देव दीपावली 27 नवंबर 2023

देव दीपावली  27 नवंबर 2023
देवदीपावली कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार है जो यह उत्तर प्रदेश के वाराणसी मे मनाया जाता है। यह विश्व के सबसे प्राचीन शहर काशी की संस्कृति एवं परम्परा है। यह दीपावली के पंद्रह दिन बाद मनाया जाता है।

DEV DEEWALI 2022



कार्तिक पूर्णिमा
पूर्णिमा तिथि 26 नवंबर 2023 को 15:55 बजे शुरू होगी और 
27 नवंबर को 14:47 बजे समाप्त होगी।


‘‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’’: ‘‘हे ईश्वर! हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाओ।’’ 
‘‘दीपदान’’ एक ऐसा दान है जिसके करने से मनुष्य को इस लोक में अत्यंत तेजोमय शरीर की प्राप्ति होती है तथा मृत्यु के बाद सूर्य लोक की प्राप्ति होती है। 

कार्तिक महात्म के अनुसार यह महीना भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय है ,कार्तिक स्नान की पुराणों में बड़ी महिमा कही गई है। कार्तिक मास में गंगा स्नान, व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। ‘स्कंदपुराण’ के अनुसार कार्तिक मास में किया गया स्नान व व्रत भगवान विष्णु की पूजा के समान कहा गया है। कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागृत हो जाते है और आज के दिन ही तुलसी विवाह के साथ सनातन धर्म में विवाह प्रारम्भ हो जाता है और पूर्णिमा को गंगा स्नान किया जाता है साथ ही भक्तों के लिए यह दिन इसलिए अहम है क्योंकि इस दिन संध्याकाल में भगवान विष्णु का प्रथम अवतार मत्स्यावतार हुआ था।
 
 
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
साल में करीब 16 अमावस्या पड़ती हैं लेकिन साल की सबसे काली और लंबी अमावस्या की रात कार्तिक महीने की अमावस्या यानी दीपावली के दिन मनाई जाती है और इसके 15 दिन बाद कार्तिक मास की पूर्णिमा पड़ती है । ऐसी मान्यता है कि यह संसार में फैले अंधेरे का सर्वनाश करती है।
 
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन ईश्वर की आराधना करने से मनुष्य के अंदर छिपी सभी तामसिक प्रवृत्तियों का नाश होता है। इस तिथि को ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य आदि का दिन भी माना जाता है। इस दिन किए जाने वाले स्नान, दान, हवन, यज्ञ व उपासना का अनंत फल प्राप्त होता है।
 
 
कार्तिक मास में स्नान किस प्रकार किया जाए, इसका वर्णन शास्त्रों में इस प्रकार लिखा है-
तिलामलकचूर्णेन गृही स्नानं समाचरेत्।विधवास्त्रीयतीनां तु तुलसीमूलमृत्सया।।
सप्तमी दर्शनवमी द्वितीया दशमीषु च।त्रयोदश्यां न च स्नायाद्धात्रीफलतिलैं सह।।

अर्थात कार्तिक व्रती को सर्वप्रथम गंगा, विष्णु, शिव तथा सूर्य का स्मरण कर नदी, तालाब या पोखर के जल में प्रवेश करना चाहिए। उसके बाद नाभिपर्यन्त जल में खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। गृहस्थ व्यक्ति को काला तिल तथा आँवले का चूर्ण लगाकर स्नान करना चाहिए, परंतु विधवा तथा सन्न्यासियों को तुलसी के पौधे की जड़ में लगी मृत्तिका (मिट्टी) को लगाकर स्नान करना चाहिए।
सप्तमी, अमावस्या, नवमी, द्वितीया, दशमी व त्रयोदशी को तिल एवं आंवले का प्रयोग वर्जित है। इसके बाद व्रती को जल से निकल कर शुद्ध वस्त्र धारण कर विधि-विधानपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। कार्तिक मास में स्नान व व्रत करने वाले को तेल नहीं लगाना चाहिए।
 
क्यों किया जाता है कार्तिक मास में व्रत
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार जो भक्त जन संकल्पपूर्वक पूरे कार्तिक मास में सूर्योदय से पहले स्नान करके नदी , जलाशय , तुलसी या मंदिर में दीपदान करते हैं, उन्हें विष्णु लोक में स्थान मिलता है। कार्तिक मास को शास्त्रों में पुण्यफल देने वाला महीना कहा गया है। पुराणों के अनुसार जो फल सामान्य दिनों में एक हजार बार गंगा नदी में स्नान का होता है तथा प्रयाग में कुंभ के दौरान गंगा स्नान का फल होता है, वही फल कार्तिक माह में सूर्योदय से पूर्व किसी भी नदी में स्नान करने मात्र से प्राप्त हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास स्नान की शुरुआत शरद पूर्णिमा से होती है और इसका समापन कार्तिक पूर्णिमा को होता है।
 
 
‘पद्मपुराण’ के अनुसार जो व्यक्ति कार्तिक मास में नियमित रूप से सूर्योदय से पूर्व स्नान करके धूप-दीप सहित भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वह विष्णु के प्रिय होते हैं। पद्मपुराण की कथा के अनुसार कार्तिक स्नान और पूजा के पुण्य से ही सत्यभामा को भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति इस माह में स्नान, दान तथा व्रत करते हैं, उनके पापों का अन्त हो जाता है। इस माह के महत्व के बारे में ‘स्कन्दपुराण, ‘नारदपुराण’, ‘पद्मपुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन किए गए गंगा स्नान का फल, एक सहस्र बार किए गंगा स्नान के समान, सौ बार माघ स्नान के समान है।
 
कार्तिक पूर्णिमा को महापुनीत पर्व कहा है। इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्र में स्थित हो और सूर्य विशाखा नक्षत्र में स्थित हो, तब ‘पद्मयोग’ बनता है। इस योग का अपना विशेष महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन चंद्र भरणी नक्षत्र और सूर्य देव विशाखा नक्षत्र में होने से यह दिन और भी शुभ हो गया है , अतः सभी सनातन धर्म प्रेमियों को आज के दिन गंगा स्नान अवश्य करना चाहिए , जो लोग गंगा नदी में स्नान करने नहीं जा सकते ऐसे लोग घर में ही बाल्टी में सबसे पहले गंगा जल , आवला और तुलसी दल को पानी में मिलाकर गंगा स्नान का पुण्यफल प्राप्त कर सकते है।

कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली के पावन पर्व की समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। मैं कामना करता हूँ कि यह पवित्र पर्व आप सब के जीवन को सुख, समृद्धि एवं शांति से भर दे।
पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ

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