जानिए वर्ष 2023 में कब से शुरू हो रहा है पवित्र सावन का महीना :- पंडित कौशल पाण्डेय

जानिए वर्ष 2023 में कब से शुरू हो रहा है पवित्र सावन का महीना :- पंडित कौशल पाण्डेय 

वर्ष 2023 में  पंचांग के अनुसार इस बार 4 जुलाई से सावन मास की शुरुआत होगी और सावन का महीना 31 अगस्त तक रहेगा.

 इस बार दो महीने सावन के माने जायेंगे. सावन का पहला सोमवार 10 जुलाई का होगा. इस बार एक अधिक मास पड़ रहा है, अधिक मास को ही मलमास कहा जाता है. इसबार भगवन शिव की उपासना करने के लिए भक्तों को 59 दिन मिलेंगे. हिन्दू धर्म में मलमास में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं होते है.






शिव महापुराण में सावन के महात्म्य पर बहुत कुछ लिखा गया है। इस मास में शिव आराधना का विशेष महत्व है। इसे मनोकामनाओं की पूर्ति का मास भी कहा जाता है। वर्ष के सभी महीनो में श्रावण महीना अपना एक विशिष्ट महत्व रखता हैं। 
भारतीय वाङ्मय में श्रावण मास का विशेष महत्व है। इस मास की अपनी संस्कृति होती है। जेठ के तीव्र ताप और आषाढ़ की उमस से क्लांत प्रकृति को अमृत वर्षा की दरकार होती हैं। 

सावन महीने के सोमवार 
  • सावन का पहला सोमवार (First Monday of Sawan): 10 जुलाई
  • सावन का दूसरा सोमवार (Second Monday of Sawan): 17 जुलाई
  • सावन का तीसरा सोमवार (Third Monday of Sawan): 24 जुलाई
  • सावन का चौथा सोमवार (Fourth Monday of Sawan): 31 जुलाई
  • सावन का पांचवा सोमवार (Fifth Monday of Sawan): 07 अगस्त
  • सावन का छठा सोमवार (Sixth Monday of Sawan):14 अगस्त
  • सावन का सातवां सोमवार (Seventh Monday of Sawan): 21 अगस्त
  • सावन का आठवां सोमवार (Eighth Monday of Sawan): 28 अगस्त

श्रावण मास, श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का गहरा संबंध हैं। भगवान शिव ने स्वयं अपने श्रीमुख से सनत्कुमार से कहा है कि मुझे 12 महीनों में सावन (श्रावण) विशेष प्रिय है। इसी काल में वे श्री हरि के साथ मिलकर पृथ्वी पर लीलाएं रचते हैं। इस मास की एक विशेषता यह भी हैं कि इसका कोई भी दिन व्रत शून्य नहीं देखा गया। इस महीनें में गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, शतरूद्रिपाठ और पुरुषसूक्त का पाठ एवं पंचाक्षर, षडाक्षर आदि शिव मंत्रों व नामों का जप विशेष फल देने वाला हैं।

श्रावण मास का माहात्म्य सुनने अर्थात् श्रवण योग्य हो जाने के कारण इस मास का नाम श्रावण हुआ। पूर्णिमा तिथि का श्रवण नक्षत्र के साथ योग होने से भी इस मास का नाम श्रावण कहा गया जो श्रवण (सुनने) मात्र से सिद्धि देने वाला है। श्रावण मास व श्रवण नक्षत्र के स्वामी चंद्र और चंद्र के स्वामी भगवान शिव, श्रावण मास के अधिष्ठाता देवाधिदेव त्र्यम्बकम् शिव ही हैं। 

