विजय दशमी,शस्त्र पूजन दिवस :- पंडित कौशल पाण्डेय 9968550003

विजय दशमी,शस्त्र पूजन दिवस :- पंडित कौशल पाण्डेय 9968550003

आश्विन शुक्ल दशमी को विजय दशमी कहा जाता है, विजय के संदर्भमें दशहरा के दिन शास्त्र में बताया गया है की विजय प्राप्ति के लिए शस्त्र (हथियार) की पूजा अवश्य करे , आज के दिन नवीन हंथियार खरीद कर घर की दक्षिण दिशा में टांगना चाहिए साथ ही समी और अपराजिता वृक्ष की पूजा करे और दोनों की जड़ दाहिने हाँथ में बांधने से समाज में यश और कीर्ति बढती है , क्योंकी दशहरा के दिन ही नौ दिनों तक माँ दुर्गा की पूजा-आराधना करने के बाद भगवान श्री राम ने अभिमानी रावण का वध कर के इस संसार को असत्य पर सत्य की जीत का सन्देश दिया था

shami poojan




विजयदशमी का पर्व रावण पर राम की जीत यानी असत्य पर सत्य की जीत के लिए मनाया जाता है आज भी संपूर्ण रामायण की रामलीला नवरात्रों में ही सम्पन्न की जाती है और दसवें दिन सायंकाल में रावण का पुतला जलाया जाता है। इस दौरान यह ध्यान रखा जाता है कि दाह के समय भद्रा न हो। त्रेतायुग में रावण की मृत्यु अष्टमी-नवमी के संधिकाल में और दाह संस्कार दशमी तिथि को हुआ।

प्रति वर्ष विजय दशमी पर महापंडित महाज्ञानी रावण का पुतला लोग जलाते है लिकेन अपने अंदर छिपे रावण रुपी काम क्रोध लोभ मोह अंहकार को बहार नही निकाल पाते है सब से पहले अपने अंदर से अंहाकर रूपी रावण का दहन करना चाहिए और श्री राम जैसे मर्यादा पुरुसोत्तम के जीवन से सीख लेकर अपना सभी कार्य करना चाहिए।
शुक्रवार के दिन शस्त्र , शमी अपराजिता पूजा का विधान है आइये जानते शमी और अपराजिता पूजा के बारे में

देवी अपराजिता के पूजन का आरंभ तब से हुआ है जब से चारों युगों की शुरुआत हुई। नवदुर्गाओं की माता अपराजिता संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्तिदायिनी और ऊर्जा उत्सर्जन करने वाली हैं। विजयदशमी को प्रातःकाल अपराजिता लता का पूजन, अतिविशिष्ट पूजा-प्रार्थना के बाद विसर्जन और धारण आदि से महत्वपूर्ण कार्य पूरे होते हैं। ऐसी पुराणों में मान्यता हैं। देवी अपराजिता को देवताओं द्वारा पूजित, महादेव, सहित ब्रह्मा विष्णु और विभिन्न अवतार के द्वारा नित्य ध्यान में लाई जाने वाली देवी कहा है।

विजयादशमी के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की प्रथा है। मान्यता है कि यह भगवान श्री राम का प्रिय वृक्ष था और लंका पर आक्रमण से पहले उन्होंने शमी वृक्ष की पूजा करके उससे विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था। आज भी कई स्थानों पर 'रावण दहन' के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते स्वर्ण के प्रतीक के रूप में एक दूसरे को बाँटने की प्रथा हैं, इसके साथ ही कार्यों में सफलता मिलने कि कामना की जाती है।

शमी वृक्ष का वर्णन महाभारत काल में भी मिलता है। अपने 12 वर्ष के वनवास के बाद एक साल के अज्ञातवास में पांडवों ने अपने सारे अस्त्र शस्त्र इसी पेड़ पर छुपाये थे, जिसमें अर्जुन का गांडीव धनुष भी था। कुरुक्षेत्र में कौरवों के साथ युद्ध के लिये जाने से पहले भी पांडवों ने शमी के वृक्ष की पूजा की थी और उससे शक्ति और विजय प्राप्ति की कामना की थी। तभी से यह माना जाने लगा है कि जो भी इस वृक्ष कि पूजा करता है उसे शक्ति और विजय प्राप्त होती है।

शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी ।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया ।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता ॥

अर्थात "हे शमी, आप पापों का क्षय करने वाले और दुश्मनों को पराजित करने वाले हैं। आप अर्जुन का धनुष धारण करने वाले हैं और श्री राम को प्रिय हैं। जिस तरह श्री राम ने आपकी पूजा की मैं भी करता हूँ। मेरी विजय के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं से दूर कर के उसे सुखमय बना दीजिये।

शमी के पेड़ की पूजा करने से घर में शनि का प्रकोप कम होता है। यूं तो शास्त्रों में शनि के प्रकोप को कम करने के लिए कई उपाय बताएं गए हैं। लेकिन इन सभी उपायों में से प्रमुख उपाय है शमी के पेड़ की पूजा। घर में शमी का पौधा लगाकर पूजा करने से आपके कामों में आने वाली रुकावट दूर होगी।

