21 से 27 दिसम्बर सिक्ख इतिहास में ही नही देश के इतिहास में बहुत बड़ी शहादत का दिन है।

21 से 27 दिसम्बर सिक्ख इतिहास में ही नही देश के इतिहास में बहुत बड़ी शहादत का दिन है।
22 दिसम्बर गुरु गोबिंद सिंह जी 40 सिक्ख फौजों के साथ चमकौर की गड़ी एक कच्चे किले में 10 लाख मुगल सैनिको से मुकाबला करते है एक एक सिक्ख 10 लाख मुगलिया फौजों पर भारी पड़ता है गुरु गोबिंद सिंह जी के बड़े बेटे जिनकी उम्र मात्र 17 वर्ष की है साहेबजादा अजित सिंह ने मुगल फौजों में भारी तबाही की सैकड़ो मुगलों को मौत के घाट उतारा। लेकिन 10 लाख मुगलिया फौजों के सामने साहेबजादा अजित सिंह शहीदी को प्राप्त करते है छोटे साहेबजादे जिनकी उम्र मात्र 14 वर्ष की है बड़े भाई की शहादत को देखते हुए पिता गुरु गोबिंद सिंह जी से युद्ध के मैदान में जाने की अनुमति मांगी एक पिता ने अपने हाथो से पुत्र को सजाकर युद्ध के मैदान में भेजा लाखो मुगलों पर भारी साहेबजादा जुझार सिंह ने युद्ध के मैदान में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए और लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए ... ।


