श्रीकृष्ण जन्मोत्सव ,SHRI KRISHNA JANMASTMI

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 
SHRI KRISHNA JANMASTMI 
श्री कृष्ण जन्मोत्सव सोमवार 26 अगस्त 2024 




भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, दिन बुधवार, रोहिणी नक्षत्र एवं वृष राशि में हुआ था। श्री कृष्ण जन्मोत्सव सोमवार 26 अगस्त 2024 
आज के दिन जन्माष्टमी व्रत रखने का विधान है। इस व्रत को बाल, युवा, वृद्ध सभी कर सकते हैं। 
यह व्रत भारत वर्ष के कुछ प्रांतों में सूर्य उदय कालीन अष्टमी तिथि को तथा कुछ जगहों पर तत्काल व्यापिनी अर्थात अर्द्धरात्रि में पड़ने वाली अष्टमी तिथि को किया जाता है। सिद्धांत रूप से यह अधिक मान्य है। 

जिन्होंने विशेष विधि विधान के साथ वैष्णव संप्रदाय की दीक्षा ली हो, वे वैष्णव कहलाते हैं। 
अन्य सभी लोग स्मार्त हैं। परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि वे भगवान विष्णु की उपासना व भक्ति नहीं कर सकते। भगवान विष्णु की भक्ति साधना सभी लोग कर सकते हैं। लोक व्यवहार में वैष्णव संप्रदाय के साधु-संत आदि उदयकालीन जन्माष्टमी आदि के दिन ही व्रत करते हैं।



व्रत कैसे करे :-
व्रत करने का अभिप्राय अपने को भूखा रखना नहीं है अपितु व्रत के दिन हम ईश्वर की कितना पूजा पाठ और नाम जप करते है यह व्रत कहलाता है। 

यह व्रत भारत वर्ष के कुछ प्रांतों में सूर्य उदय कालीन अष्टमी तिथि को तथा कुछ जगहों पर तत्काल व्यापिनी अर्थात अर्द्धरात्रि में पड़ने वाली अष्टमी तिथि को किया जाता है। सिद्धांत रूप से यह अधिक मान्य है। जिन्होंने विशेष विधि विधान के साथ वैष्णव संप्रदाय की दीक्षा ली हो, वे वैष्णव कहलाते हैं। अन्य सभी लोग स्मार्त हैं। परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि वे भगवान विष्णु की उपासना व भक्ति नहीं कर सकते। सभी लोग भगवान विष्णु की भक्ति साधना कर सकते हैं। 

लोक व्यवहार में वैष्णव संप्रदाय के साधु-संत आदि उदयकालीन एकादशी तथा जन्माष्टमी आदि के दिन ही व्रत करते हैं। व्रती व्रत से पहले दिन अल्प भोजन करें तथा प्रातः काल उठकर स्नान एवं दैनिक पूजा पाठादि से निवृत्त होकर संकल्प करें कि मैं भगवान बालकृष्ण की अपने ऊपर विशेष अनुकंपा हेतु व्रत करूंगा, सर्वअंतर्यामी परमेश्वर मेरे सभी पाप, शाप, तापों का नाश करें। उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन भी करना चाहिए। दिन और रात भर निराहार व्रत करें। अगर इसमें कठिनाई हो तो बीच में फलाहार, दूध आदि ले सकते हैं। पूरा दिन और रात्रि भगवान बाल कृष्ण के ध्यान, जप, पूजा, भजन कीर्तन में बिताएं। भगवान के दिव्य स्वरूप का दर्शन करें, उनकी कथा का श्रवण करें। उनके निमित्त दान करें। अथवा उनके कीर्तन में, ध्यान में प्रसन्नचित्त होकर नृत्य आदि करें। इस उत्सव पर सूतिका गृह में देवकी का स्थापन करें। 

इस प्रतिमा को, सुवर्ण, चांदी, तांबा, पीतल, मृत्तिका, वृक्ष, मणि या अनेक रंगों द्वारा निर्मित कर, 8 प्रकार के सब लक्षणों से परिपूर्ण वस्त्र से ढक कर, पलंग पर रखें। उसी शय्या पर शयन करते हुए श्री कृष्ण ै की स्थापना करें। सूतिका गृह को भगवान श्री कृष्ण के विभिन्न चरणों, जैसे गौचारण, कालिया नाग मर्दन, शेष, श्री गिरिराज धारण, बकासुर-अधासुर-तृणावर्त, पूतना आदि का मर्दन, गज, मयूर, वृक्ष, लता, पताका आदि की सुंदर और दिव्य चित्राकृतियों से सजाएं। वेणु तथा वीणा के विनार (शब्द) और शृंगार प्रसाधन सामग्री से युक्त कुंभ हाथ में लिए किंकरों से सेव्यमान माता देवकी की षोडशोपचार पूजा, भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप सहित, करें। देवकी माता, वासुदेव जी और बाल कृष्ण लाल की जय-जयकार करें। देवकी के पैरों के समीप चरणों को दबाती हुई, कमल पर बैठी हुई, देवी श्री की ‘नमो देव्यै श्रिये’ इस मंत्र से पूजा करें। जात कर्म, नाल छेदन आदि संस्कारों को संपन्न करते हुए चंद्रमा को भी अघ्र्य दें। असत्य भाषण न करें। 

इस प्रकार से सभी शारीरिक इंद्रियों के संयम एवं सदुपयोग से किया गया व्रत अवश्य ही मनोवांछित फल प्रदान करने वाला होता है। मात्र एक इंद्रिय का संयम अर्थात अन्न का त्याग कर देने से तथा अन्य इन्द्रियों से संयम न करने से किसी भी व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। जहां तक संभव हो संयम नियमपूर्वक ही व्रत करना चाहिए। जो लोग अस्वस्थ हों उन्हें व्रत नहीं करना चाहिए। अर्धरात्रि में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाना चाहिए। तथा पूरी रात जागरण, भजन, कीर्तन में व्यतीत करनी चाहिए। तत्पश्चात अगले दिन प्रातः अन्न ग्रहण करना चाहिए। यदि कोई पूर्व में भोजन करना चाहे तो अर्धरात्रि में भगवान का जन्मोत्सव मनाकर प्रसाद आदि ग्रहण करके भोजन करना चाहिए। यह कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत संपूर्ण पापों का नाश करने वाला है। इसे श्रद्धा, नियम और संयमपूर्वक करने से इहलोक तथा परलोक में भौतिक एवं आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति होती है।

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