महाशिवरात्रि : पंडित कौशल पांडेय

महाशिवरात्रि : पंडित कौशल पांडेय 

 महाशिवरात्रि का महापर्व शुक्रवार 8 मार्च 2024 

महाशिवरात्रि मुहूर्त  शुक्रवार 8 मार्च 2024 
 फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 8 मार्च को रात में 9 बजकर 57 मिनट पर होगा और अगले दिन यानी 9 मार्च को 6 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगी। 
हालांकि, भगवान शिव की पूजा करने का विशेष महत्व प्रदोष काल में होता है इसलिए 8 मार्च को ही महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा।

 शिवरात्रि वह रात्रि है जिसका शिवतत्त्व से घनिष्ठ संबंध है। भगवान शिव की अतिप्रिय रात्रि को शिव रात्रि कहा जाता है। शिव पुराण के ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोडों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए-

फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। 
शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप होता है। अत: इसी समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिवरूपीसूर्य के साथ योग मिलन होता है। अत: इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीव को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। यही शिवरात्रि का महत्त्व है। महाशिवरात्रि का पर्व परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परमसुख, शान्ति एवं ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।

 किसी मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी'शिवरात्रि' कही जाती है, किन्तु माघ (फाल्गुन, पूर्णिमान्त) की चतुर्दशी सबसे महत्त्वपूर्ण है और महाशिवरात्रि कहलाती है। 

गरुड़पुराण, स्कन्दपुराण, पद्मपुराण, अग्निपुराणआदि पुराणों में उसका वर्णन है। कहीं-कहीं वर्णनों में अन्तर है, किंतु प्रमुख बातें एक सी हैं। सभी में इसकी प्रशंसा की गई है। जब व्यक्ति उस दिन उपवास करके बिल्व पत्तियों से शिवकी पूजा करता है और रात्रि भर 'जारण' (जागरण) करता है, शिव उसे नरक से बचाते हैं और आनन्द एवं मोक्ष प्रदान करते हैं और व्यक्ति स्वयं शिव हो जाता है। दान, यज्ञ, तप, तीर्थ यात्राएँ, व्रत इसके कोटि अंश के बराबर भी नहीं हैं।

भगवान शिव को प्रसन्न करने की रात

शैव व वैष्णव दोनों मतों के लोगों के एक ही दिन यह पर्व मनाने के कारण चार प्रहर की पूजा भी इसी दिन की जाएगी। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हर प्रहर में गन्ना, डाब (कुशा), दुग्ध, खस आदि का अभिषेक किया जाएगा। साथ ही रुद्र पाठ, शिव महिमन और तांडव स्त्रोत का पाठ होगा। षोड्षोपचार पूजन के साथ भगवान शिव को आक, धतूरा, भांग, बेर, गाजर चढ़ाया जाएगा।

कैसे करे महादेव का पूजन:
भगवान शिव का एक नाम रूद्र भी है इसलिए शिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक किया जाता है शिव का प्रिय दिन सोमवार है अतः सभी शिवालियों में शिव की विशेष पूजा सावन के सोमवार को की जाती है, शिवजी का अभिषेक गंगा जल , दूध, दही, घी, शकर, शहद, और गन्ने के रस आदि से किया जाता है। अभिषेक के बाद शिव लिंग के ऊपर बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, नीलकमल, आक मदार और भांग के पत्ते के आदि से पूजा की जाती है। बेलपत्र पर सफ़ेद चन्दन से ओम नमः शिवाय या राम नाम लिख कर चढाने से महादेव अति शीघ्र निहित होते हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग पर सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, इसलिए एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है अतः शिव पूजा में शमी का पत्ता अवश्य चढ़ता है। 

भगवान शिव की प्रिय रात्रि: - शिव शब्द का अर्थ है 'काल' और 'रा' दानार्थक धातु से रात्रि शब्द बना है, तात्पर्य यह कि जो सुख प्रदान करता है, वह रात्रि है। ’ इस प्रकार शिवरात्रि का अर्थ होता है, वह रात्रि जो आनंद प्रदायिनी है और जिसका शिव के साथ विशेष संबंध है। शिवरात्रि, जो फाल्गुन कृष्णर्दशी को है, उसमें शिव पूजा, उपवास और रात्रि जागरण का प्रावधान है।

इस सिद्धिदायक महारात्रि में व्रत पूजन और मंत्र जाप के साथ जागरण करने से सभी सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती है ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति महाशिवरात्रि के व्रत पर भगवान शिव की भक्ति, दर्शन, पूजा, उप और व्रत नहीं रखता, वह सांसारिक मैया, मोहम्मद एवं प्रस्तुति के बँधन से हजारों वर्षों तक उलझा रहता है। यह भी कहा गया है कि जो शिवरात्रि पर जागरण करता है, उपवास रखता है और कहीं भी किसी शिवजी के मंदिर में जाकर भगवान शिवलिंग के दर्शन करता है, वह जन्म-मरण पुनर्जन्म के बँधन से मुक्ति पा जाता है। 