अपने दोनों लाल शहादत पर पिता गुरु गोबिंद सिंह जी के यह वाक्य चरितार्थ हुए...
मेरा मुझमे कुछ नही जो कुछ है सो तेरा ।
तेरा तुझको सौप के क्या लागे है मेरा ।।
गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों छोटे बेटे साहेबजादा जोरावर सिंह साहेबजादा फ़तेह सिंह जिनकी उम्र 5 और 7 वर्ष की थी अपनी दादी माता गुजरी जी के साथ युद्ध के दौरान पिता गुरु गोबिंद सिंह जी से बिछड़ जाते है रसोइया गंगू ब्राह्मण की नमक हरामी की वजह से इनाम के लालच में सरहंद के नवाब वजीर खान के पास बंदी बना लिए जाते है दोनों छोटे छोटे मासूम बच्चो को इस्लाम कबूल करवाने तरह तरह की तकलीफे दी जाती है माता गुजरी जी और छोटे छोटे माता जी के पोतो को किले के ठंडे बुर्ज में कैद कर रखा जाता है दिसम्बर का महिना खून जमा देने वाली ठंड उस पर किले का वह ठंडा बुर्ज जहा सामान्य दिनों में कपकपा देने वाली ठंड पडती है दादी अपने पोतो को अपनी ममता की छाव में सुलाती है 27 दिसम्बर का वह दिन वजीर खान के दरबार में दोनों छोटे साहिबजादों को हाजिर करने का फरमान जारी होता है दादी अपने पोतो को सजा कर माथे पर कलगी लगाकर भेजती है ।
कचहरी में घुसते ही नवाब के समक्ष शीश झुकाना है। जो सिपाही साथ जा रहे थे वे पहले सर झुका कर खिड़की के द्वारा अन्दर दाखिल हुए। उनके पीछे साहबज़ादे थे। उन्होंने खिड़की में पहले पैर आगे किये और फिर सिर निकाला। थानेदार ने बच्चों को समझाया कि वे नवाब के दरबार में झुककर सलाम करें।किन्तु बच्चों ने इसके विपरीत उत्तर दिया और कहा: यह सिर हमने अपने पिता गुरू गोबिन्द सिंह के हवाले किया हुआ है, इसलिए इस को कहीं और झुकाने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता।
कचहरी में नवाब वज़ीर खान के साथ और भी बड़े बड़े दरबारी बैठे हुए थे। दरबार में प्रवेश करते ही जोरावर सिंह तथा फतेह सिंह दोनों भाईयों ने गर्ज कर जयकारा लगाया–
‘वाहिगुरू जी का खालसा, वाहिगुरू जी की फतेह’।
नवाब तथा दरबारी, बच्चों का साहस देखकर आश्चर्य में पड़ गये।मुगलिया फरमान बच्चो को सुनाया गया मुसलमान बनना स्वीकार नहीं करोगे तो कष्ट दे देकर मार दिये जाओगे और तुम्हारे शरीर के टुकड़े सड़कों पर लटका दिये जायेंगे ताकि भविष्य में कोई सिक्ख बनने का साहस ना कर सके।’’इस्लाम कबूल करने की, तो हमें सिक्खी जान से अधिक प्यारी है। दुनियाँ का कोई भी लालच व भय हमें सिक्खी से नहीं गिरा सकता। हम पिता गुरू गोबिन्द सिंह के शेर बच्चे हैं तथा शेरों की भाति किसी से नहीं डरते। हम इस्लाम मजहब कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे। तुमने जो करना हो, कर लेना।
हमारे दादा श्री गुरू तेग बहादुर साहिब ने शहीद होना तो स्वीकार कर लिया परन्तु धर्म से विचलित नहीं हुए। बच्चो की बाते सुनकर नवाबवजीर खान तिलमिला गया और छोटे छोटे बच्चो को नीव में चिनवाने का आदेश दिया दिल्ली के शाही जल्लाद साशल बेग व बाशल बेग ने जोरावर सिंघ व फतेह सिंह को किले की नींव में खड़ा करके उनके आसपास दीवार चिनवानी प्रारम्भ कर दी।बनते-बनते दीवार जब फतेह सिंघ के सिर के निकट आ गई तो जोरावर सिंघ दुःखी दिखने लगे। काज़ियों ने सोचा शायद वे घबरा गए हैं और अब धर्म परिवर्तन के लिए तैयार हो जायेंगे। उनसे दुःखी होने का कारण पूछा गया तो जोरावर बोले-
मृत्यु भय तो मुझे बिल्कुल नहीं। मैं तो सोचकर उदास हूँ कि मैं बड़ा हूं, फतेह सिंह छोटा हैं। दुनियाँ में मैं पहले आया था। इसलिए यहाँ से जाने का भी पहला अधिकार मेरा है। फतेह सिंह को धर्म पर बलिदान हो जाने का सुअवसर मुझ से पहले मिल रहा है।छोटे भाई फतेह सिंघ ने गुरूवाणी की पँक्ति कहकर दो वर्ष बड़े भाई को साँत्वना दी:
चिंता ताकि कीजिए, जो अनहोनी होइ ।।
इह मारगि सँसार में, नानक थिर नहि कोइ ।।
दोनों छोटे साहिबजादे धर्म की रक्षा के लिए शहीद हो गये खबर जब माता गुजरी जी तक पहुची तो उन्होंने भी अपने शरीर का त्याग कर दिया चारो साहिबजादों की शहादत के बाद भी गुरुगोबिंद सिंह जी विचलित नही हुए उनके मुख से यही वाक्य निकला-
देश-धर्म के वास्ते वार दिए सूत चार।
चार गये तो क्या हुआ जीवत कई हजार ।।
22 से 27 दिसम्बर यह देश के इतिहास में सबसे बड़ा शहीदी दिवस है परन्तु अफसोस यह देश ईद बकरीद मोहर्रम की तारीखे चाँद निकलने पर अवकाश घोषित करने इन्तजार करता रहता है क्रिसमस पर्व पर मैरी क्रिसमस की तैयारियों में पूरा देश हफ्तों सांताक्लोज बना फिरता है।
हम अपनी गुलामी को जो बरसों बरस मुगल और अंग्रेजी हुकुमत में जकड़े रहे और जिस गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने पिता गुरु तेगबहादुर जी चारो बेटे साहिबजादा अजित सिंह जुझार सिंह जोरावर सिंह फ़तेह जी सिंह जी को देश धर्म की रक्षा की खातिर न्योछावर कर दिया उन्हें याद करने का हमारे पास बिलकुल भी समय नही ..।
ये भारत वर्ष के इतिहास की महत्वपूर्ण व् यादगार घटना है कृपया इसका जिक्र अपने बच्चों से आज जरूर करें और अपने इतिहास को बताते हुए आगे भी शेयर करें ।
पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)
ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ

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