ज्योतिष और रोग :-

ज्योतिष और रोग :- 
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में प्राचीन समय से ही ज्योतिष के माध्यम से नव ग्रहों के आधार पर उनसे पड़ने वाले शुभ अशुभ प्रभावों की व्याख्या की गई है। 


समय रहते अगर जन्मकुंडली का विश्लेषण किसी विद्वान ज्योतिषी से करवा लेते है तो ग्रहों के अशुभ प्रभाव से बचा जा सकता है ,ज्योतिष कर्म प्रधान है मारकेश ग्रहों की दशा अंतर्दशा में जातक को कई प्रकार के शारीरिक कस्ट भोगने पड़ते है। 
ऐसे की कुछ योग इस लेख के माध्यम से यहाँ बता रहा हूँ जिससे समय रहते गंभीर रोगों से बचा जा सकता है। 

प्राचीनकाल के रोगों को ध्यान में रखते हुए ज्योतिष की दृष्टि से प्रत्येक रोग के लिए संबंधित ग्रह और योगों का वर्णन किया गया है , 

ज्योतिष की दृष्टि से आधुनिक काल के रोग के लिए संबंधित ग्रह, योग व विभिन्न उपाय: 
प्राचीन काल में जीवन जीने के भौतिक सुख के साधन कम थे तब रोग व बीमारियां भी कम हुआ करती थीं। जैसे-जैसे मनुष्य ने उन्नति की, भौतिक सुख-सुविधाओं की वस्तुओं में भी वृद्धि हुई, जिससे व्यक्ति आरामदायक जीवन बिताने लगा। 

परिणामस्वरूप मेहनत कम होने से कई बीमारियों जैसे- मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग, नेत्र रोग, कैंसर, अस्थमा आदि ने जन्म लिया। 
ज्योतिष में  इन रोगों का विचार छठे भाव (रोग) तथा 3 एवं 11 भाव से किया जाता है तथा इसके साथ ही 6 भाव के कारक मंगल, शनि, लग्न-लग्नेश, चंद्र-राशीश तथा इन सभी पर पाप प्रभाव का विचार महत्वपूर्ण है। 

नीचे आधुनिक युग के विभिन्न रोगों के योग, ग्रह, उपाय दिये गये हैं- 
मधुमेह रोग में गुरु व शुक्र की भूमिका: जब शुक्र ग्रह कुंडली के किसी भी भाव में दोषयुक्त हो अर्थात् नीच, अस्त, शत्रु राशि में हो तथा साथ ही इस पर पाप प्रभाव हो या कुंडली के षष्ठ रोग भाव या षष्ठेश का शुक्र से संबंध हो। शुक्र को मूत्र का कारक ग्रह माना गया है। काम (सेक्स) का कारक ग्रह भी शुक्र ही है। शुक्र एक जल तत्व ग्रह है। मधुमेह रोग में शुगर सेक्स (काम) स्थान से मूत्र द्वारा बाहर निकलती है। अतः शुक्र के सहयोग के बगैर मधुमेह (शुगर रोग) नहीं हो सकता है। कुंडली में शुक्र दोषयुक्त हो तो इसके साथ मूत्र दोष या सेक्स दोष का संकेत देता है। ऐसी स्थिति में छठे भाव या षष्ठेश का शुक्र से संबंध होने पर मूत्र, सेक्स व शुगर रोग की संभावना रहती है। चूंकि मीठे रस का कारक ग्रह बृहस्पति (गुरु) है। मधुमेह, शुगर से संबंधित एक रोग है। अतः शुगर पदार्थ को भी बृहस्पति के कारकत्व में सम्मिलित कर सकते हैं। मधुमेह रोग होने के पश्चात् जातक को शक्कर या चीनी, अत्यधिक मिठास वाली चीजों जैसे-मिठाई, गुड़ आदि से परहेज रखना पड़ता है ताकि रोग बढ़े नहीं। 
योग: Û छठे भाव या इसके स्वामी का गुरु ग्रह से संबंध होने पर मधुमेह रोग होता है चूंकि गुरु ग्रह, लीवर का भी कारक ग्रह है तथा इस रोग में लीवर भी प्रभावित होता है। 
सूर्य ग्रह,आमाशय एवं आंतों का कारक ग्रह है। शरीर में आमाशय वाला स्थान, ज्योतिष की दृष्टि से कालपुरुष की कुंडली में 5वें स्थान पर आता है तथा पंचम भाव यकृत, क्लोम ग्रंथि और शुक्राणुओं का कारक स्थान है। इस भाव का कारक भी बृहस्पति ही है। क्लोम ग्रंथि के कुछ भाग का नेतृत्व शुक्र ग्रह भी करता है। अतः मधुमेह रोग में गुरु, शुक्र के साथ पंचम भाव तथा चंद्र व बुध का भी विचार किया जाता है। 

