पवित्र कार्तिक मास

पवित्र कार्तिक मास

कार्तिक या दामोदर मास सर्वोत्तम, पवित्र और अनंत महिमाओं से पूर्ण मास है । यह विशेषतः भगवान कृष्ण को अति प्रिय है और भक्त-वात्सल्य से परिपूर्ण है । इस मास में कोई भी छोटे से छोटा व्रत भी कई हज़ार गुना अधिक परिणाम देता है ।





कार्तिक माह में किए स्नान का फल, एक हजार बार किए गंगा स्नान के समान, सौ बार माघ स्नान के समान, वैशाख माह में नर्मदा नदी पर करोड़ बार स्नान के समान होता है. जो फल कुम्भ में प्रयाग में स्नान करने पर मिलता है, वही फल कार्तिक माह में किसी पवित्र नदी के तट पर स्नान करने से मिलता है. कार्तिक माह में सारा माह घर से बाहर किसी नदी अथवा सरोवर अथवा तालाब में स्नान करना चाहिए. इस माह में गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए. भोजन दिन में एक समय ही  करना चाहिए. जो व्यक्ति कार्तिक के पवित्र माह के नियमों का पालन करते हैं, वह वर्ष भर के सभी पापों से मुक्ति पाते हैं. इस माह में मांस नहीं खाना चाहिए. जो व्यक्ति मांस खाता है वह चाण्डाल बनता है।

कार्तिक माह में शिव, चण्डी, सूर्य तथा अन्य देवों के मंदिरों में दीप जलाने (दीप दान) तथा प्रकाश करने का बहुत महत्व माना गया है। इस माह में भगवान केशव का पुष्पों से अभिनन्दन करना चाहिए. ऎसा करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है।

कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि, शरद ऋतु की अंतिम तिथि होती है। यह तिथि बहुत ही पवित्र तथा पुण्यदायिनी मानी जाती है। इस दिन भारत के कई स्थानों पर मेले भी लगते हैं. कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर किसी भी व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए। इस दिन अपनी क्षमतानुसार दान भी करना चाहिए। यह दान किसी भी जरुरतमंद व्यक्ति को दिया जा सकता है. कार्तिक माह में पुष्कर, कुरुक्षेत्र तथा वाराणसी तीर्थ स्थान स्नान तथा दान के लिए अति महत्वपूर्ण माने गए हैं।

स्कंदपुराण के अनुसार
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‘मासानां कार्तिकः श्रेष्ठो देवानां मधुसूदनः।
तीर्थ नारायणाख्यं हि त्रितयं दुर्लभं कलौ।’
अर्थात्‌ भगवान विष्णु एवं विष्णुतीर्थ के सदृश ही कार्तिक मास को श्रेष्ठ और दुर्लभ कहा गया है।

‘न कार्तिसमो मासो न कृतेन समं युगम्‌।
न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थ गंगया समम्‌।’
कहा गया है कि कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं, सतयुग के समान कोई युग नहीं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।

कार्तिक, भगवान कृष्ण को दीप दिखाने का उत्सव है, और माता यशोदा द्वारा रस्सियों से ऊखल में बांधे गए भगवान कृष्ण (दामोदर) का गुणगान करने का मास है ।

कार्तिक (दामोदर) मास में सभी को निम्नलिखित (अनुष्ठानों) कार्यकलापों का पालन करना चाहिए: 

