श्री सूक्त का पाठ :- पंडित कौशल पाण्डेय 09968550003
कई बंधू है जो धन के कारन आज बहुत परेशान है कई ऐसे भी है जिनके पास धन है तो सुख शांति नहीं , यह एक ऐसा प्रयोग है जो इस समय सभी मानव समाज के लिए बहुत ही कारगर है , ऐसा ही कुछ प्रयोग आज सभी मानव समाज के लिए आप सभी के सम्मुख प्रस्तुत करता हु।
श्री आदि शंकराचार्य द्वारा रचित कनक धारा स्तोत्र एवं श्री सूक्त का पाठ माँ लक्ष्मी की उपासना के लिए किया जाता है , माँ लक्ष्मी के सभी मंत्रो का जाप कमल गट्टे की माला से करना चाहिए ,श्री सूक्त के अनुसार संसार के जितने रमणीय वस्तु, तत्व हैं, वे सभी लक्ष्मी के सूचक हैं।
श्री यंत्र, कुबेर यंत्र अथवा बीसा यंत्र रख कर पूजन करे। ऋद्धि-सिद्धि के स्वामी गणेश और धन की देवी लक्ष्मी हैं। इन दोनों का संयुक्त यंत्र श्री यंत्र कहलाता है।
इस दिन इस यंत्र की स्थापना से घर में धन-संपत्ति की कमी नहीं रहती है।
दीपावली पर फैक्टरी , दुकान आदि में ‘श्री यंत्र’, और ‘कुबेर यंत्र’ की विधिवत स्थापना करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, लक्ष्मी पूजन का समय स्थिर लग्न में निर्धारित किया जाता है। वृष, सिंह, वृश्चिक और कुंभ ये चार स्थिर लग्न हैं।
दीपावली के समय रात्रि में वृष और सिंह लग्न पड़ता है वृष लग्न संध्या के कुछ उपरांत पड़ता है एवं सिंह लग्न मध्यरात्रि के आस-पास।
वृष की अपेक्षा सिंह अधिक प्रभावशाली लग्न है, अधिकांश व्यापारीगण दीपावली की रात्रि में सिंह लग्न के अंतर्गत ही लक्ष्मी पूजा किया करते हैं। वैदिक काल से लेकर वर्तमान काल तक लक्ष्मी का स्वरूप अत्यंत व्यापक रहा है।
ऋग्वेद की ऋचाओं में ‘श्री’ का वर्णन समृद्धि एवं सौंदर्य के रूप में अनेक बार हुआ है। अथर्ववेद में ऋषि, पृथ्वी सूक्त में ‘श्री’ की प्रार्थना करते हुए कहते हैं
‘‘श्रिया मां धेहि’’ अर्थात मुझे ‘‘श्री’’ की संप्राप्ति हो।
श्री सूक्त में ‘श्री’ का आवाहन जातवेदस के साथ हुआ है। ‘जातवेदोमआवह’ जातवेदस अग्नि का नाम है। अग्नि की तेजस्विता तथा श्री की तेजस्विता में भी साम्य है। विष्णु पुराण में लक्ष्मी की अभिव्यक्ति दो रूपों में की गई दीपावली का सामान्य परिचय लक्ष्मी पूजा के उत्सव के रूप में है।
समुद्र मंथन के समय 14 रत्न निकले थे, जिनमें पहले रत्न लक्ष्मी अर्थात् ‘श्री’ के प्रकट होने की अंतर्कथा वाला प्रसंग दीपावली का प्रमुख संदर्भ है।
पौराणिक महत्व के साथ यह एक व्यावहारिक सच्चाई भी है कि लक्ष्मी की प्रसन्नता सभी के लिए अभीष्ट है। धन वैभव हर किसी को चाहिए, इसलिए उसी अधिष्ठात्री शक्ति की पूजा-आराधना के लिए दीपावली का महापर्व व्यापक रूप से प्रचलित है।
दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन , श्री सूक्त का पाठ और कमलगट्टे की माला से निम्न मंत्र का जाप और हवन करने से लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होगे ,
निम्न मंत्रो की 11 माला करे इसके पश्चात किसी 108 बार निम्न मंत्र बोलकर हवन करना चाहिए
मंत्र: ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः
मंत्र: ऊँ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।।
