शरद पूर्णिमा:-पंडित कौशल पाण्डेय

शरद पूर्णिमा 2023:-पंडित कौशल पाण्डेय 

शरद पूर्णिमा :-28 अक्टूबर 2023  के दिन मनाया जायेगा ,




शरद् पूर्णिमा व्रत आश्विन मास की शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को करने का विधान है।  इस व्रत में प्रदोष और निशीथ दोनों में होने वाली पूर्णिमा को लिया जाता है। यदि पहले दिन निशीथ व्यापिनी और दूसरे दिन प्रदोष व्यापिनी न हो तो पहले दिन व्रत करना चाहिए। 

शरद्पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा की चांदनी में अमृत का निवास रहता है, इसलिए उसकी किरणों से अमृतत्व और आरोग्य की प्राप्ति सुलभ होती है क्योंकि ज्योतिष मान्यता के कारण इसी दिन चंद्रमा षोडश (सोलह) कलाओं से पूर्ण होकर संपूर्ण विश्व के जड़-चेतन को आनन्दित करने हेतु अमृत की वर्षा करता है।


शरद पूर्णिमा के दिन खीर प्रसाद कैसे बनाये 
प्रात: काल स्नान करके मंदिर जाये वहां विधिवत देवाधिदेव शिव जी और भगवान श्री कृष्ण  का पूजन करना चाहिए और  रात्रि के समय खीर बनाने के लिए जहाँ तक संभव हो गाय का  दूध ,घी ,चीनी , पंचमेवा, गिलोय की टहनी  के साथ एक जड़ी जिसे चिरमिटा कहते है इसके पंचांग को लेकर खीर बनाना चाहिए और  अर्द्धरात्रि के समय चन्द्रमा  को भोग लगाकर  रात में  खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन इस महाप्रसाद का सेवन करना चाहिए

शरद पूर्णिमा को वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार बताया की गौमाता के दूध  में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है साथ गिलोय और चिरमिटा युक्त खीर का सेवन से यह हमारे शरीर के किटाणु को नस्ट करता है . इसी कारण से प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान बताया है जिससे  यह परंपरा विज्ञान पर भी आधारित है।

 शरद पूर्णिमा की रात दमा, सर्दी , जुकाम , नजला आदि रोगों से पीड़ित रोगियों के लिए एक वरदान बनकर आती है इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति  अगर रात्रि 10 से 12 तक खुले स्थान में चंद्रमा की शीतल छाया ग्रहण करता है और प्रातः खाली पेट इन दिव्य औषधि  से बनी खीर सेवन करता  है तो इन सभी रोगों से बचा जा सकता है 

शरद पूर्णिमा की रात्रि सामान्य रात्रि नहीं है। यह एक विशेष रात्रि है, क्योंकि भगवान् श्रीकृष्ण ने चीरहरण के समय गोपियों को जिन रात्रियों का संकेत किया था, वे सब की सब रात्रियां ही पुंजीभूत (एकत्रित) होकर एक ही रात्रि (शरद पूर्णिमा) के रूप में उल्लसित होती हैं। स्वयं परात्पर परब्रह्म गोविन्द ने उन रात्रियों पर दृष्टि डाली और उन्हें दिव्य बना दिया और इसी पूर्णिमा की मनमोहक, आनन्ददायी, प्यार भरी मदमाती व शीतल रात्रि में नंद नंदन, यशोदा के लाडले लाल, श्रीकृष्ण ने अपनी अचिन्त्य महाशक्ति योगमाया के सहारे उन गोपियों को निमित्त बनाकर रसमयी रासक्रीडा का आनन्दोत्सव मनाया। तभी से इस पूर्णिमा को ‘‘रास पूर्णिमा’’ के नाम से भी जाना जाने लगा। यह रात्रि शरत् कालीन प्रखर सूर्य रश्मियों के कारण दिन में बढ़े हुए चर-अचर प्राणियों के संताप को दूर करने वाली है।

