शनि महाराज की पौराणिक कथा. जानिए शनि के कुप्रभाव से बचने का उपाय

शनि महाराज की पौराणिक कथा 
जानिए शनि के कुप्रभाव से बचने का उपाय



हिन्दू धर्म ग्रन्थों और शास्त्रों में भगवान् शिवजी को शनिदेव का गुरु बताया गया है, तथा शनिदेव को न्याय करने और किसी को दण्डित करने की शक्ति भगवान् शिवजी के आशीर्वाद द्वारा ही प्राप्त हुई है, अर्थात शनिदेव किसी को भी उनके कर्मो के अनुसार उनके साथ न्याय कर सकते है और उन्हें दण्डित कर सकते है, चाहे वे देवता हो या असुर, मनुष्य हो या कोई अन्य प्राणी ।

शास्त्रों के अनुसार सूर्य देव एवं देवी छाया के पुत्र शनिदेव को क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गयी है । शनिदेव बचपन में बहुत ही उद्ण्डत थे तथा पिता सूर्य देव ने उनकी इस उदंडता से परेशान होकर भगवान् शिवजी को अपने पुत्र शनि को सही मार्ग दिखाने को कहा, भगवान् शिवजी के लाख समझाने पर भी जब शनिदेव की उदंडता में कोई परिवर्तन नहीं आया।

एक दिन भगवान् शिवजी ने शनिदेव को सबक सिखाने के लिए उन पर प्रहार किया जिससे शनिदेव मूर्छित हो गये, पिता सूर्यदेव के कहने पर भगवान् शिवजी ने शनिदेव की मूर्छा तोड़ी तथा शनिदेव को अपना शिष्य बना लिया और उन्हें दण्डाधिकारी का आशीर्वाद दिया, इस प्रकार शनिदेव न्यायधीश के समान न्याय एवं दण्ड के कार्य में भगवान् शिवजी का सहयोग करने लगे।

शास्त्रों के अनुसार एक दिन शनिदेव कैलाश पर्वत पर अपने गुरु भगवान् भोलेनाथ से भेट करने के बाद कहा- प्रभु! कल में आपकी राशि में प्रवेश करने वाला हूंँ, अर्थात मेरी वक्रदृष्टि आप पर पड़ने वाली है, भगवान् शिवजी ने जब यह सूना तो वे आश्चर्य में पड गयें, तथा शनिदेव से बोले की तुम्हारी वक्रदृष्टि कितने समय के लिये मुझ पर रहेगी?

शनिदेव ने शिवजी से कहा की कल मेरी वक्रदृष्टि आप पर सवा प्रहर तक रहेगी, अगले दिन प्रातः शिवजी ने सोचा की आज मुझ पर शनि की दृष्टि पड़ने वाली है, अतः मुझे कुछ ऐसा करना होगा की आज के दिन शनि मुझे देख ही ना पाये? तब भगवान् शिवजी कुछ सोचते हुये मृत्यु लोक अर्थात धरती में प्रकट हुये तथा उन्होंने अपना भेष बदलकर हाथी का रूप धारण कर लिया।

सज्जनों! पुरे दिन भोलेनाथ हाथी का रूप धारण कर धरती पर इधर-उधर विचरण करते रहे, जब शाम हुई तो भगवान् शिवजी ने सोचा की अब शनि मेरे ग्रह से जाने वाला है, अतः मुझे मेरे वास्तविक स्वरूप में आ जाना चाहियें, भगवान् शिवजी अपना वास्तविक रूप धारण कर कैलाश पर्वत पर वापस आयें, भोलेनाथ प्रसन्न मुद्रा में कैलाश पर्वत पहुँचे तो वहाँ पर पहले से ही मौजूद शनिदेव शिवजी की प्रतीक्षा कर रहे थे।

शनिदेव को देखते है शिवजी बोले, हे शनिदेव! देखो तुम्हारी वक्रदृष्टि का मुझ पर कोई प्रभाव नहीं हुआ, तथा आज में सारे दिन तुम से सुरक्षित रहा, भगवान् भोलेनाथ की बात को सुन शनिदेव मुस्कराते हुये बोले- प्रभु! मेरी दृष्टि से ना तो कोई देव बच पाये है और नहीं कोई दानव, यहाँ तक की आप पर भी आज पुरे दिन मेरे वक्र दृष्टि का प्रभाव रहा।