मंत्र: ऊँ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ऊँ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ऊँ मंत्र: ऊँ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः
मंत्र: ऊँ श्रीं श्रियै नमः
ऊँ महादेव्यै च विद्महे विष्णु पत्नयै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।
दीपावली की अर्द्ध रात्रि में 11 माला ‘‘ऊँ ऐं ह्रीं कलीं चामुण्डायै विच्चे’ का जप करने से सुख-समृद्धि बढ़ती है।
कुबेर के पूजन में हल्दी, धनिया, कमल गट्टा एवं दूर्वा से युक्त चांदी के कुछ सिक्के कुबेर को अर्पित करें।
उसके बाद, यदि सुविधा हो तो, श्री सूक्त की 16 ऋचाओं का पाठ करें।
श्रीसूक्त: अर्थ सहित प्रस्तुत है
ऋग्वेद में वर्णित श्री सूक्त का पाठ इस प्रकार से है ।
श्री सूक्त का पाठ धन त्रयोदशी से भैयादूज तक पांच दिन संध्या समय किया जाए तो अति उत्तम है। धन त्रयोदशी के दिन गोधूलि वेला में साधक स्वच्छ होकर पूर्वाभिमुख होकर सफेद आसन पर बैठें।
ऋग्वेद में लिखा गया है कि यदि इन ऋचाओं का पाठ करते हुए शुद्ध घी से हवन भी किया जाए तो इसका फल द्विगुणित होता है।
सर्वप्रथम दाएं हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र से पूजन सामग्री एवं स्वयं पर छिड़कें।
मंत्र- ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यान्तरः शुचिः।।
अर्थ- पवित्र हो या अपवित्र अथवा किसी भी अवस्था में हो जो विष्णु भगवान का स्मरण करता है वह अंदर और बाहर से पवित्र हो जाता है।
उसके बाद निम्न मंत्रों से तीन बार आचमन करें-
श्री महालक्ष्म्यै नमः ऐं आत्मा तत्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
अर्थ- श्री महालक्ष्मी को मेरा नमन। मैं आत्मा तत्व को शुद्ध करता हूं।
श्री महालक्ष्म्यै नमः ह्रीं विद्या तत्वं शोधयामि नमः स्वाहा
अर्थ- श्री महालक्ष्मी को मेरा नमन। मैं विद्या तत्व को शुद्ध करता हूं।
श्री महालक्ष्म्यै नमः क्लीं षिव तत्वं शोधयामि नमः स्वाहा
अर्थ-श्री महालक्ष्मी को मेरा नमन। मैं शिव तत्व को शुद्ध करता हूं।
तत्पश्चात् दाएं हाथ में चावल लेकर संकल्प करें
हे मां लक्ष्मी, मैं समस्त कामनाओं की पूर्ति के लिए श्रीसूक्त लक्ष्मी जी की जो साधना कर रहा हूं, आपकी कृपा के बिना कहां संभव है। हे माता श्री लक्ष्मी, मुझ पर प्रसन्न होकर साधना के सफल होने का आशीर्वाद दें। (हाथ के चावल भूमि पर चढ़ा दें।)
विनियोग करें (दाएं हाथ में जल लें।)
मंत्र: ॐ हिरण्यवर्णामिति पंषदषर्चस्य सूक्तस्य, श्री आनन्द, कर्दमचिक्लीत, इन्दिरासुता महाऋषयः। श्रीरग्निदेवता। आद्यस्तिस्तोनुष्टुभः चतुर्थी वृहती। पंचमी षष्ठ्यो त्रिष्टुभो, ततो अष्टावनुष्टुभः अन्त्याः प्रस्तारपंक्तिः। हिरण्यवर्णमिति बीजं, ताम् आवह जातवेद इति शक्तिः, कीर्ति ऋद्धि ददातु में इति कीलकम्। श्री महालक्ष्मी प्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
(जल भूमि पर छोड़ दें।)
