श्री जानकी नवमी 2024 :-पंडित कौशल पाण्डेय

#जानकी नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं। माँ सीता की कृपा आप सभी पर सदा बनी रहे यही कामना करता हूँ।
#सीतानवमी
श्री जानकी नवमी :-पंडित कौशल पाण्डेय
इस वर्ष माँ जानकी नवमी का पर्व गुरुवार 16 मई 2024 के दिन मनाया जायेगा ,वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को जानकी नवमी कहते हैं।


धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन माँ सीता का प्राकट्य हुआ था। इस पर्व को "जानकी नवमी" भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन पुष्य नक्षत्र में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी से एक बालिका का प्राकट्य हुआ। जोती हुई भूमि को तथा हल की नोक को भी 'सीता' कहा जाता है, इसलिए बालिका का नाम 'सीता' रखा गया। इस दिन वैष्णव संप्रदाय के भक्त माता सीता के निमित्त व्रत रखते हैं और पूजन करते हैं। मान्यता है कि जो भी इस दिन व्रत रखता व श्रीराम सहित सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल, सोलह महान् दानों का फल तथा सभी तीर्थों के दर्शन का फल अपने आप मिल जाता है। अत: इस दिन व्रत करने का विशेष महत्त्व है।
हिन्दु धर्म ग्रंथों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी या जानकी नवमी कहते हैं। ग्रंथों के अनुसार इसी दिन माता सीता जी का प्राकट्य हुआ था इसीलिए यह पर्व माँ सीता के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाता है। द्वापर युग मे भगवान विष्णु जी के अवतार, भगवान श्रीराम की अर्द्धांगिनी देवी सीता जी का जन्मोत्सव या प्राक्टयोत्सव फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को तो मनाया जाता ही है, परंतु वैशाख मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को भी जानकी-जयंती के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि रामायण के अनुसार वे वैशाख में अवतरित हुईं थीं, किन्तु 'निर्णयसिन्धु' के 'कल्पतरु' ग्रंथानुसार फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष के दिन सीता जी का जन्म हुआ था इसीलिए इस तिथि को सीताष्टमी के नाम से भी संबोद्धित किया गया है। अत: यह दोनों ही तिथियाँ उनकी जयंती हेतु मान्य हैं तथा दोनों ही तिथियां हिंदू धर्म में बहुत पवित्र मानी गई हैं। इस दिन भक्त माता सीता के निमित्त व्रत रखते हैं और पूजन करते हैं। मान्यता है कि जो भी इस दिन व्रत रखता व श्रीराम सहित सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल, सोलह महान दानों का फल तथा सभी तीर्थों के दर्शन का फल स्वतः ही मिल जाता है। अत: इस दिन व्रत करने का विशेष महत्त्व है। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार ऐसा भी माना जाता है कि वैशाख शुक्ल नवमी के दिन सीता नवमी का व्रत करने से कन्यादान अथवा चारधाम तीर्थ यात्रा बराबर फल की भी प्राप्ति होती है। सीता माता उत्पत्ति कथा:- पवित्र ग्रंथ रामायण के अनुसार, एक बार मिथिला राज्य में कई वर्षों से बारिश नहीं हो रही थी। इससे मिथिला नरेश जनक बहुत चिंतित हो उठे। इसके लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों से विचार-विमर्श किया और मार्ग प्रशस्त करने का अनुरोध किया। उस समय ऋषि-मुनियों ने राजा जनक को खेत में हल चलाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि अगर आप ऐसा करते हैं तो इंद्र देवता की कृपा जरूर बरसेगी। राजा जनक ने ऋषि मुनियों के वचनानुसार, वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन खेत में हल चलाया। इसी दौरान उनके हल से कोई वस्तु टकराई, यह देख राजा जनक ने सेवादारों से उस स्थान की खुदाई करवाया। उस समय खुदाई में उन्हें एक कलश प्राप्त हुआ, जिसमें एक कन्या थी। राजा जनक ने उन्हें अपनी पुत्री मानकर उनका पालन-पोषण किया। तत्कालीन समय में हल को "सीत" कहा जाता था। इसलिए राजा जनक ने उस कन्या का नाम सीता रखा। सीता नवमी पर शुभ कर्म:- सीता नवमी का व्रत करने से कन्यादान या चारधाम तीर्थ यात्रा समतुल्य फल की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि जानकी नवमी के दिन सुहाग की वस्तुएं दान करने से व्रती को कन्या दान के समान फल प्राप्त होता है। अतः इस दिन कुमकुम, चूड़ी, बिंदी आदि चीज़ों का दान जरूर करें। इसके साथ ही जानकी नवमी के दिन विशेष रूप से पूजा आराधना करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। सुख सौभाग्य की कामना करनें वाले मनुष्यों को तो जानकी माता को सोलह श्रृंगार अर्पित करना चाहिए । पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा रखनें वाले दम्पति को जानकी स्त्रोत का पाठ अवश्य करना चाहिए। सीता नवमी पूजन विधि:- 1. सीता नवमी से एक दिन पूर्व ही अष्टमी तिथि को ही स्वच्छ होकर शुद्ध भूमि पर सुन्दर मण्डप बनायें। यह मण्डप सौलह, आठ अथवा चार स्तम्भों का होना चाहिए। 