केतु ग्रह का उपाय
ज्योतिष शास्त्र में केतु को छाया ग्रह माना जाता है, केतु स्वभाव से मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह हैं तथा मंगल के प्रतिनिधित्व में आने वाले कई क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व केतु भी करता है।
यह ग्रह तीन नक्षत्रों का स्वामी है: अश्विनी, मघा एवं मूल नक्षत्र। यही केतु जन्म कुण्डली में राहु के साथ मिलकर कालसर्प योग की स्थिति बनाता है।
शुक्र और राहु को केतु ग्रह का साथी (मित्र) बताया गया है, जबकि चंद्रमा और मंगल केतु के दुश्मन है। वहीं गुरु भी केतु के लिए अनुकूल ग्रह है।
यह केतु की दुर्बलता को दूर करता है।
केतु ग्रह कभी सीधी चाल नहीं चलता है। बल्कि यह उल्टी चाल (वक्री) चलता है। केतु कुंडली के द्वादश भाव (बारहवाँ खाना) का स्वामी होता है। यदि किसी की कुंडली में यह खाना सोया हुआ है तो इस खाने को सक्रिय करने के लिए केतु के उपाय करने चाहिए।
ज्यातिष में राहु को सर्प और केतु सर्प की पूंछ कहा गया है। जो सर्पाकार है और जिसके अंग मुख और पुच्छ दो भागों में विभक्त है, वही राहु का आकार है। यदि किसी की कुंडली में राहु और केतु के मध्य अन्य ग्रह हों तो वह जीवनपर्यंत परेशान रहता है। यद्यपि ग्रहों एवं भावों की विभिन्न स्थितियों के कारण विभन्न जातकों के कष्ट अलग-अलग हो सकते है । इसी कारण ज्योतिष में राहु से बनने वाले अशुभ योग सर्प योग या काल सर्प योग के नामों से जाने जाते है ।
केतु के अधीन आने वाले जातक जीवन में अच्छी ऊंचाइयों पर पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश आध्यात्मिक ऊंचाईयों पर होते हैं। केतु की पत्नी सिंहिका और विप्रचित्ति में से एक के एक सौ एक पुत्र हुए जिनमें से राहू ज्येष्ठतम है एवं अन्य केतु ही कहलाते हैं।
राहु और केतु खगोलीय बिंदु हैं जो चंद्र के पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने से बनते हैं। क्योंकि ये केवल गणित के आधार पर बनते हैं, इसलिए काल्पनिक हैं और इनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है। इसीलिए ये छाया ग्रह कहलाते हैं।
छाया ग्रह का अर्थ किसी ग्रह की छाया से नहीं है अपितु ज्योतिष में वे सब बिंदु जिनका भौतिक अस्तित्व नहीं है,ज्योतिष में कई बार छाया ग्रह का महत्व अत्यधिक हो जाता है क्योंकि ये ग्रह अर्थात बिंदु मनुष्य के जीवन पर विषेष प्रभाव डालते हैं।
सूर्य, चंद्र, राहु एवं केतु जब एक रेखा में आ जाते हैं, तो चंद्र और सूर्य ग्रहण लगते हैं।
जब राहु और केतु की धुरी के एक ओर सभी ग्रह आ जाते हैं, तो काल सर्प योग की उत्पत्ति होती है।
राहु और केतु का प्रभाव केवल मनुष्य पर ही नहीं बल्कि संपूर्ण भूमंडल पर महसूस किया जा सकता है। जब भी राहु या केतु के साथ सूर्य और चंद्र आ जाते हैं तो ग्रहण योग बनता है। ग्रहण के समय पूरी पृथ्वी पर कुछ अंधेरा छा जाता है एवं समुद्र में ज्वार उत्पन्न होते हैं।
जातक की जन्म-कुण्डली में विभिन्न भावों में केतु की उपस्थिति भिन्न-भिन्न प्रभाव दिखाती हैं।
प्रथम भाव में अर्थात लग्न में केतु हो तो जातक चंचल, भीरू, दुराचारी होता है। यदि वृश्चिक राशि में हो तो सुखकारक, धनी एवं परिश्रमी होता है।
द्वितीय भाव में हो तो जातक राजभीरू एवं विरोधी होता है।
तृतीय भाव में केतु हो तो जातक चंचल, वात रोगी, व्यर्थवादी होता है।
चतुर्थ भाव में हो तो जातक चंचल, वाचाल, निरुत्साही होता है।
पंचम भाव में हो तो वह कुबुद्धि एवं वात रोगी होता है।
षष्टम भाव में हो तो जातक वात विकारी, झगड़ालु, मितव्ययी होता है।
सप्तम भाव में हो तो जातक मंदमति, शत्रुसे डरने वाला एवं सुखहीन होता है।
अष्टम भाव में हो तो वह दुर्बुद्धि, तेजहीन, स्त्रीद्वेषी एवं चालाक होता है।
नवम भाव में हो तो सुखभिलाषी, अपयशी होता है।
दशम भाव में हो तो पितृद्वेषी, भाग्यहीन होता है।
एकादश भाव में केतु हर प्रकार का लाभदायक होता है।
एस प्रकार का जातक भाग्यवान, विद्वान, उत्तम गुणों वाला, तेजस्वी किन्तु उदर रोग से पीड़ित रहता है।
द्वादश भाव में केतु हो तो जातक उच्च पद वाला, शत्रु पर विजय पाने वाला, बुद्धिमान, धोखा देने वाला तथा शक्की स्वभाव होता है।
केतु ग्रह का उपाय
केतु ग्रह से संबंधित उपाय करने से जातकों को केतु ग्रह के सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं।
केतु ग्रह से संबंधित उपाय निम्नलिखित हैं जैसे :-
माथे पर प्रतिदिन केसर या हल्दी का तिलक लगाएँ
वृद्ध एवं लाचार व्यक्तियों की सहायता करें
कानों में सोने की बाली पहनें
दूध में केसर मिलाकर पीएँ
पिता एवं पुरोहित का सम्मान करें
कुत्ता पालना सहायक होगा या कुत्तों को रोटी, ब्रेड या बिस्कुट खिलाएं।
भैरवजी के मंदिर में ध्वजा चढ़ाएं।
कौओं को खीर-पूरी खिलाएं।
घर या मंदिर में गुग्गुल का धूप करें।
किसी प्रकार का नशा न करे
अशुभ केतु का उपाय :-
केतु के लिए ‘ऊँ कें केतवे नमः’ मंत्र का 28000 बार जप एवं उसके दशांश का कुश, घृत, मधु, मिसरी आदि से हवन करें।
काले तिल, नीले वस्त्र, नीले फूल, तिल के तेल, सप्तधान्य, लोहा, कंबल और शस्त्र का बुधवार या शनिवार को दान करें।
पलाश के पुष्प गोमूत्र में कूटकर छांव में सुखाएं। फिर उसका चूर्ण बनाकर नित्य स्नान के पानी में डालकर डेढ़ वर्ष तक स्नान करें।
अधिक जानकारी के लिए जन्मकुंडली विश्लेषण करा कर ही उपाय करे।
ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ
राष्ट्रीय महासचिव -श्री राम हर्षण शांति कुंज,दिल्ली,भारत
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