महामृत्युंजय मंत्र जाप विधि

महामृत्युंजय मंत्र जाप विधि 


कलियुग के देवता शिव और काल स्वयं शिव जी के अनुकूल है ,महामृत्युंजय मंत्र के विभिन्न स्वरूपों का उल्लेख हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथो में मिलता है। इन सबका अपना-अपना महत्व है। 
विशेष स्थिति में इनका विशेष प्रकार से अनुष्ठान किया जाता है।


महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं।जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। 

यहाँ हमने आपकी सुविधा के लिए संस्कृत में जप विधि, विभिन्न यंत्र-मंत्र, जप में सावधानियाँ, स्तोत्र आदि उपलब्ध कराए हैं।

महामृत्युंजयमन्त्रस्य जपविधि: –

कृतनित्यक्रियोपरान्तं जपकर्ता स्वासने पांगमुख उदहमुखो वा उपविश्य धृतरुद्राक्षभस्मत्रिपुण्ड्रः, आचम्य, प्राणानायाम्य, देशकालौ संकीर्त्य, मम वा यज्ञमानस्य अमुक कामनासिद्धयर्थं श्रीमहामृत्युंजय मंत्रस्य अमुक संख्यापरिमितं जपमहंकरिष्ये वा कारयिष्ये।
॥ इति प्रात्यहिकसंकल्पः॥


जप‍:
अथ महामृत्युंजय जपविधि:
संकल्प:
तत्र संध्योपासनादिनित्यकर्मानन्तरं भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च कृत्वा प्रतिज्ञासंकल्पं कुर्यात् -
ॐ तत्सदद्येत्यादि सर्वमुच्चार्य मासोत्तमे मासे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रो अमुकशर्मा/वर्मा/गुप्ता मम शरीरे ज्वरादि-रोगनिवृत्तिपूर्वकमायुरारोग्यलाभार्थं वा धनपुत्रयश सौख्यादिकिकामनासिद्धयर्थ श्रीमहामृत्युंजयदेव प्रीमिकामनया यथासंख्यापरिमितं महामृत्युंजयजपमहं करिष्ये।

विनियोग
अस्य श्री महामृत्युंजयमंत्रस्य वशिष्ठ ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः श्री त्र्यम्बकरुद्रो देवता, श्री बीजम्‌, ह्रीं शक्तिः, मम अनीष्ठनिवारणार्थं जपे विनियोगः।

अथ यष्यादिन्यासः
ॐ वसिष्ठऋषये नमः शिरसि।
अनुष्ठुछन्दसे नमो मुखे।
श्री त्र्यम्बकरुद्रदेवतायै नमो हृदि।
श्री बीजाय नमोगुह्ये।
ह्रीं शक्तये नमोः पादयोः।
॥ इति यष्यादिन्यासः ॥

अथ करन्यासः
ॐ ह्रीं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं ॐ नमो भगवते रुद्राय शूलपाणये स्वाहा अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ ह्रीं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः यजामहे ॐ नमो भगवते रुद्राय अमृतमूर्तये मां जीवय तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्‌ ओं नमो भगवते रुद्राय चन्द्रशिरसे जटिने स्वाहा मध्यामाभ्यां वषट्।
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः उर्वारुकमिव बन्धनात्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरान्तकाय हां ह्रीं अनामिकाभ्यां हुम्‌।
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मृत्योर्मुक्षीय ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजुः साममन्त्राय कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्।

ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मामृताम्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय अग्निवयाय ज्वल ज्वल मां रक्ष रक्ष अघारास्त्राय करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् ।
॥ इति करन्यासः ॥

अथांगन्यासः
ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं ॐ नमो भगवते रुद्राय शूलपाणये स्वाहा हृदयाय नमः।
ॐ ह्रौं ओं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः यजामहे ॐ नमो भगवते रुद्राय अमृतमूर्तये मां जीवय शिरसे स्वाहा।
ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय चंद्रशिरसे जटिने स्वाहा शिखायै वषट्।
ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः उर्वारुकमिव बन्धनात्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरांतकाय ह्रां ह्रां कवचाय हुम्‌।
ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मृत्योर्मुक्षीय ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजु साममंत्राय नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मामृतात्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय अग्नित्रयाय ज्वल ज्वल मां रक्ष रक्ष अघोरास्त्राय फट्।

