महालक्ष्मी पूजा विधि एवं व्रत कथा

*_पितृपक्ष की अष्टमी के शुभ दिन मां लक्ष्मी को ऐसे करें प्रसन्न_*

                *_पूजन विधि_* 
*_यह व्रत भादो शुक्ल अष्टमी से शुरू किया जाता है और इस दिन एक सकोरे में ज्वारे (गेहूं) बोये जाते हैं। प्रतिदिन 16 दिनों तक इन्हें पानी से सींचा जाता है। ज्वारे बोने के दिन ही कच्चे सूत (धागे) से 16 तार का एक डोरा बनाया जाता है। इस डोरे की लंबाई आसानी से गले में पहन जा सके इतनी रखी जाती है। इस डोरे में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर 16 गांठें बांधकर हल्दी से इसे पीला करके पूजा के स्थान में रख दिया जाता है और प्रतिदिन 16 दूब और 16 गेहूं चढ़ाकर पूजन किया जाता है।_*
 
*_आश्विन यानी क्वांर मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन दूसरे शब्दों में पितृ पक्ष की अष्टमी पर  उपवास रखकर श्रृंगार करके 18 मुट्ठी गेहूं के आटे से 18 मीठी पूड़ी बनाई जाती है तथा आटे का एक दीपक बनाकर 16 पु‍ड़ियों के ऊपर रखें तथा दीपक में एक घी-बत्ती रखें, शेष दो पूड़ी महालक्ष्मी जी को चढ़ाने के लिए रखें।_*
 
*_पूजन करते समय इस दीपक को जलाएं तथा कथा पूरी होने तक दीपक जलते रखना चाहिए। अखंड ज्योति का एक और दीपक अलग से जलाकर रखें। पूजन के पश्चात इन्हीं 16 पूड़ी को सिवैंया की खीर या मीठे दही से खाते हैं। इस व्रत में नमक नहीं खाते हैं। इन 16 पूड़ी को पति-पत्नी या पुत्र ही खाएं, अन्य किसी को नहीं दें। मिट्टी का एक हाथी बनाएं या कुम्हार से बनवा लें जिस पर महालक्ष्मी जी की मूर्ति बैठी हो। यह हाथी क्षमता के अनुसार सोने,चांदी,पीतल, कांसे या ताम्बे का भी हो सकता है ..._*
 
*_सायंकाल जिस स्थान पर पूजन करना हो, उसे गोबर से लीपकर पवित्र करें। रंगोली बनाकर बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर हाथी को रखें। तांबे का एक कलश जल से भरकर पटे के सामने रखें। एक थाली में पूजन की सामग्री (रोली, गुलाल, अबीर, अक्षत, आंटी (लाल धागा), मेहंदी, हल्दी, टीकी, सुरक्या, दोवड़ा, दोवड़ा, लौंग, इलायची, खारक, बादाम, पान, गोल सुपारी, बिछिया, वस्त्र, फूल, दूब, अगरबत्ती, कपूर, इत्र, मौसम का फल-फूल, पंचामृत, मावे का प्रसाद आदि) रखें। केल के पत्तों से झांकी बनाएं।_*

 *_संभव हो सके तो कमल के फूल भी चढ़ाएं। पटे पर 16 तार वाला डोरा एवं ज्वारे रखें। विधिपूर्वक महालक्ष्मीजी का पूजन करें तथा कथा सुनें एवं आरती करें। इसके बाद डोरे को गले में पहनें अथवा भुजा से बांधें। भोजन के पश्चात रात्र‍ि जागरण तथा भजन-कीर्तन करें। दूसरे दिन प्रात:काल हाथी को जलाशय में विसर्जन करके सुहाग-सामग्री ब्राह्मण को दें।_*
 
*_फिर से बताते चलें कि दिवाली से भी ज्यादा महत्व है इस गजलक्ष्मी व्रत का, मान्यता यह है कि इस दिन खरीदा सोना 8 गुना बढ़ता है...._*
 
*_इस अष्टमी को लक्ष्मी जी का वरदान प्राप्त है। इस दिन सोना खरीदने का महत्व है। शादी की खरीदारी के लिए भी यह दिन उपयुक्त माना गया है। इस दिन हाथी पर सवार मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है।_*
 
*_सरल विधि से भी पूजा की जा सकती है_*
 
*_शाम के समय स्नान कर घर के देवालय में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर केसर मिले चन्दन से अष्टदल बनाकर उस पर चावल रख जल कलश रखें।_*
 
*_कलश के पास हल्दी से कमल बनाकर उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति प्रतिष्ठित करें। मिट्टी का हाथी बाजार से लाकर या घर में बना कर उसे स्वर्णाभूषणों से सजाएं। नया खरीदा सोना हाथी पर रखने से पूजा का विशेष लाभ मिलता है। श्रद्धानुसार चांदी या सोने का हाथी भी ला सकते हैं।_*