१) प्रतिदिन भगवान कृष्ण को घी का दीपक अर्पण करना और 'दामोदराष्टकम्' गाकर उसके तात्पर्य पर चिंतन करना ।
२) सभी को सदैव भगवान हरि का स्मरण करना चाहिए, हरिनाम जप और कीर्तन को बढ़ाना चाहिए ।
३) यथा-संभव वरिष्ठ वैष्णवों से श्रीमद-भागवतम का श्रवण करना। भागवत श्रवण के लिए अन्य व्यर्थ के कार्यों का त्याग कर देना चाहिए । गजेन्द्र मोक्ष जैसी अन्य सम्पूर्ण आत्मसमर्पण जैसी कथाओं का अधिक से अधिक श्रवण, अत्यंत लाभकारी होता है।
४) एकमात्र कृष्ण प्रसाद ही ग्रहण करना (खाना) चाहिए ।
५) श्रीचैतन्य महाप्रभु द्वारा रचित 'श्री शिक्षाष्टकम्' का प्रतिदिन उच्चारण तथा मनन करना चाहिए।
६) श्री रूप गोस्वामी कृत 'उपदेशामृत' का प्रतिदिन पठन करना चाहिए ।
७) तुलसी महारानी को प्रतिदिन जल तथा दीपदान करना चाहिए एवं प्रार्थना करनी चाहिए की वे हमें श्री राधा-कृष्ण के चरणों की सेवा प्रदान करें ।
८) भगवान के लिए स्वादिष्ट पकवानों का भोग लगाना चाहिए।
९) ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन करना चाहिए ।
१०) दैनिक जीवन में तपस्या का आचरण करना चाहिए ।

कार्तिक मास धर्मराज की कथा
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किसी गाँव में एक बुढ़िया रहती थी, वह बहुत नियम धर्म से व्रत रखा करती थी. एक दिन भगवान के घर से यमदूत उसे लेने आ गए और वह उनके साथ चल पड़ी. चलते-चलते एक गहरी नदी आई तो यमदूत बोले कि माई! तुमने गोदान की हुई है या नही? बुढ़िया ने उनकी बात सुनकर मन में श्रद्धा से गाय का ध्यान किया तो वह उनके समक्ष आ गई और बुढ़िया उस गाय की पूँछ पकड़कर नदी पार कर गई. वह यमदूतों के साथ फिर आगे बढ़ी तो काले कुत्ते आ गए. यमदूत फिर बोले कुत्तों को खाना दिया था? बुढ़िया ने मन में कुत्तों का ध्यान किया तो वे रास्ते से चले गए.

अब बुढ़िया फिर से आगे बढ़ने लगी तो रास्ते में कौए ने उसके सिर में चोंच मारनी शुरु कर दी तो यमदूत बोले कि ब्राह्मण की बेटी के सिर में तेल लगाया था? बुढ़िया ने ब्राह्मण की बेटी का ध्यान किया तो कौए ने चोंच मारनी बंद कर दी. कुछ आगे बढ़ने पर बुढ़िया के पैर में काँटे चुभने लगे तो यमदूत बोले कि खड़ाऊ आदि दान की है? बुढ़िया ने उनका ध्यान किया तो खड़ाऊ उसके पैरों में आ गई. बुढ़िया फिर आगे बढ़ी तो चित्रगुप्त जी ने यमराज से कहा कि आप किसे लेकर आए हो? यमराज जी बोले कि बुढ़िया ने दान-पुण्य तो बहुत किए हैं लेकिन धर्मराज जी का कुछ नहीं किया इसलिए आगे द्वार इसके लिए बंद हैं.

सारी बात सुनने के बाद बुढ़िया बोली कि आप मुझे सिर्फ सात दिन के लिए वापिस धरती पर भेज दो. मैं धर्मराज जी का व्रत और उद्यापन कर के वापिस आ जाऊँगी. बुढ़िया माई वापिस धरती पर अपने गाँव आ गई और गाँव वालों ने उसे भूतनी समझकर अपने दरवाजे बंद कर दिए. वह जब अपने घर गई तो उसके बहू-बेटे भी दरवाजे बंद कर के बैठ गये. बुढ़िया ने कहा कि मैं भूतनी नहीं हूँ, मैं तो धर्मराज जी की आज्ञा से वापिस धरती पर सात दिन के लिए आई हूँ. इन सातों दिनों में मैं धर्मराज जी का व्रत और उद्यापन करुँगी जिससे मुझे परलोक में जगह मिलेगी.

