श्राद्ध पक्ष 18 सितंबर 2024 से 2 अक्टूबर 2024 :-पंडित कौशल पाण्डेय

श्राद्ध पक्ष 18 सितंबर 2024 से  2 अक्टूबर 2024 :-पंडित कौशल पाण्डेय 
#Shraddha-Pitapaksh



  • शास्त्रो मे मनुष्यो के लिए तीन प्रकार के ऋण कहे गये है, देवऋण, ऋषिऋण तथा पितृऋण । संबधित  लेख पितृऋण के विषय मे आधारित है ।
श्राद्ध तिथि 2024


 पितृऋण का अर्थ है, अपने दिवंगत माता-पिता तथा अन्य पूर्वज, जिनके द्वारा हमने दुर्लभ मनुष्य योनि मे जन्म लिया। अपने उन पूर्वजो के निमित्त फर्ज या कर्तव्य को ही पितृऋण क्हा जाता है ।
शास्त्रानुसार माना जाता है कि चौरासी लाख योनियों मे जन्म लेने, या भटकने के पश्चात ही हमे सबसे उत्तम मनुष्य योनि प्राप्त होती है ।

पितरीऋण को कई अलग-२ प्रकार से चुकाया जाता है, जिसमे से पितृपक्ष यानि कनागत अथार्त पितृपक्ष के इन पंद्रह दिनो के दौरान श्राद्ध कर्म, पितृरो के ऋण चुकाने का एक मुख्य तथा महत्वपूर्ण कर्म है । प्रतिवर्ष साल मे एक बार, अश्विन मास कृष्णपक्ष के पंद्रह दिनो मे लिए पितृपक्ष (कनागत/श्राद्ध) आते है, इन दिनो मे, जिन माता-पिता अथवा पूर्वजों ने हमे पैदा किया, जीवन दिया हमारी आयु, आरोग्यता, शिक्षा तथा सुख-सौभाग्य के लिए अनेकों प्रकार के दुखो को झेला, उन पूर्वजो के ऋणो से मुक्त होने पर ही मनुष्य का जीवन अथवा जन्म सार्थक होता है।

माता- पिता तथा अन्य बडो की सेवा प्रत्येक मनुष्य को जीवनभर करनी ही चाहिये, शास्त्रो मे क्हा गया है कि :-

पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता ही परमं तपः ।
पितिरिम प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवता ॥

अथार्त पिता ही धर्म है, पिता ही स्वर्ग है और पिता निश्चय ही सबसे बडी तपस्या भी है, पिता के प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण देवता भी प्रसन्न हो जाते है, जिस संतान की सेवा से माता-पिता संतुष्ट होते है उस संतान को गंगा स्नान का फल प्राप्त होता है । 

माता समस्त तीर्थो के समान है और पिता सम्पूर्ण देवताओं के स्वरूप है, इसलिए हर प्रकार से माता-पिता की आजीवन सेवा के उपरांत उनकी मृत्यु के पश्चात भी उनके निमित्त श्राद्ध और तर्पण करना भी परमधर्म है।

ब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृति में ऐसे लोगों की घोर भत्र्सना की गई है जो इस मृत्युलोक (पृथ्वीलोक) में आकर अपने पितरों को भूल जाते हैं और सांसारिक मोहमाया, अज्ञानतावश अथवा संस्कार हीनता के कारण अपने दिव्य पितरों को याद नहीं करते है।
अपने पितरों का तिथि अनुसार श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर अनुष्ठाता की आयु को बढ़ा देते हैं। साथ ही धन धान्य, पुत्र-पौत्र तथा यश प्रदान करते हैं। श्राद्ध चंद्रिका में कर्म पुराण के माध्यम से वर्णन है कि मनुष्य के लिए श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याण कर वस्तु है ही नहीं इसलिए हर समझदार मनुष्य को पूर्ण श्रद्धा से श्राद्ध का अनुष्ठान अवश्य ही करना चाहिए। स्कन्द पुराण स्कन्द पुराण के नागर खण्ड में कहा गया है कि श्राद्ध की कोई भी वस्तु व्यर्थ नहीं जाती, अतएव श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

आजकल कुछ लोग श्राद्ध-तर्पण को ढकोसला तथा समयाभाव कहते हुए श्राद्ध कर्म नही करते, अथवा  श्राद्ध का भोजन ब्राह्मण की जगह गरीबों, भिखारियों या अंपगो को खिला देते है, ऐसा करना ये सर्वदा अनुचित या गलत है।

सुयोग्य तथा विद्वान ब्राह्मण, जोकि कर्मकाण्ड और वेदो का ज्ञाता हो ऐसे ब्राह्मण को, दिवंगत आत्मा का नाम, गोत्र तथा संकल्प पूर्वक पितृरो के निमित्त दिया  गया भोजन या श्राद्ध निश्चित रूप से पितृरो को प्राप्त होता है, और उन्हे संतुष्ट करता है।

