भारतीय नववर्ष विक्रम संवत 2081 एवं चैत्र नवरात्री :-पंडित कौशल पाण्डेय

भारतीय नववर्ष  विक्रम संवत 2081 एवं चैत्र नवरात्री :-पंडित कौशल पाण्डेय 

 
हिंदू नववर्ष  विक्रम संवत 2081


हिंदू नववर्ष विक्रम सम्वत 2081 
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि शुरू  8 अप्रैल 2024, रात 11.50
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि समाप्त  9 अप्रैल 2024, रात 08.30
चैत्र नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त    सुबह 06.02 -  सुबह 10.16
कलश स्थापना अभिजित मुहूर्त    सुबह 11.57 - दोपहर 12.48

भारतीय नववर्ष  विक्रम संवत 2081 एवं चैत्र नवरात्री :-पंडित कौशल पाण्डेय 

हिंदू पंचांग के अनुसार भारतीय नववर्ष विक्रम संवत 2081 मंगलवार 9 अप्रैल 2024 से प्रारम्भ हो जाएगा.  
प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से नव विक्रम सम्वत प्रारम्भ होता है. 2081 नव संवत्सर को 'कालयुक्त ' नाम से जाना जाएगा. इस संवत के राजा मंगल और मंत्री शनि होंगे.
चैत्र नवरात्री :- 
नवरात्री  का पर्व  अत्यंत श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। नवरात्री के नौ दिनों में माँ भगवती के नव रूपों की विशेष पूजा होती  है। 
चैत्र  शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक के नौ दिन नवरात्र कहलाते हैं इस वर्ष मंगलवार 9 अप्रैल 2024  से 17 अप्रैल 2024 तक चैत्र नवरात्री का पर्व मनाया जायेगा ।
चैत्र नवरात्र को  ‘वासंतिक नवरात्र’ कहा जाता है , यह नवरात्र व्रत स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं। यदि स्वयं न कर सकें तो पति, पत्नी, पुत्र या ब्राह्मण को प्रतिनिधि बनाकर व्रत पूर्ण कराया जा सकता है। 
चैत्र नवरात्रि ऋतु संध्या कहलाती हैं। नवरात्रि काल में दुर्गा माता के कोमल प्राणों का प्रवाह भूलोक पर होता है। जैसे दिन और रात्रि के मिलन काल को संध्या कहते हैं, ऐसी संध्या वेला में की गई पूजा-अर्चना, स्तुति पाठ, मंत्र-जाप, प्रार्थना आरती वगैरह का पुण्य फल, किसी अन्य समय में की गई पूजा की तुलना में, अधिक और शीघ्र प्राप्त होता है। इसी वजह से ऋतु संध्याओं में अर्थात नवरात्रि काल में माता दुर्गा की उपासना, व्रत आदि करना श्रेयस्कर माना गया है।
भगवती दुर्गा देवी त्रिगुणात्मिका शक्ति स्वरूपा कहलाती हैं। वे ही महाकाली हैं, महालक्ष्मी हैं और महासरस्वती हैं। वे ही त्रैलोक्य मंगला हैं, तापत्रयहारिणी हैं। 
भारतीय सनातन संस्कृति पर्व  किसी एक जाती समुदाय के लिए नहीं है यह सभी मानव समाज के कल्याण के लिए है.