2. वेदिका पर पीला अथवा लाल वस्त्र बिछाकर माता सीता एवं भगवान श्रीराम की मूर्ति अथवा चित्र की स्थापना करें। 3. नवमी के दिन स्नान आदि के पश्चात् विधिवत् व्रत अथवा पूजा का सकंल्प करना चाहिए। 4. जानकी-राम का श्रद्धापूर्वक तथा सामर्थ्यनुसार पंचोपचार, दसोपचार अथवा षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। 5. भगवान राम तथा सीता माता के मंत्रो का जाप करना चाहिए। रामचरित मानस से देवी सीता के प्राकट्य अथवा राम-जानकी विवाह प्रसंग का पाठ अथवा जानकी स्तोत्र का पाठ करना भी उत्तम रहता है। 6. तत्पश्चात श्रीराम-जानकी की आरती करनी चाहिए। 7. भगवती माता सीता तथा भगवान राम की पूजा-अर्चना के बाद मण्डप का विसर्जन कर देना चाहिए। 8. तदोपरान्त आठ अथवा नौ सौभाग्यशाली महिलाओं को लाल रंग के वस्त्र अथवा सौभाग्य की वस्तुएं भेंट करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है। इस प्रकार श्रद्धा व भक्ति से पूजन करने वाले भक्तों को भगवती सीता व भगवान राम की कृपा प्राप्ति होती है। जानकी स्तोत्र नीलनीरज-दलायतेक्षणां लक्ष्मणाग्रज-भुजावलम्बिनीम् । शुद्धिमिद्धदहने प्रदित्सतीं भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ १॥ जिनके नील कमल-दल के सदृश नेत्र हैं, जिन्हें श्रीराम की भुजा का ही अवलंबन है, जो प्रज्वलित अग्नि में अपनी पवित्रता की परीक्षा देना चाहती हैं, उन रामप्रिया श्री सीता माता का मैं मन-ही-मन में ध्यान (भावना) करता हूं । १ रामपाद-विनिवेशितेक्षणामङ्ग-कान्तिपरिभूत-हाटकाम्। ताटकारि-परुषोक्ति-विक्लवां भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ २॥ श्रीरामजी के चरणों की ओर निश्चल रूप से जिनके नेत्र लगे हुए हैं, जिन्होंने अपनी अङ्गकान्ति से सुवर्ण को मात कर दिया है । तथा ताटका के वैरी श्रीरामजी के (द्वारा दुष्टों के प्रति कहे गए) कटु वचनों से जो घबराई हुई हैं, उन श्रीरामजी की प्रेयसी श्री सीता मां की मन में भावना करता हूं । २ कुन्तलाकुल-कपोलमाननं, राहुवक्रग-सुधाकरद्युतिम्
वाससा पिदधतीं हियाकुलां भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ ३॥
जो लज्जा से हतप्रभ हुईं अपने उस मुख को, जिनके कपोल उनके बिथुरे हुए बालों से उसी प्रकार आवृत हैं, जैसे चन्द्रमा राहु द्वारा ग्रसे जाने पर अंधकार से आवृत हो जाता है, वस्त्र से ढंक रही हैं, उन राम-पत्नी सीताजी का मन में ध्यान करता हूं । ३ कायवाङ्मनसगं यदि व्यधां स्वप्नजागृतिषु राघवेतरम् । तद्दहाङ्गमिति पावकं यती भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ ४॥ जो मन-ही-मन यह कहती हुई कि यदि मैंने श्रीरघुनाथ के अतिरिक्त किसी और को अपने शरीर, वाणी अथवा मन में कभी स्थान दिया हो तो हे अग्ने ! मेरे शरीर को जला दो अग्नि में प्रवेश कर गईं, उन रामजी की प्राणप्रिय सीताजी का मन में ध्यान करता हूं । ४ इन्द्ररुद्र-धनदाम्बुपालकैः सद्विमान-गणमास्थितैर्दिवि ।
पुष्पवर्ष-मनुसंस्तुताङ्घकिं भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ ५॥ उत्तम विमानों में बैठे हुए इन्द्र, रुद्र, कुबेर और वरुण द्वारा पुष्पवृष्टि के अनंतर जिनके चरणों की भली-भांति स्तुति की गई है, उन श्रीराम की प्यारी पत्नी सीता माता की मन में भावना करता हूं । ५ सञ्चयैर्दिविषदांविमानगैर्विस्मयाकुल-मनोऽभिवीक्षिताम् । तेजसा पिदधतीं सदा दिशो भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ ६॥ (अग्नि-शुद्धि के समय) विमानों में बैठे हुए देवगण विस्मयाविष्ट चित्त से जिनकी ओर देख रहे थे और जो अपने तेज से दसों दिशाओं को आच्छादित कर रही थीं, उन रामवल्लभा श्री सीता मां की मैं मन में भावना करता हूं । ६ मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रभु श्रीराम एवं माता सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे १६ महान दानों का फल, पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है । इसके साथ ही जानकी स्तोत्र का पाठ नियमित करने से मनुष्य के सभी कष्टों का नाश होता है । इसके पाठ से माता सीता प्रसन्न होकर धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति कराती है । ७ ।इति जानकीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

कौशल पाण्डेय
राष्ट्रीयअध्यक्ष
श्री राम हर्षण शांति कुञ्ज दिल्ली
शिव शक्ति मंदिर
ब्लाक सी 8 यमुना विहार,दिल्ली
9968550003
www.astrokaushal.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