स्वर विद्या क्या है ?

स्वर विद्या क्या है ?


स्वर विद्या है क्या पुराने ज़माने के लोग स्वर विद्या से हर प्रश्न का उत्तर ले लिया करते थे आज हम आप को स्वर विद्या के बारे में बता रहा हूँ आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है पाठकगण ज़रूर इसको पसंद करेंगे।

स्वर तीन होते है, जो स्वांश के रूप में अंदर व बाहर नासिका से चलते है, जिसे इडा, पिंगला व सुषुम्णा कहते है।

इडा को चन्द्र स्वर जो बाई नाक से, 
पिंगला स्वर जो दाहिनी नाक से व सुषुम्ना स्वर थोड़ी देर  बाई नाक से व थोड़ी देर दाहिनी नासिका से प्रवाहित होते है। 

इडा को चन्द्र स्वर, पिंगला को सूर्य स्वर  कहते है। चन्द्र स्वर में जितने भी स्थिर कार्य करने चाहिए जैसे- जमीन खरीदना, घर बनवाना, गृह प्रवेश, घर की वस्तुओं की खरीद, विवाह, समस्त व्यापार के कार्य, अन्न संग्रह, विद्या प्रारम्भ, परीक्षा का फ़ार्म भरना, शेयर खरीदना,  वाहन की सवारी करना,  गीत, वाद्य यन्त्र को बजाना,  नोकरी के लिए दूसरे शहर  में जाना।चन्द्र स्वर में सभी काम सिद्ध होते है। 

सूर्य स्वर में:-  आकर्षण सम्बन्धी समस्त कार्य, कठिन काम, पशु विक्रय, रत्न खरीदना, मारण उच्चाटन कर्म,  भूत, वेताल, यक्षिणी साधना, लेन देन करना। पशुओं की सवारी, मंत्री, बड़े अधिकारी से मिलना, भोजन करना, स्त्री संग करना,  युद्ध करना, स्नान करना इत्यादि कार्य करना। 

सुषुम्ना स्वर सभी कामों को बिगड़ता है। स्वर का अभ्यास सभी को करना चाहिए। सुबह उठते ही जो स्वर चल रहा हो, उस तरफ का पाँव जमीन पर रखने से पूरा दिन सुखद व्यतीत होता है। कार्य सफल होते है।गुरु कृपा केवलम।।

स्वर विज्ञान से भविष्यभी फल कथन किया जाता था। इसका आधार श्वास-प्रश्वास (स्वर) को बनाया जाता है। 
स्वर तीन प्रकार के होते हैं: दायां स्वर: मेरुदंड के दायें भाग से नासिका के दायें छिद्र में आई हुई प्राण वायु का नाम दायां स्वर है। बायां स्वर: मेरुदंड के बायें भाग से नासिका के बायें छिद्र में आई हुई प्राण वायु का नाम बायां स्वर है। 
सुषुम्ना स्वर: मेरुदंड से नासिका छिद्रों में आई हुई प्राण वायु को सुषुम्ना स्वर कहते हैं। यमुना, सूर्य और पिंगला दायें स्वर के तथा गंगा, चंद्र और इंगला बायें तथा स्वर के नाम हैं। गंगा और यमुना नाड़ियों के बीच बहने वाले स्वर का नाम सुषुम्ना है। 

उपर्युक्त तीनों नाड़ियों का संगम भौंहों के बीच होता है जहां पर दैवी शक्ति वाले लोग शक्ति की आराधना के लिए ध्यान केंद्रित करते हैं। दायां स्वर पुल्लिंग (शिव) और बायां स्त्रीलिंग (शक्ति) का प्रतीक है। अतः प्रिय और स्थिर कार्य, शक्ति के  प्रवाह में अर्थात चंद्र स्वर में और अप्रिय तथा अस्थिर कार्य शिव के प्रवाह में अर्थात सूर्य स्वर में होते हैं। 
सुषुम्ना स्वर का उदय शिव और शक्ति के योग से होता है। इसलिए व्यावहारिक कार्यों को यह होने ही नहीं देता है, किंतु ईश्वर के भजन में अत्यंत सहायक होता है। भवसागर को पार करने में यह जहाज की तरह सहायता करता है। 



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