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोऽस्तुते।। 
समस्त अमंगलों का, दुर्भाग्यों का नाश कर, समस्त बंधनों को तोड़कर, काटकर, उनका नाशकर, समस्त कष्टों को दूर भगाकर, कल्याण-मंगल करने वाली दयामयी माता भगवती ही हैं जिनकी आर्तृभाव से प्रार्थना देव, दानव, यक्ष, किन्नर, गंधर्व आदि ही नहीं वरन महाशक्ति संपन्न त्रयदेव ब्रह्मा, विष्णु महेश भी करते हैं। 
भारतवर्ष में भगवती दुर्गा भवानी की पूजा आराधना सदा से होती आई है जिसे सब भली भांति जानते ही हैं। धन-धान्य, यश, मान-सम्मान, आयु, पुत्र-पौत्र, दीर्घायु, रोग-निवृत्ति, शत्रु बाधा शमन, विवाह जैसे मांगलिक कार्य, सुख सौभाग्य की वृद्धि, तथा अन्यान्य प्रकार की मनोभिलाषा पूर्ति के निमित्त भक्त जातक श्रद्धा विश्वास एवम् पूर्ण भक्ति भावना के साथ माता दुर्गा की प्रसन्नता प्राप्ति हेतु नवरात्रि में व्रत धारण करते हैं, मंत्र जाप करते हैं, स्तुति पाठ करते हैं, हवन करते हैं। 

पूजाविधि: चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से पूजन प्रारंभ होता है। ‘सम्मुखी’ प्रतिपदा शुभकारी है। 
सर्वप्रथम प्रातःकाल स्वयं स्नानादि कृत्यों से पवित्र हो, निष्कामपरक या कामनापरक संकल्प कर गोमय से पूजा स्थान को लीपकर उस पर पवित्र मिट्टी से वेदी का निर्माण करें, फिर उसमें जौ और गेहूं बोए तथा उस पर यथाशक्ति मिट्टी, तांबे, चांदी या सोने का कलश स्थापित करें। 

नवरात्री में नव भोग :-
प्रतिपदा तिथि को नैवेद्य के रूप में गाय का घृत मां को अर्पित करना चाहिए और फिर वह घृत ब्राह्मण को दे देना चाहिए। इसके फलस्वरूप मनुष्य कभी रोगी नहीं हो सकता। 
द्वितीया तिथि को पूजन करके भगवती जगदंबा को चीनी का भोग लगाएं और ब्राह्मण को दे दें। ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है। 
तृतीया के दिन भगवती की पूजा में दूध की प्रधानता होनी चाहिए और पूजन के उपरांत वह दूध ब्राह्मण को दे देना उचित है। इससे सारे दुख दूर हो सकते हैं। चतुर्थी के दिन मालपुए का नैवेद्य अर्पित किया जाए और फिर उसे योग्य ब्राह्मण को दे दिया जाए। इस अपूर्व दान से हर प्रकार का विघ्न दूर हो जाता है। पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती को केला भोग लगाएं और वह प्रसाद ब्राह्मण को दे दें। ऐसा करने से पुरुष की बुद्धि का विकास होता है। 
षष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। वह मधु ब्राह्मण अपने उपयोग में लें। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है। सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है।
अष्टमी तिथि के दिन भगवती को नारियल का भोग लगाना चाहिए। फिर नैवेद्य रूप वह नारियल ब्राह्मण को दे देना चाहिए। इसके फलस्वरूप उस पुरुष के पास किसी प्रकार का संताप नहीं आ सकता। 
नवमी तिथि को भगवती को धान का लावा अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। इस दान के प्रभाव से पुरुष इहलोक और परलोक दोनों में सुखी रह सकता है। 
दशमी तिथि के दिन भगवती को काले तिल का नैवेद्य ब्राह्मण अपने काम में ले लें। ऐसा करने से यमलोक का भय भाग जाता है। पूजन नित्यप्रति नियमानुसार करें। 

