#गऊ_रक्षा_अभियान
हिंदुस्तान में कही भी 1 गाय को अगर खरोच भी आएगी तो उसका अंजाम बहुत बुरा होगा ,
इस देश के डरे हुए मुसलमान इस बात को अपने भेंजे में अच्छी तरह से बिठा ले।
सभी गऊ भक्त अपने अपने क्षेत्रों में नजर रखे अगर कहीं भी ऐसी घटना घटती है तो उसका इस बार अच्छे से इलाज किया जायेगा , अगर सरकार गऊ रक्षा पर सख्त कदम नहीं उठाएगी तो मजबूरन गऊ भक्तों को ही कुछ करना पड़ेगा
गौवंश का अर्थ और महिमा
'त्वं यज्ञस्य त्वं माता सर्वदेवानां कारणम | त्वं सर्वतीर्थानां नमस्तुतेअस्तु सदानघे |,
शशि सूर्यरूणा यस्या ललाटे वृषभ ध्वज:| सरस्वती च हुंकारे सर्वेनागास्च कम्बले ||
क्षुर पृष्टे च गन्धर्वा वेदाश्चत्वार एव च | मुखाग्रे सर्वतीर्थानि स्थावारानि चराणि च ||'
“ हे निष्पापे तुम सब देवताओं की माँ,यज्ञ की कारण रूपा और सम्पूर्ण तीर्थों की तीर्थ रूपा हो. हम तुम्हे सदा नमस्कार करते हैं.
तूम्हारे ललाट में चंद्रमा, सूर्य, अरूण और वर्षभध्वज शंकर विराजमान हैं. हुंकार में सरस्वती, गल कम्बल में नागगण, खुरों में गन्धर्व और चारो वेद तथा मुखाग्र में चर-अचर सम्पूर्ण तीर्थों का वास है”. गोवंश भारतीय जीवन, संस्कृति, ईतिहास का अटूट अंग है यानि जबसे सृष्टि की रचना हुयी तभी से गौ इतहास का भी प्रारम्भ होता है. आदिकाल में देव और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था. प्रभु ने कच्छप अवतार लेकर सुमेरु पर्वत को धारण किया और वासुकी नाग को रज्जू के तौर पर प्रयोग में लाकर मंथन किया गया जिसमे पृथम हलाहल विष की ज्वाला से तारने के लिए रत्नस्वरूपा कामधेनु का प्रागट्य हुआ जो सभी मनोकामना, संकल्प और आवश्यकता पूर्ण करने में सक्षम थी. कामधेनु को पालन हेतु देवताओं ने महाऋषि वशिष्ट को प्रदान किया जिन्होंने गौलोक की रचना की सर्वसुख प्रदायनी गौ के विषय में एक और कथा आती है.
जब सृष्टि का प्रारम्भ हुआ तो ब्रह्मा जी ने मनु को सृष्टि रचना का आदेश दिया जिसके कारण हम मानव कहलाते है. मनु जिनका नाम पर्थु था उन्होंने गोमाता की स्तुति की और गोकृपा अनुसार गौदोहन किया और पुथ्वी पर कृषि का प्रारंभ किया पर्थु मनु के नाम से यह धरा पृथ्वी कहलाई. मानव संरक्षण, कृषि और अन्न उत्पादन में गोवंश का अटूट सहयोग और साथ रहा है. इसही कारण हमारे शास्त्र वेद-पुराण गो महिमा से भरे है. रघुवंश के राजा दिलीप गोसेवा के पर्याय और रामजन्म सुरभि गाय के दुग्ध द्वारा तैयार खीर से माना गया है . कृष्ण, जो गोपाल के नाम से जाने गए ने पूर्ण यादव क्षेत्र की रक्षा गोवर्धन पर्वत उठा कर की और माखन चोर भी कहलाये. औषधियोके स्वामी धन्वन्तरी ने गौभक्ति और गौसेवा कर आरोग्य प्रदायनी गौ दुग्ध, गौ घी, गौदधि, गौमूत्र और गौबर के मिश्रण से पंचगव्य की रचना की यहां तक कि गाय (गोबर) का मलमूत्र एक पर्यावरण रक्षक के रूप में माना जाता था और फर्श और घरों की दीवारों रसोई में इस्तेमाल किया गया था. शुद्ध रहने के लिए हर घर और मानव शरीर पर गोमूत्र छिड़काव एक आम बात थी. गोधन धन के रूप में और धन के एक उपाय के रूप में माना जाता था.
अतः समस्त मानव का कर्तब्य बनता है की वह गऊ माता की रक्षा करे ,
पंडित कौशल पाण्डेय
राष्ट्रीय महासचिव
श्री राम हर्षण शांति कुञ्ज, भारत
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