गणपति स्थापना व पूजा सामग्री

गणपति स्थापना 2023: पंडित कौशल पाण्डेय 
‘वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।निर्विघ्नं कुरु मे दे सर्व कार्येषु सर्वदा।। 
भाद्रपद  मास के शुक्‍ल पक्ष की चतुर्थी को श्री गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन घर में भगवान गणेश की स्‍थापना की जाती है। प्राचीन काल से ही ऐसी  मान्यता है कि देवो में प्रथम पूज्य गणपति को अपने घर में प्रतिष्ठापित करने से सारे कष्ट मिट जाते हैं।  गणपति महाराज विघ्नों को दूर करने वाले और मंगल करने वाले देव हैं। गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक जब तक भगवान श्री गणेश का घर मे पूजन हो तामसिक भोजन से दूर रहे। 

श्री गणेश की मूर्ति कैसी हो
बहुत से श्रद्धालु सवाल करते है की श्री गणेश की प्रतिमा में  कौन सी सूंड होनी चाहिए दाईं सूंड या बाईं सूंड  यानी किस तरफ सूंड वाले श्री गणेश पूजनीय हैं? 
 जिस मूर्ति में सूंड के अग्रभाव का मोड़ दाईं ओर हो, उसे दक्षिण मूर्ति या दक्षिणाभिमुखी मूर्ति कहते हैं।  
दाईं सूंड वाले गणपति को 'जागृत' माना जाता है। ऐसी मूर्ति की पूजा में कर्मकांडांतर्गत पूजा विधि के सर्व नियमों का यथार्थ पालन करना आवश्यक है। उससे सात्विकता बढ़ती है व दक्षिण दिशा से प्रसारित होने वाली रज लहरियों से कष्ट नहीं होता।

 दक्षिणाभिमुखी मूर्ति की पूजा सामान्य पद्धति से नहीं की जाती, इसलिए यह बाजू अप्रिय है। 
यदि दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें या सोते समय दक्षिण की ओर पैर रखें तो जैसी अनुभूति मृत्यु के पश्चात अथवा मृत्यु पूर्व जीवित अवस्था में होती है, वैसी ही स्थिति दक्षिणाभिमुखी मूर्ति की पूजा करने से होने लगती है। विधि विधान से पूजन ना होने पर यह श्री गणेश रुष्ट हो जाते हैं। 

बाईं सूंड : जिस मूर्ति में सूंड के अग्रभाव का मोड़ बाईं ओर हो, उसे वाममुखी कहते हैं। वाम यानी बाईं ओर या उत्तर दिशा। बाई ओर चंद्र नाड़ी होती है। यह शीतलता प्रदान करती है एवं उत्तर दिशा अध्यात्म के लिए पूरक है, आनंददायक है।

इसलिए पूजा में अधिकतर वाममुखी गणपति की मूर्ति रखी जाती है। इसकी पूजा प्रायिक पद्धति से की जाती है। इन  गणेश जी को गृहस्थ जीवन के लिए शुभ माना गया है। इन्हें विशेष विधि विधान की जरुरत नहीं लगती। यह शीघ्र प्रसन्न होते हैं। थोड़े में ही संतुष्ट हो जाते हैं। त्रुटियों पर क्षमा करते हैं। 

शुभ मुहूर्त और पूजा विधि…
गणेश स्‍थापना का शुभारंभ करने के लिए शुभ मुहूर्त 

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि शुरू - 18 सितंबर 2023, दोपहर 12.39

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि समाप्त - 19 सितंबर 2023, दोपहर 01.43

