#कांवर महिमा :- पंडित कौशल पाण्डेय
श्रावण मास के आरंभ होते ही शिव भक्त अपने कंधे पर कांवर रखकर एक लंबी यात्रा पर निकल जाते हैं और हरिद्वार आदि पावन तीर्थों से गंगाजल लाकर श्रावण मास की शिवरात्री के शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं।
कांवर यात्रा मुहूर्त
कांवड़ यात्रा हर साल सावन माह के कृष्ण पक्ष के प्रथम दिन यानी प्रतिपदा से ही प्रारंभ हो जाती है.
इस साल यह 04 जुलाई 2023 दिन मंगलवार से शुरू होने जा रहा है. वहीं,
इसका समापन 16 जुलाई 2023 दिन रविवार को होगा.
2023 की कांवड़ यात्रा 04 जुलाई, मंगलवार और 14 जुलाई शुक्रवार से प्रारम्भ हो रहा है।
गंगा जल से अभिषेक सावन शिवरात्रि पर जो 15 जुलाई को पड़ता है
श्रावण शिवरात्रि जलाभिषेक समय
आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर संपूर्ण सावन मास के दौरान शिवलिंग पर गंगाजल से अभिषेक करने की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है. पूरे सावन मास के दौरान शिवलिंग पर श्रद्धालुओं द्वारा जलाभिषेक किया जाता है. इस समय के दौरान कांवण यात्रा का भी आरंभ होता है. कांवण यात्रा में गंगा जल को लाकर भगवान शिव का अभिषेक करने से सभी कष्ट और रोगों का नाश होता है.
इस समय के दौरान शिव मंदिरों, ज्योर्तिलिंगों व समस्त शिव स्थानों पर अनुष्ठा और पूजा होती है. धर्म स्थलों पर मौजूद शिवलिंग पर श्रद्धा भाव से शिव भक्त गंगाजल से जलाभिषेक करते हैं. जलाभिषेक के शुभ मुहूर्त इस प्रकार रहेंगे जिसमें शिवलिंग पर गंगाजल से अभिषेक किया जा सकता है. प्रात:काल से दोपहर तक का समय जलाभिषेक के लिए अनुकूल एवं शुभ रहेगा. इस दिन आर्द्रा नक्षत्र व मिथुन लग्न समय शिव पूजा के लिए शुभ कहा गया है. इसके अतिरिक्त प्रदोष काल समय संपूर्ण रात्रि के समय भी जलाभिषेक के लिए उत्तम रहेगा.
प्रात: 05:40 से 08:25 तक
शाम 19:28 से 21:30 तक
शाम 21:30 से 23:33 तक (निशीथकाल समय)
रात्रि 23:33 से 24:10 तक (महानिशिथकाल समय)
महादेव शिव सबसे जल्द प्रसन्न होने वाले देव है उन्हें बम-बम बोल से त्रिलोकीनाथ, त्रिकाल दृष्टा, त्रिनेत्र, आशुतोष, अवढरदानी, जगतपिता शिव आदि अनेक नामों से हम भगवान महादेव को पुकारते हैं महाप्रलय के समय भगवान शिव ही अपने तीसरे नेत्र से सृष्टि का संहार करते हैं परंतु जगतपिता होकर भी भगवान शिव परम सरल व शीघ्रता से प्रसन्न होने वाले हैं।
सम्पूर्ण विश्व की मनोकामना को पूर्ण करने वाले भगवान शिव को स्वयं के लिए न ऐश्वर्यशाली स्थान की आवश्यकता है न अन्य पदार्थों की। वे तो कैलाश-शिखरों में प्रकृति के मध्य ही निवासते हैं। कन्दमूल, भांग, धतूरा बेलपत्र जिन्हें प्रिय हैं और जो मात्र गंगा जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं। जहां अन्य देवों को प्रसन्न करने के लिए कठिन अनुष्ठान पूजा-पाठ करनी होती है वहीं भगवान महादेव केवल जलाभिषेक से ही प्रसन्न होते हैं।
केवल बिल्वपत्र अर्पण करने मात्र से आशीर्वाद प्रदान करते हैं वैसे सभी समय महादेव की पूजा कल्याणकारी होती है परंतु वर्षभर में श्रावण मास में महादेव की उपासना का विशेष महत्व है। इसी लिए श्रावण मास में महादेव के भक्त कांवर लेकर हरिद्वार से गंगाजल लेकर पद-यात्रा करते हुए महादेव को प्रसन्न करने के लिए गंगाजल से उनका अभिषेक करते हैं और इसी पद-यात्रा के दौरान सभी भक्त बम्-बम् का जयकारा लगाते हुए मीलों पैदल चलते हैं।
कांवरियों के द्वारा उच्चारित यह बम् शब्द बहुत गूढ महत्व रखता है जिसमें शिव और शक्ति दोनों का समावेश है जिनमें सम्पूर्ण सृष्टि निवास करती है। वास्तव में बम् शब्द को अमृत बीज कहा गया है। यह अमृत बीज है और इस दो अक्षर के बीजाक्षर के उच्चारण से महादेव शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों को वरदान और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। जहां महादेव को प्रसन्न करने के लिए अन्य कठिन मंत्र आदि किये जाते हैं वहीं इस छोटे से बीजाक्षर बम् का अपना विशेष व अतुल्य महत्व है जिसके उच्चारण मात्र से कांवरियों को वह शक्ति व क्षमता प्राप्त होती है कि वे मिलो लंबी दूरी को बड़ी सरलता से पूर्ण कर लेते हैं। इस बम् शब्द का जाप रोग मुक्ति प्रदाता व मृत्यु तुल्य कष्ट को टालने वाला है और आपकी शारीरिक व मानसिक विकृतियों की करने वाला है यदि आप किसी भी कारण महामृत्युंजय जाप न कर पायें, तो रुद्राक्ष की माला से सामथ्र्य अनुसार बम्-बम्-बम्-बम् का जाप करें। यदि श्रद्धापूर्वक जाप करें तो निश्चय ही महादेव प्रसन्न होंगे और आपको अच्छा स्वास्थ्य आरै समृि द्ध प्रदान करेंगे। श्रावण मास में भी शिवलिंग का अभिषके करें और बम्-बम् जपें, महादेव कल्याण करेंगे।
आइए जानें भक्ति-मुक्तिदायी शिव को श्रावण मास में प्रसन्न करने का क्या विधान है...