इस रोग का विचार त्रिक भावों (6, 8, 12) से किया जाता है। यदि जलीय राशियों (4, 8, 12) तथा शुक्र की तुला राशि में दो या अधिक पाप ग्रह स्थित हों, तो यह रोग होता है। यदि चतुर्थ भाव में वृश्चिक राशि में (सिंह लग्न में) शुक्र व शनि की युति हो तो यह रोग होता है। यदि चारों शुभ ग्रहों (चंद्र, शुक्र, गुरु, बुध) तथा सूर्य पर, पाप प्रभाव (राहु, केतु, शनि, मंगल) हो तथा 6, 8, 12वें भाव से संबंध करे या इनके स्वामियों से संबंध करे, तो यह रोग होता है। 

मधुमेह रोग के विभिन्न उपाय: ज्योतिषीय उपाय: गणपति उपासना: चूंकि गणपति पूजन से बुध ग्रह अनुकूल होकर शुभ होता है और इसके शुभ होने से पैंक्रियाज ग्रंथि सुचारु रूप से कार्य करने लगती है, जिससे शरीर में इंसुलिन की कमी नहीं होती, परिणामस्वरूप मधुमेह रोग जन्म नहीं लेता। 

’ इसके साथ ही गणपतिजी को प्रिय जामुन फल, प्रसाद स्वरूप चढ़ाना चाहिए तथा इसके पश्चात् स्वयं भी ग्रहण करना चाहिए। 
गणेश जी को बुधवार, पुष्य नक्षत्र चतुर्थी योग में संग्रह किये गये जामुन का प्रसाद चढ़ाने एवं स्वयं खाने से इस रोग से जल्दी निवृति मिलती है। 

औषधि स्नान उपाय- विभिन्न ग्रह पीड़ा निवारण: बुध: मोती, अक्षत्, चावल, गाय छाछ, जायफल, गोरोचन, पीपर मूल से प्रति बुधवार स्नान करने से बुध जनित पीड़ा का नाश होकर यह रोग नहीं होता है। 
शुक्र: मैनसिल, इलायची, केसर, पीपर मूल, जायफल आदि के जल में प्रत्येक शुक्रवार स्ना करने से शुक्र ग्रह जनित पीड़ा का नाश होता है जिससे इस रोग से निवृति मिलती है। 
बृहस्पति (गुरु): शहद, सफेद सरसु, चमेली पुष्प, गुलांगी आदि को हरेक गुरुवार पानी में डालकर स्नान करने से इस रोग में शुभ परिणाम मिलते हैं। 

अन्य उपाय: खान-पान की आदत सही रखें। शुगर व इसकी चीजें, वसा वाली, फास्टफूड आदि से पहरेज रखें। नियमित योग प्रणायाम, व्यायाम, घूमना आदि करें। मांसाहार व शराब सेवन न करें। प्रातः काल सैर करें। मेथी की सब्जी का सेवन अधिक करें। नीम के पत्ती  खाली पेट खायें। 
जामुन की गुठली का चूर्ण बनाकर एक-एक चम्मच सुबह-शाम सेवन करें। मेथीदाना का चूर्ण बनाकर एक चम्मच प्रतिदिन सेवन करें। 
खीरा, करेला, टमाटर तीनों समान मात्रा में लेकर जूस निकालकर प्रातः खाली पेट सेवन करें। इसके अलावा खाने में पपीता, टमाटर, जामुन, सलाद का सेवन करें। जब व्यक्ति को मोटापे के कारण मधुमेह हो जाता है तो वह अन्य रोगों जैसे- हृदय रोग, नेत्र रोग, रक्त चाप, नपुंसकता आदि यौन रोग का भी शिकार हो जाता है।