अर्थ- इस पंद्रह ऋचाओं वाले श्री सूक्त के कर्दम और चिक्लीत ऋषि हैं अर्थात् प्रथम तंत्र की इंदिरा ऋषि है, आनंद कर्दम और चिक्लीत इंदिरा पुंज है और शेष चैदह मंत्रों के द्रष्टा हैं। प्रथम तीन ऋचाओं का अनुष्टुप, चतुर्थ ऋचा का वहती, पंचम व षष्ठ ऋचा का त्रिष्टुप एवं सातवीं से चैदहवीं ऋचा का अनुष्टुप् छंद है। पंद्रह व सोलहवीं ऋचा का प्रसार भक्ति छंद है। श्री और अग्नि देवता हैं। ’हिरण्यवर्णा’ प्रथम ऋचा बीज और ’कां सोस्मितां’ चतुर्थ ऋचा शक्ति है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति के लिए विनियोग है।
(हाथ जोड़ कर लक्ष्मी जी एवं विष्णु जी का ध्यान करें।)
गुलाबी कमल दल पर बैठी हुई, पराग राशि के समान पीतवर्णा, हाथों में कमल पुष्प धारण किए हुए, मणियों युक्त अलंकारों को धारण किए हुए, समस्त लोकों की जननी श्री महालक्ष्मी की हम वंदना करते हैं।
श्री सूक्त का पाठ अर्थ सहित
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवण्र् रजतस्रजाम्। चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।
अर्थ- जो स्वर्ण सी कांतिमयी है, जो मन की दरिद्रता हरती है, जो स्वर्ण रजत की मालाओं से सुशोभित है, चंद्रमा के सदृश प्रकाशमान तथा प्रसन्न करने वाली है, हे जातवेदा अग्निदेव ऐसी देवी लक्ष्मी को मेरे घर बुलाएं। महत्व- स्वर्ण रजत की प्राप्ति होती है।
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मी मनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामष्वं पुरुषानहम्।।
अर्थ- हे जातवेदा अग्निदेव। आप उन जगत् प्रसिद्ध लक्ष्मी जी को मेरे लिए बुलाएं जिनका आवाहन करने पर मैं स्वर्ण, गौ, अश्व और भाई, बांधव, पुत्र, पौत्र आदि को प्राप्त करूं। महत्त्व- गौ, अश्व आदि की प्राप्ति होती है।
अष्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रमोदिनीम्। श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
अर्थ-जिस देवी के आगे घोड़े और मध्य में रथ है अथवा जिसके सम्मुख घोड़े रथ में जुते हुए हैं, ऐसे रथ में बैठी हुई हाथियों के निनाद से विश्व को प्रफुल्लित करने वाली देदीप्यमान एवं समस्त जनों को आश्रय देने वाली लक्ष्मी को मैं अपने सम्मख् बुलाता हूँ आप मेरे घर में सर्वदा निवास करें।
महत्व- रत्नों की प्राप्ति होती है।
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामाद्र्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्।।
अर्थ- आपका क्या कहना। मुखारविंद मंद-मंद मुस्काता है, आपका स्वरूप अवर्णनीय है, आप चारों ओर से स्वर्ण से ओत प्रोत हैं और दया से आर्द्र हृदया अथवा समुद्र से उत्पन्न आर्द्र शरीर से युक्त देदीप्यमान हैं। भक्तों के नाना प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाली, कमल के ऊपर विराजमान, कमल सदृश गृह में निवास करने वाली प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने पास बुलाता हूं।
महत्व- मां लक्ष्मी की दया एवं संपत्ति की प्राप्ति होती है।
चन्द्रां प्रभासां यषसां ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्। तां पद्मिनीमीं शरणं प्रपद्येअलक्ष्मीर्में नष्यतां त्वां वृणे।।
अर्थ- चंद्रमा के समान प्रभा वाली, अपनी कीर्ति से देदीप्यमान, स्वर्गलोक में इंद्रादि देवों से पूजित अत्यंत उदार कमल के मध्य रहने वाली, आश्रयदात्री आपकी मंै शरण में आता हूं। आपकी कृपा से मेरी दरिद्रता नष्ट हो।
