#गोवर्धनपूजा, अन्नकूट महोत्सव 2023

गोवर्धनपूजा, अन्नकूट महोत्सव 14 नवम्बर 2023 मंगलवार
कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा पहला दिन गोवर्धन पूजा के नाम रहता है। 


गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।
जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।

गोवर्धन पूजा मुहूर्त
गोवर्धन पूजा मंगलवार, नवम्बर 14, 2023 को
गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त - 06:43 ए एम से 08:52 ए एम
अवधि - 02 घण्टे 09 मिनट्स
द्यूत क्रीड़ा मंगलवार, नवम्बर 14, 2023 को
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 13, 2023 को 02:56 पी एम बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त - नवम्बर 14, 2023 को 02:36 पी एम बजे


इसकी परंपरा भगवान श्रीकृष्ण ने प्रारंभ करवाई थी। इस दिन दिन गायों को धन मानते हुए उनके सजाया-संवारा जाता है और उनकी पूजा की जाती है। ग्रामीण घरों में इस दिन प्रकीतात्मक रूप में गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है और उसकी परिक्रमा की जाती है। इस दिन अन्नकूट महोत्सव भी मनाया जाता है।
इस पर्व को अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं|  इस त्यौहार का पौराणिक महत्व है| इस पर्व में प्रकृति एवं मानव का सीधा संबंध स्थापित होता है|  इस पर्व में गोधन यानी गौ माता की पूजा की जाती है| शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उतनी ही पवित्र हैं जितना माँ गंगा का निर्मल जल| आमतौर पर यह पर्व अक्सर दीपावली के अगले दिन ही पड़ता है किन्तु यदा कदा दीपावली और गोवर्धन पूजा के पर्वों के बीच एक दिन का अंतर आ जाता है|

गोवर्धन पूजा विधि
इस पर्व में हिंदू धर्म के मानने वाले घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन जी की मूर्ति बनाकर उनका पूजन करते हैं|  इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले भगवान गिरिराज को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाते हैं| गाय- बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है| गायों को मिठाई का भोग लगाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है|  कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान के लिए भोग व यथासामर्थ्य अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल-फूल, अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ जिन्हें छप्पन भोग कहते हैं का भोग लगाया जाता है|  फिर सभी सामग्री अपने परिवार व मित्रों को वितरण कर प्रसाद ग्रहण किया जाता है|

गोवर्धन पूजा व्रत कथा
यह घटना द्वापर युग की है| ब्रज में इंद्र की पूजा की जा रही थी| वहां भगवान कृष्ण पहुंचे और उनसे पूछा की यहाँ किसकी पूजा की जा रही है| सभी गोकुल वासियों ने कहा देवराज इंद्र की| तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों से कहा कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं होता| वर्षा करना उनका दायित्व है और वे सिर्फ अपने दायित्व का निर्वाह करते हैं, जबकि गोवर्धन पर्वत हमारे गौ-धन का संवर्धन एवं संरक्षण करते हैं| जिससे पर्यावरण शुद्ध होता है| इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए| सभी लोग श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पूजा करने लगे| जिससे इंद्र क्रोधित हो उठे, उन्होंने मेघों को आदेश दिया कि जाओं गोकुल का विनाश कर दो| भारी वर्षा से सभी भयभीत हो गए| तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका ऊँगली पर उठाकर सभी गोकुल वासियों को इंद्र के कोप से बचाया| जब इंद्र को ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण भगवान श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं तो इन्द्रदेव अपनी मुर्खता पर बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की| तबसे आज तक गोवर्धन पूजा बड़े श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ की जाती है|

गोवर्धन पूजा का महत्त्व
कहा जाता है कि भगवान कृष्ण का इंद्र के अहंकार को तोड़ने के पीछे उद्देश्य ब्रज वासियों को गौ धन एवं पर्यावरण के महत्त्व को बतलाना था| ताकि वे उनकी रक्षा करें| आज भी हमारे जीवन में गौ माता का विशेष महत्त्व है| आज भी गौ द्वारा प्राप्त दूध हमारे जीवन में बेहद अहम स्थान रखता है|
यूं तो आज गोवर्धन पर्वत ब्रज में एक छोटे पहाड़ी के रूप में हैं, किन्तु इन्हें पर्वतों का राजा कहा जाता है| ऐसी संज्ञा गोवर्धन को इसलिए प्राप्त है क्योंकि यह भगवान कृष्ण के समय का एक मात्र स्थाई व स्थिर अवशेष है| उस काल की यमुना नदी जहाँ समय-समय पर अपनी धारा बदलती रहीं, वहीं गोवर्धन अपने मूल स्थान पर ही अविचलित रुप में विद्यमान रहे| गोवर्धन को भगवान कृष्ण का स्वरुप भी माना जाता है और इसी रुप में इनकी पूजा की जाती है|  गर्ग संहिता में गोवर्धन के महत्त्व को दर्शाते हुए कहा गया है - गोवर्धन पर्वतों के राजा और हरि के प्रिय हैं| इसके समान पृथ्वी और स्वर्ग में दूसरा कोई तीर्थ नहीं|

पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ

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