  • गणेश स्थापना समय - सुबह 11.07 - दोपहर 01.34 (19 सितंबर 2023)
स्‍थापना के लिए कुछ विशेष जानकारी 
पूजा के लिए घर में उत्तर पूर्व दिशा का चयन करे घर में 3 बीते से बड़ी मूर्ति की स्थापना नहीं की जाती है कई लोग दिखावे के लिए बड़ी मूर्ति ले आते है बाद में उन्हें नदी या तालाब में विसर्जित कर देते है जहाँ बाद में वह किनारे पर पड़े रहते है इसलिए हमेशा मिटटी की मूर्ति लाये जो बाद में पानी में आसानी से घूल  जाये 
सनातन धर्मं में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले संकल्प किया जाता है आइये जानते है संकल्प कैसे करे। 
पहले दाएं हाथ में अक्षत (चावल) और गंगाजल लेकर संकल्प करें कि हम श्री गणेश को अपने घर तीन, पांच, सात या दस दिन के लिए विराजमान करेंगे।
ॐ श्री गणेशाय नम: मंत्र के साथ संकल्प लें। 
यह संकल्प हुआ कि आप भगवान गणपति को अपने घर में विराजमान करेंगे। प्रतिदिन उनकी पूजा करेंगे।

पूजा स्थल
घर में पूजा स्थल का चयन उत्तर पूर्व दिशा में ही करे इसके उपरांत कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं, एक मुट्ठी अक्षत रखें। श्री गणेश स्थापना के लिए एक चौकी रखें उस पर लाल या पीले वस्त्र बिछाएं, रंगोली बनाकर एक तांबे के कलश में सर्व प्रथम गंगाजल डालकर  पानी से भरे इसके बाद उसमे २ सुपारी , हल्दी की गांठ ,पांच रत्न आदि डालकर  आम के पत्ते और नारियल के साथ सजाएं फिर श्री गणेश को  ऊँचे आसान पर विराजमान कर के स्वच्छ और नवीन वस्त्र धारण कराये और फूल-माला पहनाये।
इसके उपरांत पूजन कर के नैवेद्य अर्पण करे गणपति को लड्डू का भोग लगाएं। लाल या पीले पुष्प चढ़ाएं। प्रतिदिन प्रसाद के साथ पंच मेवा जरूर रखें।
घर में प्रतिदिन मंगलगान करें व्  कीर्तन करें

पूजन सामग्री 

गणेश स्‍थापना से पहले पूजा की सारी सामग्री एकत्र कर लें। गणपति पूजा सामग्री  इस प्रकार से है । 
पूजन विधि और सामग्री : पंचोपचार पूजन- 1. गंध, 2. पुष्प, 3. धूप, 4. दीप, 5 नैवेद्य।
षोडषोपचार पूजन-
1. आह्वान,2 आसन3 पाद्य (हाथ में जल लेकर मंत्र पढ़ते हुए प्रभु के चरणों में अर्पित करें),4. अर्घ्य
5 आचमन6. स्नान (पान के पत्ते या दूर्वा से स्नान कराएं)7. वस्त्र8. जनेऊ9. हार, मालाएं10. गंध (इत्र छिड़कें या चंदन अर्पित करें),
11. पुष्प,12. धूप,13. दीप,14. नैवेद्य (पान के पत्ते पर फल, मिठाई, मेवे आदि रखें।),15. ताम्बूल (पान चढ़ाएं),
16. प्रदक्षिणा व पुष्पांजलि।
 
गणेशजी को तुलसी पत्र छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय हैं! गणपतिजी को दूर्वा अधिक प्रिय है। 
भगवान गणेश को गुड़हल का लाल फूल विशेष रूप से प्रिय है। इसके अलावा चांदनी, चमेली या पारिजात के फूलों की माला बनाकर पहनाने से भी गणेश जी प्रसन्न होते हैं। गणपति का वर्ण लाल है, उनकी पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल व रक्तचंदन का प्रयोग किया जाता है।
गणेशजी के दो दांत हैं एक अखंड और दूसरा खंडित। अखंड दां त श्रद्धा का प्रतीक है यानि श्रद्धा हमेशा बनाए रखनी चाहिए। खंडित दांत है बुद्धि का प्रतीक इसका तात्पर्य एक बार बुद्धि भ्रमित हो, लेकिन श्रद्धा न डगमगाए। गणेश चतुर्थी के दिन गजमुख को प्रसन्न करने के लिए जो लोग भक्तिपूर्वक गणेश की पूजा करते हैं, उनके विघ्नों का सदा के लिए नाश होता है और उनकी कार्यसिद्धियां होती रहती हैं।

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