माँ दुर्गा के नवरूपों में नवरात्रि में पूजन इस प्रकार  है :-. 
शैलगिरि हिमाचल सुता वृषवाहना शिवा की प्रथम दिन ‘‘शैलपुत्री’’ माता के रूप में भक्तगण दुर्गा पूजा कर अपने मनोरथ सिद्ध करते हैं। . 
सिद्धि व विजय प्रदायिनी अक्षमाला और कमंडल-धारिणी तपश्चारिणी दुर्गा माता की नवरात्रि के दूसरे दिन ‘‘ब्रह्मचारिणी’’ रूप में पूजन की जाती है। . 
चंद्र समान शीतलदायी माता ‘‘चंद्रघंटा’’ की तीसरे दिन नवरात्रि में पूजन करने से जातक का इहलोक व परलोक दोनों में कल्याण होता है। 
रोग-शोक-नाशिनी, आयु-यश-बल प्रदायिनी और पिंड व ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली माता ‘‘कूष्मांडा’’ की चैथे दिन दुर्गा-पूजा होती है। 
सदा-सर्वदा शुभफलवर्षिणी माता ‘‘स्कन्दमाता’’ की पूजा नवरात्रि के पांचवें दिन करते हुये भक्त साधक दुर्गा माता को प्रसन्न करते हैं। 
नवरात्रि के छठे दिन शुभ फलदायी, दानवविनाशिनी, कत्यायनसुता ‘‘कत्यायनी’’ देवी की पूजा का विशेष महत्व माना गया है। 
गर्दभारूढ़ा, कृष्णवर्णा, कराली, भयंकरी, भयहारिणी, भक्त-वत्सला माता ‘‘ कालरात्रि’’ की पूजा नवरात्रि के सातवं दिन करने का विधान है।
तापत्रयहारिणी त्रैलोक्य मंगला, चैतन्यमयी, धनैश्वर्य-प्रदायिनी, अष्टवर्षीय देवी ‘‘महागौरी’’ की आठवें दिन नवरात्रि में पूजा का विधान है।
नवरात्रि के नवमें दिन ‘‘सिद्धि दात्री’’ के रूप में माता दुर्गा की पूजा की जाती है। भगवती सिद्धि दायी अष्ट सिद्धियां प्रदान करने वाली मानी गई हैं। 
कुमारी पूजन: ‘कुमारी पूजन’ नवरात्र व्रत का अनिवार्य अंग है। कुमारिकाएं जगज्जननी जगदंबा का प्रत्यक्ष विग्रह हैं। सामथ्र्य हो तो नौ दिन तक नौ अन्यथा सात, पांच, तीन या एक कन्या को देवी मानकर पूजा करके भोजन कराना चाहिए। इसमें ब्राह्मण कन्या को श्रेष्ठ माना गया है।

विसर्जन- नौ रात्रि व्यतीत होने पर दसवें दिन या पूर्णिमा तिथि को विसर्जन हेतु पूजनोपरांत निम्न प्रार्थना करें- 
रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहिमे। 
पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहिमे।। 
महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनि। 
आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोऽस्तुते।।

मनोकामना सिद्धि हेतु निम्न मंत्र का यथाशक्ति श्रद्धा अनुसार 9 दिन तक जप करें: 
”ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥“
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा.

सिद्ध कुन्जिका स्तोत्रं :- 
श्री दुर्गा सप्तसती में वर्णित अत्यंत प्रभावशली सिद्धि कुन्जिका स्त्रोत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ इस सिद्धि कुन्जिका स्त्रोत्र का नित्य पाठ करने से संपूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का फल मिलता है .. 
नवरात्री में देवी पूजा करने से अधिक शुभत्व की प्राप्ति होती है। देवी की भक्ति से कामना अनुसार भोग, मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। 
चैत्र मास के नवरात्रि में 9 दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की जाती है और अष्टमी या नवमी को कन्या पूजन के साथ यह पर्व सम्पन्न होता है. देवी भावगत के अनुसार नवमी में व्रत खोलना चाहिए।

श्री राम हर्षण शांति कुञ्ज " की तरफ से आपको और आपके परिवार को भारतीय नववर्ष विक्रम संवत 2081 की हार्दिक शुभकामनाएं . 
यह वर्ष भारतीयों के लिये ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिये भी सुख, शांति एवं मंगलमय हो।
" माँ दुर्गा " आपको शांति , शक्ति , संपत्ति , संयम , सादगी ,सफलता ,समृद्धि , सम्मान, स्नेह और स्वास्थ्य जीवन प्रदान करे . 

पंडित के एन पाण्डेय ( कौशल )
ज्योतिष सलाहकार 
राष्ट्रीय अध्यक्ष 
श्री राम हर्षण शांति कुञ्ज,भारत 

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