महत्व- दरिद्रता का नाश होता है।
आदित्यवर्णे तपसोधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथबिल्वः। तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याष्च बाह्या अलक्ष्मीः।।
अर्थ- हे सूर्य के समान कांति वाली, आपके तेज से ये वन पादप प्रकट हैं। आपके तेज से यह बिना पुष्प के फल देने वाला बिल्व वृक्ष उत्पन्न हुआ। उसी प्रकार आप अपने तेज से मेरी बाहृय और आभ्यंतर की दरिद्रता को नष्ट करें।
महत्व- श्री सूक्त का पाठ करने से अलक्ष्मी का पूर्ण रूप से परिहार होता है।
उपैतु मां देवसखः कीर्तिष्च मणिना सह। प्रादुर्भूतोस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धि ं ददातु मे।।
अर्थ-हे लक्ष्मी। देवसखा अर्थात् श्री महादेव के सखा इंद्र के समान मणियां, संपत्ति और कीर्ति मुझे प्राप्त हो (मतांतर से - मण्णिभद्र (कुबेर के मित्र) के साथ कीर्ति अर्थात् यश मुझे प्राप्त हो) मैं इस विश्व में उत्पन्न हुआ हूं इसमें मुझे कीर्ति- समृद्धि प्रदान कर गौरवान्वित करें।
महत्व- श्री सूक्त का पाठ करने से यश और कीर्ति प्राप्त होती है।
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाषयाम्यहम्। अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात्।।
अर्थ- भूख और प्यास रूपी मैल को घारण करने वाली ज्येष्ठ भगिनी अलक्ष्मी को मंै नष्ट करता हूं। हे लक्ष्मी। आप मेरे घर से अनैश्वर्य, वैभवहीनता तथा धन वृद्धि के प्रतिबंधक विघ्नों को दूर करें।
महत्व- श्री सूक्त का पाठ करने से परिवार की दरिद्रता दूर होती है।
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करिशिरीम ईष्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम्।।
अर्थ- सुगंधित पुष्प के समर्पण से प्राप्त करने योग्य, किसी से भी न दबने योग्य धन धान्य से सर्वदा पूर्ण कर समृद्धि देने, वाली, समस्त प्राणियों की स्वामिनी तथा संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने घर में सादर बुलाता हूं।
महत्व- श्री सूक्त का पाठ करने मात्र से लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और विपुल धन प्राप्त होता है।
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमषीमहि। पषूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः।।
अर्थ-हे मां लक्ष्मी। आपके दिव्य प्रभाव से मैं मानसिक इच्छा एवं संकल्प, वाणी की सत्यता, गौ आदि पशुओं के रूप (अर्थात् दुग्ध-दध्यादि) एवं अन्नों के रूप (अर्थात भक्ष्य, भोज्य, चोस्य, लेह्य-चारों प्रकार के भोज्य पदार्थ) इन सभी को प्राप्त करूं। संपत्ति और यश मुझमें आश्रय लें अर्थात मैं लक्ष्मीवान् और कीर्तिवान बनूं।
महत्व- श्री सूक्त का पाठ करने से मानसिक स्थिरता, वाणी की दृढ़ता, अन्न, धन, यश, मान की प्राप्ति हो परिवार में कलह तथा दरिद्रता दूर होती है।
कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम। श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्।।