*_माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने श्रीयंत्र भी रखें। कमल के फूल से पूजन करें।_*
 
*_इसके अलावा सोने-चांदी के सिक्के, मिठाई, फल भी रखें।_*
 
*_इसके बाद माता लक्ष्मी के आठ रूपों की इन मंत्रों के साथ कुंकुम, अक्षत और फूल चढ़ाते हुए पूजा करें-_*

*_ॐ आद्यलक्ष्म्यै नम:_*
*_ॐ विद्यालक्ष्म्यै नम:_*
*_ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नम:_*
*_ॐ अमृतलक्ष्म्यै नम:_*
*_ॐ कामलक्ष्म्यै नम:_*
*_ॐ सत्यलक्ष्म्यै नम:_*
*_ॐ भोगलक्ष्म्यै नम:_*
*_ॐ योगलक्ष्म्यै नम:_*
 
*_इसके बाद धूप और घी के दीप से पूजा कर नैवेद्य या भोग लगाएं।_*
 
 *_महालक्ष्मी जी की आरती करें।_*
 
*_इस दिन महालक्ष्मी के विशेष आशीष झरते-बरसते हैं।_*

🙏 *_श्राद्ध पर्व के 8वें दिन बरसते हैं गजलक्ष्मी के आशीर्वाद, आजमाएं यह उपाय_*
 
*_पितृ पक्ष की अष्टमी के दिन किसी भी ब्राह्मण सुहागन स्त्री को सोना,कलश, इत्र, आटा, शक्कर और घी भेंट करें। इसके अलावा किसी कुंवारी कन्या को नारियल, मिश्री, मखाने तथा चांदी का हाथी भेंट करना उचित रहेगा।_*
 
*_ऐसा करने से महालक्ष्मी अवश्य प्रसन्न होंगी। इसके अलावा ये सभी सामग्रियां आप चाहें तो अपनी बेटी को भी दे सकते हैं।_*
 
*_अगर आप भी चाहते हैं धन की बरखा में सुखद स्नान तो 28 और 29 सितम्बर का गजलक्ष्मी व्रत है अंतिम अवसर। यह विशेष संयोग अत्यंत शुभदायक है।_*
 
*_गजलक्ष्मी व्रत में अगर अपनी राशि अनुसार विधि-विधान से पूजन किया जाए तो महालक्ष्मी विशेष प्रसन्न होती हैं और जीवन में धन-समृद्धि आती है। आइए, जानें किस-किस राशि वाले जातक को किस प्रकार से पूजन करने से इष्टतम लाभ हो सकता है।_*