भगवान् शिवजी आश्चर्यचकित होते हुये शनिदेव से पूछा कि यह कैसे सम्भव है? मैं तुम्हें मिला ही नहीं, तो वक्रदृष्टि का सवाल ही नहीं? शनिदेव बड़ी शालीनता से मुस्कराते हुए शिवजी से बोले- प्रभु मेरे वक्र दृष्टि के कारण ही आपको आज सारे दिन देव-योनि से पशु योनि में जाना पड़ा इस प्रकार आप मेरी वक्रदृष्टि के पात्र बने।

यह सुनकर भगवान् भोलेनाथ ने शनिदेव से प्रसन्न होकर उन्हें गले से लगा लिया तथा पूरे कैलाश पर्वत में शनिदेव का जयकारा गूजने लगा, अतः शनिदेव के प्रकोप से भगवान् भी नहीं बच सकते तो हम कलयुगी मानव की बिसात ही क्या है? इसलिये सत्यता को जीवन में अपनाओं, पवित्रता को चरित्र में धारण करों, शुचिता को व्यवहार में लाओ।

अगर शनिदेव की वक्रदृष्टि हमारे ऊपर आ भी गयीं तो कुछ समय की ही होगी यह भी नियमित सत्संग भजन तथा उचित उपाय करने से कम अनुभव होती है , न्याय के देवता श्री शनि महाराज पूरा लेखा-जोखा रखते हैं, अतः पाप से बचो व अन्याय का साथ न दो, समस्त जीवों पर दया का भाव रखों, भगवान् भोलेनाथ के साथ शनि महाराज आपकी रक्षा करें।

शनि जनित सर्वारिष्ट शांति के उपाय 

आपको किसी भी कारण शनि के शुभ फल प्राप्त नहीं हो रहे हैं। फिर वह चाहे जन्मकुंडली में शनि ग्रह के अशुभ होने, शनि साढ़ेसाती या शनि ढैय्या के कारण है तो प्रस्तुख लेख में दिये गये सरल उपाय आपके लिए लाभकारी सिद्ध होंगे।

भारतीय समाज में आमतौर ऐसा माना जाता है कि शनि अनिष्टकारक, अशुभ और दुःख प्रदाता है, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। मानव जीवन में शनि के सकारात्मक प्रभाव भी बहुत है। शनि संतुलन एवं न्याय के ग्रह हैं। यह नीले रंग के ग्रह हैं, जिससे नीले रंग की किरणें पृथ्वी पर निरंतर पड़ती रहती हैं। यह सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह है। यह बड़ा है, इसलिए यह एक राशि का भ्रमण करने में अढाई वर्ष तथा १२ राशियों का भ्रमण करने पर लगभग ३० वर्ष का समय लगाता है।

शनि अपने पिता सूर्य से अत्यधिक दूरी के कारण प्रकाशहीन है। इसलिए इसे अंधकारमयी, विद्याहीन, भावहीन, उत्साह हीन, नीच, निर्दयी, अभावग्रस्त माना जाता है। फिर भी विशेष परिस्थितियों में यह अर्थ, धर्म, कर्म और न्याय का प्रतीक है। इसके अलावा शनि ही सुख-संपत्ति, वैभव और मोक्ष भी देते हैं।

प्रायः शनि पापी व्यक्तियों के लिए दुख और कष्टकारक होता है। मगर ईमानदारों के लिए यह यश, धन, पद और सम्मान का ग्रह है। शनि की दशा आने पर जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं। शनि प्रायः किसी को क्षति नहीं पहुंचाता, लेकिन अति की स्थिति में अनेक ऐसे सरल टोटके हैं, जिनका प्रयोग कर हम लाभ उठा सकते हैं। साथ ही इस आलेख में लाल किताब में शनि के १२ भावों का फलादेश व नियम, परहेज व उपाय भी दिये गये हैं, जिनका प्रयोग कर हम शनि शांति कर सकते हैं और जीवन में दुख दूर कर कामयाबी की ओर बढ़ सकते हैं।

शनि का प्रभाव व निवास मुख्य रूप से तेल व लौह में होता है, अतः जीवन में कभी भी तेल निशुल्क (फ्री) में ना लें और ना तेल की कीमत से कम पैसे देने चाहिए, भूलकर भी तेल के पैसे नहीं खाना चाहिए और ना ही मुल्य से कम पैसे देने चाहिए, अन्यथा शनि का प्रकोप झेलना पड़ता है। जीवन में कभी न कभी शनि का प्रभाव हर व्यक्ति पर पडता है, यही ग्रह है जो आप को राजा बना सकता है यही है जो आप को ऐश्वर्य धन तथा चक्रवति सम्राट तक बना सकता है और यही शनि आप को, निर्धन (राजा से फकीर) बना देता है। 

