जानिए क्यों मानते है होली,कौन थी होलिका?

जानिए होली क्यों मनाई जाती है :-पंडित कौशल पाण्डेय 
सनातन धर्म में चार पर्व मुख्य रूप से मनाये जाते है जिनमे होली,दीपावली ,दशहरा व महाशिवरात्रि ये चार रात्रि सिद्धि दायक मानी गई है। 

होली का त्यौहार प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है ,इस वर्ष  18 मार्च 2022  के दिन मनाया जायेगा ।

हमारे सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन में पर्वों का विशेष महत्व रहा है। आज भी सभी धर्म एवं जातियों में विभिन्न पर्वों को बड़ी उमंग से मनाया जाता है। जिनका समय-समय पर आयोजन किया जाता है, जो प्राचीन काल से भारतीय समाज में प्रचलित और मान्य रहे हैं। 

प्रत्येक पर्व की उत्पत्ति, उसको मनाने की विधि, उसका महत्व और उससे संबंधित कथा पर धार्मिक तथा राष्ट्रीय दृष्टि से विचार किया गया है। 
होलिका दहन व धुलैंडी होलिकाउत्सव (होलिका दहन) हमारा राष्ट्रीय व सामाजिक त्योहार है। 
यह फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। जिस प्रकार श्रावणी (रक्षाबंधन) को ऋषि पूजन, विजया दशमी (दशहरा) को देवी पूजन तथा दीपावली को लक्ष्मी पूजन का महत्व है ठीक उसी प्रकार होलिका दहन व पूजन का भी महत्व है। 

होली का पर्व उत्साह,उमंग,जोश और खुशी का पर्व है यह  फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाई जाती है। होली मनाने से एक दिन पहले होलिका का दहन किया जाता है उसके अगले दिन  रंग, अबीर और गुलाल से होली खेली जाती है। 
भारत में होली का त्योहार बहुत पहले से मनाने की परंपरा चली आ रही है।
प्रचीन समय में हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस था उनके पुत्र भक्त  प्रह्राद थे  प्रह्राद भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था लेकिन हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का घोर विरोधी था। वह नहीं चाहता था कोई उसके राज्य में भगवान विष्णु की पूजा करें। वह अपने पुत्र को मारने का कई बार प्रयास कर चुका था लेकिन बार-बार असफल हो जाता था। तब हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रह्राद को मारने के लिए लिए अपनी बहन होलिका को भेजा।

शास्त्रों के मुताबिक जिस दिन होलिका जली वह फाल्गुन माह की पूर्णिमा का दिन था। इसीलिए होली फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है।
 होली पर राक्षसराज हिरण्यकश्यप की कू्ररता की इस कथा के साथ ही प्रासंगिक है यह भी जानना कि हिरण्यकश्यप का अंत कैसे हुआ?

बहिन होलिका के अग्नि में दहन हो जाने से हिरण्यकश्यप अत्याधिक क्रोधित हो उठा था। उसने गदा उठाई और भक्त प्रह्लाद से बोला-बहुत विष्णु का भक्त बना फिरता है, बता कहां है तेरा भगवान। प्रह्लाद ने कहा कि मेरा भगवान तो सर्वशक्तिमान है, वह कण-कण में व्याप्त है। यहाँ भी है, वहाँ भी है।
 
हिरण्यकश्यप ने एक खम्बे की तरफ इशारा किया और कहा क्या इस खम्बे में भी है तेरा भगवान? भक्त प्रह्लाद ने कहा, हाँ। यह सुनकर हिरण्यकश्यप अपनी गदा लेकर खम्बे की तरफ दौड़ा, वह खम्बे पर गदा से प्रहार करने ही वाला था कि खम्बे को फाड़कर उसमें से भगवान विष्णु ने नरसिंह के अवतार में, जो आधा नर था आधा सिंह प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप को उठाकर महल के प्रवेशद्वार की चैखट पर, जो न घर का बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात, नरसिंह अवतार में, जो न नर था न पशु, अपने जांघो पर रखकर जो न धरती थी न पाताल, अपने लंबे तेज नाखूनों से जो न अस्त्र थे न शस्त्र, हिरण्यकश्यप की छाती को फाड़ कर उसका वध कर दिया। हिरण्यकश्यप के वध से आकाश से फूलों की बारिश होने लगी। इस तरह भगवान विष्णु की कृपा से राक्षसों हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप के अत्याचारों का अन्त हुआ और पृथ्वी पर फिर से सुख-शांति और उल्लास का वातावरण कायम हो गया।

इसी कारन से सभी होलिका का दहन करते है जिससे बुराई का अंत हो और समाज में भाईचारा और प्यार का सन्देश फैले।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