शिवरात्रि के व्रत के बारे में पुराणों में कहा गया है कि इसका फल कभी किसी हालत में भी निरर्थक नहीं जाता है।] शिवरात्रि व्रत धर्म का सर्वश्रेष्ठ साधन: शिवरात्रि का व्रत सबसे अधिक बलवान है। भोग और मोक्ष का फलदाता शिवरात्रि का व्रत है। इस व्रत को छोड़कर दूसरे मनुष्यों के लिए हितकारक व्रत नहीं है। यह व्रत सबके लिए धर्म का सर्वश्रेष्ठ साधन है। तटस्थ और ओरकम भाव रखने वाले सांसारिक सभी मनुष्य, वर्णों, आश्रमों, स्त्रियों, पुरुषों, बालक-बालिकाओं और देवता आदि सभी देहधारियों के लिए शिवरात्रि का यह श्रेष्ठ व्रत हितकारक है। 

शिवरात्रि के दिन प्रातः उठकर स्नानादि कर शिव मंदिर में शिवलिंग का विधिवत पूजन कर नमन करें। रात्रि जागरण महाशिवरात्रि व्रत में विशेष फलदायी है। गीता में यह स्पष्ट किया गया है- 
या निशा सर्वभूतानं तस्य जर्ति संयमी।यस्यां जागृति भूतनी सा निशा पश्चतो सुमाः ान 
तात्पर्य यह कि विषयासक्त सांसारिक लोगों की जो रात्रि है, उसमें संयमी लोग ही जागृत अवस्था में रहते हैं और जहाँ शिवपूजा का अर्थ पुष्प, चंदन एवं बिल्वपत्र, धतूरा, भाँग आदि अर्पित कर भगवान शिव का जप व ध्यान करना और चित्त वृत्ति का निरोध करते हैं। जीवात्मा का परमात्मा शिव के साथ एकाकार होना ही मूल पूजा है। 

शिवरात्रि में चार प्रहरों में चार बार अलग-अलग विधि से पूजा का प्रावधान है। 
महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में भगवान शिव की ईशान प्रतिमा को स्नान कराएँ, दूसरे प्रहर में उनकी अघोर मूर्ति को दही से स्नान करवाएँ और तीसरे प्रहर में घी से स्नान कराएँ और चौथे प्रहर को उनकी सोनियाजत मूर्ति को मधु द्वारा स्नान करवाएँ। इससे भगवान आशुतोष अतिप्रसन्न होते हैं। 

प्रातःकाल विसर्जन और व्रत की महिमा का श्रवण कर अमावस्या को निम्न प्रार्थना कर पारण करें - 
संसार क्लेश दग्धता व्रतेनानेन शंकर।
प्रसीद समुखोनाथ, ज्ञान दृष्टिगोष्ठी र्जन 
तात्पर्य यह कि भगवान शंकर! मैं हर रोज़ संसार की यातना से, दुःखों से दग्ध हो रहा हूँ। 
इस व्रत से आप मुझ पर प्रसन्न हों और प्रभु संतुष्ट होकर मुझे ज्ञान दृष्टि प्रदान करें। 'वा नम: शिवाय' कहिए और देवादिदेव प्रसन्न होकर सब मनोरथ पूर्ण करेंगे। शिवरात्रि के दिन शिव को ताम्रफल (बादाम), कमल पुष्प, अफीम बीज और धतूरे का पुष्प चढ़ाना चाहिए और अभिषेक कर बिल्व पत्र चढ़ाना चाहिए। 


इसी तरह सर्वव्याधि निवारण के लिए इस मंत्र का जाप किया जाता है। शिवरात्रि में शिवोत्सव समूचेजैन में मनाया जाता है। इन दिनों भक्तवत्सल्य भगवान आशुतोष महाकलेश्वर का विशेष श्रृंगार किया जाता है, उन्हें विविध प्रकार के फूलों से फूल जाता है। यहाँ तक कि भक्तजन अपनी श्रद्धा का अर्पण इतने विविध रूपों में करते हैं कि देखकर आश्चर्य होता है। कोई बिल्वपत्र की लंबी घनी माला चढ़ाता है। कोई बेर, संतरा, प्रतिबंध, और दूसरे पैरों की माला के बारे में है। कोई अंतर चार्ट के पत्तों पर चंदन से अ बना कर अर्पित करता है। औढरदानी, प्रलयंकारी, दिगम्बर भगवान शिव का यह सुहाना सुसज्जित सुंदर स्वरूप देखने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। इसे 'सेहरा' के दर्शन कहा जाता है। 

अंत में श्री महाकालेश्वर से परम पुनीत प्रार्थना है कि इस शिवरात्रि में इस अखिल सृष्टि पर वे प्रसन्न होकर प्राणी मात्र का कल्याण करें - 'कर-चरणकृतं वक्कायजं कर्मजं वा श्रवन्नयनयनजं वा वासं देवश्रहमम्, विमितमविथं वा सर्वमेत्त्वस्य, जय-जय करुनाबधे, श्री महादेव शम्भु म्भ ' अर्थात हाथों से, पैरों से, वाणी से, शरीर से, कर्म से, कर्णों से, नेत्रों से या मन से भी हमने जो अपराध किया होगा, वे विहित हों या अविहित, उन सबको करुणासागर महादेव शवो को! क्षमा करें, और आपकी जय हो, जय हो।
ज्योतिषी कौशल पाण्डेय। मोबाइल नहीं है । 09968550003

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