बुढ़िया की बातों से आश्वस्त होकर बहू-बेटे उसके लिए पूजा की सारी सामग्री एकत्रित करते हैं लेकिन जब बुढ़िया कहानी कहती है तब वह हुंकारा नहीं भरते जिससे बुढ़िया फिर अपनी पड़ोसन को कहानी सुनाती है और वह हुंकारा भरती है. सात दिन की पूजा, व्रत व उद्यापन के बाद धर्मराज जी बुढ़िया को लेने के लिए विमान भेजते हैं. स्वर्ग का विमान देख उसके बहू-बेटों के साथ सारे गाँववाले भी स्वर्ग जाने को तैयार हो गए. बुढ़िया ने कहा कि तुम कहाँ तैयार हो रहे हो? मेरी कहानी तो केवल पड़ोसन ने सुनी है इसलिए वही साथ जाएगी.

सारे गाँववाले बुढ़िया से धर्मराजी की कहानी सुनाने का आग्रह करते हैं तब बुढ़िया उन्हें कहानी सुना देती है. कहानी सुनने के बाद सारे ग्रामवासी विमान में बैठकर स्वर्ग जाते हैं तो धर्मराज जी कहते हैं मैने तो विमान केवल बुढ़िया को लाने भेजा था. बुढ़िया माई कहती है कि हे धर्मराज ! मैने जो भी पुण्य किए हैं उसमें से आधा भाग आप गाँववालों को दे दो. इस तरह से धर्मराज ने ग्रामवासियों को भी स्वर्ग में जगह दे दी.

हे धर्मराज महाराज! जैसे आपने बुढ़िया के साथ सभी गाँववालों को भी स्वर्ग में जगह दी उसी तरह से हमें भी देना. कहानी सुनकर हुंकारा भरने वालों को भी और कहानी कहने वाले को भी जगह देना।

धर्मराज महाराज जी की जय! 

'श्री दामोदराष्टकम्'. (सत्यव्रतमुनि कृत) 
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नमामीश्वरं सच्-चिद्-आनन्द-रूपं
लसत्-कुण्डलं गोकुले भ्राजमनम्
यशोदा-भियोलूखलाद् धावमानं
परामृष्टम् अत्यन्ततो द्रुत्य गोप्या ॥

वे भगवान् जिनका रूप सत, चित और आनंद से परिपूर्ण है, जिनके मकरो के आकार के कुंडल इधर उधर हिल रहे है, जो गोकुल नामक अपने धाम में नित्य शोभायमान है, जो (दूध और दही से भरी मटकी फोड़ देने के बाद) मैय्या यशोदा की डर से ओखल से कूदकर अत्यंत तेजीसे दौड़ रहे है और जिन्हें यशोदा मैय्या ने उनसे भी तेज दौड़कर पीछे से पकड़ लिया है ऐसे श्री भगवान को मै नमन करता हूँ ।।

रुदन्तं मुहुर् नेत्र-युग्मं मृजन्तम्
कराम्भोज-युग्मेन सातङ्क-नेत्रम्।
मुहुः श्वास-कम्प-त्रिरेखाङ्क-कण्ठ
स्थित-ग्रैवं दामोदरं भक्ति-बद्धम् ॥

(अपने माता के हाथ में छड़ी देखकर) वो रो रहे है और अपने कमल जैसे कोमल हाथो से दोनों नेत्रों को मसल रहे है, उनकी आँखे भय से भरी हुई हैं और उनके गले का मोतियो का हार, जो शंख के भाति त्रिरेखा से युक्त है, रोते हुए जल्दी जल्दी श्वास लेने के कारण इधर उधर हिल-डुल रहा है , ऐसे उन श्रीभगवान् को जो रस्सी से नहीं बल्कि अपने माता के प्रेम से बंधे हुए हैं, मैं  नमन करता हूँ ।।

इतीदृक् स्व-लीलाभिर् आनन्द-कुण्डे
स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम्।
तदीयेषित-ज्ञेषु भक्तैर् जितत्वं
पुनः प्रेमतस् तं शतावृत्ति वन्दे ॥

ऐसी बाल्यकाल की लीलाओ के कारण वे गोकुल के रहिवासीओ को आध्यात्मिक प्रेम के आनंदकुंड में डुबो रहे हैं, और जो अपने ऐश्वर्य सम्पूर्ण और ज्ञानी भक्तों को ये बतला रहे हैं कि “मैं अपने ऐश्वर्य हिन और प्रेमी भक्तों द्वारा जीत लिया गया हूँ”, ऐसे उन दामोदर भगवान को मैं शत्-शत् नमन करता हूँ ।। 