इस दिन चंद्रदेव का मंडल अखण्ड होता है, अतः यह रात्रि जीवन में अखंडता को देने वाली है। इस पूर्णिमा का व्रत करने वाला जीव सांसारिक सुखोपभोग प्राप्त करता है तथा उसके काम जनित दोषों का निवारण हो जाता है, श्री कृष्ण या अपने आराध्य के प्रति समर्पण भाव जाग्रत हो जाता है। कहने का भाव यह है कि व्रती मानव के चारों पुरूषार्थ सिद्ध हो जाते हैं। 

शरत पूर्णिमा का व्रत ‘‘कोजागर व्रत’’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि त्रिगुणातीता शक्ति की अद्वितीय शक्ति भगवती महालक्ष्मी स्वयं पूर्णिमा की रात्रि में जगत में विचरण करती हुईं जागने वाले जीवों की इच्छाओं को पूर्ण करती हैं। इसीलिए कहा भी है - ‘‘जागत है सो पावत है, सोवत है सो खोवत है।’’ इसे ‘‘कौमुदी व्रत’’ के नाम से भी प्रसिद्धि प्राप्त है। व्रत विधान इस दिन प्रातः काल जागकर नित्य नैमित्तिक क्रियाकलापों को पूर्ण करके संकल्प करें कि ‘आज मैं शरद् पूर्णिमा के व्रत का यथा-विधि पालन करूंगा, प्रभु, मुझे इस व्रत के पालने की शक्ति दें।’

पुनः गणेशादिक देवताओं का पूजनकर अपने आराध्यदेव भगवान श्रीकृष्ण का षोडशोपचार पूजन करें। अर्धरात्रि के समय भगवान् को गोदुग्ध से बनी खीर का भोग लगाना चाहिए। खीर से भरे पात्र को रात में खुली चांदनी में रखना चाहिए। इसमें रात्रि के समय चंद्र किरणों के द्वारा अमृत वर्षा होती हे। पूर्ण चंद्रमा के मध्याकाश में स्थित होने पर अपने आराध्य देव व चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। पूजनोपरांत चंद्र देव को अघ्र्य प्रदान करना चाहिए। इस दिन कांस्यपात्र में घी भरकर सुवर्ण सहित ब्राह्मण को दान देने से मनुष्य ओजस्वी होता है। अपराह्न में हाथियों का नीराजन करने का भी विधान है। रात्रि में व्रती पुरूष जागरण करता हुआ भगवान का संकीर्तन करे, दिव्य मंत्रों का जाप करें तथा श्रीकृष्ण के रासोत्सव व गोपीगीत का पाठ करे। प्रातःकाल दैनिक क्रियाकलापों को पूर्णकर भगवान का पुनः पूजनकर दान-द्रव्यादि कर परिवार के सभी सदस्यों व भगवद् भक्त प्रेमियों को प्रसाद देकर स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करंे तो निश्चय ही जीवन में आराध्यदेव की कृपा प्राप्त होती है।

व्रजवासी व्रजमंडल में इस पर्व को विशेष उत्साह के साथ मनाते हैं तथा अपने आराध्य श्री कृष्ण को श्वेत वस्त्रों से सुसज्जित कर पूजन करते हैं। मंदिरों में भी रात्रि में भगवान् का विशेष पूजन किया जाता है और भक्तों को खीर का प्रसाद वितरण किया जाता है। यह प्रसाद स्वास्थ्य, आयुष्य, बल, तेज, नीरोगता तथा ओजादि गुणों को देने वाला है।

इसी दिन सत्यव्रत का पालन भी किया जाता है जिसमें भगवान् सत्यनारायण की कथा सुनने व जीवन में सत्य का पालन करने का विधान निश्चित है। 
कार्तिक स्नान का श्रीगणेश भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ होता है।


पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ

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