उत्तर भारत के बिहार और झारखंड में सुबह के समय उठने के बाद शमी के वृक्ष के दर्शन को शुभ माना जाता है। बिहार और झारखंड में यह वृक्ष अधिकतर घरों के दरवाजे के बाहर लगा हुआ मिलता है। लोग किसी भी काम पर जाने से पहले इसके दर्शन करते और इसे माथे से लगाते हैं, ऐसे करने से उन्हें उस काम में कामयाबी मिलती है।
शमी की पूजा के साथ ही एक सवाल यह भी है कि इस पेड़ को घर में किस तरफ लगाना चाहिए। शमी के वृक्ष को घर के मुख्य दरवाजे के बांयी तरफ लगाएं। इसके बाद नियमित रूप से सरसों के तेल का दीपक जलाएं। आपके घर और परिवार के सभी सदस्यों पर सदैव शनि की कृपा बनी रहेगी।

विजय दशमी के दिन ‘माता अपराजिता’ का पूजन किया जाता है। विजयदशमी का पर्व उत्तर भारत में आश्विन शुक्ल पक्ष के नवरात्र संपन्न होने के उपरांत मनाया जाता है। शास्त्रों में दशहरे का असली नाम विजयदशमी है, जिसे 'अपराजिता पूजा' भी कहते हैं। अपराजिता देवी सकल सिद्धियों की प्रदात्री साक्षात माता दुर्गा का ही अवतार हैं। भगवान श्री राम ने माता अपराजिता का पूजन करके ही राक्षस रावण से युद्ध करने के लिए विजय दशमी को प्रस्थान किया था। यात्रा के ऊपर माता अपराजिता का ही अधिकार होता है।
ज्योतिष के अनुसार माता अपराजिता के पूजन का समय अपराह्न अर्थात दोपहर के तत्काल बाद का है। अत: अपराह्न से संध्या काल तक कभी भी माता अपराजिता की पूजा कर यात्रा प्रारंभ की जा सकती है। यात्रा प्रारंभ करने के समय माता अपराजिता की यह स्तुति करनी चाहिए, जिससे यात्रा में कोई विघ्न उत्पन्न नहीं होता-

शृणुध्वं मुनय: सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम्।असिद्धसाधिनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।।
नीलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणोज्ज्वलाम्।बालेन्दुमौलिसदृशीं नयनत्रितयान्विताम्।।
पीनोत्तुङ्गस्तनीं साध्वीं बद्धद्मासनां शिवाम्।अजितां चिन्येद्देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।।


अपराजिता देवी का पूजन करने से देवी का यह रूप पृथ्वी तत्त्व के आधार से भूगर्भ से प्रकट होकर, पृथ्वी के जीवों के लिए कार्य करता है । अष्टदल पर आरूढ़ हुआ यह त्रिशूलधारी रूप शिव के संयोग से, दिक्पाल एवं ग्राम देवता की सहायता से आसुरी शक्तियां अर्थात बुरी शक्तियों का नाश करता है। दशमी तिथि की संज्ञा ‘पूर्ण’ है, अत: इस दिन यात्रा प्रारम्भ करना श्रेष्ठ माना जाता है। श्री वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रवण नक्षत्र युक्त विजय दशमी को ही भगवान श्री राम ने किष्किंधा से दुराचारी राक्षस रावण का विनाश करने के लिए हनुमानादि वानरों के साथ प्रस्थान किया था। आज तक रावण वध के रूप में विजय दशमी को अधर्म के विनाश के प्रतीक पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।
पूजा के समय वृक्षके नीचे चावल, सुपारी हल्दी की गांठ और मुद्रा रखते हैं । फिर वृक्षकी प्रदक्षिणा कर उसके मूल (जड़) के पासकी थोड़ी मिट्टी व उस वृक्षके पत्ते घर लाते हैं । ऐसा जो आज की दिन करता है यह साल भर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है


..अपराजिता देवी सकल सिद्धियों की प्रदात्री साक्षात माता दुर्गा का ही अवतार हैं।

यात्रा प्रारंभ करने के समय माता अपराजिता की यह स्तुति अनिवार्य रूप से करनी चाहिए, जिससे यात्रा में कोई विघ्न उपस्थित नहीं होता-

शृणुध्वं मुनय: सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम्। असिद्धसाधिनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।। 
नीलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणोज्ज्वलाम्।बालेन्दुमौलिसदृशीं नयनत्रितयान्विताम्।। 
पीनोत्तुङ्गस्तनीं साध्वीं बद्धपद्मासनां शिवाम्। अजितां चिन्तयेद्देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।।

सनातन धर्म के अनुसार मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखना चाहिए। मंत्र- साधक के बारे में यह बात किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि वो किस मंत्र का जप करता है या कर रहा है। यदि मंत्र के समय कोई पास में है तो मानसिक जप करना चाहिए।


पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ

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