हिंदू महीनों में किसी न किसी नक्षत्र की प्रधानता रहती है और हर माह पर उसके नक्षत्र के स्वामी की विशेष कृपा होती है। जैसे श्रवण नक्षत्र की श्रावण में प्रधानता होती है। श्रवण के अधिपति भगवान विष्णु हैं और विष्णु हमेशा शंकर में रमण करते हैं। इसलिए यह मास शिव को समर्पित मास कहा जाता है। मनुष्य मात्र के सांसारिक, भौतिक या आध्यात्मिक किसी प्रकार के कष्ट का निदान शिव की जटाशंकरी से अभिषेक करने से हो जाता है। जटाशंकरी का अर्थ भगवान शंकर की जटाओं में विराजमान श्री गंगाजी के जल से है। श्री गंगा के जटाओं में अवतरित होने के कारण उन्हें जटाशंकरी नाम दिया गया। यह जटाशंकरी (गंगा) पूर्व जन्म में सती थीं जिनका जन्म स्थान कनखल (हरिद्वार) है। यहां स्नान करने और शिव अभिषेक करने से मनुष्य का दोबारा जन्म नहीं होता है ऐसा शास्त्रों का मत है। इसलिए श्रावण मास में गंगा जल से अभिषेक करने का विशेष महत्व है। इससे मनुष्य मात्र के सभी कष्टों का निवारण होता है।
कांवर यात्रा के समय संकल्प :-
परंतु भगवान शिव की प्रसन्नता व कृपा प्राप्त करने के लिये मीलों पैदल चलकर आने का जीवट ही पर्याप्त नहीं है बल्कि भगवान की प्रसन्नता प्राप्ति के लिये उस के पीछे जो मूल वस्तु छिपी है वह तो है बस हमारा उनके प्रति प्रेम और संपूर्ण समर्पण भाव जिसके बिना शिव भाव व शिवमयता का रत्तीमात्र भी आभास नहीं होता।
अतः यदि वास्तव में हम भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो कांवर यात्रा के दौरान हमें पूर्ण सात्विक भावना और शुद्ध सात्विक विचार रखने चाहिये तथा प्रतिदिन संकल्प करना चाहिये कि मैं क्रोध, अहंकार, असत्य से परे रहूंगा, प्रत्येक प्राणिमात्र का सम्मान करूंगा और सभी में शिवरूप के दर्शन करूंगा और भगवान शिव के प्रति पूर्ण प्रीति और समर्पण के साथ यात्रा पूरी करूंगा। ऐसी भावना के साथ कांवरियां यदि गंगा जल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करेंगे तो निश्चित ही भगवान आशुतोष सदैव सर्वविध कल्याण करेंगे।
व्यक्ति को अपनी जन्मकुंडली में ग्रहों की शुभ-अशुभ स्थिति के अनुसार शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पूजन करना चाहिए। यदि सूर्य से संबंधित कष्ट सिरदर्द, नेत्र रोग, अस्थि रोग आदि हों तो शिवलिंग पूजन आक के पुष्पों, पत्तों एवं बिल्व पत्रों से करने से इनसे मुक्ति मिलती है।
यदि चंद्रमा से संबंधित बीमारी या कष्ट जैसे खांसी, जुकाम, नजला, मन की परेशानी, ब्लड प्रेशर आदि हों तो शिवलिंग का रुद्री पाठ करते हुए काले तिल मिश्रित दूध धार से रुद्राभिषेक करना चाहिए। यदि मंगल से संबंधित बीमारी जैसे रक्त दोष हो तो गिलोय, जड़ी बूटी के रस आदि से अभिषेक करें।
यदि बुध से संबंधित बीमारी जैसे चर्म रोग, गुर्दे का रोग आदि हों तो विदारा या जड़ी-बूटी के रस से अभिषेक करें। यदि बृहस्पति से संबंधित बीमारी जैसे चर्बी, आंतों, लीवर की बीमारी आदि हों तो शिवलिंग पर हल्दी मिश्रित दूध चढ़ाएं। यदि शुक्र से संबंधित बीमारी, वीर्य की कमी, मलमूत्र की बीमारी शारीरिक या शक्ति में कमी हो तो पंचामृत, शहद और घृत से शिवलिंग का अभिषेक करें। यदि शनि से संबंधित रोग जैसे मांसपेशियों का दर्द, जोड़ों का दर्द, वात रोग आदि हों तो गन्ने के रस और छाछ से