनके आशीर्वाद प्राप्त करे
7-पीला पुखराज 5( रत्ती स्वर्ण में मढ़वा कर गुरुवार को प्रातः तर्जनी अंगुली में धारण करे .
8- औषधि धारण :केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें .या हल्दी की गांठ पीले कपड़े में लगा कर, गले में या सीधे हाथ की बांह में करे .
9-श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।

देव गुरु बृहस्पति के पौराणिक मन्त्र है :-
'देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचनसंनिभम्। बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्॥',

गुरु बृहस्पति के बीज मन्त्र :- बीज मन्त्र-'ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।'
सामान्य मन्त्र :- 'ॐ बृं बृहस्पतये नम:' है। इनमें से किसी एक का श्रद्धानुसार जप करना चाहिये। जप का समय सन्ध्याकाल तथा जप संख्या 19000 है।
पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ

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