मृत्युंजयध्यानम्‌
हस्ताभ्याँ कलशद्वयामृतसैराप्लावयन्तं शिरो,
द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहन्तं परम्‌।
अंकन्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलासकांतं शिवं,
स्वच्छाम्भोगतं नवेन्दुमुकुटाभातं त्रिनेत्रं भजे ॥
मृत्युंजय महादेव त्राहि मां शरणागतम्‌,
जन्ममृत्युजरारोगैः पीड़ित कर्मबन्धनैः ॥
तावकस्त्वद्गतप्राणस्त्वच्चित्तोऽहं सदा मृड,
इति विज्ञाप्य देवेशं जपेन्मृत्युंजय मनुम्‌ ॥

अथ बृहन्मन्त्रः # Maha Mrityunjay Mantra
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूः भुवः स्वः। त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌। स्वः भुवः भू ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ॥


विभिन्न प्रकार के महामृत्युंजय मंत्र 

एकाक्षरी मंत्र: हौं (वाक्सिद्धि हेतु)

त्रयक्षरी मंत्र: ऊँ जूं सः (ज्वरादि से मुक्ति हेतु)

चतुरक्षरी मंत्र: ऊँ वं जूं सः (संकट मुक्ति)

पंचाक्षरी मंत्र: ऊँ हौं जूं सः ऊँ (लघु मृत्युंजय मंत्र)

नवाक्षरी मंत्र: ऊँ जूं सः पालय-पालय (संकट निवारण)

दशाक्षरी मंत्र: ऊँ जूं सः मां पालय-पालय

वैदिक मंत्र: त्रयम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।

33 अक्षरात्मक मंत्र: ऊँ त्रयम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।

54 अक्षरात्मक: ऊँ हौं जूं सः ऊँ भूर्भुवः स्वः ऊँ त्र्ैयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ऊँ स्वः भुवः भूः ऊँ सः जूं हौं ऊँ।

62 अक्षरात्मक: ऊँ हौं ऊँ जूं ऊँ सः ऊँ भूः ऊँ भुवः ऊँ स्वः ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ऊँ स्वः ऊँ भुवः ऊँ भूः ऊँ सः ऊँ जूं ऊँ हौं ऊँ ।। (रोग निवारण हेतु)

शुक्र उपासित: ऊँ हौं जूं सः ऊँ भूर्भुवः स्वः ऊँ तत्सवितुर्वरेण्यं त्रयम्बकं यजामहे भर्गो देवस्य धीमहि सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् धियो यो नः प्रचोदयात् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् स्वः भुवः भूः ऊँ सः जूं हौं ऊँ।। (स्वास्थ्य लाभ हेतु)

मंत्र प्रयोग
जब रोगी अत्यंत कष्ट की स्थिति में हो, रोग व अशक्ति के कारण मानसिक चिंता बढ़ रही हो, वैद्य एवं डाक्टरों का कोई एक निर्णय नहीं हो रहा हो तथा स्वयं रोगी और उसके परिवार के लोग किसी एक निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहे हों, तो महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए।

किसी भी ग्रह के बुरे प्रभाव से मुक्ति के लिए, मुख्यतः शनि व राहु के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए, जादू टोने के असर को समाप्त करने के लिए शत्रु प्रदत्त पीड़ा का हनन करने के लिए, दुर्घटना से बचाव के लिए व मरणासन्न स्थिति में मोक्ष के लिए इस मंत्र का जप करना चाहिए। 

शास्त्रोक्त विधान के अनुसार महामृत्युंजय मंत्रों का सवा लाख की संख्या में जप किया जाता है। परंतु जप की सूक्ष्म विधि का भी विधान है जिसमें जातक महामृत्युंजय मंत्र का दशांश जप भी कर या करा सकते हैं।

ऐसा करने से भी जप का फल मिलता है। महामृत्यंुजय मंत्र का जप किसी शिवालय में, घर में, शिव या विष्णु के सिद्ध स्थल पर अथवा किसी द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिर में करना या कराना चाहिए। यह अनुष्ठान प्रतिवर्ष किसी सोमवार को, जन्मदिवस पर किसी सिद्ध मुहूर्Ÿा जैसे महाशिव रात्रि, नाग पंचमी या श्रावण मास में भी करा सकते हैं।