शिवलिंग का अभिषेक करें। राहु-केतु से संबंधित बीमारी जैसे सिर चकराना, मानसिक परेशानी, अधरंग आदि के लिए उपर्युक्त सभी वस्तुआंे के अतिरिक्त मृत संजीवनी का सवालाख जप कराकर भांग-धतूरे से शिवलिंग का अभिषेक करें। यदि पति-पत्नी में प्रेम न हो, गृह क्लेश हो, ब्याह शादी में रुकावट आ रही हो तो मक्खन-मिसरी का मिश्रण 108 बिल्वपत्रों पर रखकर चढ़ाएं- मनोकामना निश्चित रूप से पूर्ण होगी। यदि धन की ईच्छा हो तो खीर से अभिषेक करें। यदि सुख समृद्धि की ईच्छा हो तो भांग को घोटकर अभिषेक करें - लाभ होगा।
मारकेश या मारक दशा चल रही हो तो मृत संजीवनी या महामृत्युंजय मंत्र के सवा लाख जप कराकर अभिषेक करें। कालसर्प के लिए भी शिवपूजा विशेष फलदायी है। कलियुग में शिव की पार्थिव पूजा का विधान भी है। इसके लिए बांबी, गंगा, तालाब, वेश्या के घर और घुड़साल की मिट्टी तथा मक्खन और मिसरी मिलाकर 108 शिवलिंग बनाकर उनका अभिषेक करें - सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। लेकिन सायंकाल को ये सभी 108 शिवलिंग जल में प्रवाहित कर दें। विभिन्न प्रकार के शिवलिंगों का पूजन भक्ति और मुक्ति प्रदान करता है।
यहाँ कई प्रकार के शिव पूजन के बारे में बता रहा हूँ जो निम्न प्रकार से है
1- कस्तूरी और चंदन से बने शिवलिंग के रुद्राभिषेक से शिव सायुज्य प्राप्त होता है।
2- फूलों से बनाए गए शिवलिंग के पूजन से भू-सम्पत्ति प्राप्त होती है।
3- जौ, गेहूं, चावल तीनों का आटा समान भाग मिलाकर जो शिवलिंग बनाया जाता है, उसकी पूजा स्वास्थ्य, श्री और संतान देती है।
4- मिसरी से बनाए हुए शिवलिंग की पूजा रोग से छुटकारा देती है। सुख शांति की प्राप्ति के लिए चीनी की चाशनी से बने शिवलिंग का पूजन होता है।
5- बांस के अंकुर को शिवलिंग के समान काटकर पूजन करने से वंश वृद्धि होती है।
6- दही को कपड़े में बांधकर निचोड़ देने के पश्चात उसमें जो शिवलिंग बनता है उसका पूजन लक्ष्मी और सुख प्रदान करने वाला होता है।
7- गुड़ में अन्न चिपकाकर शिवलिंग बनाकर पूजा करने से कृषि उत्पादन अधिक होता है।
8- किसी भी फल को शिवलिंग के समान रखकर उसका रुद्राभिषेक करने से वाटिका में फल अधिक होते हंै।
9- आंवले को पीसकर बनाए गए शिवलिंग का रुद्राभिषेक मुक्ति प्रदाता होता है।
10- मक्खन को अथवा वृक्षों के पत्तों को पीसकर बनाए गए शिवलिंग का रुद्राभिषेक स्त्री के लिए सौभाग्यदाता होता है।
11- दूर्बा को शिवलिंगाकार गूंधकर उसकी पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है।
12- कपूर से बने शिवलिंग का पूजन भक्ति और मुक्ति देता है।
13- स्वर्ण निर्मित शिवलिंग का रुद्राभिषेक समृद्धि का वर्धन करता है।
14- चांदी के शिवलिंग का रुद्राभिषेक धन-धान्य बढ़ाता है।
15- पीतल के शिवलिंग का रुद्राभिषेक दरिद्रता का निवारण करता है।
16- लहसुनिया शिवलिंग का रुद्राभिषेक शत्रुओं का नाशक और विजयदाता होता है।
17- पारे से बने शिवलिंग का पूजन सर्व कामप्रद, मोक्षप्रद, शिवस्वरूप बनाने वाला होता है। यह समस्त पापों का नाश कर संसार के संपूर्ण सुख एवं मोक्ष देता है।
भगवान महादेव शिव सभी सच्चे कांवरियों की यात्रा मंगलमय कर उनकी मनोकामना पूर्ण करे।
पंडित कौशल पाण्डेय
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