छठ पूजन 2023 :-पंडित कौशल पांडेय

छठ पूजन (सूर्य उपासना का महापर्व)  पंडित कौशल पांडेय 

इस वर्ष छठ पूजा का आरंभ  17 नवंबर 2023  से 20 नवंबर 2023  तक मनाया जायेगा , छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। 
छठ पर्व दिवाली के छठे दिन मनाया जाता है इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते।  
इस चार दिवसिए व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल सष्ठी की होती है। यह पर्व  कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष  की षष्ठी को मनाया जाता है ,



छठ पूजा का पर्व  सूर्यदेव  की आराधना का पर्व है, प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है. सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है, सुख-स्मृद्धि तथा मनोकामनाओं की पूर्ति का यह त्यौहार सभी समान रूप से मनाते हैं. 
प्राचीन धार्मिक संदर्भ में यदि इस पर दृष्टि डालें तो पाएंगे कि छठ पूजा का आरंभ महाभारत काल के समय से देखा जा सकता है. छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना कि जाती है तथा गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर यह पूजा संपन्न कि जाती है.

छठ पूजा 2023
छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय 17 नवंबर, दिन शुक्रवार
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना (लोहंडा) 18 नवंबर, दिन शनिवार
छठ पूजा का तीसरा दिन छठ पूजा, संध्या अर्घ्य 19 नवंबर, दिन रविवार
छठ पूजा का चौथा दिन उगते सूर्य को अर्घ्य, पारण 20 नवंबर, दिन सोमवार

छठ पूजन  कैसे करे :-
छठ पूजन का पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाइ कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।

छठ पूजन का दूसरा  दिन
लोहंडा और खरना  के रूप में  कार्तिक शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है  पंचमी को दिनभर खरना का व्रत रखने वाले व्रती शाम के समय गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन प्रसाद रूप में करते हैं.

छठ पूजन का तीसरा  दिन संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।
शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है।

छठ पूजन का चौथा  दिन सायंकाल  अर्घ्य
छठ पूजन के चौथे  दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। ब्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।
छठ पूजा का आयोजन मुख्य रूप से बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग  जहाँ भी रहते है बड़े ही धूम धाम से देश के कोने-कोने में सूर्य उपासना करते देखे जा सकते है ,विदेशों में रहने वाले लोग भी इस पर्व को बहुत धूम धाम से मनाते हैं. 

मान्यता अनुसार सूर्य देव और छठी मइया भाई-बहन है, छठ व्रत नियम तथा निष्ठा से किया जाता है  भक्ति-भाव से किए गए इस व्रत द्वारा नि:संतान को संतान सुख प्राप्त होता है. इसे करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है. छठ के दौरान लोग सूर्य देव की पूजा करतें हैं , इसके लिए जल में खड़े होकर कमर तक पानी में डूबे लोग, दीप प्रज्ज्वलित किए नाना प्रसाद से पूरित सूप उगते और डूबते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और छठी मैया के गीत गाए जाते हैं.

छठ पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्री 
दौरी या डलिया,सूप – पीतल या बांस का,नींबू,नारियल (पानी सहित),पान का पत्ता,गन्ना पत्तो के साथ,शहद
सुपारी,सिंदूर,कपूर,शुद्ध घी,कुमकुम,शकरकंद / गंजी,हल्दी और अदरक का पौधा,नाशपाती व अन्य उपलब्ध फल
अक्षत (चावल के टुकड़े),खजूर या ठेकुआ,चन्दन,मिठाई,इत्यादि

छठ पूजा का इतिहास 
छठ पूजा हिन्दू धर्म में बहुत महत्व रखती है और ऐसी धारणा है कि राजा (कौन से राजा) द्वारा पुराने पुरोहितों से आने और भगवान सूर्य की परंपरागत पूजा करने के लिये अनुरोध किया गया था। उन्होनें प्राचीन ऋगवेद से मंत्रों और स्त्रोतों का पाठ करके सूर्य भगवान की पूजा की। प्राचीन छठ पूजा हस्तिनापुर (नई दिल्ली) के पांडवों और द्रौपदी के द्वारा अपनी समस्याओं को हल करने और अपने राज्य को वापस पाने के लिये की गयी थी।
ये भी माना जाता है कि छठ पूजा सूर्य पुत्र कर्ण के द्वारा शुरु की गयी थी। वो महाभारत युद्ध के दौरान महान योद्धा था और अंगदेश (बिहार का मुंगेर जिला) का शासक था।