अर्थ- ’कर्दम’ नामक ऋषि पुत्र से लक्ष्मी प्रकृष्ट पुत्र वाली हुई हैं। हे कर्दम, तुम मुझमें निवास करो तथा कमल की माला धारण करने वाली माता लक्ष्मी को मेरे कुल में निवास कराओ।
महत्व- श्री सूक्त का पाठ करने से संपूर्ण संपत्ति की प्राप्ति होती है।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे। नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।।
अर्थ- जल के देवता वरुण स्निग्ध अर्थात मनोहर पदार्थों को उत्पन्न करें। लक्ष्मी के आनंद, कर्दम, चिक्लीत और श्रीत ये चार पुत्र हैं। इनमें से चिक्लीत से प्रार्थना की गई है कि हे चिक्लीत नामक लक्ष्मी पुत्र। तुम मेरे गृह में निवास करो। दिव्य गुणयुक्ता सर्वाश्रयमुता अपनी माता लक्ष्मी को भी मेरे घर में निवास कराओ।
महत्व- श्री सूक्त का पाठ करने से धन धान्य आदि की प्राप्ति होती है।
आद्र्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिड्गलां पद्ममालिनीम्। चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।
अर्थ- हे अग्निदेव। तुम मेरे घर में पुष्करिणी अर्थात् दिग्गजों (हाथियों) के शुण्डाग्र से अभिशिच्यमाना (आर्द्र शरीर वाली), पुष्टि देने वाली, पीतवण्र् ा वाली, कमल की माला धारण करने वाली, जगत को प्रकाशित करने वाली प्रकाश स्वरूपा लक्ष्मी को बुलाओ।
महत्व- श्री सूक्त का पाठ करने से पशु, पुत्र एवं बंधु बांधवों की स्मृद्धि होती है।
आद्र्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्। सूर्यां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।
अर्थ- हे अग्निदेव। तुम मेरे घर में भक्तों पर सदा दर्यार्द्रचित्त अथवा समस्त भुवन जिसकी याचना करते हैं, दुष्टों को दंड देने वाली अथवा यष्टिवत् अवलंबनीया (जिस प्रकार असमर्थ पुरुष को लकड़ी का सहारा चाहिए उसी प्रकार लक्ष्मी जी के सहारे से अशक्त व्यक्ति भी संपन्न हो जाता है), सुंदर वर्ण वाली एवं स्वर्ण की माला वाली सूर्यरूपा, ऐसी प्रकाश स्वरूपा लक्ष्मी को बुलाओ।
महत्व- श्री सूक्त का पाठ करने से स्वर्ण, संपत्ति एवं वंश की वृद्धि होती है।
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मी मन पगामिनीम्, यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् बिन्देयं पुषानहम्।।
अर्थ- हे अग्निदेव। तुम मेरे यहां उन विश्वविख्यात लक्ष्मी को, जो मुझे छोड़कर अन्यत्र न जाने वाली हों, बुलाओ। जिन लक्ष्मी के द्वारा मैं स्वर्ण, उत्तम ऐश्वर्य, गौ, घोड़े और पुत्र पौत्रादि को प्राप्त करूं।
महत्व- श्री सूक्त का पाठ करने से देष, ग्राम, भूमि अर्थात-अचल संपत्ति की प्राप्ति होती है।
यः शूचीः प्रयतो भूत्वा जुहुयादज्या मन्वहम् । सूक्तम पंचदसर्च च श्रीकामः सततं जपेत् ॥ १६ ॥
अर्थ- जो मनुष्य लक्ष्मी की कामना करता हो वह पवित्र और सावधान होकर अग्नि में गोघृत का हवन और साथ ही श्री सूक्त की पंद्रह ऋचाओं का प्रतिदिन पाठ करे।
महत्व- जो भी प्राणी लक्ष्मी प्राप्ति की कामना से प्रतिदिन श्री सूक्त के द्वारा पाठ और हवन करता है एवं इसमें वर्णित बातो को अपने जीवन में उपयोग करता है उसे समृद्धिवान होने से कोई नही रोक सकता है ।
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