जब रोगी अत्यंत संकट की स्थिति में हो, तब कालों के काल महाकाल सहायक बनते हैं। ऐसी स्थिति में रुद्राभिषेक कराने का विशेष महत्व है। 
अभिषेक जल, पंचामृत अथवा गोदुग्ध से करना चाहिए। अत्यंत उष्ण ज्वर, मोतीझरा आदि बीमारियों में मट्ठे से अभिषेक किया जाता है।

शत्रु द्वारा कोई अभिचार किया गया प्रतीत हो तो सरसों के तेल से अभिषेक करना चाहिए। आम, गन्ने, मौसमी, संतरे, नारियल आदि विभिन्न फलों के रसों के मिश्रण से अथवा अलग-अलग रस से भी अभिषेक का विधान है। 
ऐसे अभिषेक से भगवान शिव प्रसन्न होकर सुख शांति प्रदान करते हैं। अभिषेक के पश्चात महामृत्युंजय मंत्र का उक्त संख्या में जप और हवन करवाएं। महामृत्युंजय हवन में विभिन्न प्रकार के हवनीय द्रव्यों का भी प्रयोग बताया गया है।

अच्छे स्वास्थ्य के लिए कच्चे दूध के साथ गिलोय की आहुति मंत्रोच्चार के साथ दी जाती है। इसके बाद दूब, बरगद के पŸो अथवा जटा, जपापुष्प, कनेर के पुष्प, बिल्व पत्र, ढाक की समिधा, काली अपराजिता के पुष्प आदि के साथ घी मिलाकर दशांश हवन करें तो रोग से शीघ्र ही मुक्ति और मृत्यु का निवारण होता है। इसी प्रकार मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए द्रोण और कनेर पुष्पों का हवन उत्तम फलदायी होता है। इसी तरह क्रूर ग्रहों की शांति के लिए जन्मदिन पर मृत्युंजय मंत्र का जप करते हुए घी, दूध और शहद में दूर्वा मिलाकर हवन करना अति उŸाम होता है। महामृत्युंजय मंत्र की सिद्धि के लिए जायफल से हवन करना उत्तम माना गया है।

सामग्री
महामृत्युंजय की पूजा-अर्चना का पूर्ण फल दीर्घकाल तक प्राप्त करने के लिए पारद शिव परिवार, महामृत्युंजय यंत्र, रुद्राक्ष माला, एकाक्षी नारियल, एक मुखी रुद्राक्ष, कौड़ी तथा महामृत्युंजय लाॅकेट का विशेष महत्व है। जातक को इस अनुष्ठान में प्रतिष्ठित पारद शिव परिवार को प्रतिदिन जल चढ़ाना चाहिए तथा यंत्र को स्नान कराकर चंदन का तिलक लगाना चाहिए। एकाक्षी नारियल व कौड़ी को प्रतिदिन धूप दीप दिखाना चाहिए। प्रतिष्ठित एक मुखी रुद्राक्ष, माला व लाॅकेट गले में धारण करें। रुद्राक्ष माला पर महामृत्युंजय मंत्र का प्रतिदिन एक माला जप करें। इस प्रकार मंत्र के जप का फल जातक को सदा मिलता रहेगा।


महामृत्युंजय मंत्र जाप में सावधानियाँ -

महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। किन्तु इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियाँ रखना चाहिए जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहे।
अतः जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
१. जो भी मंत्र जपना हो उसका उच्चारण शुद्धता से करें।
२. एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
३. मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
४. जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।
५. रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
६. माला को गोमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गोमुखी से बाहर न निकालें।
७. जप काल में शिवजी की प्रतिमा, चित्र, मूर्ति शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।
८. महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।
९. जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।
१०. महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की ओ मुख करके ही करें।
११. जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।
१२. जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधरन भटकाएँ।
१३. जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
१४. मिथ्या बातें न करें।
१५. जपकाल में स्त्री सेवन न करें।
१६. जपकाल में मांसाहार त्याग दें।

कब करें महामृत्युंजय मंत्र जाप?

महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्य की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते समय इस मंत्र का जप करने से आरोग्यलाभ होता है।
दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएँ दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।

पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ

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