दीपावली:-शुक्रवार 1 नवम्बर 2024
जानिए कब है दीपावली ?
क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त ?
क्यों और कैसे मनाई जाती है दीपावली ?
दीपावली का पर्व प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास कृष्ण पक्ष अमावस्या को मनाया जाता है। इस मास की दिव्यता प्रकाशकता इतनी बलवती है कि निथीशकाल में प्रत्येक घर आँगन के कोने-कोने से अंधकार को नष्ट कर उसे दिव्य प्रकाशक ऊर्जावान बना देता है,जिससे माँ लक्ष्मी प्रकाशित स्थान की दिव्यता को बढ़ा देती हैं तथा स्थान से संबंध रखने वाले व्यक्ति के जीवन से अंधरे को मिटाती हैं।
क्यों मनाया जाता है दीपोत्सव का पर्व
पौराणिक ग्रंथों में वर्णन हैं कि आज ही के दिन मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु श्रीराम ने पापी रावण पर विजय श्री प्राप्त करके दीपावली के ही दिन अपने पैतृक गाँव अयोध्या वापस आए थे । इस लंबे अन्तराल के बाद श्रीराम प्रभु का पुनः जन्मभूमि में सकुशल आना अयोध्या वासियों के लिए विशाल उत्सव के समान था, जिससे उत्साहित ग्राम वासियों ने घी के दिए जलाकर सम्पूर्ण अयोध्या को चहूँ ओर दीपों से जगमगा दिया तथा नाना विधि के मिष्ठान व भोजन को प्रभु के समक्ष परोसा और सभी ने मिलकर खाया और खुशियां मनाई।
दीपावली:
यह छोटी-छोटी दीप श्रृंखला एक सर्व साधारण व्यक्ति के जीवन मे प्रकाश फैलाकर उसे विशेष बना देती हैं और जो विशेष हैं उन्हें अति विशिष्ट बना परम पद दिलाने का सामर्थ रखती हैं। जिससे इस रात्रि में योगी परम योग की तरफ, विज्ञान तथा तंत्र विद्याओं से संबंध रखने वाले सधे हुए प्रयोगों को करते है और उनकी क्षमताओं की पुष्टि करते हैं।
इसी तरह वैदिक पंडि़त वैदिक कर्मों को व विद्वजन, कारोबार करने वाले, पूंजीपति, उद्योगपति, उत्पादक, सैनिक, ज्योतिषी, वैद्य व विद्यार्थी अपने संबंधि क्षेत्रों को पुष्ट करने का दृढ़ संकल्प लेते हैं, कि दीप की तरह उनका जीवन प्रकाशित व संबंधित विधाओं में सबल रहे तथा महालक्ष्मी की कृपा सदैव उन्हें प्राप्त होती रहे। दीपावली के दिन श्री महालक्ष्मी, कुबेर, लेखनी, बही खाता, महाकाली, महासरास्वती, त्रिदेवियों की पूजा की जाती है, जो हमें धन, यश, शारीरिक व आत्मबल और बुद्धि प्रदान करती है। बिना धन, बल, बुद्धि के इस संसार में कुछ सम्भव नहीं है। अतः महालक्ष्मी की पूजा अर्चना तो अतिआवश्यक है उसके साथ ही त्रिदेवियों की भी पूजा करने का विधान है।
दीपावली का महत्व एवं पूजन
सफाई व पवित्रता के नियमः इन पंच महापर्वो धनत्रयोदशी, नरक चतुदर्शी, दीपावली, गोवर्धन, भैयादूज को मनाने के सर्वसाधारण नियम हैं जिसमें घर व स्थानों की सफाई शरीर की व मन की पवित्रता, स्नान, उपहारों का दान, अन्नदान, धन व द्रव्य का दान, तीर्थ जलों में स्नान, देवालयों में व निवास स्थलों में दीपदान आदि के नियम हैं। जो इस प्रकार हैं:-