रक्चाप (ब्लडप्रेशर): 
ब्लडप्रेशर, आधुनिक युग का एक गंभीर रोग है। इस रोग के फैलने का मुख्य कारण तनाव, अवसाद, बदलती जीवन शैली, मधुमेह आदि है। जैसा कि नाम से ही विदित है कि रक्तचाप अर्थात् खून का दवाब। ज्योतिष में रक्त (खून) का कारक ग्रह मंगल होता है तथा इस ‘रक्त’ को सर्कुलेट करने का कार्य हमारा ‘‘हृदय’’ करता है। इस हृदय के कारक ग्रह सूर्य एवं चंद्र दोनों ही होते हैं। 

यदि ये तीनों ही ग्रह अशुभ अर्थात् नीच, शत्रुराशि या पाप प्रभाव में हो, तो व्यक्ति ब्लडप्रेशर का शिकार हो जाता है। यदि दो या दो से अधिक ग्रह 3, 4, 5, 6 या 11 राशि में स्थित हों, तो भी रक्तचाप रोग हो जाता है। यदि कर्क राशि एवं इसके स्वामी चंद्र पर पाप प्रभाव (राहु, केतु, शनि, मंगल) हों या चंद्र लग्नेश, राशीश होकर नीच का होकर त्रिकभाव में स्थित हो, तो भी रक्तचाप हो जाता है। 

जब कन्या लग्न में चंद्र के साथ शनि-मंगल की युक्ति हो तथा लग्नेश-राशीश बुध नीच का (सप्तम भाव में) हो, तो रक्तचाप हो जाता है। इसके साथ चतुर्थ भाव व चतुर्थेश अर्थात् धनुराशि-गुरु पर राहु-मंगल का पाप प्रभाव हो, तो जातक उच्च रक्तचाप के साथ हृदयघात का भी शिकार हो जाता है। जब सूर्य, चंद्र, मंगल पर राहु, केतु के कारण से कुंडली में क्रमशः ग्रहण व अंगारक योग/पितृदोष बनते हैं तो जातक रक्तचाप का शिकार हो जाता है। 

रक्तचाप के ज्योतिषीय उपाय: सूर्य: सूर्य शुभ- लग्नानुसार (4, 5, 8, 9, 12, 1) माणिक धारण करें तथा प्रतिदिन प्रातः तांबे के लौटे में जल लेकर मंत्र- ‘‘ऊँ घृणि सूर्याय नमः’’ के साथ सूर्य देव को अघ्र्य दें। 
अशुभ सूर्य- रविवार को लाल वस्त्र, गेहूं, गुड़, तांबा आदि का दान करें। यह मंगलवार को मंगल के लिए भी कर सकते हैं। 
गाय को गुड़ मिश्रित रोटी अपने हाथ से खिलाएं। चंद्र एवं मंगल शुभ होने पर उपरोक्त लग्नानुसार मोती व मूंगा धारण करें। चंद्र वस्तु व मेवे की मिठाई का सेवन न करें। सोमवार को चंद्र वस्तु का दान अशुभ चंद्र में ही करें। 

अन्य उपाय: नमक का सेवन कम करें, ऊपर से कभी न डालें। 
मानसिक तनाव, चिंता न करें। सदैव खुश रहें। प्रतिदिन व्यायाम, योग करें। स्वच्छ रहें। संगीत सुनें। मनोरंजन चीजों का उपयोग करें। प्रतिदिन मेडिटेशन करें। प्रणायाम को महत्व दें। पुष्य या रोहिणी नक्षत्र में सोंठ, हल्दी, नमक व अजवायन का मिश्रित चूर्ण तैयार करें और रक्तचाप निम्न होने की स्थिति में रोगी को गुनगुने पानी से दें। दोनों पैरों के तलवों एवं हथेलियों पर नीचे से ऊपर की ओर सरसों के तेल की तेज गति से ‘‘ऊँ भुवन भास्कराय नमः’’ मंत्र का जाप करते हुए मालिश करें। 