श्राद्ध का भोजन किसी गरीब व्यक्ति,अपंग तथा अपाहिज व्यक्ति को तथा चरित्रहीन, लोभी-अज्ञानी गैरकर्मकांडी ब्राह्मण को भी नही दिया जा सकता

 इस प्रकार के व्यक्ति तथा ब्राह्मण को दिया भोजन श्राद्ध के रूप मे पितृ स्वीकार नही करते, इस प्रकार दिया गया भोजन केवल सामान्य अन्नदान ही माना जायेगा श्राद्ध नही।

1. महर्षि पराशर के अनुसार "देश,काल और पात्र" के अनुसार हविष्यादि विधि द्वारा जो कर्म, तिल-जौ-कुशा तथा मंत्रो से युक्त होकर किया जाये, वही श्राद्ध है।

2. पितरो के उद्धार हेतु श्रद्धा पूर्वक किये गये श्राद्ध कार्य (दूध, दही, धी, खीर, हलवा, पूरी आदि पकवान) को श्रद्धा पूर्वक ब्राह्मण को खिलाने के कारण ही इसका नाम श्राद्ध पडा है । 

श्रद्धा से श्राद्ध करने वाले के घर तथा कुल मे दुख, हानि, क्लेश, अथवा किसी भी प्रकार की कोई कमी नही रहती, ऐसा हिन्दू धर्म शास्त्रों मे स्पष्ट उल्लेखित है ।

             श्राद्ध के इन पंद्रह दिनो मे सभी पितृ धरतीलोक पर अपने वंशजो के घर के द्धार पर आते है और अपने वंशजो से अपेक्षा करते है कि वह सुयोग्य ब्राह्मण को घर बुलाकर हमारे निमित्त श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करे, पितृपक्ष के दौरान वंशजो द्वारा ब्राह्मण को निमंत्रण दिए जाने पर वे ही घर मे प्रवेश करते है, और ब्राह्मण के रूप मे "वे" भोजन को प्राप्त करते है, और ब्राह्मण के भोजन से संतुष्ट होने पर उनकी भी संतुष्टि होती है, जिससे वे अपने वंशजो को आर्शिवाद  देकर अपने धाम को प्रस्थान कर जाते है । 

परंतु इसके विपरीत यदि उनकी श्राद्ध तिथि पर भोज नही करवाया जाता अथार्त ब्राह्मण को श्राद्ध के लिए नही बुलाया जाता तो वे श्राद्धों के अंतिम दिन तक यानि अमावस्या के दिन तक अपने वंशजो के दरवाजे पर निमंत्रण का इंतजार करते रहते है, और अंतिम दिन- अमावस्या को अतृप्त तथा कुपित होकर श्राप देकर दरवाजे से ही लौट जाते है, जिसके परिणाम स्वरूप जीवन मे कठिनाइयां, रूकावटे, धन हानि, व्यापारिक हानि तथा संतान संबंधी कष्ट उठाने पडते है । 

पितर प्रसन्न तो सभी देवता प्रसन्न-
श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है।
आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।
पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।। (यमस्मृति, श्राद्धप्रकाश)
यमराजजी का कहना है कि श्राद्ध करने से मिलते हैं ये 6 पवित्र लाभ-
* श्राद्ध कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है।
* पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर वंश का विस्तार करते हैं।
* परिवार में धन-धान्य का अंबार लगा देते हैं।
* श्राद्ध कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष की वृद्धि करता है और यश व पुष्टि प्रदान करता है।
* पितरगण स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य आदि सभी सुख, स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं।
* श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता, वरन वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।

ध्यान रखने योग्य तथ्य :-
श्राद्धकर्म में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाता है, जैसे-
श्राद्ध के दिन पवित्र भाव से पितरों के लिए भोजन बनवाएँ और श्राद्ध कर्म सम्पन्न करें।
मध्याह्न में कुश के आसन पर स्वयं बैठें और ब्राह्मण को भी बिठाएँ। एक थाली में गाय, कुत्ता और कौवे के लिए भोजन रखें। दूसरी थाली में पितरों के लिये भोजन रखें। इन दोनों थाली में भोजन समान ही रहेगा। सबसे पहले एक-एक करके गौ, कुत्ता और कौवे के लिए अंशदान करें और उसके बाद अपने पितरों का स्मरण करते हुए निम्न मंत्र का तीन बार जाप करें-
“ॐ देवाभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नम: स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्तु ते।।”
यदि उक्त विधि को करना किसी के लिए संभव न हो, तब वह जल को पात्र में काले तिल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके तर्पण कर सकता है।
यदि घर में कोई भोजन बनाने वाला न हो, तो फल और मिष्ठान आदि का दान कर सकते हैं।

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