श्रावण पूजा का नियम : 
श्रावण में एक मास तक शिवालय में स्थापित, प्राण-प्रतिष्ठित शिवलिंग या धातु से निर्मित लिंग का गंगाजल व दुग्ध से रुद्राभिषेक करें, यह शिव को अत्यंत प्रिय हैं। वही उत्तरवाहिनी गंगाजल - पंचामृत का अभिषेक भी महाफलदायी हैं।
कुशोदक से व्याधि शांति, जल से वर्षा, दधि से पशु धन, ईख के रस से लक्ष्मी, मधु से धन, दूध से एवं 1100 मंत्रों सहित घी की धारा से पुत्र व वंश वृद्धि होती है। श्रावण मास में द्वादश ज्योतिर्लिंगों पर उत्तरवाहिनी गंगाजल कांवर में लेकर पैदल यात्रा कर, अभिषेक करने मात्र से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता हैं। ऊँ नमः शिवाय मंत्र के जप से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। 

श्रावण मास में वारों का महत्व : 
सावन में सोमवार सोमवारी व्रत रोटक भी कहते हैं। इसे सोम या चंद्रवार भी कहते हैं। यह दिन शिव को अतिप्रिय है। 
मंगलवार को मंगला गौरी व्रत,
बुधवार को बुध गणपति व्रत, 
बृहस्पतिवार को बृहस्पति देव व्रत, 
शुक्रवार को जीवंतिका देवी व्रत, 
शनिवार को बजरंग बली व नरसिंह व्रत और रविवार को सूर्य व्रत होता हैं। 

तिथियों के देवता : 
श्रावण प्रतिपदा तिथि के देवता अग्नि, द्वितीया के ब्रह्म, तृतीया के गौरी, चतुर्थी के गणनायक, पंचमी के सर्प, षष्ठी के स्कंद, सप्तमी के सूर्य, अष्टमी के शिव, नवमी के दुर्गा, दशमी के यम, एकादशी के स्वामी विश्वदेव हैं, द्वादशी के भगवान श्री हरि, त्रयोदशी के कामदेव, चतुर्दशी के शिव, अमावस्या के पितर और पूर्णिमा के स्वामी चंद्र हैं। 

तिथियों के व्रत : श्रावण शुक्ल व कृष्ण पक्ष के व्रत- द्वितीया को औदुंबर व्रत, तृतीया को गौरी व्रत, चतुर्थी को दूर्वा गणपति व्रत, पंचमी को उत्तम नाग पंचमी व्रत, षष्ठी को सूपौदन व्रत, सप्तमी को शीतलादेवी व्रत, अष्टमी और चतुर्दशी को देवी व्रत, नवमी को नक्त व्रत, दशमी को आशाव्रत, एकादशी को भगवान हरि व्रत, द्व ादशी को श्रीधर व्रत, अमावस्या को पिठोरा व्रत, कुशोत्पाटन और वृषभों का अर्चन करे, पूर्णिमा को उत्सर्जन, उपाकर्म सभा, दीप उपाकर्म की सभा में रक्षा बंधन, श्रावणी कर्म, सर्प बलि तथा हयग्रीव नामक ये सात व्रत श्रावणी पूर्णिमा को होते हैं।