हृदय रोग: 
ज्योतिष शास्त्र में हृदय का विचार चतुर्थ भाव से किया जाता है। अतः चतुर्थ भाव, चतुर्थेश, कारक चंद्र$बुध पर पाप ग्रहों का प्रभाव हृदय रोगों को जन्म देता है। इसके अलावा मन का विचार चतुर्थ भाव, मस्तिष्क का विचार पंचम भाव से किया जाता है साथ ही मन-मस्तिष्क का कारक ग्रह भी चंद्र ही होता है और मन मस्तिष्क का सीधा ‘हृदय’ से ही संबंध होता है। अतः चतुर्थ, पंचम भाव व चंद्र पर पाप ग्रहों का प्रभाव हृदय रोग को जन्म देता है या इनके स्वामी निर्बल हों अर्थात् नीच, शत्रु राशि के हों। इसके अलावा हृदय पर सूर्य व चंद्र तथा इनकी राशियां क्रमशः सिंह व कर्क का निमंत्रण रहता है तथा हृदय के अंतर्गत रक्त का संचार मंगल ग्रह करता है अतः इनका अशुभ होना, पाप प्रभाव एवं त्रिक भाव में होना हृदय रोग को जन्म देता है। रक्त या रक्त कणिकाएं स्वयं मंगल हैं जो इसका संचार शरीर में चंद्र की गति के सहारे करता है। गुरु, शुद्ध रक्त को विकारों से बचाने का कार्य करता है। जब जन्मपत्री में उपरोक्त ग्रह अशुभ अर्थात् नीच, शत्रुराशि के हों अथवा राहु, केतु का पाप प्रभाव हो, तो हृदय रोग जन्म ले लेता है। 

यदि इसका रोग पूर्व ही विचार करके सावधानी रखी जाय, तो इससे बचाया जा सकता है योग निम्न हैं- चतुर्थ भाव में स्थित शनि पर राहु का प्रभाव। सूर्य, मंगल, गुरु की चतुर्थ भाव में युति। चतुर्थेश का अस्त, नीच, वक्री होकर अष्टमस्थ होना। शुभ ग्रह त्रिक भाव में निर्बल हो। 

हृदय रोग के उपाय: 
ज्योतिषीय उपाय: यदि लग्न 3, 6, 2, 7, 10, 11वें भाव में हों, तो बुद्धि-विशेष हृदय घात में पन्ना व हीरा धारण करें लग्नानुसार मूंगा, मोती, माणिक (लग्न- 1, 8, 5, 4, 9, 12) धारण करें। 
(1) उपाय वाले (2) के रत्न धारण न करें तथा सूर्य के लिए सूर्य को अघ्र्य दें। हनुमान चालीसा तथा शिव पूजा करें तथा मंगल, सूर्य व चंद्र की धातुओं का दान करें। (3) पीपल के वृक्ष को रोजाना सीचें व दीपक जलाएं। 
आध्यात्मिक उपाय: यज्ञ (हवन) करें। तीनों ग्रहों- सूर्य, मंगल, चंद्र के गायत्री मंत्रों की न्यूनतम 24 आहुतियां यज्ञ में दें। 
अन्य उपाय: तनाव, अवसाद, मन के विकारों से बचें। नियमित व्यायाम, योग करें। मन-मस्तिष्क पर अनावश्यक, दवाब न बढ़ने दें, खुश रहें। लहसुन का सेवन करें। तैलीय, वसा की चीजों से परहेज रखें। यौन/गुप्त रोग: यदि कुंडली में लग्नेश लग्न में हो व सप्तम में शुक्र हो अथवा शुक्र किसी वक्री ग्रह की राशि में स्थित हो, तो यौन रोग होता है। मंगल व शनि के साथ चंद्र की युति त्रिक भाव (6, 8, 12) व 2 भाव में हो, तो यह रोग बनता है। लग्नेश, षष्ठ (रोग भाव) में स्थित हो तथा षष्ठेश 5, 7, 8 व शुक्र से संबंध बनाये, तो यौन रोग होता है। वृश्चिक या कर्क (जलीय राशि के) नवांश में चंद्रमा किसी भी पाप ग्रह से युत हो। यदि लग्न में चंद्र व पंचम भाव में बृहस्पति व शनि की युति हो, तो यौन रोग में धातु रोग होता है। यदि बृहस्पति 12वें (व्यय भाव) में हो या अष्टम संघर्ष भाव में कई पाप ग्रहों अथवा षष्ठेश व बुध यदि मंगल के साथ हो, तो जननेंद्रिय रोग होता है। 

यौन रोग (गुप्त रोग, नपुसंकता, एड्स) के ज्योतषीय उपाय: यदि जातक का लग्न 2, 3, 6, 7, 10, 11 हो, तो हीरा या सफेद पुखराज, नीलम, पन्ना धारण करने पर उपरोक्त यौन रोगों में लाभ होता है। ये तीनों रत्न 1, 8, 4, 5, 9, 12 लग्न वाले व्यक्ति धारण न करें अन्यथा यह रोग उन्हें बढ़ सकता है। इन लग्न वाले जातक मूंगा, मोती, पीला पुखराज, माणिक धारण कर सकते हैं। बुध, शुक्र व शनि लग्न वाले ये रत्न धारण न करें। ये मंगल, गुरु, चंद्र व सूर्य की वस्तुओं का दान कर सकते हैं। हनुमान चालीसा का पाठ करें। इन ग्रहों के मंत्रों का जाप करें। 