वरं देव मोक्षं न मोक्षावधिं वा
न चन्यं वृणे ‘हं वरेषाद् अपीह।
इदं ते वपुर् नाथ गोपाल-बालं
सदा मे मनस्य् आविरास्तां किम् अन्यैः ॥ 

हे भगवन्, आप सभी प्रकार के वर देने में सक्षम होने पर भी मैं आप से ना ही मोक्ष की कामना करता हूँ, ना ही मोक्षका सर्वोत्तम स्वरुप श्रीवैकुंठ की इच्छा रखता हूँ, और ना ही नौ प्रकार की भक्ति से प्राप्त किये जाने वाले कोई भी वरदान की कामना करता हूँ । मैं तो आपसे बस यही प्रार्थना करता हूँ कि आपका ये बालस्वरूप मेरे हृदय में सर्वदा स्थित रहे, इससे अन्य और कोई वस्तु का मुझे क्या लाभ ?

इदं ते मुखाम्भोजम् अत्यन्त-नीलैर्
वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश् च गोप्या।
मुहुश्चुम्बितं बिम्ब-रक्ताधरं मे
मनस्य् आविरास्ताम् अलं लक्ष-लाभैः ॥ 

हे प्रभु, आपका श्याम रंग का मुखकमल जो कुछ घुंघराले लाल बालों से आच्छादित है, मैय्या यशोदा द्वारा बार बार चुम्बन किया जा रहा है, और आपके ओठ बिम्बफल जैसे लाल हैं, आपका ये अत्यंत सुन्दर कमलरुपी मुख मेरे हृदय में विराजीत रहे । (इससे अन्य) सहस्त्रो वरदानों का मुझे कोई उपयोग नहीं है ।

नमो देव दामोदरानन्त विष्णो
प्रसीद प्रभो दुःख-जालाब्धि-मग्नम्।
कृपा-दृष्टि-वृष्ट्याति-दीनं बतानु
गृहाणेष माम् अज्ञम् एध्य् अक्षि-दृश्यः ॥ 

हे प्रभु, मेरा आपको नमन है । हे दामोदर, हे अनंत, हे विष्णु, आप मुझपर प्रसन्न होवें (क्यूंकि) मैं संसाररूपी दुःख के समुन्दर में डूबा जा रहा हूँ । मुझ दीनहीन पर आप अपनी अमृतमय कृपा की वृष्टि कीजिये और कृपया मुझे दर्शन दीजिये ।।

कुबेरात्मजौ बद्ध-मूर्त्यैव यद्वत्
त्वया मोचितौ भक्ति-भाजौ कृतौ च।
तथा प्रेम-भक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ
न मोक्षे ग्रहो मे ‘स्ति दामोदरेह ॥

हे दामोदर (जिनके पेट से रस्सी बंधी हुयी है वो), आपने माता यशोदा द्वारा ऊखल में बंधे होने के बाद भी  कुबेर के पुत्रों (मणिग्रिव तथा नलकुबेर) जो नारदजी के श्राप के कारण वृक्ष के रूप में मूर्ति की तरह स्थित थे, उनका उद्धार किया और उनको भक्ति का वरदान दिया, आप उसी प्रकार से मुझे भी प्रेमभक्ति प्रदान कीजिये, यही मेरा एकमात्र आग्रह है, किसी और प्रकार की कोई भी मोक्ष के लिए मेरी कोई कामना नहीं है ।

नमस्ते ‘स्तु दाम्ने स्फुरद्-दीप्ति-धाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने।
नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै
नमो ‘अनन्त-लीलाय देवाय तुभ्यम् ॥ 

हे दामोदर, आपके उदर से बंधी हुयी महान रज्जू (रस्सी) को प्रणाम् है, और आपके उदर, जो निखिल ब्रह्मतेज का आश्रय है, और जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का धाम है, को भी प्रणाम है । श्रीमती राधिका जो आपको अत्यंत प्रिय है उन्हें भी प्रणाम है, और हे अनन्त लीलाएँ करने वाले भगवन्, आपको अनन्त प्रणाम है।
पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ

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