सफाईः इन पंच महापर्वों को मनाने हेतु सबसे पहला नियम हैं प्रत्येक स्थान की सफाई घर व बाहर के कोने-कोने स्वच्छ रखना। अर्थात् अपने व आस-पास के सभी संबंधित स्थानों को चाहे वह आपका निवास स्थान हो, मंदिर हो, कार्यालय हो, जलाशय हो, सामूहिक स्थान हो, रास्ते हों सभी को पूर्णतयः स्वच्छ रखना चाहिए।
तीर्थों में स्नानः– आज के दिन गंगा, यमुना आदि तीर्थों के जलों से स्नान करने का विधान है, जो किसी कारण वश तीर्थ नहीं जा सकते हैं वह अपने घर में ही तीर्थों के जलों को व कुशाग्र को जल में मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
दीपदान का विधानः– अमावस का पर्व होने के कारण आज तीर्थों में पितरों के निमित्त तर्पण, श्राद्ध, अन्न दान, धन दान, वस्त्राभूषणों तथा गर्म कपड़ों आदि का दान तथा दीपावली का प्रधान पर्व होने के कारण सबसे पहले गणपित आदि देवताओं के निमित्त, ईष्ट देवता, कुल देवी-देवता के निमत्त तथा किसी सुप्रसिद्ध तीर्थ व नजदीकी देवालय में शुद्ध देशी घी से अवश्य दीपदान करना चाहिए। तदोपरान्त सायंकाल सर्व प्रथम अपने घर के पूजा स्थान में फिर सम्पूर्ण भवन सहित कार्यालय, व्यावसायिक स्थलों, अन्य दूसरे मकान व दुकानों में दीपदान (दीप प्रज्जवलित) करना चाहिए।
श्री महालक्ष्मी पूजन विधानः– शास्त्रों में श्री महालक्ष्मी जी के पूजन का अति महत्वपूर्ण स्थान है। अतः शुभ मुहुर्त में श्रीमहालक्ष्मी की पूजा अर्चना करनी चाहिए। श्री महालक्ष्मी की पूजा प्रदोष काल में शुभ मानी गई हैं यदि अमावस प्रदोष काल में नहीं हो, तो उससे पहले भी पूजा करने का विधान है।
श्री लक्ष्मी पूजन से संबंधित सभी पूजन पदार्थों को लेकर पवित्र आसन में बैठकर किसी ब्राह्मण जो कि (पूजापाठादि के नियमों से भली प्रकार परिचित हो) की सहायता से श्री महालक्ष्मी सहित देव व देवी पूजन करना चाहिए। षोड़शोपचार विधि से पूजा का अति महत्वपूर्ण स्थान हैं, श्री सूक्त पाठ, पुरुष सूक्त एवं लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने, करवाने से माँ की महती कृपा प्राप्त होती है। अतः षोड़शोपचार विधि से पूजा करते हुए ब्राह्मणों दक्षिणा देकर प्रणाम करना चाहिए। दीपावली की रात्रि में अपने आवासीय व व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के अन्दर पूरी रात्रि अखण्ड दीप जलाना शुभप्रद होता है। दीपावली पूजन को प्रदोषकाल से लेकर अर्द्धरात्रि किया जा सकता है। किन्तु कुछ विद्वानों का मत है कि यदि अमावस प्रदोषकाल को स्पर्श न करें तो ऐसी स्थिति में दूसरे दिन पूजन करना फलप्रद होता है। किसी विशेष कार्य हेतु विशेष मुहुर्त का ध्यान देना सर्वथा लाभप्रद होता है।
दीपावली पूजा की साम्रगी
दिवाली पूजा के लिए रोली, चावल, पान-सुपारी, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, घी या तेल से भरे हुए दीपक, कलावा, नारियल, गंगाजल, फल, फूल, मिठाई, दूर्वा, चंदन, घी, मेवे, खील, बताशे, चौकी, कलश, फूलों की माला, शंख, लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति, थाली, चांदी का सिक्का, 11 दिए आदि वस्तुएं पूजा के लिए एकत्र कर लेना चाहिए.