अस्थमा (दमा या श्वास रोग): 
इस रोग का मुख्य कारण ‘चंद्र’ (वक्री नहीं होता) व ‘बुध’ (वक्री भी) का नीच, अस्त, शत्रु राशिगत होता है। दोनों की युति मुख्यतः मंगल की राशियों (मेष, वृश्चिक) में होने पर होता है। कुछ योग निम्न हैं- यदि शनि, नीच या शत्रु राशि हो या चंद्र, मिथुन व सिंह राशि में स्थित हो तथा इन पर पाप प्रभाव हो, तो यह रोग होता है। यदि निर्बल चंद्र पाप कारी  प्रभाव में हो तथा सूर्य, सप्तम भाव में हो। यदि बुध, कर्क राशि में स्थित हो तथा सूर्य का प्रभाव हो (युति द्वारा) तथा चंद्र निर्बल होकर पाप ग्रहों के बीच हो तथा शनि सप्तम भाव में हो अथवा मंगल शनि के मध्य चंद्र निर्बल हो व सूर्य मकर राशि में हो। 

ज्योतिषीय उपाय: 2, 7, 3, 6, 10, 11 लग्न वाले व्यक्तियों को पन्ना धारण करना चाहिए तथा चंद्र के लिए दान मंत्र जप, व्रत करना चाहिए। 1, 8, 4, 5, 9, 12 लग्न वाले व्यक्तियों को मोती धारण करना चाहिए तथा बुध का दान, व्रत, जप करना चाहिए। गणपतिजी, दुर्गाजी, शिवजी की पूजा करें। चतुर्थी, पूर्णिमा का व्रत करें। गायों को हरा चारा खिलाएं। आध्यात्मिक उपाय: इसके अंतर्गत जातक को चंद्र व बुध के गायत्री मंत्रों द्वारा 24 आहुतियां यज्ञ में देनी चाहिए। 
अन्य रोग: खान-पान में सावधानी बरतें। प्राणायाम (कपाल भाती, अनुलोम- विलोम) करें, स्वच्छ वायु ग्रहण करें। तनाव से दूर रहें, खुश रहें। 

नासिका रोग: 
यह दमा की भांति सांस रोग से जुड़ा है। यह रोग बहुत ही परेशान करने वाला है। इस रोग का कारक ग्रह बुध तथा द्वितीय व तृतीय भाव का निर्बल/पीड़ित होना है। योग: बुध ग्रह पर पाप प्रभाव होने, षष्ठ (रोग भाव) में पाप ग्रह से चंद्र दृष्ट होने तथा शत्रु नवांश में लग्नेश के होने से तथा द्वितीयेश, तृतीयेश के निर्बल/पीड़ित होने से यह रोग होता है। 12वें (व्यय, हानि भाव) में पाप ग्रह होने, षष्ठ भाव में चंद्रमा के होने तथा शनि के अष्टम भाव में होने के साथ ही लग्नेश के पाप ग्रह के नवांश में होने पर यह रोग होता है। सूर्य से त्रिक भाव में पाप ग्रह शनि/मंगल के होने पर यह रोग होता है। 

ज्योतिषीय उपाय: उपरोक्त की भांति ही पन्ना धारण करें, यदि बुध शुभ हो तथा यह बुध, शुक्र व शनि की राशि के लग्न वाले ही धारण करें, बाकी नहीं। बाकी लग्नों के लिए बुध की वस्तुओं का दान करें, व्रत करें व मंत्र जाप करें। गायों को सोमवार व बुधवार को हरा चारा खिलाएं। 

आध्यात्मिक: बुध गायत्री के मंत्र द्वारा हवन/यज्ञ में इसकी 24 आहुतियां दें। अन्य उपाय: प्राणायाम, व्यायाम, योग करें। मंत्र ‘‘ऊँ’’ का उच्चारण लंबी सांस द्वारा करें। (प्राणायाम में) सुबह हरी घास में पैदल चलें। 