शनि के प्रभाव को अपने अनुरूप करने के लिए कुछ उपाय
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शनि के सिर्फ तिल का तेल ही चढता है और तिल का तेल ही सभी देवताओं व महा देवी-देवताओं तथा सभी धार्मिक महत्व में उतम स्थान प्राप्त है लेकिन कुछ मंदबुदृि के लोग सरसों के तेल को भी शनि व अन्य धार्मिक कार्यों के लिए उपयोग में लेते हैं जो कि अनैतिक व अधर्म है। हमारे शास्त्रों में सरसों का कही भी उल्लेख नहीं है, अतः तिल ही श्रेष्ठ कहा गया है और कार्य सिद्ध करने के लिए तिल का तेल ही इस्तेमाल करना चाहिए।

शनि के लिए सरसों के तेल का प्रयोग वर्जित है। आगे आप की मर्जी.।?

शनिवार को काले रंग की चिड़िया खरीदकर उसे दोनों हाथों से आसमान में उड़ा दें। आपकी दुख-तकलीफें दूर हो जायेंगी 

शनिवार के दिन लोहे का त्रिशूल महाकाल शिव, महाकाल भैरव या महाकाली मंदिर में अर्पित करें।

शनि दोष के कारण विवाह में विलंब हो रहा हो, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को २५० ग्राम काली राई, नये काले कपड़े में बांधकर पीपल के पेड़ की जड़ में रख आयें और शीघ्र विवाह की प्रार्थना करें।

पुराना जूता शनिचरी अमावस्या के दिन चैराहे पर रखें।

आर्थिक वृद्धि के लिए आप सदैव शनिवार के दिन गेंहू पिसवाएं और गेहूं में कुछ काले चने भी मिला दें।

किसी भी शुक्ल पक्ष के पहले शनि को १० बादाम लेकर हनुमान मंदिर में जायें। ०५ बादाम वहां रख दें और ०५ बादाम घर लाकर किसी लाल वस्त्र में बांधकर धन स्थान पर रख दें।

शनिवार के दिन बंदरों को काले चने, गुड़, केला खिलाएं।

तिल के तेल का छाया पत्र दान करें।

बहते पानी में सर से ११ बार नारियल उसारकर विसर्जित करें।

शनिवार को काले उड़द पीसकर उसके आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं।

प्रत्येक शनिवार को आक के पौधे पर ७ लोहे की कीलें चढ़ाएं।

काले घोड़े की नाल या नाव की कील से बनी लोहे की अंगूठी मध्यमा उंगली में शनिवार को सूर्यस्त के समय पहनें।

लगातार पांच शनिवार शमशान घाट में लकड़ी का दान करें।

काले कुत्ते को दूध पिलाएं।

शनिवार की रात को तिल का तेल से बने पुडी या गुलगुले (पुये) कुत्तो को व गरीब लोगों को खिलाऐ। 

चीटिंयों को 7 शनिवार काले तिल, आटा, शक्कर मिलाकर खिलाएं।

शनिवार की शाम पीपल के पेड़ के नीचे तिल के तेल का दीपक जलाएं।

शनि की ढैया से ग्रस्ति व्यक्ति को हनुमान चालीसा का सुबह-शाम जप करना चाहिए।

शनि पीड़ा से ग्रस्त व्यक्ति को रात्रि के समय दूध का सेवन नहीं करना चाहिए।

काला हकीक सुनशान जगह में शनिवार के दिन दबाएं।

शनिवार के कारण कर्ज से मुक्ति ना हो रही हो, तो काले गुलाब जामुन अंधों को खिलाएं।

शनिवार की संध्या को काले कुत्ते को चुपड़ी हुई रोटी खिलाएं। यदि काला कुत्ते रोटी खा ले तो अवश्य शनि ग्रह द्वारा मिल रही पीड़ा शांति होती है।

काले कुत्ते को द्वार पर नहीं लाना चाहिए। अपितु पास जाकर सड़क पर ही रोटी खिलानी चाहिए।

शनि शांति के लिए ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः या ऊँ शनैश्चराय नमः का जप करें।

शनि शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।

सात मुखी रुद्राक्ष भी शनि शांति के लिए धारण कर सकते हैं।

नीलम रत्न धारण करें अथवा नीली या लाजवर्त, पंच धातु में धारण करें।

विशेष रत्न धारण अथवा अन्य उपाय करने से पहले परामर्श अवश्य करें।
पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ

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