शरद पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण का साया

#शरद_पूर्णिमा :- पंडित कौशल पाण्डेय 9968550003
अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। आइये जानते हैं शरद पूर्णिमा का महत्व व व्रत पूजा विधि के बारे में 
शरद पूर्णिमा :- 28 अक्टूबर 2023-  कोजागर पूजा
शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है.

🌙⚫ चंद्र - ग्रहण 🌙⚫ 
 28 अक्टूबर 2023 शनिवार

चंद्रग्रहण सिर्फ और सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण घटना है। साल का अंतिम चंद्रग्रहण शरद पूर्णिमा के दिन लगने जा रहा है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण रहता है ऐसे में इस दिन ग्रहण लगना बेहद महत्वपूर्ण रहने वाला है। इस साल का अंतिम चंद्रग्रहण मेष राशि में लगने जा रहा है। ग्रहण का असर सभी राशियों पर दिखाई देने वाला है।

▪️चंद्र-ग्रहण का समय-: 
चंद्रग्रहण 28 अक्टूबर 2023, शनिवार देर रात 1 बजकर 5 मिनट से लेकर 2 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। यानी यह ग्रहण 1 घंटा 18 मिनट का रहेगा। इस चंद्र ग्रहण का सूतक काल भारत में मान्य होगा।

▪️ग्रहण सूतक काल समय-: 
चंद्रग्रहण का सूतक काल ग्रहण के 9 घंटे पूर्व से शुरु हो जाता है अतः भारतीय समय अनुसार, चंद्रग्रहण का सूतक शाम में 4 बजकर 5 मिनट पर आरंभ हो जाएगा। इस ग्रहण में चंद्रबिम्ब दक्षिण की तरफ से ग्रस्त होगा।

▪️देश और दुनिया में कहां- कहां दिखाई देगा ग्रहण-: 
चंद्रग्रहण भारत, ऑस्ट्रेलिया, संपूर्ण एशिया, यूरोप, अफ्रीका, दक्षिणी-पूर्वी अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, कैनेडा, ब्राजील , एटलांटिक महासागर में यह ग्रहण दिखाई देगा। भारत में यह ग्रहण शुरुआत से अंत तक दिखाई देगा।

▪️सूतक काल में न करें ये काम-: 

चंद्रग्रहण का सूतक शाम में 4 बजकर 5 मिनट पर प्रारंभ हो जाएगा। इस दौरान आपको किसी प्रकार का मांगलिक कार्य, स्नान, हवन और भगवान की मूर्ति का स्पर्श नहीं करना चाहिए। इस समय आप अपने गुरु मंत्र, भगवान नाम जप, श्रीहनुमान चालीसा कर सकते हैं।

 चंद्र ग्रहण- सूतक काल के दौरान भोजन बनाना व भोजन करना भी उचित नहीं है। हालांकि, सूतक काल में गर्भवती स्त्री, बच्चे, वृद्ध जन भोजन कर सकते हैं। ऐसा करने से उन्हें दोष नहीं लगेगा। ध्यान रखें की सूतक काल आरंभ होने से पहले खाने पीने की चीजों में तुलसी के पत्ते डाल दें। इसके अलावा आप इसमें कुश भी डाल सकते हैं।

▪️चंद्र ग्रहण पुण्य काल-:
 चंद्र, ग्रहण से मुक्त होने के बाद स्नान- दान- पुण्य- पूजा उपासना इत्यादि का विशेष महत्व है। अतः 29 अक्टूबर, सुबह स्नान के बाद भगवान की पूजा- उपासना, दान पुण्य करें। ऐसा करने से चंद्र ग्रहण के अशुभ प्रभाव कम होते हैं।

श्री राम हर्षण शांति कुञ्ज संस्था के माध्यम से शिव शक्ति मंदिर सी-8 यमुना विहार में आज सत्संग के माध्यम से शरद पूर्णिमा महोत्सव के बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित कौशल पाण्डेय ने  बताया की आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार शरद पूर्णिमा के दिन मीन राशि में चंद्रमा और कन्या राशि मे सूर्य मंगल आमने सामने रहेंगे , वही वृश्चिक राशि में गुरु की पंचम दृस्टि चंद्र पर होने से महालक्ष्मी योग व् गजकेशरी योग निर्मित हो रहा है।  साथ ही आज के दिन महर्षि  वाल्मिकि जयंती भी मनाई जाती है.

शरद्पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा की चांदनी में अमृत का निवास रहता है, इसलिए उसकी किरणों से अमृतत्व और आरोग्य की प्राप्ति सुलभ होती है क्योंकि ज्योतिष मान्यता के कारण इसी दिन चंद्रमा षोडश (सोलह) कलाओं से पूर्ण होकर संपूर्ण विश्व के जड़-चेतन को आनन्दित करने हेतु अमृत की वर्षा करता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि सामान्य रात्रि नहीं है। 

यह एक विशेष रात्रि है, क्योंकि भगवान् श्रीकृष्ण ने चीरहरण के समय गोपियों को जिन रात्रियों का संकेत किया था, वे सब की सब रात्रियां ही पुंजीभूत (एकत्रित) होकर एक ही रात्रि (शरद पूर्णिमा) के रूप में उल्लसित होती हैं। स्वयं परात्पर परब्रह्म गोविन्द ने उन रात्रियों पर दृष्टि डाली और उन्हें दिव्य बना दिया और इसी पूर्णिमा की मनमोहक, आनन्ददायी, प्यार भरी मदमाती व शीतल रात्रि में नंद नंदन, यशोदा के लाडले लाल, श्रीकृष्ण ने अपनी अचिन्त्य महाशक्ति योगमाया के सहारे उन गोपियों को निमित्त बनाकर रसमयी रासक्रीडा का आनन्दोत्सव मनाया। तभी से इस पूर्णिमा को ‘‘रास पूर्णिमा’’ के नाम से भी जाना जाने लगा।

