पौस महीना (खरमास) में शुभ कार्य क्यों वर्जित होता है

पौस महीना (खरमास) में शुभ कार्य क्यों वर्जित होता है ,पौष मास 27 दिसंबर 2022 से  25  जनवरी 2024 तक रहेगा।
पौस माह 2023-24


सनातन संस्कृति  में किसी भी शुभ कार्य के लिए शुभ  मुहूर्त का विशेष महत्व माना गया है कुछ अवधि ऐसी भी होती हैं जब इन शुभ कार्यों को करने की मनाही की जाती है. जैसे शादी,गृह प्रवेश,मकान ,दुकान या नया व्यवसाय करना शुभ नहीं माना जाता है। 

कब लगता है खरमास 
सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहते हैं. पुरे वर्ष में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं.  जब सूर्य देव धनु और मीन में प्रवेश करते हैं, तो इन्हें क्रमश: धनु संक्रांति और मीन संक्रांति कहा जाता है.सूर्य जब धनु व मीन राशि में रहते हैं, तो इस अवधि को मलमास या खरमास कहा जाता है. 

वर्षभर में दो बार खरमास (मलमास) आता है। जब सूर्य गुरु की राशि धनु या मीन में होता है। खरमास के समय पृथ्वी से सूर्य की दूरी अधिक होती है। इस समय सूर्य का रथ घोड़े के स्थान पर गधे का हो जाता है। इन गधों का नाम ही खर है। इसलिए इसे खरमास (मलमास) कहा जाता है। जब सूर्य वृश्चिक राशि से निकलकर धनु राशि में प्रवेश करता है। इस प्रवेश क्रिया को धनु की संक्रांति कहा जाता है। साथ ही इसे मलमास या खरमास भी कहा जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, साल के दसवें महीने को पौष कहते हैं। इस महीने में हेमंत ऋतु का प्रभाव रहता है। इसलिए इस महीने में ठंड रहती है। पौष माह में मुख्य रूप से सूर्य देव की उपासना की जाती है। मान्यता है कि इस महीने में सूर्य देव की विधि-विधान से पूजा करने से ऊर्जा और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

इस बार पौष मास 27  दिसंबर 2024 से 25 जनवरी 2024 तक रहेगा।

किस तरह से करें सूर्य उपासना- 

प्रतिदिन स्नान करने के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें।
तांबे के पात्र से जल अर्घ्य करना चाहिए।
जल में रोली, लाल पुष्प और अक्षत डालना शुभ होता है।
अर्घ्य देते समय "ॐ आदित्याय नमः" का जाप करें। 
मान्यता है कि इस माह में नमक का सेवन कम से कम करना चाहिए।

पौष माह में क्या बरतें सावधानियां-

पौष माह में मेवे और मास-मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। चीनी की बजाए गुड का सेवन करना उत्तम होता है। इसके साथ ही अजवाइन, लौंग और अदरक का सेवन करना लाभकारी होता है। इसके अलावा पौष माह में तेल और घी का ज्यादा प्रयोग करना उत्तम नहीं होता है।

पौष माह की महत्वपूर्ण बात-

इस महीने में मध्य रात्रि की साधना लाभकारी मानी जाती है। इसके अलावा इस महीने में गर्म वस्त्रों का दान करना उत्तम माना गया है। इसके अलावा लाल और पीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।

खरमास के पीछे हैं यह किंवदंती

खर मास को खर मास क्यों कहा जाता है यह भी एक पौराणिक किंवदंती है। खर गधे को कहते हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने साथ घोड़ों के रथ में बैठकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करता है। और परिक्रमा के दौरान कहीं भी सूर्य को एक क्षण भी रुकने की इजाजत नहीं है। लेकिन सूर्य के सातों घोड़े सारे साल भर दौड़ लगाते-लगाते प्यास से तड़पने लगे। उनकी इस दयनीय स्थिति से निपटने के लिए सूर्य एक तालाब के निकट अपने सातों घोड़ों को पानी पिलाने हेतु रुकने लगे। लेकिन तभी उन्हें यह प्रतिज्ञा याद आई कि घोड़े बेशक प्यासे रह जाएं लेकिन यात्रा को विराम नहीं देना है, नहीं तो सौर मंडल में अनर्थ हो जाएगा। सूर्य भगवान ने चारों ओर देखा तत्काल ही सूर्य भगवान, पानी के कुंड के आगे खड़े दो गधों को अपने रथ पर जोत कर आगे बढ़ गए और अपने सातों घोड़े तब अपनी प्यास बुझाने के लिए खोल दिए गए।

अब स्थिति ये रही कि गधे यानी खर अपनी मन्द गति से पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे और सूर्य का तेज बहुत ही कमजोर होकर धरती पर प्रकट हुआ। शायद यही कारण है कि पूरे पौष मास के अन्तर्गत पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य देवता का प्रभाव क्षीण हो जाता है और कभी-कभार ही उनकी तप्त किरणें धरती पर पड़ती हैं।

नहीं बजेगी शहनाई
27 दिसंबर से पूरे 30 दिन के लिए शुभ कार्यों पर रोक लग जाएगी। ऐसा धनु की सूर्य के साथ संक्राति होने से बनने वाले खरमास के प्रारंभ होने के कारण होगा। इसकी वजह से शादी समारोह सहित अन्य शुभ कार्य प्रतिबंधित हो जाएंगे। खरमास के समय पृथ्वी से सूर्य की दूरी अधिक होती है। 
ये कार्य नहीं होंगे
-शादी समारोह, ग्रह प्रवेश, व्यापार महूर्त, देव पूजन, मुडंन संस्कार, जनेऊ संस्कार आदि।

मान्यता है कि
इस मास में हेमंत ऋतु होने से ठंड अधिक होती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस मास में भग नाम सूर्य की उपासना करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि पौष मास में भगवान भास्कर ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तपकर सर्दी से राहत देते हैं। इनका वर्ण रक्त के समान है। शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और इनसे युक्त को ही भगवान माना गया है। यही कारण है कि पौष मास का भग नामक सूर्य साक्षात परब्रह्म का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अध्र्य देने तथा उसके निमित्त व्रत करने का भी विशेष महत्व धर्मशास्त्रों में उल्लेखित है। आदित्य पुराण के अनुसार पौष माह के हर रविवार को तांबे के बर्तन में शुद्ध जल, लाल चंदन और लाल रंग के फूल डालकर सूर्य को अध्र्य देना चाहिए तथा विष्णवे नम: मंत्र का जप करना चाहिए। इस मास के प्रति रविवार को व्रत रखकर सूर्य को तिल-चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है।

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