*देवदीपावली कार्तिक पूर्णिमा महात्मय*
27 नवम्बर 2023 सोमवार
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कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। इसलिए इस दिन देवता अपनी प्रसन्नता को दर्शाने के लिए गंगा घाट पर आकर दीपक जलाते हैं। इसी कारण से इस दिन को देव दीपावली के रूप मनाया जाता है।
इस वर्ष देव दीपावली 26- नवम्बर 2023 को मनाई जाएगी।
श्रद्धालु भक्तगण 26-27 नवम्बर के दिन गंगाघाट एवं अन्य धार्मिक स्थलों पर कार्तिक स्नान पूर्ण करेंगे। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन कृतिका नक्षत्र में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है।
मान्यता यह भी है कि इस दिन पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में वृषदान यानी बछड़ा दान करने से शिवपद की प्राप्ति होती है जो व्यक्ति इस दिन उपवास करके भगवान भोलेनाथ का भजन और गुणगान करता है उसे अग्निष्टोम नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है इस पूर्णिमा को शैव मत में जितनी मान्यता मिली है उतनी ही वैष्णव मत में भी।
वैष्णव मत में इस कार्तिक पूर्णिमा को बहुत अधिक मान्यता मिली है क्योंकि इस दिन ही भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार (मतान्तर से चैत्र शुक्ल तृतीया भी) धारण किया था इस पूर्णिमा को महाकार्तिकी भी कहा गया है यदि इस पूर्णिमा के दिन भरणी नक्षत्र हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है अगर रोहिणी नक्षत्र हो तो इस पूर्णिमा का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और बृहस्पति हों तो यह महापूर्णिमा कहलाती है कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो “पद्मक योग” बनता है जिसमें गंगा स्नान करने से पुष्कर से भी अधिक उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा देव दिपावली की एक और मान्याता भी है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु चर्तुमास की निद्रा से जागते हैं और चतुर्दशी के दिन भगवान शिव और सभी देवी देवता काशी में आकर दीप जलाते हैं। इसी कारण से काशी में इस दिन दीपदान का अधिक महत्त्व माना गया है।
देवदीपावली कार्तिक पूर्णिमा विधि विधान
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कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है अन्न, धन एव वस्त्र दान का बहुत महत्व बताया गया है इस दिन जो भी आप दान करते हैं उसका आपको कई गुणा लाभ मिलता है मान्यता यह भी है कि आप जो कुछ इस दिन दान करते हैं वह आपके लिए स्वर्ग में सरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में आपको प्राप्त होता है।
शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पुर्णिमा के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है महर्षि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए इस दिन स्नान करते समय पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें, इसी प्रकार दान देते समय हाथ में जल लेकर दान करें आप यज्ञ और जप कर रहे हैं तो पहले संख्या का संकल्प कर लें फिर जप और यज्ञादि कर्म करें।
कार्तिक पूर्णिमा का दिन सिख सम्प्रदाय के लोगों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था सिख सम्प्रदाय को मानने वाले सुबह स्नान कर गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताये रास्ते पर चलने की सौगंध लेते है।
कार्तिक पूर्णिमा की कथा
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पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था। उसके तीन पुत्र थे - तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए। तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्मजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।
तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।
तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।
इस दिव्य रथ की हर एक चीज़ देवताओं से बनीं। चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने। इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चाल घोड़े बनें। हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बनें। भगवान शिव खुद बाण बनें और बाण की नोक बने अग्निदेव। इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव। भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया। इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा।
कार्तिक पूर्णिमा और कपाल मोचन तीर्थ का संबंध
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कपाल मोचन, भारत के पवित्र स्थलों में से एक है। हरियाणा प्रान्त के यमुनानगर ज़िले में स्थित इस तीर्थ के बारे में मान्यता है कि कपाल मोचन स्थित सोम सरोवर में स्नान करने से भगवान शिव ब्रह्मादोष से मुक्त हुए थे। वहीं इस मेले को लेकर यहऐसी मिथ्या भी बनी हुई है कि कोई भी विधायक या फिर मंत्री कपालमोचन में मेले के दौरान आता है तो वह दोबारा चुनाव में नहीं जीतता और न ही सत्ता में आता है। डुबकी लगाकर भगवान शिव हुए थे श्राप मुक्त स्कंद महापुराण के अनुसार कलयुग के प्रभाव से ब्रह्मा अपनी पुत्री सरस्वती के प्रति मन में बुरे विचार रखने लगे। इससे बचने के लिए सरस्वती ने द्वैतवन में भगवान शंकर से शरण मांगी। सरस्वती की रक्षा के लिए भगवान शंकर ने ब्रह्मा का सिर काट दिया, जिससे उन्हें ब्रह्मा हत्या का पाप लगा। इससे शंकर भगवान के हाथ में ब्रह्मा कपाली का निशान बन गया। सब तीर्थों में स्नान और दान करने के बाद भी वह ब्रह्मा कपाली का चिन्ह दूर नहीं हुआ। घूमते-घूमते भोलेनाथ पार्वती सहित सोमसर (कपाल मोचन) तालाब के निकट देव शर्मा नामक एक ब्राह्मण के घर ठहरे। किवदंती के अनुसार रात के समय ब्राह्मण देव शर्मा के आश्रम में गाय का बछड़ा गौ माता से बात कर रहा था कि सुबह ब्राह्मण उसे बधिया करेगा। इससे क्रोधित बछड़े ने कहा कि वह ब्राह्मण की हत्या कर देगा। इस पर गौ माता ने बछड़े को ऐसा करने से मना कर दिया, क्योंकि बछड़े को ब्रह्मा हत्या का पाप लग जाता। इस पर बछड़े ने गौ माता को ब्रह्मा हत्या दोष से छुटकारा पाने का उपाय बताया। दोष मुक्त होने के उपाय मां पार्वती ने भी सुने। दूसरे ही दिन सुबह होने पर ब्राह्मण ने बछड़े को बधिया करने का कार्य शुरू किया और बछड़े ने ब्राह्मण की हत्या कर दी, जिससे उसे ब्रह्मा हत्या का पाप लग गया। बछड़े और गाय का रंग काला हो गया। इससे गौ माता बहुत दुखी हुई। इस पर बछड़े ने गौ माता को अपने पीछे आने को कहा और दोनों सोमसर तालाब में स्नान किया, जिससे उनका रंग पुन: सफेद हो गया। इस प्रकार वे ब्रह्म दोष से मुक्त हो गए। इस सारे दृश्य को देखने के बाद मां पार्वती के कहने पर भगवान शंकर ने सरोवर में स्नान किया। इससे उनका बह्मा कपाली दोष दूर हो गया। इसलिए सोम सरोवर के इस क्षेत्र का नाम कपाल मोचन हो गया।
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