शिव का श्रावण में जलाभिषेक प्रसंग कथा : 
सतयुग में देव-दानवों के मध्य अमृत प्राप्ति के लिए सागर मंथन हो रहा था। अमृत कलश से पूर्व कालकूट विष निकला, उसकी भयंकर लपट न सह सकने के कारण सभी देवगण ब्रह्माजी के पास गए। ब्रह्मा जी ने अपने तपोबल से कहा अब तो समस्त ब्रह्मांड को सदाशिव ही बचा सकते हैं। सभी देवगणों की प्रार्थना पर भगवान शिव प्रगट हुए और उन्होंने वस्तु स्थिति को ज्ञात करने के पश्चात ब्रह्माजी के अनुरोध पर विष की भयानकता से जगत के संरक्षण हेतु कल्याण भावना से तुरंत विष को एकत्र कर पान कर लिया और विषपान से सृष्टि विनाश से बच गयी। वही विष उन्होंने अपने कंठ में अवरूद्ध कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाये। इसी से इनका नाम शिव के साथ नीलकंठ पड़ा। समुद्र मंथन से निकले उस हलाहल के पान के समय के बारे में मान्यता है कि वह श्रावण मास ही था और उस विष के ताप को शांत करने के लिए देवताओं ने वर्षातु में तापनाशक बेलपत्र चढ़ाकर गंगाजल से उनका (शिव का) पूजन व जलाभिषेक आरंभ किया, तभी से जलाभिषेक की परंपरा का श्रीगणेश (प्रारंभ) माना जाता है। शिव का एक अर्थ जल भी होता है, और यही जल प्राण भी हैं। शिवलिंग पर जलार्पण का अर्थ हैं विषयुक्त योगीराज में प्राण विसर्जन करके परम तत्व में अपना प्राण मिला देना- समर्पण कर देना। यही श्रावणी जलाभिषेक का संदेश है।
यहाँ कई प्रकार के शिव पूजन के बारे में बता रहा हूँ जो निम्न प्रकार से है 
1- कस्तूरी और चंदन से बने शिवलिंग के रुद्राभिषेक से शिव सायुज्य प्राप्त होता है। 
2- फूलों से बनाए गए शिवलिंग के पूजन से भू-सम्पत्ति प्राप्त होती है। 
3- जौ, गेहूं, चावल तीनों का आटा समान भाग मिलाकर जो शिवलिंग बनाया जाता है, उसकी पूजा स्वास्थ्य, श्री और संतान देती है। 
4- मिसरी से बनाए हुए शिवलिंग की पूजा रोग से छुटकारा देती है। सुख शांति की प्राप्ति के लिए चीनी की चाशनी से बने शिवलिंग का पूजन होता है। 
5- बांस के अंकुर को शिवलिंग के समान काटकर पूजन करने से वंश वृद्धि होती है। 
6- दही को कपड़े में बांधकर निचोड़ देने के पश्चात उसमें जो शिवलिंग बनता है उसका पूजन लक्ष्मी और सुख प्रदान करने वाला होता है। 
7- गुड़ में अन्न चिपकाकर शिवलिंग बनाकर पूजा करने से कृषि उत्पादन अधिक होता है।
8- किसी भी फल को शिवलिंग के समान रखकर उसका रुद्राभिषेक करने से वाटिका में फल अधिक होते हंै। 
9- आंवले को पीसकर बनाए गए शिवलिंग का रुद्राभिषेक मुक्ति प्रदाता होता है। 
10- मक्खन को अथवा वृक्षों के पत्तों को पीसकर बनाए गए शिवलिंग का रुद्राभिषेक स्त्री के लिए सौभाग्यदाता होता है। 
11- दूर्बा को शिवलिंगाकार गूंधकर उसकी पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। 
12- कपूर से बने शिवलिंग का पूजन भक्ति और मुक्ति देता है। 
13- स्वर्ण निर्मित शिवलिंग का रुद्राभिषेक समृद्धि का वर्धन करता है। 
14- चांदी के शिवलिंग का रुद्राभिषेक धन-धान्य बढ़ाता है। 
15- पीतल के शिवलिंग का रुद्राभिषेक दरिद्रता का निवारण करता है। 
16- लहसुनिया शिवलिंग का रुद्राभिषेक शत्रुओं का नाशक और विजयदाता होता है। 
17- पारे से बने शिवलिंग का पूजन सर्व कामप्रद, मोक्षप्रद, शिवस्वरूप बनाने वाला होता है। यह समस्त पापों का नाश कर संसार के संपूर्ण सुख एवं मोक्ष देता है।

भगवान महादेव शिव सभी सच्चे कांवरियों की यात्रा मंगलमय कर उनकी मनोकामना पूर्ण करे। 

पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 
ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ 
राष्ट्रीय महासचिव -श्री राम हर्षण शांति कुंज,दिल्ली,भारत

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