🌹*श्री महाँलक्ष्मी व्रत कथा*  
*एक राजा था उसकी दो पत्नियां थी , उम्नी और दुम्नी , धन वैभव भरपूर था ! एक दिन राजा के महल मे एक ब्राह्मणी धागे लेकर आई और इन धागों के महत्व के बारे मे बताया कि यह व्रत सौभग्य स्त्रियाँ रखती है संतान व गृहस्थ सुख प्राप्ति के लिये जी ! व्रत कि सारी जानकारी देकर व धागे देकर चली जाती है , उम्नी ऊन धागों को फेंक देती है और दुम्नी ऊन धागों को पहन लेती है , दुम्नी पर श्री महालक्ष्मी जी कि कृपा होती है और उसे संतान कि प्राप्ति होती है , परन्तु उम्नी का मुँह सूअर कि तरह बन जाता है , जब राजा अपने महल मे आता है तो उस उम्नी को देखकर डर जाता है ,और वह अपनी पत्नी उम्नी को पहचान नहीँ पाता है  और उसे अपने राज़महल से बाहर निकाल देता है , उम्नी अपने दुखों को लेकर जंगल कि और चल देती है , रास्ते मे जो व्यक्ति उसे देखता है  और उसे देख के डर जाता है , उम्नी बहुत दुखी होती है , तब रास्ते मे उसे एक बुढ़िया मिलती है , वह बुढ़िया उसे उस दुखी होने का कारण पूछती है तब उम्नी उसे अपनी बीती सारी बातें बता देती है , और बुढ़िया उसे धीरज रखने को कहती है , और कहती है तुम चिंता मत करो ! महालक्ष्मी सब ठीक करेगी , तब वह उसे एक साधु कि कुटिया मे जाने को कहती है , वह उम्नी साधु कि कुटिया मे जाती है , उस समय साधु कुटिया से भिक्षा माँगने के लिये गया होता है , उस दिन उस साधु को काफ़ी सारी भिक्षा मिलती है वह समझ जाता है कि आज़ मेरी कुटिया मे कोई आया हुआ है तब वह कुटिया मे जाता है , और कुटिया मे साधु को देखकर उम्नी अन्दर से दरवाज़ा बंद कर देती है और कहती है साधु से जब तक आप मुझे धर्म के रुप मे अपनी बेटी नहीँ मानते तब तक मे दरवाज़ा नहीँ  खोलूंगी ! तब साधु उस कि बात मान जाता है , और वह दरवाज़ा खोल देती है , साधु उसकी दुर्दशा को देख कर उसका कारण पूँछता है  और वह अपनी इस दशा के बारे मे बताती है कि मेने किस प्रकार श्री महालक्ष्मी के व्रत का अपमान किया , जिससे मेरी यह दुर्दशा हुई और मेरे राजा ने मुझे अपने राजमहल से बहिस्कार कर दिया , यह बात सुनकर साधु उसको धीरज रखने के लिये कहता है और श्री महालक्ष्मी जी से क्षमाँ माँगने के लिये कहता है , और उनकी पूजा करने के लिये कहता है इस तरह एक वर्ष व्यतीत हो जाता है , जब अगले साल श्री महालक्ष्मी जी का व्रत आता है तब उम्नी इस व्रत को अपने पूरे मनोभाव से रखती है और उनकी पूजा करती है , माता श्री महालक्ष्मी जी से अपनी गलती कि क्षमाँ माँगती है , और अपने सौभग्य प्राप्ति के लिये कामना करती है तब माता लक्ष्मी जी उस व्रत से सन्तुष्ट होती है और प्रसन्न होती है और उस पर अपनी कृपा करती है , तब राजा के मन मे अपनी पत्नी उम्नी को खोजने कि इच्छा प्रगट होती है और राजा अपने मंत्री के साथ जंगल कि और चल देता है रास्ते मे उसे राजा को भूख लगती है तब वह एक तितर को मार कर उसको बनाने के लिये कहता है , मंत्री उस तितर को बनाता है परन्तु उससे वह तितर जल जाता है और परेशान होने लगता है , राजा के डर से बचने के लिये कुछ सोचने का प्रयत्न करता है पर उसे कुछ समझ मे नहीँ आता है , उतनी देर मे राजा कि पत्नी उम्नी वहाँ आ जाती है और उसे परेशान देखकर उसका कारण पूछती है तब वह मंत्री अपनी परेशानी का कारण बताता है , तब रानी उसकी मदत करने को कहती वह उस तितर को दूध मे धोकर देती है और राजा के समीप जाने को कहती है मंत्री उस तितर को लेकर जाता है , जब राजा इस तितर को खाता है वह इस स्वाद को पहचान जाता है , और मंत्री से पूछता है यह किस ने बनया तब मंत्री अपनी बात बता देता है , राजा यह बातें सुनकर अपनी पत्नी उम्नी के पास जाता है अपनी पत्नी के पास पहुँचकर उम्नी को अपने साथ चलने के लिये कहता है , उसी समय साधु वहाँ आ जाता है और यह द्रश्य देखकर कहता है कि राजन यह अब तुम्हारे साथ नहीँ जा सकती , क्योंकि मेने इसको धर्म के रुप मे अपनी पुत्री स्वीकार किया हुआ है जब तक मे इसका तुम्हारे साथ पुन: विवाह नहीँ कर लेता तब तक मे तम्हारे साथ नहीँ भेज सकता ! राजा ने कहाँ ठीक है , तब साधु ऊन दोनो का पुन: विवाह करवाता है , और दोनो को विदा करता है , और कहता है उम्नी यह कुजे मे दही है और दिया जल रहा है जब तक दिया जलता रहेगा व दही छलकेंगा तबतक मे जीवित रहूंगा जैसे है दीपक बुझ जायेगा और दही छलक जायेगा समझ लेना मेरी मृत्यु हो गई , एैसा कह कर उनको आदर पूर्वक विदा करता है , जब तोड़ी दूर चलने पर दही छलक जाता है और दिया भी बुझ जाता है तब रानी चिंता करती हुई वापिस वही साधु के पास जाती है साधु को सही सलामत देखकर हैरान हो जाती है और साधु से इसका कारण पूँछती है , और साधु कहता है उम्नी यह तुम्हारी परीक्षा लें रहा था कि कहीँ तुम अपना राज़ पाठ व पति मिलने पर कहीँ तुम मुझे भूल तो नहीँ जाती , परन्तु तुमने एैसा कुछ नहीँ किया , तुम इस परीक्षा मे सफल हुई मे तुम्हे आशीर्वाद देता हूँ तुम सदा सुहागन रहो तथा सदा खुश रहो , यह कहकर उनको फ़िर से विदा करता है दोनो अपने घर कि चल देते है , श्री महालक्ष्मी कि कृपा से अपना सुखी जीवन व्यतीत करते है !* 

दोहा ---****

*उम्नी , दुम्नी बहु बलटेढ़ा , मंगल सिंह राजा घोड़ी चढ़ आया , दूध पूत लक्ष्मी घर लें आया राजा पूजे अपने राज़नूं मे पूंजा अपने सुहागनूं !*

बोलो श्री महालक्ष्मी मईया कि जय !🙏🌹

.                      ✺❣️🌹❣️✺

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