वैसे तो हर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत महत्वपूर्ण होता है. परंतु इस बार जन्माष्टमी पर 101 साल बाद महा संयोग एवं 27 साल बाद जयंती योग बन रहा है. ऐसे में इस बार की जन्माष्टमी और अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है.
धार्मिक मान्यता है कि ऐसे संयोगों में भगवान कृष्ण की विधि- विधान पूर्वक पूजा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है. उनकी कृपा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. भगवान श्री कृष्ण की विधि विधान से पूजा करने के लिए खीरा बहुत जरूरी होताहै।मान्यता है कि खीरे से भगवान श्री कृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं. खीरा चढ़ाने से नंदलाल भक्तों के सारे कष्ट हर लेते हैं. जन्माष्टमी की पूजा में उस खीरे का उपयोग किया जाता है जिसमें डंठल और हल्की सी पत्तियां भी लगी हो.
मान्यता है कि जब बच्चा पैदा होता है तब उसको मां से अलग करने के लिए गर्भनाल को काटा जाता है. ठीक उसी प्रकार से खीरे को डंठल से काटकर अलग किया जाता है. यह भगवान श्री कृष्ण को मां देवकी से अलग करने का प्रतीक माना जाता है. यह करने के बाद ही भगवान श्री कृष्ण की विधि विधान से पूजा शुरू की जाती है.
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