छठ पूजा के दिन छठी मैया (भगवान सूर्य की पत्नी) की भी पूजा की जाती है, छठी मैया को वेदों में ऊषा के नाम से भी जाना जाता है। ऊषा का अर्थ है सुबह (दिन की पहली किरण)। लोग अपनी परेशानियों को दूर करने के साथ ही साथ मोक्ष या मुक्ति पाने के लिए छठी मैया से प्रार्थना करते हैं।
छठ पूजा मनाने के पीछे दूसरी ऐतिहासिक कथा भगवान राम की है। यह माना जाता है कि 14 वर्ष के वनवास के बाद जब भगवान राम और माता सीता ने अयोध्या वापस आकर राज्यभिषेक के दौरान उपवास रखकर कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में भगवान सूर्य की पूजा की थी। उसी समय से, छठ पूजा हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण और परंपरागत त्यौहार बन गया और लोगों ने उसी तिथि को हर साल मनाना शुरु कर दिया।

छठ पूजा कथा 
बहुत समय पहले, एक राजा था जिसका नाम प्रियब्रत था और उसकी पत्नी मालिनी थी। वे बहुत खुशी से रहते थे किन्तु इनके जीवन में एक बहुत बचा दुःख था कि इनके कोई संतान नहीं थी। उन्होंने महर्षि कश्यप की मदद से सन्तान प्राप्ति के आशीर्वाद के लिये बहुत बडा यज्ञ करने का निश्चय किया। यज्ञ के प्रभाव के कारण उनकी पत्नी गर्भवती हो गयी। किन्तु 9 महीने के बाद उन्होंने मरे हुये बच्चे को जन्म दिया। राजा बहुत दुखी हुआ और उसने आत्महत्या करने का निश्चय किया।

अचानक आत्महत्या करने के दौरान उसके सामने एक देवी प्रकट हुयी। देवी ने कहा, मैं देवी छठी हूँ और जो भी कोई मेरी पूजा शुद्ध मन और आत्मा से करता है वह सन्तान अवश्य प्राप्त करता है। राजा प्रियब्रत ने वैसा ही किया और उसे देवी के आशीर्वाद स्वरुप सुन्दर और प्यारी संतान की प्राप्ति हुई। तभी से लोगों ने छठ पूजा को मनाना शुरु कर दिया।

छठ पूजा का महत्व 
छठ पूजा का सूर्योदय और सूर्यास्त के दौरान एक विशेष महत्व है। सूर्योदय और सूर्यास्त का समय दिन का सबसे महत्वपूर्ण समय है जिसके दौरान एक मानव शरीर को सुरक्षित रूप से बिना किसी नुकसान के सौर ऊर्जा प्राप्त हो सकती हैं। यही कारण है कि छठ महोत्सव में सूर्य को संध्या अर्घ्य और विहानिया अर्घ्य देने का एक मिथक है। इस अवधि के दौरान सौर ऊर्जा में पराबैंगनी विकिरण का स्तर कम होता है तो यह मानव शरीर के लिए सुरक्षित है। लोग पृथ्वी पर जीवन को जारी रखने के साथ-साथ आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भगवान सूर्य का शुक्रिया अदा करने के लिये छठ पूजा करते हैं।

छठ पूजा का अनुष्ठान, (शरीर और मन शुद्धिकरण द्वारा) मानसिक शांति प्रदान करता है, ऊर्जा का स्तर और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, जलन क्रोध की आवृत्ति, साथ ही नकारात्मक भावनाओं को बहुत कम कर देता है। यह भी माना जाता है कि छठ पूजा प्रक्रिया के उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने में मदद करता है। इस तरह की मान्यताऍ और रीति-रिवाज छठ अनुष्ठान को हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार बनाते हैं।

छठ पूजा में अर्घ्य देने का वैज्ञानिक महत्व
सूरज की किरणों से शरीर को विटामिन डी मिलता है। इसीलिए सदियों से सूर्य नमस्कार को बहुत लाभकारी बताया गया है। वहीं, प्रिज्म के सिद्धांत के मुताबिक सुबह की सूरज की रोशनी से मिलने वाले विटामिन डी से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है और स्किन से जुड़ी सभी परेशानियां खत्म हो जाती हैं।