लकवा या पक्षाघात रोग: 
ज्योतिषीय ग्रह व योग: शनि ग्रह स्नायु तंत्र का कारक व मंगल, रक्त का कारक है तथा लग्न (शरीर), पंचम (बुद्धि) और नवम (पंचम का पंचम) भाव मस्तिष्क से संबंध रखते हैं और इन भावों की राशियां क्रमशः मेष, सिंह व धनु (अग्नि तत्व) हैं। चंद्रमा भी मन-मस्तिष्क का कारक होता है। इस रोग में राशीश भी प्रभावित होता है। अतः शनि, मंगल के निर्बल होने अर्थात् नीच, शत्रु राशि, वक्री, अस्त होने या इन पर 1, 5, 9 (भाव या राशि) तथा चंद्र, राशीश, लग्नेश, पंचमेश, नवमेश के निर्बल होने तक इन सभी पर पाप प्रभाव होने से यह रोग होता है। योग- लग्न में जब मंगल व बुध हो। पंचम में नीच राशि का शनि हो। नवम भाव में षष्ठेश शुक्र हो। 

ज्योतिषीय उपाय: शुक्र, शनि, बुध राशि के लग्न वाले नीलम धारण करें तथा चंद्र व मंगल की वस्तुओं का दान करें, व्रत करें तथा हनुमान, शिवजी की पूजा करें। मंगल, चंद्र, सूर्य, गुरु राशि के लग्न वाले मूंगा, मोती धारण कर ग्रहों को अनुकूल बनाएं। शनि, राहु, केतु की वस्तुओं का दान करें। शनिवार का व्रत करें। तीनों का मंत्र जाप करें। 

आध्यात्मिक उपाय: मंगल, चंद्र, शनि के गायत्री मंत्रों का 24 आहुतियां यज्ञ में दें, ताकि रोगी स्वस्थ रहे। अन्य उपाय: रेकी चिकित्सा करें। व्यायाम, योग करें। तेल मालिश करें। रोग ग्रस्त अंगों पर दवाई तेल लगाएं। शनिवारीय, रविवारीय अमावस्या, त्रयोदशी, पूर्णिमा या फिर शुभ नक्षत्र में लहसुन की पांच कलिका को कूटकर पौन किलो दूध में उबालें। जब दूध आधी कटोरी रह जाय, तब मिश्री डालकर, इसे रोगी दें, इसके लिए अश्विनी, अनुराधा, श्रवण नक्षत्र का उपयोग करें। कुछ माह (समय) तक मंगलवार व शनिवार को जातक पर थोड़ा तेल लगाकर हनुमानजी के मंदिर में जहां अखंड दीपक जलता हो, वहां चढ़ाएं और रोगी के शीघ्र आरोग्य होने की प्रार्थना करें। ऐसा करने से इस रोग में लाभ मिलता है। 

कैंसर रोग: योग: यदि 6 या 8वें भाव में मंगल या शनि की युति राहु, केतु के साथ हो, तो कैंसर रोग होता है। यदि मंगल (निर्बल) अष्टम भाव में पाप प्रभाव के साथ हो, तो इसकी दशाओं में कैंसर रोग होता है। मेष लग्न में तथा मंगल दोनों पर, यदि राहु, शनि व षष्ठेश का प्रभाव हो, तो फेफड़ें का कैंसर होता है। यदि 2वें भाव में राहु व शनि पाप ग्रह स्थित हो तथा चतुर्थ भाव, इसके स्वामी तथा चंद्रमा पर भी इनका प्रभाव हो, तो व्यक्ति नशे (धूम्रपान,तम्बाकू आदि) के कारण फेंफड़े के कैंसर का शिकार होता है। यदि शुक्र या गुरु षष्ठेश होकर लग्न में पाप ग्रहों से प्रभावित हो, तो मुख कैंसर होता है। यदि राहु से मंगल त्रिक भाव (6, 8, 12) मंे स्थित हो, राहु में मंगल की दशा में कैंसर रोग होता है। रक्त कारक मंगल, मन-मस्तिष्क कारक चंद्र व लग्नेश पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता हो तो कैंसर रोग होता है। यदि मंगल से केतु अष्टम भाव में हो तथा इन पर पाप प्रभाव हो, तो मंगल में केतु की दशा में यह रोग होता है। यदि लग्न व लग्नेश पर पाप प्रभाव हो तथा मकर के नवांश में लग्नेश, षष्ठेश या चंद्र स्थित हो, तो कैंसर रोग का योग बनता है।

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