नवरात्री का तीसरा और चौथा दिन आज एक ही दिन होगी मां चंद्रघण्टा और कूष्माण्डा देवी की पूजा
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एक दिन में दो तिथि
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9 अक्टूबर, शनिवार को प्रात: 7 बजकर 51 मिनट पर तृतीया तिथि का समापन होगा. इसके बाद चतुर्थी की तिथि प्रारंभ होगी. इस दिन मां चंद्रघण्टा और कूष्माण्डा देवी की पूजा की जाएगी। तृतीया और चतुर्थी की तिथि में मां की पूजा के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए. इन दोनों देवियों की पूजा में विशेष नियमों का पालन किया जाता है. स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें. इस दिन क्रोध, वाणी दोष और अहंकार से दूर रहना चाहिए. विधि पूर्वक पूजा करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
आज माँ चंद्रघण्टा की आराधना का दिन है। माँ का यह स्वरूप साहस, संकल्प, क्षमा और शांति का संदेश देता है.
माँ चंद्रघंटा का स्वरूप देवी पार्वती का सुहागन अवतार है। भगवान शिव से विवाह के बाद देवी महागौरी अपने ललाट पर आधा चंद्रमा धारण करने लगीं। इसके बाद से उन्हें चंद्रघंटा कहा जाने लगा।
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
साहस-सौम्यता, वीरता-विनम्रता प्रदायिनी माँ चंद्रघंटा को मेरा बारंबार वंदन।
#कूष्माण्डा
नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अदाहत' चक्र में अवस्थित होता है।
नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कुष्माण्डा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मन्द, हल्की हँसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्माण्डा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अन्धकार ही अन्धकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।
इस देवी की आठ भुजाएँ हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्माण्ड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्माण्डा।
इस देवी का वास सूर्यमण्डल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कान्ति और प्रभा सूर्य की भाँति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएँ आलोकित हैं। ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है।
अचंचल और पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन इस देवी की पूजा-आराधना करना चाहिए। इससे भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। यह देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है।
विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। यह देवी आधियों-व्याधियों से मुक्त करती हैं और उसे सुख समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं। अंततः इस देवी की उपासना में भक्तों को सदैव तत्पर रहना चाहिए।
मन्त्र:
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदाऽस्तु मे॥
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