छठ पूजा के लाभ 
यह शरीर और मन के शुद्धिकरण का तरीका है जो जैव रासायनिक परिवर्तन का नेतृत्व करता है।
शुद्धिकरण के द्वारा प्राणों के प्रभाव को नियंत्रित करने के साथ ही अधिक ऊर्जावान होना संभव है।
यह त्वचा की रुपरेखा में सुधार करता है, बेहतर दृष्टि विकसित करता है और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है।
छठ पूजा के भक्त शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में सुधार कर सकते हैं।
विभिन्न प्रकार के त्वचा सम्बन्धी रोगो को सुरक्षित सूरज की किरणों के माध्यम से ठीक किया जा सकता है।
यह श्वेत रक्त कणिकाओं की कार्यप्रणाली में सुधार करके रक्त की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है।
सौर ऊर्जा हार्मोन के स्राव को नियंत्रित करने की शक्ति प्रदान करती है।
रोज सूर्य ध्यान शरीर और मन को आराम देता है। प्राणायाम, योगा और ध्यान क्रिया भी शरीर और मन को नियंत्रित करने के तरीके है।

छठ या सूर्यषष्ठी व्रत में किन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है?
इस व्रत में सूर्यदेव और छठ मैया दोनों की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ मैया संतानों की रक्षा करती है और उनको लंबी उम्र देती है। छठ पूजा पर सूर्यदेव के साथ-साथ उनकी पत्नी उषा और प्रत्युषा को भी अर्घ्य देकर प्रसन्न किया जाता है। 

छठ मैया कौन-सी देवी होती हैं?
सृष्टि की अधिष्ठाेत्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी‍ है। पुराणों में पष्ठी देवी का एक नाम कात्यायनी भी है। इनकी पूजा नवरात्र में षष्ठी को होती है। षष्ठी देवी को ही छठ मैया कहा गया है, छठ मैया नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं और उनको दीर्घायु बनाती है।

छठ पूजा मनाने की कैसे हुई शुरूआत?
प्राचीन समय में एक राजा थे। उनका नाम राजा प्रियव्रत था। राजा की कोई संतान नहीं थी। इसके कारण वह बेहद दुखी और चिंतित रहते थे। फिर एक दिन राजा की महर्षि कश्यप से भेंट हुई. राजा ने अपना सारा दुख महर्षि कश्यरप को बताया। महर्षि कश्यप ने राजा को पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराने को कहा। राजा ने यज्ञ कराया, जिसकी बाद उनकी महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया।

लेकिन दुर्भाग्य से शिशु मरा पैदा हुआ था। राजा को जब यह अशुभ समाचार मिला तो वह बहुत ही दुखी हुआ। तभी राजा के सामने अचानक एक देवी प्रकट हुई। देवी ने राजा के पुत्र को जीवित कर दिया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसने षष्ठी देवी की स्तुति की। तभी से छठ पूजा मनाई जाती है.

नदी और तालाब किनारे ही क्यों की जाती है यह पूजा?
मान्यताओं के अनुसार, छठ पर्व पर सूर्यदेव को जल का अर्घ्य  देने का विधान है। इस पर्व पर सूर्य को अर्घ्यज देने और स्नान करने का विशेष महत्व है। इसलिए यह पूजा साफ सुथरी नदी या तालाब के किनारे की जाती है।

ज्यादातर महिलाएं ही छठ पूजा में बढ़-चढ़कर हिस्सा क्यों लेती हैं?
महिलाएं हमेशा अनेक कष्ट सहकर भी परिवार के लिए मजबूती से खड़ी रहती हैं। महिलाओं को त्याग और तप की भावना से जोड़कर देखा जाता है। साथ ही महिलाएं अपनी संतान से बेहद प्यार करती है। यही वजह है कि वह छठ मैया से संतान के स्वास्थ्य और उनके दीर्घायु होने की पूजा में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं।

क्या यह पूजा किसी भी धर्म या जाति के लोग कर सकते हैं?
सूर्यदेव सभी के ईष्ट होते हैं। वह सभी प्राणियों को समान नजर से देखते हैं। छठ पूजा में किसी जाति या धर्म का कोई भेद नहीं होता है। इस पावन पर्व हर जाति-धर्म के लोग मना सकते हैं।


पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ

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