शरत पूर्णिमा का व्रत ‘‘कोजागर व्रत’’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि त्रिगुणातीता शक्ति की अद्वितीय शक्ति भगवती महालक्ष्मी स्वयं पूर्णिमा की रात्रि में जगत में विचरण करती हुईं जागने वाले जीवों की इच्छाओं को पूर्ण करती हैं। 
इसीलिए कहा भी है - ‘जो ‘जागत है सो पावत है, जो सोवत है सो खोवत है।’’ इसे ‘‘कौमुदी व्रत’’ के नाम से भी प्रसिद्धि प्राप्त है। 

व्रत विधान इस दिन प्रातः काल जागकर नित्य नैमित्तिक क्रियाकलापों को पूर्ण करके संकल्प करें कि ‘आज मैं शरद् पूर्णिमा के व्रत का यथा-विधि पालन करूंगा, प्रभु, मुझे इस व्रत के पालने की शक्ति दें।’ पुनः गणेशादिक देवताओं का पूजनकर अपने आराध्यदेव भगवान श्रीकृष्ण का षोडशोपचार पूजन करें। 

अर्धरात्रि के समय भगवान् को गोदुग्ध से बनी खीर का भोग लगाना चाहिए। खीर से भरे पात्र को रात में खुली चांदनी में रखना चाहिए। इसमें रात्रि के समय चंद्र किरणों के द्वारा अमृत वर्षा होती हे। पूर्ण चंद्रमा के मध्याकाश में स्थित होने पर अपने आराध्य देव व चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। पूजनोपरांत चंद्र देव को अघ्र्य प्रदान करना चाहिए। इस दिन कांस्यपात्र में घी भरकर सुवर्ण सहित ब्राह्मण को दान देने से मनुष्य ओजस्वी होता है।

रात्रि में व्रती  जागरण करता हुआ भगवान का संकीर्तन करे, दिव्य मंत्रों का जाप करें ।
प्रातःकाल दैनिक क्रियाकलापों को पूर्णकर भगवान का पुनः पूजनकर दान-द्रव्यादि कर परिवार के सभी सदस्यों व भगवद् भक्त प्रेमियों को प्रसाद देकर स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करंे तो निश्चय ही जीवन में आराध्यदेव की कृपा प्राप्त होती है। व्रजवासी व्रजमंडल में इस पर्व को विशेष उत्साह के साथ मनाते हैं तथा अपने आराध्य श्री कृष्ण को श्वेत वस्त्रों से सुसज्जित कर पूजन करते हैं। मंदिरों में भी रात्रि में भगवान् का विशेष पूजन किया जाता है और भक्तों को खीर का प्रसाद वितरण किया जाता है। यह प्रसाद स्वास्थ्य, आयुष्य, बल, तेज, नीरोगता तथा ओजादि गुणों को देने वाला है। 

इसी दिन सत्यव्रत का पालन भी किया जाता है जिसमें भगवान् सत्यनारायण की कथा सुनने व जीवन में सत्य का पालन करने का विधान निश्चित है। कार्तिक स्नान का श्रीगणेश भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ होता है। अलग-अलग राज्यों में इसका अपना विशेष महत्त्व है। 


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केवल आज के दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण होता है , आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने रासोत्सव किया था , ऐसी मान्यता है की इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है । इसलिए आज के दिन खीर बनाकर रात्रि में चन्द्रमा की छाया में रखा जाता है जिससे अमृत की बुँदे इस खीर में प्रवाहित होकर इस महाप्रसाद को पानेवालो को आरोग्य प्रदान करती है .

पंडित कौशल पाण्डेय जी ने शरद पूर्णिमा को कैसे मनाएँ इसके बारे में बताया की सोमवार को प्रात: काल स्नान करके मंदिर जाये वहां विधिवत देवाधिदेव शिव जी और भगवान श्री कृष्ण का पूजन करना चाहिए और रात्रि के समय खीर बनाने के लिए जहाँ तक संभव हो गाय का दूध ,घी ,चीनी , पंचमेवा, गिलोय की टहनी के साथ एक जड़ी जिसे चिरमिटा कहते है इसके पंचांग को लेकर खीर बनाना चाहिए और अर्द्धरात्रि के समय चन्द्रमा को भोग लगाकर रात में खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन इस महाप्रसाद का सेवन करना चाहिए

पंडित कौशल पाण्डेय ने शरद पूर्णिमा को वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार बताया की गौमाता के दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है साथ गिलोय और चिरमिटा युक्त खीर का सेवन से यह हमारे शरीर के किटाणु को नस्ट करता है . इसी कारण से प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान बताया है जिससे यह परंपरा विज्ञान पर भी आधारित है।

शरद पूर्णिमा की रात दमा, सर्दी , जुकाम , नजला आदि रोगों से पीड़ित रोगियों के लिए एक वरदान बनकर आती है इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति अगर रात्रि १० से १२ तक खुले स्थान में चंद्रमा की शीतल छाया ग्रहण करता है और प्रातः खाली पेट इन दिव्य औषधि से बनी खीर सेवन करता है तो इन सभी रोगों से बचा जा सकता है
शरद पूर्णिमा या कहें कोजागर व्रत अश्विन माह की पूर्णिमा को रखा जाता है। 
पंडित कौशल पाण्डेय

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