दीपावली पूजा शुभ मुहूर्त
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को सम्पूर्ण भारत सहित विश्व के अनेक देशों में भी मनाया जाएगा। दीपावली स्वाती नक्षत्र तथा प्रीति योग कालीन प्रदोष तथा निशीथकाल एवं अल्पसमय के लिए महानिशीथ व्यापिनी अमावस्या युक्त होने से विशेषतः प्रशस्त एवं पुण्यफलप्रदायक होगी।
शुक्रवार 1 नवम्बर 2024
लक्ष्मी पूजा शुक्रवार, नवम्बर 1, 2024 पर
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - 05:36 pm से 06:16 pm
अवधि - 00 घण्टे 41 मिनट्स
प्रदोष काल - 05:36pm से 08:11 pm
वृषभ काल - 06:19 pm से 08:15 pm
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त स्थिर लग्न के बिना
अमावस्या तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 31, 2024 को 03:52 pm
अमावस्या तिथि समाप्त - नवम्बर 01, 2024 को 06:16 pm
दीपावली की पूजा के लिए चार मुहूर्त होते है –
वृषभ लग्न – यह दीपावली के दिन शाम का समय होता है. यह लक्ष्मी पूजा का सबसे अच्छा समय होता है.
सिंह लग्न – यह दीपावली की मध्य रात्रि का समय होता है. संत, तांत्रिक लोग इस दौरान लक्ष्मी पूजा करते है.
दिवाली के दिन कैसे करें पूजा...
- स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर सभी देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए.
- शाम के समय पूजा घर में लक्ष्मी और गणेश जी की नई मूर्तियों को एक चौकी पर स्वस्तिक बनाकर स्थापित करना चाहिए.
- मूर्तियों के सामने एक जल से भरा हुआ कलश रखना चाहिए. इसके बाद मूर्तियों के सामने बैठकर हाथ में जल लेकर शुद्धि मंत्र का उच्चारण करते हुए उसे मूर्ति पर, परिवार के सदस्यों पर और घर में छिड़कना चाहिए.
- अब फल, फूल, मिठाई, दूर्वा, चंदन, घी, मेवे, खील, बताशे, चौकी, कलश, फूलों की माला आदि सामग्रियों का प्रयोग करते हुए पूरे विधि-विधान से लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करनी चाहिए.
- इनके साथ-साथ देवी सरस्वती, भगवान विष्णु, मां काली और कुबेर की भी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए. पूजा करते समय 11 छोटे दीप और एक बड़ा दीप जलाना चाहिए.
माँ श्री महालक्ष्मी की कृपा हेतु आज के दिन साधकों, व्यापारियों, विद्यार्थी तथा गृहस्थ का पालन करने वाले व्यक्ति को श्रीसूक्त, श्रीलक्ष्मीसूक्त, पुरूषसूक्त, राम रक्षास्त्रोत, हनुमानाष्टक, गोपालशस्त्रनाम आदि अनुष्ठान, जप करवाना चाहिए। जिससे उसे माँ लक्ष्मी की कृपा से वांछित फलों की प्राप्त होती है।
ध्यान रहें कि जप अनुष्ठान प्रसन्नता, पवित्रता व श्रद्धा के साथ करना चाहिए। जप व अनुष्ठान करने वाले ब्राह्मणों को श्रेष्ठ द्रव्य, धन, वस्त्राभूषण आदि की दक्षिणा श्रद्धा पूर्वक देनी चाहिए। इस पूजन अर्चन व दान के समय भूल कर भी आलस्य, गुस्सा, प्रमाद, लोभ, अहंकार और कंजूसी न करें, जिससे फलप्राप्ति में रूकावटें न हों।
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